वैज्ञानिक साक्ष्य के बिना नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर पेटेंट अस्वीकार करना अवैध: कोलकाता हाईकोर्ट
Amir Ahmad
24 May 2025 12:08 PM IST

कोलकाता हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि किसी आविष्कार को केवल नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर वह भी बिना किसी वैज्ञानिक या तकनीकी साक्ष्य के पेटेंट देने से इनकार करना कानूनन टिकाऊ नहीं है।
यह टिप्पणी जस्टिस रवि किशन कपूर ने ITC लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दी, जिसमें ऐसे हीटर असेंबली के पेटेंट की मांग की गई थी, जो एरोसोल उत्पन्न करने के लिए डिजाइन किया गया था।
पेटेंट कंट्रोलर ने इस आविष्कार को जन स्वास्थ्य और नैतिकता के आधार पर विशेष रूप से ई-सिगरेट निषेध अधिनियम 2019 का हवाला देते हुए पेटेंट देने से मना कर दिया था। लेकिन हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह फैसला पूर्वग्रहपूर्ण था। केवल इस धारणा पर आधारित था कि सभी तंबाकू उत्पाद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, जबकि इस मामले में आविष्कार के उपयोग से संबंधित कोई वैज्ञानिक या तकनीकी सबूत पेश नहीं किया गया।
न्यायालय ने कहा कि पेटेंट कानून और नैतिकता का रिश्ता जटिल है और अधिनियम की धारा 3(b) को इस तरह से नहीं पढ़ा जा सकता कि किसी भी व्यक्तिगत या सामाजिक चिंता के आधार पर बिना ठोस वैज्ञानिक प्रमाण के पेटेंट देने से मना कर दिया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कंट्रोलर द्वारा दिया गया आदेश संक्षिप्त बिना कारणों के और बिना किसी उचित प्रक्रिया के पारित किया गया।
ITC की ओर से यह तर्क दिया गया कि उन्होंने अपने आविष्कार को पूर्व तकनीकों से भिन्न साबित कर दिया और आविष्कारात्मक कदम की भी पुष्टि कर दी गई। इसके बावजूद कंट्रोलर ने उन दस्तावेजों के आधार पर पेटेंट खारिज कर दिया, जो सुनवाई के दौरान सामने नहीं रखे गए और जिनका कोई मौका ITC को जवाब देने के लिए नहीं दिया गया।
न्यायालय ने इस पर भी जोर दिया कि पेटेंट का अर्थ यह नहीं होता कि किसी उत्पाद को कानूनन बेचने या उपयोग करने का अधिकार मिल गया हो। पेटेंट केवल दूसरों को उस तकनीक के उपयोग से रोकने का अधिकार देता है न कि इसे बाजार में उतारने या व्यापार करने का।
सरकार के अन्य कानून या नियम यह तय करते हैं कि कोई आविष्कार व्यावसायिक रूप से लागू किया जा सकता है या नहीं।
अंततः, न्यायालय ने पाया कि पेटेंट कंट्रोलर का निर्णय गलत तथ्यों और धारणाओं पर आधारित था। आविष्कार का तंबाकू से जुड़ा होना आवश्यक नहीं था, फिर भी कंट्रोलर ने यह मान लिया कि इसका प्रयोग केवल तंबाकू युक्त उत्पादों में ही होगा, जो कि एक गलत निष्कर्ष था। इसके चलते हाईकोर्ट ने पेटेंट न देने का आदेश रद्द करते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए कंट्रोलर को वापस भेज दिया।
यह फैसला वैज्ञानिक प्रगति, शोध और निष्पक्ष मूल्यांकन के महत्व को रेखांकित करता है और यह स्पष्ट करता है कि पेटेंट देने या न देने का निर्णय केवल धारणाओं पर नहीं बल्कि ठोस तथ्यों और वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित होना चाहिए।

