सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

18 Dec 2022 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (12 दिसंबर, 2022 से 16 दिसंबर, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को समय से पहले रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ बिल्किस बानो की पुनर्विचार याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 के फैसले पर बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने मई 2022 के फैसले में कहाथा कि गुजरात सरकार के पास उन 11 दोषियों के क्षमा आवेदनों को तय करने का अधिकार है, जिन्हें 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप और हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

    जस्टिस रस्तोगी की अगुवाई वाली पीठ ने मई, 2022 में फैसला सुनाया कि गुजरात सरकार के पास छूट के अनुरोध पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है, क्योंकि अपराध गुजरात में हुआ था। गुजरात हाईकोर्ट ने पहले माना कि महाराष्ट्र राज्य द्वारा छूट पर विचार किया जाना है, क्योंकि गुजरात से स्थानांतरण पर मुंबई में ट्रायल किया गया। बाद में 15 अगस्त, 2022 को सभी ग्यारह दोषियों को रिहा कर दिया गया। रिहा किए गए दोषियों के वीरतापूर्ण स्वागत के दृश्य सोशल मीडिया में वायरल हो गए, जिससे कई वर्गों में आक्रोश फैल गया। इस पृष्ठभूमि में दोषियों को दी गई राहत पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की गईं।

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    'वन बार, वन वोट का सख्ती से पालन किया जाए' सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन चुनाव की अनुमति दी

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जयपुर में राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन को शुक्रवार, 16 दिसंबर को राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार और 'वन बार, वन वोट' के सिद्धांत का उल्लंघन किए बिना पदाधिकारियों के पद के लिए चुनाव कराने की अनुमति दी।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने यह फैसला लिया, जो बार एसोसिएशन के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया है, क्योंकि याचिकाकर्ता बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता की कमी के बारे में शिकायत मिलने के बाद चुनाव पर रोक लगा दी थी। हालांकि हाईकोर्ट ने बार काउंसिल के आदेश पर रोक लगा दी थी, लेकिन बार एसोसिएशन के समक्ष अंतिम बाधा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति द्वारा अपील के रूप में आई।

    बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम प्रह्लाद शर्मा और अन्य। [एसएलपी (सी) नंबर. 23009-23011/2022]

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    आपराधिक शिकायत रद्द करने के लिए अस्पष्ट अत्यधिक देरी एक 'अत्यंत महत्वपूर्ण कारक' हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक आपराधिक शिकायत को रद्द करने के लिए अस्पष्ट अत्यधिक देरी को एक 'अत्यंत महत्वपूर्ण कारक' माना जा सकता है। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि कानून, निर्दोषों की रक्षा के लिए एक ढाल के रूप में मौजूद है, न कि इसका उन्हें डराने के लिए तलवार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इस मामले में वर्ष 2013 में, एक ड्रग इंस्पेक्टर ने आरोपी के परिसर का निरीक्षण किया और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम 1940 की धारा 18 (सी) सहपठित ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स 1945 नियम 65 (5) (1) (बी) का कथित उल्लंघन पाया।

    केस- हसमुखलाल डी वोरा बनाम तमिलनाडु राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 1033 | सीआरए 2310/ 2022 | 16 दिसंबर 2022 | जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस एस रवींद्र भट

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    पीसी एक्ट - रिश्वत की मांग को साबित किए बिना इसकी स्वीकृति या प्राप्ति दिखाने से ये अपराध नहीं होगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने गुरुवार को कहा कि रिश्वत देने वाले द्वारा किए गए प्रस्ताव या लोक सेवक द्वारा की गई मांग को स्थापित किए बिना, केवल अवैध रिश्वत की स्वीकृति या प्राप्ति, इसे धारा 7 या धारा 13 1)(डी)(i) या धारा 13(1)(डी)(ii) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत अपराध नहीं बनाएगी।

    केस : नीरज दत्ता बनाम राज्य (जीएनसीटीडी) |आपराधिक अपील संख्या-। 1669/2009 साइटेशन : 2022 लाइवलॉ ( SC ) 1029

