हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (24 नवंबर, 2025 से 28 नवंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
बिना ड्राइविंग लाइसेंस वाहन चलाने से दुर्घटना में मृत व्यक्ति पर सह-लापरवाही का दोष नहीं लगाया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि दुर्घटना के समय मृत व्यक्ति के पास ड्राइविंग लाइसेंस न होना उसे सह-लापरवाही का दोषी नहीं बनाता। अदालत ने कहा कि लाइसेंस न होने पर उसके खिलाफ मोटर वाहन अधिनियम के तहत केवल दंडात्मक कार्यवाही की जा सकती थी परंतु इसे दुर्घटना में उसके योगदान के रूप में नहीं देखा जा सकता।
जस्टिस जिया लाल भारद्वाज की पीठ ने टिप्पणी की कि यदि मृतक के पास लाइसेंस नहीं था तो यह स्थिति उसके खिलाफ दुर्घटना का कारण या आंशिक जिम्मेदारी निर्धारित करने का आधार नहीं बन सकती। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दुर्घटना का मूल कारण और वास्तविक लापरवाही वाहन चालक (टिप्पर ट्रक) की थी न कि मृत बालक की।
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NEET एडमिशन पर राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: कक्षा 11 में जीवविज्ञान अनिवार्य नहीं, कक्षा 12 में अतिरिक्त विषय के रूप में लेने पर भी मान्य
राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में उस अभ्यर्थी को राहत दी, जिसकी NEET 2025 में सफलता के बावजूद MBBS एडमिशन इसलिए रद्द कर दिया गया, क्योंकि उसने कक्षा 11 में जीवविज्ञान विषय नहीं पढ़ा था। अभ्यर्थी ने यह विषय केवल कक्षा 12 में अतिरिक्त विषय के रूप में लिया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि कक्षा 11 में जीवविज्ञान पढ़ना प्रवेश के लिए अनिवार्य नहीं है।
जस्टिस डॉ. नूपुर भाटी की एकलपीठ ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा वर्ष 2023 में जारी सार्वजनिक सूचना और उससे जारी सूचना पुस्तिका का हवाला देते हुए कहा कि इन दस्तावेज़ों में कक्षा 11 में जीवविज्ञान रखने का कोई अनिवार्य प्रावधान नहीं है। अदालत के अनुसार आयोग का आशय यही था कि यदि अभ्यर्थी ने कक्षा 12 उत्तीर्ण करते समय जीवविज्ञान या जैव प्रौद्योगिकी को मुख्य या अतिरिक्त विषय के रूप में लिया है तो वह पात्र माना जाएगा।
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पासपोर्ट पाना संवैधानिक अधिकार, नागरिकों को विदेश यात्रा के लिए 'ज़रूरत' साबित करने की ज़रूरत नहीं: जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट
इस बात पर ज़ोर देते हुए कि पासपोर्ट रखने का अधिकार सीधे तौर पर एक नागरिक के निजी आज़ादी के बुनियादी अधिकार से आता है, जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को पासपोर्ट या नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) पाने के लिए विदेश यात्रा की कोई ज़रूरी या अर्जेंट ज़रूरत दिखाने की ज़रूरत नहीं है।
जस्टिस संजय धर ने यह ज़रूरी बात एंटीकरप्शन, अनंतनाग के स्पेशल जज का आदेश रद्द करते हुए कही, जिसमें उन्होंने NOC जारी करने की एप्लीकेशन को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि एप्लीकेंट ने विदेश यात्रा की कोई अर्जेंट ज़रूरत नहीं दिखाई।
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कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम | EPFO देनदार को पहले नोटिस दिए बिना धारा 8-F के तहत रोक लगाने का आदेश जारी नहीं कर सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 की धारा 8-F के तहत, नियोक्ता के देनदार को पहले नोटिस दिए बिना और धारा 8-F(3)(i) और (vi) के तहत अनिवार्य रूप से शपथ पत्र पर बयान दर्ज करने का अवसर दिए बिना रोक लगाने का आदेश जारी नहीं कर सकता। कोर्ट ने पाया कि विवादित आदेश वैधानिक योजना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए पारित किया गया।
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तलाक के बाद भरण–पोषण का अधिकार पत्नी के पुनर्विवाह से समाप्त नहीं होता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 3(1) के तहत दायर याचिका का लंबा लंबित रह जाना उसके अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि तलाक की तारीख पर महिला को जो लाभ प्राप्त हो चुके थे, वे उसके बाद विवाह करने पर भी समाप्त नहीं होते।
डॉ. जस्टिस काउसर एडप्पगथ ने यह निर्णय पूर्व पति द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका व मूल याचिका को खारिज करते हुए दिया। पति ने आदेशों को चुनौती दी, जिनमें उसे तलाकशुदा पत्नी और नाबालिग बेटी के लिए भरण–पोषण और उचित व न्यायसंगत प्रावधान देने का निर्देश दिया गया।
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रिटायरमेंट के बाद सेवा विस्तार संभव नहीं, परंतु पदोन्नति के आधार पर सीमित वित्तीय लाभ मिलेंगे: गुवाहाटी हाईकोर्ट
