हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (18 मई, 2025 से 23 मई, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 'सामाजिक-आर्थिक मानदंड' के आधार पर बोनस अंक देने वाली हरियाणा सरकार की भर्ती अधिसूचना को असंवैधानिक घोषित किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार की वर्ष 2019 की अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसमें ग्रुप बी और सी पदों के लिए भर्ती में "सामाजिक-आर्थिक मानदंड और अनुभव" के लिए 10 बोनस अंक दिए जाने की बात कही गई थी। न्यायालय ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन माना है।
जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस मीनाक्षी आई मेहता की खंडपीठ ने कहा, "हमें लगता है कि बोनस अंक दिए जाने के कारण चयन प्रक्रिया "दूषित" हो गई है। यदि चयन प्रक्रिया से बोनस अंक हटा दिए जाते, तो योग्य उम्मीदवारों का चयन किया जाता। ऐसा चयन जो केवल बोनस अंक प्राप्त करने पर आधारित है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।"
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वैज्ञानिक साक्ष्य के बिना नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर पेटेंट अस्वीकार करना अवैध: कोलकाता हाईकोर्ट
कोलकाता हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि किसी आविष्कार को केवल नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर वह भी बिना किसी वैज्ञानिक या तकनीकी साक्ष्य के पेटेंट देने से इनकार करना कानूनन टिकाऊ नहीं है। यह टिप्पणी जस्टिस रवि किशन कपूर ने ITC लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दी, जिसमें ऐसे हीटर असेंबली के पेटेंट की मांग की गई थी, जो एरोसोल उत्पन्न करने के लिए डिजाइन किया गया था।
पेटेंट कंट्रोलर ने इस आविष्कार को जन स्वास्थ्य और नैतिकता के आधार पर विशेष रूप से ई-सिगरेट निषेध अधिनियम 2019 का हवाला देते हुए पेटेंट देने से मना कर दिया था। लेकिन हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह फैसला पूर्वग्रहपूर्ण था। केवल इस धारणा पर आधारित था कि सभी तंबाकू उत्पाद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, जबकि इस मामले में आविष्कार के उपयोग से संबंधित कोई वैज्ञानिक या तकनीकी सबूत पेश नहीं किया गया।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 69,000 सहायक शिक्षकों को EWS आरक्षण देने से इनकार करने का फैसला बरकरार रखा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2020 में आयोजित सहायक अध्यापकों के पद पर भर्ती के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ देने से इनकार करने वाले एकल जज का आदेश बरकरार रखा है। एकल जज ने 2020 में आयोजित भर्ती के उम्मीदवारों को लाभ देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि यह प्रक्रिया उत्तर प्रदेश लोक सेवा (EWS के लिए आरक्षण) अधिनियम, 2020 के अधिनियमन से पहले शुरू की गई।
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने माना था कि यद्यपि भर्ती की प्रक्रिया 103वें संविधान संशोधन के बाद शुरू हुई थी, लेकिन उत्तर प्रदेश लोक सेवा (EWS के लिए आरक्षण) अधिनियम, 2020 (यू.पी. अधिनियम नंबर 10, 2020) भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद लागू किया गया था। इसलिए अधिनियम को सहायक अध्यापकों के 69000 पदों पर भर्ती के लिए लागू नहीं माना गया।
Case Title: Shivam Pandey And 5 Others v. State Of U.P., Through Secretary Department Of Basic Education, Government Of U.P. And 2 Others [SPECIAL APPEAL No. - 259 of 2024]
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Narsinghanand Case | 'जुबैर के ट्वीट नहीं करते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन, जांच से पता चलेगा कि अपराध हुआ या नहीं': इलाहाबाद हाईकोर्ट
यति नरसिंहानंद के 'विवादास्पद' भाषणों पर उनके ट्वीट ('X' पोस्ट) को लेकर ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जुबैर के पोस्ट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करते हैं, लेकिन केवल जांच के माध्यम से ही यह निर्धारित किया जा सकता है कि उनके खिलाफ कोई अपराध, जैसा कि आरोप लगाया गया, बनता है या नहीं।
Case title - Mohammed Zubair vs. State Of Uttar Pradesh And 3 Others 2025 LiveLaw (AB) 186
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NDTV के पूर्व प्रमोटरों प्रणय रॉय और राधिका रॉय के खिलाफ LOC जारी रखना निरर्थक : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार (16 मई) को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि NDTV के पूर्व निदेशक और प्रमोटर प्रणय रॉय और राधिका रॉय के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा 2019 में जारी लुकआउट सर्कुलर (LOC) को जारी रखना अब निरर्थक होगा।