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    GUJCOCA: 'संगठित अपराध' का कृत्य 'गैरकानूनी गतिविधि जारी रखने' के अलावा, अपराध की निरंतरता के कम से कम एक मामले द्वारा गठित किया गया हो : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (GUJCOCA) 2015 के तहत 'संगठित अपराध' का कृत्य गैरकानूनी गतिविधि जारी रखने' के अलावा, अपराध की निरंतरता के कम से कम एक मामले द्वारा गठित किया गया हो।

    इस मामले में गुजरात राज्य ने गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अलग-अलग अपराधों के लिए पूर्व में दर्ज की गई पांच एफआईआर को अभियुक्त की 'निरंतर गैरकानूनी गतिविधि' के रूप में नहीं माना जा सकता है ताकि 2015 अधिनियम के प्रावधानों के तहत उस पर ट्रायल चलाया जा सके। हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य बनाम शिवा उर्फ शिवाजी रामाजी सोनवने ( 2015) 14 SCC 272 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून का पालन किया था।

    केस विवरण- गुजरात राज्य बनाम संदीप ओमप्रकाश गुप्ता | 2022 लाइवलॉ (SC) 1031 | सीआरए 2291/ 2022 | 15 दिसंबर 2022 | जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस जेबी पारदीवाला

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    NEET-UG : नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग के प्राइवेट छात्रों के दाखिले में बाधा न डालें, सुप्रीम कोर्ट ने एनएमसी को निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद को एनईईटी-यूजी उम्मीदवार के दाखिले में बाधा नहीं डालने का निर्देश दिया, जिसने राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) से एक निजी छात्र के रूप में 10+2 पाठ्यक्रम पास किया था। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने की।

    एनईईटी-यूजी उम्मीदवार, याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे काउंसलिंग के लिए एडमिट किया गया है, मध्य प्रदेश और पंजाब राज्य इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वह अपनी कक्षा 11 की मार्कशीट जमा करे। उसने दावा किया कि अन्य राज्य इस तरह की प्रस्तुतियां करने का आग्रह नहीं कर रहे हैं।

    केस टाइटल: सृष्टि नायक और अन्य बनाम भारत सरकार और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) संख्या 26/2022

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    स्क्राइब्स की सुविधाएं देने के लिए बेंचमार्क डिसेबिलिटी पर जोर न दें: सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को निर्देश दिया कि वो स्क्राइब्स की सुविधाएं देने के लिए बेंचमार्क डिसेबिलिटी पर जोर न दें। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने की। यह याचिका स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की परीक्षा में बैठने वाले एक दिव्यांग उम्मीदवार ने दायर की थी।

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    यदि अन्य विश्वसनीय सबूतों द्वारा पुष्टि की जाती है तो मुकर चुके गवाह की गवाही पर आरोपी पर दोष सिद्ध किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि अन्य विश्वसनीय सबूतों द्वारा पुष्टि की जाती है तो " अपनी गवाही से मुकर चुके गवाह" की गवाही पर दोष सिद्ध करने के लिए कोई कानूनी रोक नहीं है। संविधान पीठ ने कहा, यह तथ्य कि एक गवाह को "मुकरा हुआ" घोषित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप उसके साक्ष्य की स्वतः अस्वीकृति नहीं होती है।

    जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने इस संदर्भ कि 'क्या रिश्वत मांगने या देने के संबंध में प्रत्यक्ष साक्ष्य के अभाव में, परिस्थितिजन्य अनुमानों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सजा हो सकती है, का 'सकारात्मक' जवाब देते हुए ये कहा है।

    केस विवरण- नीरज दत्ता बनाम राज्य (जीएनसीटीडी) | 2022 लाइवलॉ (SC) 1029 | सीआर ए 1669/ 2009 | 15 दिसंबर 2022 | जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बी वी नागरत्ना