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि रिटायरमेंट के बाद पदोन्नति के आधार पर सेवा अवधि बढ़ाना कानून के अनुरूप नहीं है। ऐसी किसी भी सिफारिश को कर्मचारी के रिटायरमेंट हो जाने के बाद प्रभावी नहीं किया जा सकता। हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि कैरियर उन्नयन योजना के तहत की गई पदोन्नति को केवल पेंशन रूप से मान्य कर वित्तीय लाभ दिए जा सकते हैं। भले ही कर्मचारी वास्तविक रूप से उच्च पद पर कार्यभार ग्रहण न कर पाया हो।
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दूसरी पत्नी का खर्च बताकर पहली पत्नी का भरण-पोषण नहीं टाला जा सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पहली शादी के दौरान दूसरी शादी करने वाला मुस्लिम पति यह तर्क नहीं दे सकता कि उसके पास पहली पत्नी का भरण-पोषण करने के साधन नहीं हैं।
जस्टिस डॉ. काउसर एडप्पगाथ यह टिप्पणी उस मामले में कर रहे थे, जिसमें पति ने फैमिली कोर्ट द्वारा पहली पत्नी को भरण-पोषण देने और बेटे के खिलाफ उसकी याचिका खारिज करने के आदेश को चुनौती दी थी। पति ने दावा किया कि वह बेरोजगार है, जबकि पत्नी ब्यूटी पार्लर चलाती है, और यह भी कहा कि वह दूसरी पत्नी का भरण-पोषण कर रहा है, इसलिए पहली पत्नी को रकम नहीं दे सकता।
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घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत आपराधिक कार्यवाही नहीं; मजिस्ट्रेट को समन वापस लेने का अधिकार: हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत की गई कार्यवाही को फौजदारी शिकायत दर्ज करने या आपराधिक मुकदमा शुरू करने के बराबर नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल मजिस्ट्रेट, जब पति या उसके संबंधियों से जवाब प्राप्त कर लेता है, तो वह चाहें तो समन वापस ले सकता है या अगर पाता है कि पक्षकारों को बिना कारण शामिल किया गया है, तो पूरी कार्यवाही भी ख़त्म कर सकता है।
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बिना वजह बताए GST रजिस्ट्रेशन निरस्त नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि GST रजिस्ट्रेशन कैंसिल करते समय अधिकारियों को वजह बताते हुए ऑर्डर पास करने होंगे। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो ऑर्डर कानून की नज़र में मान्य नहीं होगा। जस्टिस पीयूष अग्रवाल ने कहा, "जब याचिकाकर्ता को बिना किसी सही नोटिस दिए या सुनवाई का कोई मौका दिए बिना कैंसलेशन ऑर्डर पास किया गया तो यह खुद ही नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों का उल्लंघन है।"
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SC/ST Act केस को S14-A के तहत अपील में सीधे कंपाउंड किया जा सकता है; CrPC की धारा 482 का सहारा लेने की ज़रूरत नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि शेड्यूल्ड कास्ट्स एंड द शेड्यूल्ड ट्राइब्स (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़) एक्ट, 1989 (SC/ST Act) के तहत क्रिमिनल प्रोसीडिंग्स को, 1989 एक्ट की धारा 14-A(1) के तहत फाइल की गई क्रिमिनल अपील में समझौते के आधार पर सीधे कंपाउंड और रद्द किया जा सकता है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव की बेंच ने कहा कि जब अपील का कानूनी उपाय मौजूद है तो समझौता करने के लिए CrPC की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट की अंदरूनी शक्तियों का अलग से सहारा लेने की कोई ज़रूरत नहीं है।
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सहकारी बैंक अधिकारी भी 'लोक सेवक'; तकनीकी क्लीन-चिट FIR रोकने का आधार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा नियंत्रित या सहायता प्राप्त सहकारी बैंकों के कर्मचारी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत 'लोक सेवक' की श्रेणी में आते हैं, और इस आधार पर दर्ज की गई FIR वैध है।
अदालत ने यह भी माना कि विभागीय जांच में दी गई मात्र 'तकनीकी दोषमुक्ति', जिसमें जांच अधिकारी ने यह कहा कि वह असंगत संपत्ति के आरोपों की जांच करने में सक्षम नहीं है, FIR दर्ज होने से रोकने का कानूनी आधार नहीं बन सकती। मामला उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड के डिप्टी जनरल मैनेजर सुभाष चंद्र से संबंधित था, जिन पर लगभग ₹3.77 करोड़ की असंगत संपत्ति रखने का आरोप लगाते हुए PC Act की धारा 13(1)(b) और 13(2) के तहत FIR दर्ज की गई थी।
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BNSS की धारा 106 के तहत जांच एजेंसी को बैंक खाता फ्रीज करने का अधिकार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: BNSS की धारा 106 के तहत पुलिस बैंक खाते फ्रीज नहीं कर सकती, अटैचमेंट केवल मजिस्ट्रेट के आदेश से संभव बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी जांच एजेंसी को भारतिया नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 106 के तहत बैंक खाता फ्रीज या अटैच करने का अधिकार नहीं है।
