हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-07-14 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (08 जुलाई, 2024 से 12 जुलाई, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

जिला जज की नियुक्ति के लिए एडवोकेट के रूप में लगातार 7 साल की प्रैक्टिस आवश्यक नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 233(2) के तहत एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज के रूप में नियुक्ति के लिए एडवोकेट के रूप में लगातार सात साल की प्रैक्टिस आवश्यक नहीं है।

फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा, “भारत के संविधान के अनुच्छेद 233(2) के तहत एडवोकेट के रूप में लगातार सात साल की प्रैक्टिस आवश्यक नहीं हैष यह केवल यह निर्धारित करता है कि उम्मीदवार के पास सात साल की प्रैक्टिस होना चाहिए और आवेदन और नियुक्ति की तिथि पर एडवोकेट होना चाहिए।”

केस टाइटल: संदीप शर्मा बनाम माननीय हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट और अन्य

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1 जुलाई या उसके बाद दायर होने वाली याचिका पर IPC के तहत दर्ज एफआईआर की कार्यवाही BNSS द्वारा संचालित की जाएगी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि IPC के तहत एफआईआर दर्ज की जाती है लेकिन उससे संबंधित आवेदन या याचिका 01 जुलाई के बाद दायर की जाती है तो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के प्रावधान लागू होंगे जिसने दंड प्रक्रिया संहिता का स्थान ले लिया है।

न्यायालय ने IPC के प्रावधानों के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने के लिए 04 जुलाई को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका खारिज की। साथ ही BNSS के प्रावधानों को लागू करते हुए उचित याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी।

केस टाइटल- XXX बनाम XXXX

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बलात्कार पीड़िता की एकमात्र वास्तविक गवाही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त, मेडिकल रिपोर्ट के साथ पुष्टि आवश्यक नहीं: मेघालय हाईकोर्ट

यह देखते हुए कि अभियुक्त की दोषसिद्धि अभियोक्ता की एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है, यदि उसकी गवाही अदालत के विश्वास को दर्शाती है, मेघालय हाईकोर्ट ने आरोपी को नाबालिग पीड़िता पर बलात्कार का अपराध करने के लिए दोषी ठहराया, भले ही मेडिकल रिपोर्ट ने आरोपी के अपराध को स्थापित नहीं किया हो।

सुप्रीम कोर्ट के गणेशन बनाम राज्य के मामले का उल्लेख करते हुये, चीफ़ जस्टिस एस. वैद्यनाथन और जस्टिस डब्ल्यू. डिएंगदोह की खंडपीठ ने अभियोक्ता के बयान को विश्वसनीय और विश्वसनीय पाया, जिसके लिए अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए किसी पुष्टि की आवश्यकता नहीं थी।

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Haryana Judiciary Exam| प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम गणना किया गया, लेकिन श्रेणीवार घोषित नहीं किया गया, इसे रद्द नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सिविल सेवा (judicial branch) (HCS) परीक्षा 2023-24 के लिए अप्रैल में घोषित प्रारंभिक परीक्षा परिणाम को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं का बैच खारिज कर दिया।

जस्टिस लिसा गिल और जस्टिस सुखविंदर कौर की खंडपीठ ने कहा, "प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि इसे श्रेणीवार घोषित नहीं किया गया।"

न्यायालय ने नोट किया कि HCS ने प्रस्तुत किया कि उम्मीदवारों की शॉर्ट-लिस्टिंग श्रेणीवार की गई है भले ही घोषणा रोल नंबर के अनुसार की गई हो।

केस टाइटल- सुखनूर सिंह बनाम एचपीएससी और अन्य।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने Congress नेताओं को रजत शर्मा के खिलाफ 'अपमानजनक ट्वीट' तुरंत हटाने का निर्देश दिया

दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस (Congress) नेताओं रागिनी नायक, जयराम रमेश और पवन खेड़ा को 14 जून को पारित अंतरिम आदेश के अनुपालन में सीनियर जर्नालिस्ट रजत शर्मा के खिलाफ "अपमानजनक ट्वीट" तुरंत आज शाम 7 बजे तक हटाने का निर्देश दिया।

जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने एक्स कॉर्प, जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था, उसको आज शाम 5 बजे तक संबंधित ट्वीट को अनब्लॉक करने का निर्देश दिया, जिसके बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने दावा किया है कि उसने इसे जियो-ब्लॉक कर दिया।

केस टाइटल: रजत शर्मा बनाम एक्स कॉर्प और अन्य।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहली बार अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत में फैसला सुनाया, कहा- धारा 482 CrPC याचिका में अंतरिम भरण-पोषण आदेश लागू नहीं किया जा सकता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन भाषाओं-अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत में अपना फैसला सुनाकर इतिहास रच दिया- जो सभी हाईकोर्ट में पहली बार हुआ। जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने धारा 125 CrPC के तहत किए गए अंतरिम भरण-पोषण आदेश के प्रवर्तन की मांग करने वाली धारा 482 CrPC याचिका की स्थिरता के संबंध में उपर्युक्त तीन भाषाओं में फैसला लिखा।

एकल न्यायाधीश ने तीन भाषाओं में एक ही दस्तावेज में समाहित एकल फैसला लिखा।

अपने फैसले में जस्टिस प्रसाद ने कहा कि धारा 125 CrPC के तहत शुरू की गई कार्यवाही में पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने वाला आदेश अर्ध-न्यायिक सिविल और आपराधिक आदेश है। इसलिए धारा 482 CrPC के तहत इसे रद्द करने या इसे लागू करने के लिए कोई भी आवेदन स्वीकार्य नहीं है।

केस टाइटल- कंचन रावत एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 433

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लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला के साथी पर IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता के अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि महिला का साथी, जो कानूनी रूप से विवाहित नहीं है, उस पर IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता के अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पति का अर्थ विवाहित पुरुष, महिला का विवाहित साथी है। इसमें IPC की धारा 498A के तहत अभियोजन के लिए कानूनी रूप से विवाहित न होने वाला महिला का साथी भी शामिल है।

इस प्रकार जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी, जो शिकायतकर्ता महिला का लिव-इन पार्टनर था।

केस टाइटल- एक्स बनाम केरल राज्य

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गैर-संरक्षक माता-पिता के पास बच्चे से संपर्क सुनिश्चित करने के लिए मुलाक़ात का अधिकार होना चाहिए, संयुक्त पालन-पोषण एक आदर्श: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि हिरासत के मामलों में, अपने बच्चे की कस्टडी के बिना माता-पिता अपने बच्चे के साथ बंधन बनाए रखने के लिए मुलाक़ात के अधिकार के हकदार हैं। न्यायालय ने कहा कि संयुक्त पालन-पोषण आदर्श है और इस बात पर जोर दिया कि कस्टडी का निर्धारण करते समय बच्चे के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस अमित बंसल की खंडपीठ एक पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ पिता/अपीलकर्ता की चुनौती पर विचार कर रही थी, जिसमें उसके साथ आगामी त्योहार मनाने के लिए 8 साल के अपने नाबालिग बेटे की अस्थायी हिरासत के लिए उसके आवेदन को खारिज कर दिया गया था। फैमिली कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता की उपस्थिति में बच्चा असहज था और अपीलकर्ता को अस्थायी हिरासत देने से बच्चे को मानसिक आघात होगा।

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संविधान नागरिकों को अपने धर्म को मानने और उसका प्रचार करने की अनुमति देता है, लेकिन दूसरों का धर्म परिवर्तन की अनुमति नहीं देता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि भारत का संविधान नागरिकों को अपने धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन यह किसी भी नागरिक को किसी दूसरे नागरिक को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने की अनुमति नहीं देता है।