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    धारा 34 आईपीसी| 'सामान्य इरादा' उसी क्षण और घटना के दरमियान बनाया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 34 के उद्देश्य के लिए 'सामान्य इरादा' का गठन क्षण भर में और घटना के दरमियान ही किया जा सकता है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 34 लागू होने के लिए सह-अपराधियों के बीच सामान्य इरादा होना चाहिए, जिसका अर्थ समुदाय का उद्देश्य और सामान्य योजना होना चाहिए।

    केस डिटेलः राजस्थान राज्य बनाम गुरबचन सिंह | 2022 लाइवलॉ (SC) 1028 | CRA 2201 OF 2011 | 7 दिसंबर 2022 | जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस सुधांशु धूलिया

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    सीआरपीसी की धारा 313 कोरी औपचारिकता नहीं, आरोपी को परिस्थितियों के बारे में बताना होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 313 सीआरपीसी के तहत एक आरोपी से पूछताछ करते समय, उसे उसके खिलाफ सबूतों में दिखाई देने वाली परिस्थितियों को स्पष्ट किया जाना चाहिए।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने कहा, "यदि अभियुक्त को उन साक्ष्यों में उसके खिलाफ दिखाई देने वाली महत्वपूर्ण परिस्थितियों के बारे में नहीं बताया गया है, जिस पर उसकी दोषसिद्धि आधारित होने की मांग की गई है, तो अभियुक्त अपने खिलाफ रिकॉर्ड में लाई गई उक्त परिस्थितियों को स्पष्ट करने की स्थिति में नहीं होगा। वह उचित तरीके से अपना बचाव करने में सक्षम नहीं होगा।"

    केस डिटेलः कालीचरण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 1027 | CRA 122 OF 2021 | 14 दिसंबर 2022 | जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका

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    विशिष्ट अदायगी वाद में न्यायालय स्वतः बयाना राशि की वापसी की राहत नहीं दे सकते, अगर इसके लिए विशेष रूप से प्रार्थना नहीं की गई है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक विशिष्ट अदायगी वाद में न्यायालय स्वतः बयाना राशि की वापसी की राहत नहीं दे सकते हैं यदि इसके लिए विशेष रूप से प्रार्थना नहीं की गई है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि जब तक कोई वादी विशेष रूप से वाद दायर करने के समय या संशोधन के माध्यम से बयाना राशि की वापसी की मांग नहीं करता है, तब तक उसे ऐसी कोई राहत नहीं दी जा सकती है।

    केस विवरण- देश राज बनाम रोहताश सिंह | 2022 लाइवलॉ (SC) 1026 | सीए 921 | 14 दिसंबर 2022/ 2022 | जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी

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    भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लोक सेवक को दोषी ठहराने के लिए रिश्वत की मांग का प्रत्यक्ष सबूत आवश्यक नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भ्रष्टाचार के मामले में कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक लोक सेवक को दोषी ठहराने के लिए रिश्वत की मांग का प्रत्यक्ष सबूत आवश्यक नहीं है और परिस्थितिजन्य सबूत के माध्यम से ऐसी मांग को साबित किया जा सकता है।

    मृत्यु या अन्य कारणों से शिकायतकर्ता का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध न होने पर भी पीसी अधिनियम के तहत लोक सेवक को दोषी ठहराया जा सकता है, रिश्वत की मांग परिस्थितियों के आधार पर निष्कर्षात्मक साक्ष्य के माध्यम से सिद्ध की जाती है।

    केस टाइटल: नीरज दत्ता बनाम राज्य (जीएनसीटीडी)| आपराधिक अपील नंबर 1669/2009

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    वकीलों को अपने विशेषाधिकार का उपयोग जिम्मेदारी से करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा में हड़ताली वकीलों के 'उपद्रवी व्यवहार' की निंदा की, सख्त पुलिस कार्रवाई की निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट की नई पीठों के गठन के लिए हड़ताल कर रहे राज्य के वकीलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया। कोर्ट ने बुधवार को ओडिशा सरकार और राज्य की पुलिस को कड़े शब्दों में कहा कि अदालत परिसर में तोड़फोड़ करने वाले हड़ताली वकीलों को 'नर्म मिज़ाज' का ना समझें ।

