लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला के साथी पर IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता के अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: केरल हाईकोर्ट
Amir Ahmad
11 July 2024 2:17 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने माना कि महिला का साथी, जो कानूनी रूप से विवाहित नहीं है, उस पर IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता के अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पति का अर्थ विवाहित पुरुष, महिला का विवाहित साथी है। इसमें IPC की धारा 498A के तहत अभियोजन के लिए कानूनी रूप से विवाहित न होने वाला महिला का साथी भी शामिल है।
इस प्रकार जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी, जो शिकायतकर्ता महिला का लिव-इन पार्टनर था।
कोर्ट ने कहा,
“इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि IPC की धारा 498 (ए) के तहत दंडनीय अपराध को आकर्षित करने के लिए, सबसे आवश्यक घटक किसी महिला को उसके पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के अधीन करना है। 'पति @ हब्बी' शब्द का अर्थ है विवाहित पुरुष, महिला का विवाह में साथी। इस प्रकार, विवाह वह घटक है, जो महिला के साथी को उसके पति के दर्जे में ले जाता है। विवाह का अर्थ कानून की नज़र में विवाह है। इस प्रकार कानूनी विवाह के बिना यदि कोई पुरुष किसी महिला का साथी बन जाता है तो वह आईपीसी की धारा 498 (ए) के उद्देश्य से 'पति' शब्द के अंतर्गत नहीं आएगा।”
याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ लिव-इन पार्टनर रही महिला द्वारा दर्ज की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
आरोप यह था कि याचिकाकर्ता ने मार्च 2023 से अगस्त 2023 तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के दौरान महिला को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। याचिकाकर्ता के वकील ने उन्नीकृष्णन @ चंदू बनाम केरल राज्य (2017) और नारायणन बनाम केरल राज्य (2023) का हवाला देते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच संबंध लिव-इन रिलेशनशिप था और उनके बीच कोई कानूनी विवाह नहीं था जिससे धारा 498ए के तहत अपराध हो सके।
न्यायालय ने शिवचरण लाल वर्मा और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2002) का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया था कि IPC की धारा 498ए के तहत मुकदमा चलाने के लिए वैध वैवाहिक संबंध होना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि धारा 498ए के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए क्रूरता का अपराध पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा किया जाना चाहिए। इसने कहा कि एक पुरुष जो कानूनी विवाह के बिना महिला का साथी था उस पर धारा 498ए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
मामले के तथ्यों में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता आईपीसी की धारा 498ए के तहत पति शब्द के अंतर्गत नहीं आएगा, क्योंकि वे कानूनी रूप से विवाहित नहीं थे।
इस प्रकार न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली और याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी।
केस टाइटल- एक्स बनाम केरल राज्य