IPC की धारा 377 वैवाहिक संबंधों में पति पर लागू नहीं हो सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

21 May 2025 4:46 PM IST

  • IPC की धारा 377 वैवाहिक संबंधों में पति पर लागू नहीं हो सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक संबंधों में पति और पत्नी के बीच गैर-पेनील-वजाइनल यौन संबंध (जैसे ओरल या एनल सेक्स) को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत अपराध नहीं ठहराया जा सकता।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा,

    "ऐसी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट के नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत सरकार' फैसले में दिए गए तर्क और टिप्पणियों के अनुरूप होगी।"

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान कानून वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) की अवधारणा को मान्यता नहीं देता।

    अदालत ने IPC की धारा 375 के अपवाद 2 (Exception 2) का हवाला देते हुए कहा कि यदि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से अधिक है तो पति द्वारा किया गया यौन संबंध बलात्कार नहीं माना जाता। इसका अर्थ यह हुआ कि विवाह के तहत पत्नी की सहमति कानूनन मानी जाती है।

    कोर्ट का मत,

    "इस अदालत के विचार में IPC की धारा 375 के अपवाद के कारण यह मानने का कोई आधार नहीं है कि पति को IPC की धारा 377 के तहत अभियोजन से संरक्षित नहीं किया जाएगा, क्योंकि अब कानून वैवाहिक संबंध में यौन कृत्यों (जैसे एनल या ओरल सेक्स) के लिए भी सहमति मानता है।"

    मामला

    पत्नी द्वारा दर्ज FIR में आरोप लगाया गया कि शादी की पहली रात ही उसे पता चला कि उसका पति दवा लेने के बावजूद विवाह पूर्ण (Consummate) नहीं कर पाया। जब उसने अपने ससुराल वालों से शिकायत की तो उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। महिला ने यह भी आरोप लगाया कि यह शादी उसके पति और ससुर की साज़िश थी ताकि वह उससे अवैध संबंध बना सकें और पैसे ऐंठ सकें।

    यह भी कहा कि 2013 में संशोधन से पहले IPC की धारा 375 केवल जबरन यौन संबंध (पेनील-वजाइनल) तक ही सीमित थी और अन्य यौन कृत्य (जैसे ओरल या एनल सेक्स) को धारा 377 के तहत देखा जाता था। लेकिन अब धारा 375(a) इन यौन कृत्यों को भी शामिल करती है।

    निर्णय

    जस्टिस शर्मा ने पाया कि पत्नी ने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि ओरल सेक्स उसके विरुद्ध उसकी मर्जी के बिना किया गया था। आरोप में सहमति की अनुपस्थिति या जबरदस्ती की कोई ठोस बात नहीं थी।

    कोर्ट ने कहा,

    "ऐसे आरोपों में जब तक सहमति की कमी स्पष्ट रूप से न बताई जाए, तब तक IPC की धारा 377 के तहत अपराध नहीं बनता। इसलिए न केवल प्राथमिक दृष्टिकोण से मामला नहीं बनता, बल्कि संदेह की न्यूनतम सीमा भी पूरी नहीं होती।"

    न्यायालय का निष्कर्ष:

    महज अस्पष्ट आरोपों के आधार पर या जब रिकॉर्ड में आरोप के आवश्यक तत्व ही नहीं हों, तब आरोप तय नहीं किया जा सकता।

    केस टाइटल: SK बनाम राज्य (NCT) दिल्ली

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