    कोर्ट ने कहा कि वह वकीलों के ऐसे अनियंत्रित हमलों की वेदी पर वादियों के हितों की बलि नहीं चढ़ने देगा। कोर्ट ने वकीलों को यह याद दिलाने का प्रयास किया कि उनका कर्तव्य न्याय पाने में वादियों की सहायता करना है, ना कि एक बाधा के रूप में कार्य करना है।

    [केस टाइटल: एम/एस पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड और अन्य। डायरी संख्या 33859/2022]

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    हाईकोर्ट के पास विशेष तरीके से जांच करने का निर्देश देने की शक्ति नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के पास भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 या दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत भी किसी विशेष तरीके से जांच करने का निर्देश देने की शक्ति नहीं है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा जारी निर्देश के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए यह बात कही।

    कथित रूप से सार्वजनिक धन के गबन में शामिल अभियुक्त द्वारा दायर जमानत अर्जी का निस्तारण करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि 'जो भी आगे की जांच की जानी है, उसे 31 अक्टूबर, 2022 तक पूरा किया जाना चाहिए, जिसकी समाप्ति के बाद याचिकाकर्ता को स्वतः निम्नलिखित नियमों और शर्तों पर रिहा किया जाए।

    केस विवरण- स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल बनाम संदीप बिस्वास | लाइवलॉ (SC) 1024/2022 | एसएलपी (सीआरएल) 10029/2022 | 9 दिसंबर, 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ।

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    वैवाहिक अधिकार की बहाली की कार्यवाही में विजिटेशन राइट /अस्थायी चाइल्‍ड कस्टडी का आदेश पारित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि विजिटिंग राइट (मुलाकात का अधिकार) या अस्‍थायी चाइल्ड कस्टडी के आदेश को हिंदू मैरिज एक्ट (रेस्टिटयूशन ऑफ कांज्यूगल राइट्स यानि वैवाहिक अधिकारों की बहाली) की धारा 9 की कार्यवाही के तहत पारित नहीं किया जा सकता है। मौजूदा मामले में पति ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 9 के तहत पुडुचेरी स्थित फैमिली कोर्ट के समक्ष वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक याचिका दायर की थी।

    केस डिटेलः प्रियंका बनाम संतोष कुमार | 2022 लाइवलॉ (SC) 1021 | Transfer Petition(Civil) 964 of 2021 | 8 December 2022| 8 दिसंबर 2022 | जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी

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    धारा 300 सीआरपीसी की प्रयोज्यता पर अभियुक्त की याचिका पर धारा 227 सीआरपीसी के तहत डिस्चार्ज स्टेज पर विचार किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 300 सीआरपीसी की प्रयोज्यता पर अभियुक्त की याचिका पर धारा 227 सीआरपीसी के तहत डिस्चार्ज के स्तर पर विचार किया जाना चाहिए। मामले में आरोपी ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष धारा 227 सहपठित धारा 300(1) सीआरपीसी के तहत डिस्चार्ज एप्लिकेशन दायर किया था।

    उसने तर्क दिया कि उसे अपहरण के अपराध से पहले ही बरी कर दिया गया था और उन्हीं तथ्यों के आधार पर उस पर हत्या के अपराध में मुकदमा चलाने की मांग की जा रही है। उन्हें इस आधार पर खारिज किया गया था कि इस तरह की आपत्ति आरोप तय करने के चरण में उठाई जा सकती है न कि डिस्चार्ज के स्टेज पर। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस आदेश को बरकरार रखा।

    केस डिटेलः चांदी पुलिया बनाम पश्चिम बंगाल राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 1019 | SLP(Criminal) 9897 of 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार

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    सिर्फ डिफ़ॉल्ट के आधार पर पहली निष्पादन याचिका को खारिज होने पर नई निष्पादन याचिका दायर करने से नहीं रोका जा सकता, बशर्ते यह समय के भीतर हो : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ डिफ़ॉल्ट के आधार पर पहली निष्पादन याचिका को खारिज होने पर डिक्री धारक को नई निष्पादन याचिका दायर करने से नहीं रोका जा सकता है, बशर्ते यह समय के भीतर हो। इस मामले में भाग्योदय सहकारी बैंक ने एक फर्म विमल ट्रेडर्स को वित्तीय सुविधा प्रदान की। चूंकि राशि का भुगतान नहीं किया गया था, इसलिए गुजरात सहकारी समिति अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू की गई थी।