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने आगे कहा कि संविधान द्वारा गारंटीकृत अंतरात्मा की स्वतंत्रता का व्यक्तिगत अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वासों को चुनने, उनका पालन करने और उन्हें व्यक्त करने की स्वतंत्रता है; हालांकि, यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता धर्म परिवर्तन के सामूहिक अधिकार तक विस्तारित नहीं होती है, जिसका अर्थ है दूसरों को अपने धर्म में परिवर्तित करने का प्रयास करना।

केस टाइटलः श्रीनिवास राव नायक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 427

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निजी मेडिकल लापरवाही की शिकायत आरोपों का समर्थन करने वाले किसी अन्य डॉक्टर की विशेषज्ञ राय के बिना सुनवाई योग्य नहीं: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी डॉक्टर के खिलाफ निजी शिकायत पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता, जब तक कि आरोपी द्वारा मेडिकल लापरवाही का संकेत देने वाले किसी अन्य डॉक्टर की विश्वसनीय राय द्वारा समर्थित प्रथम दृष्टया सबूत न हों।

जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की एकल पीठ ने कहा, "यह बिल्कुल स्पष्ट है कि निजी शिकायत पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता, जब तक कि शिकायतकर्ता ने आरोपी डॉक्टर की ओर से लापरवाही के आरोप का समर्थन करने के लिए किसी अन्य डॉक्टर द्वारा दी गई विश्वसनीय राय के रूप में प्रथम दृष्टया सबूत पेश नहीं किए हों। ऐसा प्रतीत होता है कि कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।"

केस टाइटल- डॉ. सुमन कुमार पाठक @ डॉ. एस.के. पाठक बनाम झारखंड राज्य

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लोकतंत्र में किसानों को राज्य में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता: हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को शंभू बॉर्डर खोलने का आदेश दिया

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को शंभू बॉर्डर को खोलने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि यह पंजाब और हरियाणा तथा दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के बीच नागरिकों की आवाजाही के लिए जीवन-रेखा है। इसके बंद होने से आम जनता को भारी असुविधा हो रही है।

जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस विकास बहल की खंडपीठ ने किसानों के विरोध जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "राज्य को जाग जाना चाहिए, सीमा को हमेशा के लिए बंद नहीं किया जाना चाहिए।"

केस टाइटल- उदय प्रताप सिंह बनाम यूओआई और अन्य

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जिस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में पहली पत्नी ने स्थायी निवास ले लिया है, वह आईपीसी की धारा 494/495 के तहत अपराधों की सुनवाई कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि जिस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 494 और 495 के तहत दंडनीय कथित अपराध करने के बाद पहली पत्नी ने स्थायी निवास किया है, वही न्यायालय उन अपराधों की सुनवाई कर सकता है।

जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने धारा 182 (2) सीआरपीसी के आदेश के मद्देनजर यह टिप्पणी की, जिसमें कहा गया है कि धारा 494 या 495 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराधों की जांच या सुनवाई उस न्यायालय द्वारा की जा सकती है जिसके स्थानीय अधिकार क्षेत्र में अपराध किया गया था, या जहां अपराधी अपने पहले पति या पत्नी के साथ अंतिम बार रहता था, या जहां पहले पति या पत्नी ने अपराध के बाद स्थायी निवास किया है।

केस टाइटलः इंदर अलियास लाला बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 425

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Limitation Act की धारा 5 को कामर्शियल कोर्ट के तहत देरी को माफ करने के लिए लागू किया जा सकता, यहां तक कि स्पष्ट प्रावधानों के अभाव में भी: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कामर्शियल कोर्ट अधिनियम की धारा 13 का हवाला देते हुए एक कामर्शियल मुकदमे से संबंधित अपील दायर करने में देरी को माफ कर दिया, जो सीमा अधिनियम में किसी भी विशिष्ट प्रावधान के अभाव में भी देरी की माफी की अनुमति देता है। न्यायालय ने परिसीमा अधिनियम की धारा 29 का उल्लेख करते हुए कहा कि चूंकि कामर्शियल कोर्ट अधिनियम एक सीमा अवधि निर्दिष्ट नहीं करता है, इसलिए सीमा अधिनियम की धारा 4 से 24 लागू होती है।

