घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत आपराधिक कार्यवाही नहीं; मजिस्ट्रेट को समन वापस लेने का अधिकार: हाईकोर्ट

Praveen Mishra

26 Nov 2025 3:32 PM IST

  • घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत आपराधिक कार्यवाही नहीं; मजिस्ट्रेट को समन वापस लेने का अधिकार: हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत की गई कार्यवाही को फौजदारी शिकायत दर्ज करने या आपराधिक मुकदमा शुरू करने के बराबर नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल मजिस्ट्रेट, जब पति या उसके संबंधियों से जवाब प्राप्त कर लेता है, तो वह चाहें तो समन वापस ले सकता है या अगर पाता है कि पक्षकारों को बिना कारण शामिल किया गया है, तो पूरी कार्यवाही भी ख़त्म कर सकता है।

    यह मामला धारा 12 के तहत शुरू हुई कार्यवाही और मजिस्ट्रेट द्वारा पत्नी एवं नाबालिग बेटी के पक्ष में दिए गए अंतरिम मौद्रिक राहत आदेश को चुनौती देने वाली याचिका से संबंधित था। याचिकाकर्ताओं (पति और उसके रिश्तेदारों) ने दावा किया कि आरोप अस्पष्ट हैं और रिश्तेदारों को बिना किसी आधार के मुकदमे में घसीटा गया है।

    जस्टिस संजय धर की एकल पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि, “धारा 12 की कार्यवाही को आपराधिक शिकायत या अभियोजन की शुरुआत के समान नहीं समझा जा सकता। पति और उसके रिश्तेदारों का जवाब मिलने के बाद मजिस्ट्रेट समन वापस ले सकता है या कार्यवाही ख़त्म कर सकता है।”

    मामले की पृष्ठभूमि यह है कि पत्नी और नाबालिग बेटी ने घरेलू हिंसा, उत्पीड़न और क्रूरता के आरोप लगाते हुए धारा 12 के तहत मजिस्ट्रेट, श्रीनगर के समक्ष आवेदन दायर किया था। मजिस्ट्रेट ने नोटिस जारी किया और बाद में पति को प्रतिमाह मौद्रिक सहायता व किराया देने का आदेश दिया।

    इस निर्णय को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का रुख किया। उनका कहना था कि शिकायत बिना किसी जांच या संतुष्टि के स्वीकार कर ली गई और रिश्तेदारों को दबाव बनाने के लिए अनावश्यक रूप से शामिल किया गया। उन्होंने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट, बिना उचित आधार के समन जारी नहीं कर सकता था और इसलिए पूरी कार्यवाही अवैध है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 12 के तहत कार्यवाही का स्वरूप आपराधिक मुकदमे से बिल्कुल अलग है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि—

    “यदि मजिस्ट्रेट जवाब पढ़कर पाता है कि पति के रिश्तेदारों को अनावश्यक रूप से घसीटा गया है, तो वह उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर सकता है।”

    कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि धारा 12 की कार्यवाही कठोर आपराधिक कार्यवाही नहीं है, इसलिए मजिस्ट्रेट का आदेश बदलने या वापस लेने पर भी कोई रोक नहीं लगती। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय कमाची बनाम लक्ष्मी नारायणन का हवाला देते हुए कोर्ट ने दोहराया कि धारा 12 के तहत नोटिस केवल जवाब प्राप्त करने के लिए जारी होता है, ताकि मजिस्ट्रेट दोनों पक्षों को सुनकर उचित आदेश दे सके—इस स्तर पर Adalat Prasad का सिद्धांत लागू नहीं होता।

    इन कारणों के आधार पर हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो ट्रायल मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही खत्म करने (dropping proceedings) के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि मजिस्ट्रेट ऐसे आवेदन पर शीघ्र निर्णय ले और हालात के अनुसार अंतरिम मौद्रिक राहत के आदेश पर पुनर्विचार भी कर सकता है।

    कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ता 10 दिनों के भीतर ऐसा आवेदन दायर करते हैं, तो आवेदन के निपटारे तक अन्य याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही स्थगित रहेगी।

    इन्हीं दिशानिर्देशों के साथ याचिका निस्तारित कर दी गई।

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