सहकारी बैंक अधिकारी भी 'लोक सेवक'; तकनीकी क्लीन-चिट FIR रोकने का आधार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Praveen Mishra
25 Nov 2025 6:05 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा नियंत्रित या सहायता प्राप्त सहकारी बैंकों के कर्मचारी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत 'लोक सेवक' की श्रेणी में आते हैं, और इस आधार पर दर्ज की गई FIR वैध है।
अदालत ने यह भी माना कि विभागीय जांच में दी गई मात्र 'तकनीकी दोषमुक्ति', जिसमें जांच अधिकारी ने यह कहा कि वह असंगत संपत्ति के आरोपों की जांच करने में सक्षम नहीं है, FIR दर्ज होने से रोकने का कानूनी आधार नहीं बन सकती। मामला उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड के डिप्टी जनरल मैनेजर सुभाष चंद्र से संबंधित था, जिन पर लगभग ₹3.77 करोड़ की असंगत संपत्ति रखने का आरोप लगाते हुए PC Act की धारा 13(1)(b) और 13(2) के तहत FIR दर्ज की गई थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सहकारी बैंक का कर्मचारी लोक सेवक नहीं माना जा सकता और 2018 की विभागीय जांच में उसे दोषमुक्त किया जा चुका है। परंतु हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों (Govt. of A.P. v. Venku Reddy, CBI v. Ramesh Gelli) और उत्तर प्रदेश सहकारी समितियां अधिनियम, 1965 की धारा 124 का हवाला देते हुए कहा कि सहकारी बैंक के अधिकारी “लोक सेवक” हैं और उन पर PC Act पूरी तरह लागू होता है।
अदालत ने जांच रिपोर्ट में दर्ज टिप्पणी—“इस विषय की जांच हेतु वह सक्षम नहीं हैं”—का उल्लेख करते हुए कहा कि जांच अधिकारी ने आरोपों की मेरिट पर कोई निर्णय नहीं दिया था, इसलिए इसे दोषमुक्ति नहीं माना जा सकता। अंततः, अदालत ने माना कि FIR में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है और याचिका खारिज कर दी।