अदालत ने कहा कि धारा 106 केवल जांच के उद्देश्य से संपत्ति जप्त करने की अनुमति देती है, जबकि बैंक खाते का अटैचमेंट या अपराध से अर्जित धन को रोकना केवल धारा 107 के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश से ही किया जा सकता है।
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S.144 BNSS | अगर पत्नी की टेम्पररी नौकरी से इनकम काफ़ी नहीं है तो वह पति से भरण-पोषण का दावा करने की हक़दार नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में साफ़ किया कि अगर पत्नी कहती है कि उसकी इनकम काफ़ी नहीं है तो वह CrPC की धारा 125 CrPC/BNSS की धारा 144 के तहत अपने पति से मेंटेनेंस क्लेम करने से हक़दार नहीं होगी, भले ही उसके पास टेम्पररी नौकरी हो जिससे उसे कुछ इनकम हो रही हो।
डॉ. जस्टिस कौसर एडप्पागथ एक पत्नी की अपने पति के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसमें उसने अपने दो बच्चों को दिए जाने वाले मेंटेनेंस की रकम और फ़ैमिली कोर्ट द्वारा उसके क्लेम को खारिज़ करने को चुनौती दी थी। पति ने बच्चों को दिए जाने वाले मेंटेनेंस की रकम को भी चुनौती दी थी।
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SC/ST समुदाय की भूमि बेदखली शिकायत को 'सिविल विवाद' बताकर FIR दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती पुलिस: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा: SC/ST समुदाय की भूमि से बेदखली की शिकायत पर FIR दर्ज करना अनिवार्य, पुलिस “सिविल विवाद” बताकर इनकार नहीं कर सकती मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की भूमि से बेदखली या अवैध कब्जे की शिकायत को पुलिस केवल यह कहकर खारिज नहीं कर सकती कि मामला “सिविल विवाद” है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 18A के तहत यदि शिकायत में संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो पुलिस प्रारंभिक जांच किए बिना FIR दर्ज करने के लिए बाध्य है।
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ऊंचे पद पर काम करने वाला कर्मचारी बिना फॉर्मल प्रमोशन के भी उस पद की सैलरी पाने का हकदार: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक कर्मचारी जिसने ऊंचे पद पर ऑफिसिएटिंग कैपेसिटी में काम किया, भले ही वह रेगुलर प्रमोट न हुआ हो, वह उस समय के लिए उस ऊंचे पद के लिए मिलने वाली सैलरी पाने का हकदार है। चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की बेंच ने कहा कि ऊंचे पद के लिए सैलरी न देना "कानून के खिलाफ और पब्लिक पॉलिसी के भी खिलाफ" होगा।
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'माता-पिता की देखभाल करना बच्चों की क़ानूनी ज़िम्मेदारी, उनकी प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा होने की शर्त पर नहीं': बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि माता-पिता की देखभाल और भरण-पोषण करने की बच्चों की ज़िम्मेदारी, मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ़ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिज़न्स एक्ट, 2007 के तहत बिना शर्त कानूनी ज़िम्मेदारी है। यह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि बच्चे के पास माता-पिता की प्रॉपर्टी है या नहीं, या वह उसे विरासत में मिलेगी या नहीं।
कोर्ट ने कहा कि बुज़ुर्ग और मेडिकली कमज़ोर माता-पिता को छोड़ना या उनकी अनदेखी करना, सीनियर सिटिज़न्स के लिए सम्मान, सेहत और एक अच्छी ज़िंदगी पक्की करने वाली संवैधानिक और कानूनी गारंटी के दिल पर चोट करता है।
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कई केस पेंडिंग होने से कोई नाबालिग सुधार के लिए नाकाबिल नहीं हो जाता: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि सिर्फ केस पेंडिंग होने से किसी नाबालिग को सुधरने के लिए नाकाबिल या अयोग्य नहीं माना जा सकता। जस्टिस अरुण कुमार झा की सिंगल-जज बेंच एक क्रिमिनल रिवीजन याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी। इसने याचिकाकर्ता को जमानत देने से जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के इनकार को सही ठहराया था।
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पुनर्वास की कोई गुंजाइश न होने के बावजूद तलाक का विरोध करना और इससे संतुष्टि पाना क्रूरता: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक पत्नी द्वारा फैमिली कोर्ट के तलाक न देने के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर एक पति या पत्नी साथ रहने की कोई संभावना न होने के बावजूद तलाक का विरोध करता है तो दूसरे पक्ष के लगातार दुख और तनाव से संतुष्टि पाने का ऐसा व्यवहार अपने आप में क्रूरता माना जा सकता है।
जस्टिस विशाल धागट और जस्टिस बीपी शर्मा की डिवीजन बेंच ने कहा, "दूसरा पक्ष तलाक की अर्जी का विरोध करता है, जबकि उनके साथ रहने की कोई संभावना नहीं है। दूसरे पक्ष की मुश्किलों और तनाव से खुशी पाने का यह व्यवहार भी क्रूरता है।"