    निर्णायक प्राधिकरण ने बैंक के पक्ष में एक फैसला पारित किया। अधिनियम की धारा 103 के तहत, फैसले को उसी तरह से निष्पादित किया जाना है जैसे सिविल कोर्ट की डिक्री। इसलिए समिति ने सिटी सिविल कोर्ट, अहमदाबाद के समक्ष निष्पादन आवेदन दायर किया। इस आवेदन को डिफ़ॉल्ट के लिए खारिज कर दिया गया था और बाद में बैंक ने एक और निष्पादन आवेदन दायर किया।

    केस विवरण- भाग्योदय सहकारी बैंक लिमिटेड बनाम रवींद्र बालकृष्ण पटेल (डी) | 2022 लाइवलॉ (SC) 1020 | सीए 8531-8532/ 2022 | 16 नवंबर 2022 | जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय

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    निष्पादन न्यायालय को आदेश XXI नियम 46ए सीपीसी के तहत गार्निशी के खिलाफ कार्यवाही करने से पहले आदेश XXI नियम 46 सीपीसी के तहत कर्ज कुर्क करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक निष्पादन न्यायालय को सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI नियम 46ए के तहत गार्निशी के खिलाफ कार्यवाही करने से पहले सीपीसी के आदेश XXI नियम 46 के तहत ऋण कुर्क किया जा सकता है।

    इस मामले में भाग्योदय सहकारी बैंक ने एक फर्म विमल ट्रेडर्स को वित्तीय सुविधा प्रदान की। चूंकि राशि का भुगतान नहीं किया गया था, इसलिए गुजरात सहकारी समिति अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू की गई थी। निर्णायक प्राधिकरण ने बैंक के पक्ष में एक फैसला पारित किया।

    केस विवरण- भाग्योदय सहकारी बैंक लिमिटेड बनाम रवींद्र बालकृष्ण पटेल (डी) | 2022 लाइवलॉ (SC) 1020 | सीए 8531-8532 | 16 नवंबर 2022/ 2022 | जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय

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    अगर मध्यस्थता अवार्ड लागू नहीं किये जाएंगे तो भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र नहीं बन सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौखिक रूप से कहा कि अगर मध्यस्थता अवार्ड लागू नहीं किये जाते हैं तो भारत एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र बनने की आकांक्षा नहीं रख सकता।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड (डीएएमईपीएल) द्वारा दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ( डीएमआरसी) के खिलाफ उसके पक्ष में पारित 7200 करोड़ रुपये के अवार्ड के प्रवर्तन के संबंध में दायर याचिका पर विचार करते हुए यह अवलोकन किया।

    केस : दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड बनाम दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड |डायरी नंबर- 37734 - 2022

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    प्रमोशन देने में सेना महिला अधिकारियों के साथ उचित व्यवहार नहीं कर रही है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने महिला सेना अधिकारियों के लिए रैंक प्रमोशन की मांग वाली एक याचिका में दायर एक आवेदन में शुक्रवार को सेना के अधिकारियों (रक्षा मंत्रालय) को आगाह किया कि वह महिला सेना अधिकारियों की प्रमोशन सुनिश्चित करने के लिए अस्थायी आदेश पारित करेगा। कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि अधिकारी, महिला अधिकारियों के साथ उचित व्यवहार नहीं कर रहे हैं।

    सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने इस मामले में उपस्थित एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन को संदेश दिया कि सेना के अधिकारियों को अपने घर को व्यवस्थित करना चाहिए और उनके द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में खंडपीठ को अवगत कराना चाहिए। महिला सेना अधिकारियों की प्रमोशन सुनिश्चित करें।

    [केस टाइटल: निशा बनाम भारत संघ एमए 1913/2022 WP(C) नंबर 1109/2020 ]

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