जस्टिस सचिन दत्ता ने यह टिप्पणी उस समय की, जब CBI ने LOC का बचाव करते हुए कहा कि इसे रॉय दंपत्ति की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए खुला रखा गया।
टाइटल: डॉ. प्रणय रॉय एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य
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'नाम में क्या रखा है': शेक्सपियर का हवाला देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा- मां को बच्चे के शैक्षणिक रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने का पूरा अधिकार
'नाटककार विलियम शेक्सपियर के "रोमियो एंड जूलियट से उद्धरण नाम में क्या रखा है?" का हवाला देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि नाम ही सब कुछ है, कहा कि यह किसी की कानूनी, सामाजिक और भावनात्मक पहचान का आधार है। इसलिए जन्मदाता होने के नाते मां को अपने बच्चों के शैक्षणिक रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने का पूरा अधिकार है।
टाइटल: चिराग नरुका बनाम अध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान अजमेर और अन्य।
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त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई भ्रामक सुरक्षा नहीं, MACOCA मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कम नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
बात पर जोर देते हुए कि त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई भ्रामक सुरक्षा नहीं है, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को केवल इसलिए कम नहीं किया जा सकता, क्योंकि मामला महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम 1999 (MACOCA) के अंतर्गत आता है।
जस्टिस संजीव नरूला ने कहा, “भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हमारे संवैधानिक न्यायशास्त्र में अब दृढ़ता से समाहित त्वरित सुनवाई का अधिकार कोई अमूर्त या भ्रामक सुरक्षा नहीं है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का महत्वपूर्ण पहलू है। इसे केवल इसलिए कम नहीं किया जा सकता, क्योंकि मामला MACOCA जैसे विशेष कानून के अंतर्गत आता है।”
केस टाइटल: जितेन्द्र दीक्षित बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली)
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IPC की धारा 377 वैवाहिक संबंधों में पति पर लागू नहीं हो सकती: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक संबंधों में पति और पत्नी के बीच गैर-पेनील-वजाइनल यौन संबंध (जैसे ओरल या एनल सेक्स) को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत अपराध नहीं ठहराया जा सकता। जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, "ऐसी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट के नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत सरकार' फैसले में दिए गए तर्क और टिप्पणियों के अनुरूप होगी।"
केस टाइटल: SK बनाम राज्य (NCT) दिल्ली
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शादी का झूठा वादा करने और बार-बार शादी टालने के आधार पर बलात्कार का आरोप - बलात्कार का आधार नहीं हो सकता: HP हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह से इनकार करने के स्पष्ट आरोप के अभाव में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोप तय नहीं किए जा सकते। न्यायालय ने टिप्पणी की कि जब पक्षकार पांच साल से लंबे समय से रिश्ते में हैं तो यह निर्धारित करना मुश्किल हो जाता है कि उनका यौन संबंध केवल विवाह करने के वादे पर आधारित था।
जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा, "शिकायत में एक भी ऐसा कथन नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता से विवाह करने से इनकार कर दिया था या उनके बीच विवाह असंभव हो गया था। तथ्य यह है कि पक्षों ने पांच साल तक संबंध बनाए रखा, जिससे यह मानना मुश्किल हो जाता है कि यौन संबंध विवाह करने के वादे पर आधारित था।"
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बार-बार अवज्ञा और आदेशों का पालन न करने पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा न्यायोचित; हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक सरकारी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि वरिष्ठों के आदेशों की बार-बार अवज्ञा को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इससे अनुशासनहीनता और अव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
जस्टिस सत्येन वैद्य ने कहा, "वरिष्ठों के आदेशों का बार-बार पालन न करने की अवज्ञा को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इससे प्रतिवादी विश्वविद्यालय जैसे सार्वजनिक संस्थान में अनुशासनहीनता और अव्यवस्था पैदा होगी।"