जस्टिस नितिन डब्ल्यू सांबरे और जस्टिस अभय जे मंत्री की डिवीजन बेंच 1,70,16,342 रुपये की राशि की वसूली के लिए एक कामर्शियल मुकदमें में जिला न्यायालय के फैसले के खिलाफ आवेदक/मूल-वादी की अपील पर विचार कर रही थी। जिला न्यायालय ने मूल प्रतिवादी/गैर-आवेदक (प्रतिवादी) के प्रतिदावे को भी खारिज कर दिया था। कामर्शियल कोर्ट अधिनियम, 2015 की धारा 13 के तहत मूल प्रतिवादी की वाणिज्यिक अपील को भी खारिज कर दिया गया था।

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भारत में पुलिस विदेश में किए गए दहेज उत्पीड़न का संज्ञान नहीं ले सकती, धारा 188 CrPc के तहत मंजूरी जरूरी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि भारत में पुलिस विदेश में कथित रूप से किए गए दहेज उत्पीड़न अपराध का संज्ञान नहीं ले सकती। यह घटनाक्रम दहेज की मांग करके अपनी पत्नी को परेशान करने के आरोप में पति के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करते हुए हुआ।

यह देखते हुए कि पत्नी द्वारा कथित उत्पीड़न की घटनाएं ऑस्ट्रेलिया में हुईं जस्टिस हरप्रीत सिंह बरार ने कहा, "भारत में पुलिस द्वारा इसका संज्ञान नहीं लिया जा सकता।"

केस टाइटल- XXXX बनाम XXXC

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केंद्र सरकार की बढ़ी हुई सीमा के आधार पर राज्य कर्मचारी को बढ़ी हुई ग्रेच्युटी से इनकार नहीं किया जा सकता: त्रिपुरा हाईकोर्ट

त्रिपुरा हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य "प्रतिष्ठान" के एक कर्मचारी द्वारा बढ़ी हुई ग्रेच्युटी के दावे को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि केंद्र द्वारा अपनाई गई ग्रेच्युटी के भुगतान पर संशोधित सीमा को राज्य द्वारा अलग नियमों के कारण नहीं अपनाया गया था जो राज्य प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मचारियों की ग्रेच्युटी को नियंत्रित करने वाले राज्य द्वारा बनाए गए थे।

अदालत ने कहा कि कर्मचारी पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के तहत तय की गई बढ़ी हुई सीमा के आधार पर ग्रेच्युटी प्राप्त करने का हकदार होगा।

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अभियोजन न करने के कारण शिकायत खारिज करना अंतिम आदेश, मजिस्ट्रेट के पास ऐसे मामलों को बहाल करने के लिए अंतर्निहित शक्तियां नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि शिकायतकर्ता की गैर-हाजिरी के कारण खारिज की गई शिकायत बहाल करने के लिए मजिस्ट्रेट अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता।

जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने घोषणा की कि इस तरह की खारिजियां अंतिम आदेश हैं। उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) में किसी भी प्रावधान की अनुपस्थिति पर जोर दिया, जो ट्रायल कोर्ट को यह शक्ति प्रदान करता है।

केस टाइटल- मेहराजुद्दीन अंद्राबी बनाम जिया दरक्षन।

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वैवाहिक कलह के कारण पिता को बेटी से मिलने से वंचित करना क्रूरता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वैवाहिक कलह के कारण एक पिता को अपनी बेटी से मिलने से वंचित करना हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (IA) के तहत क्रूरता है।

जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस हर्ष बंगर की खंडपीठ ने क्रूरता के आधार पर दिए गए तलाक में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा, 'पति-पत्नी के बीच वैवाहिक कलह के कारण पिता को अपनी बेटी से उसकी मां द्वारा मिलने से वंचित करना मानसिक क्रूरता का कार्य होगा।

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