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Rent Control Act | बेदखली के मुकदमों में लाइसेंसधारी लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट के विपरीत सबूत पेश नहीं कर सकता, भले ही वह अलिखित हो: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र रेंट कंट्रोल एक्ट, 1999 की धारा 43(4) के साथ धारा 24 (बी) के दायरे को स्पष्ट किया। जस्टिस माधव जे जामदार की पीठ ने कहा, “महाराष्ट्र रेंट एक्ट की धारा 24 के स्पष्टीकरण के खंड (बी) के तहत अनुमान केवल तभी लागू होता है जब निवास के लिए लाइसेंस पर दिए गए परिसर से संबंधित बेदखली के लिए आवेदन दायर किया जाता है। अन्य कार्यवाहियों में, उक्त अनुमान लागू नहीं हो सकता है। इसलिए, आवासीय उपयोग के लिए दिए गए परिसर के संबंध में अनुमति और लाइसेंस के लिखित समझौते के गैर-पंजीकरण के बावजूद, जब महाराष्ट्र रेंट एक्ट की धारा 24 के तहत आवेदन किया जाता है तो उक्त खंड (बी) ऐसे समझौते पर लागू होगा और लाइसेंसधारी के लिए उक्त समझौते में दिए गए नियमों और शर्तों के विपरीत कोई सबूत पेश करना खुला नहीं होगा।”
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ईसाई कानून के तहत शादी करने से व्यक्ति हिंदू अनुसूचित जाति का दर्जा खो देता है, एससी आरक्षण का दावा नहीं कर सकता: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब कोई व्यक्ति भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के तहत स्वेच्छा से विवाह करने के लिए खुद को प्रस्तुत करता है तो उसे उसके बाद ईसाई माना जाएगा और उसका मूल धर्म स्वतः ही त्याग दिया जाएगा। जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी ने इस प्रकार माना कि कन्याकुमारी के थेरूर नगर पंचायत की वर्तमान अध्यक्ष एससी समुदाय के लिए आरक्षित पद को धारण करने के लिए अयोग्य हैं, क्योंकि उन्होंने ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। इस प्रकार उन्हें हिंदू अनुसूचित जाति पालन की अपनी मूल सामाजिक पहचान को त्यागने के लिए माना जाता है।
केस टाइटल: वी अय्यप्पन बनाम जिला कलेक्टर और अन्य
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पंचायतों से राज्य सेवा में शामिल शिक्षक ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम के तहत ग्रेच्युटी के हकदार: एमपी हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक जैन की एकल पीठ ने मध्य प्रदेश राज्य द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में राज्य सेवा में शामिल शिक्षकों को ग्रेच्युटी देने के आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने माना कि पंचायतों से राज्य सेवा में शामिल शिक्षक ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत ग्रेच्युटी के हकदार हैं और उनके शामिल होने से पहले की सेवा अवधि को ग्रेच्युटी गणना में गिना जाना चाहिए।
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संभल मस्जिद संरक्षित स्मारक; हिंदू वादी केवल प्रवेश की मांग कर रहे हैं, धार्मिक चरित्र में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
संभल की शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण करने के लिए एडवोकेट कमिश्नर को निर्देश देने वाले ट्रायल कोर्ट के नवंबर 2024 के आदेश के खिलाफ मस्जिद समिति की याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश बरकरार रखा।
इसके साथ ही जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया हिंदू वादियों द्वारा दायर मुकदमा - जिसमें दावा किया गया कि मस्जिद का निर्माण 1526 में वहां मौजूद हिंदू मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया था - पूजा स्थल अधिनियम 1991 के तहत प्रतिबंधित नहीं है, क्योंकि वे केवल संबंधित संरचना तक पहुंच का अधिकार मांग रहे हैं, जो एक संरक्षित स्मारक है और वे इसके धार्मिक चरित्र को बदलने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।
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संभल मस्जिद विवाद: हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का सर्वे ऑर्डर रखा बरकरार, कहा- हिंदू वादियों का मुकदमा 'वर्जित नहीं'
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद समिति की याचिका खारिज कर दी, जिसमें 19 नवंबर को पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। इस आदेश में एडवोकेट आयुक्त को मस्जिद का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को नष्ट करने के बाद किया गया।
इसके साथ ही जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने ट्रायल कोर्ट का सर्वेक्षण आदेश बरकरार रखा। इसने यह भी कहा कि हिंदू वादियों पर प्रथम दृष्टया कोई प्रतिबंध नहीं है।