हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-01-06 14:28 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (01 जनवरी 2024 से 05 जनवरी 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

आपराधिक पृष्ठभूमि के कारण किसी नागरिक का कैरेक्टर सर्टिफिकेट रद्द करने से पहले उसे सुनवाई का अवसर देना आवश्यक: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि आपराधिक पृष्ठभूमि के कारण कैरेक्टर सर्टिफिकेट रद्द होने की संभावना का सामना करने वाले व्यक्तियों को कारण बताओ या सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने ऐसे मामलों में उचित प्रक्रिया और निष्पक्ष व्यवहार के महत्व पर जोर देते हुए 10 अप्रैल, 2023 के सरकारी आदेश के खंड -4 को पढ़ा, जिससे उसमें (निहित आधार पर) यह शामिल किया जा सके कि कैरेक्टर सर्टिफिकेट आपराधिक मामले के रजिस्ट्रेशन/लंबित होने की सूचना प्राप्त होने की तारीख से एक सप्ताह के भीतर संबंधित नागरिक को कारण बताओ नोटिस जारी कर रद्द करने की कार्रवाई की जा सकती है।

केस टाइटल- कपिल देव यादव बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य

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तलाकशुदा मुस्लिम महिला पुनर्विवाह के बावजूद भरण-पोषण की हकदार: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि दोबारा शादी करने के बावजूद मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 (MWPA) के तहत तलाक के बाद अपने पहले पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। जस्टिस राजेश पाटिल ने कहा कि MWPA की धारा 3(1)(ए) के तहत ऐसी कोई शर्त नहीं है, जो मुस्लिम महिला को पुनर्विवाह के बाद भरण-पोषण पाने से वंचित करती हो।

केस टाइटल- खलील अब्बास फकीर बनाम तब्बसुम खलील फकीर @ तब्बसुम गुलाम हुसैन घरे और अन्य।

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Criminal Law Amendment Ordinance 1994: मालिक फर्निशिंग सुरक्षा पर अंतरिम कुर्की के अधीन संपत्ति की कस्टडी लेने का हकदार: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश, 1944 (1994 अध्यादेश) उस व्यक्ति को संपत्ति की रिहाई के लिए धारा 8 के तहत आवेदन दायर करने का अधिकार देता है, जिसकी संपत्ति अंतरिम कुर्की के अधीन है, बशर्ते कि वह जिला न्यायाधीश की संतुष्टि के लिए सुरक्षा प्रस्तुत करता हो।

1994 अध्यादेश की धारा 8 में कहा गया, "कोई भी व्यक्ति, जिसकी संपत्ति इस अध्यादेश के तहत कुर्क की गई है या होने वाली है, वह किसी भी समय जिला जज को ऐसी कुर्की के बदले सुरक्षा देने की अनुमति के लिए आवेदन कर सकता है और जहां सुरक्षा की पेशकश की जाती है और यदि जिला जज की राय में यह संतोषजनक और पर्याप्त है, तो वह कुर्की के आदेश को, जैसा भी मामला हो, वापस ले सकता है, या पारित करने से बच सकता है।''

केस टाइटल: गिरजा देवी तिवारी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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Hindu Succession Act | 2005 संशोधन से पहले मर चुकी बेटियों के कानूनी उत्तराधिकारी पारिवारिक संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी के हकदार: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि बेटी के कानूनी उत्तराधिकारी पारिवारिक संपत्तियों में समान हिस्सेदारी के हकदार हैं, भले ही बेटियों की मृत्यु 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में संशोधन लागू होने से पहले हो गई हो।

जस्टिस सचिन शंकर मगदुम की एकल न्यायाधीश पीठ ने चन्नबसप्पा होस्मानी द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी। उक्त याचिका में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश पर सवाल उठाया गया था, जिसमें सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 152 के तहत किया गया उनका आवेदन अस्वीकार कर दिया गया और ट्रायल कोर्ट ने प्रारंभिक में डिग्री में संशोधन करने से इनकार कर दिया, जिसने पूर्व-मृत बेटियों के कानूनी उत्तराधिकारियों को समान हिस्सा दिया।

केस टाइटल: चन्नबसप्पा होस्मानी और पर्वतेव्वा उर्फ कस्तुरेव्वा और अन्य

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यदि क्षतिग्रस्त कार का मालिक अपने स्वयं के बीमाकर्ता द्वारा क्षति राशि की पूरी प्रतिपूर्ति नहीं करता तो वह वाहन के बीमाकर्ता से राशि का दावा कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि मोटर दुर्घटना में यदि क्षतिग्रस्त वाहन के बीमाकर्ता द्वारा मरम्मत के लिए कुल राशि की प्रतिपूर्ति नहीं की जाती तो दावेदार को अपराधी वाहन के बीमाकर्ता से राशि शेष राशि के भुगतान के लिए मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल से संपर्क करने का पूरा अधिकार होगा। जस्टिस डॉ. चिल्लाकुर सुमलता की एकल न्यायाधीश पीठ ने ऐसे ही दावेदार टैक्सी मालिक की अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर ली। उक्त याचिका उसके दावा खारिज करने वाले ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी।

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दिव्यांग व्यक्तियों को पसंदीदा स्थान पर नियुक्ति का विकल्प दिया जाना चाहिए, उन्हें रोटेशनल ट्रांसफर से छूट दी जा सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दिव्यांग व्यक्तियों (PwBD) के ट्रांसफर और नौकरी पोस्टिंग इस तरह से की जाए कि उन्हें अपने पसंदीदा पोस्टिंग स्थान पर पोस्टिंग का विकल्प दिया जाए और उन्हें अन्य कर्मचारियों के लिए अनिवार्य रूप से चक्रीय स्थानांतरण से छूट भी दी जा सके।

जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा कि राज्य यह भी सुनिश्चित करेगा कि दिव्यांगों को ऐसे स्थानों पर ट्रांसफर या तैनात करके अनावश्यक और लगातार उत्पीड़न का शिकार न होना पड़े, जहां उन्हें अपने काम के लिए अनुकूल माहौल नहीं मिल पाता है।

केस टाइटल: भवनीत सिंह बनाम इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड, चेयरमैन और प्रबंध निदेशक और अन्य के माध्यम से।

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हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कूलिंग ऑफ पीरियड माफ करने के लिए ट्रायल के समान विस्तृत जांच की आवश्यकता नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आपसी समझौते से तलाक के लिए हिंदू विवाह एक्ट (HMA) के तहत आवेदन पर विचार करते समय कूलिंग ऑफ पीरियड माफ करने के लिए विस्तृत जांच की आवश्यकता नहीं।

जस्टिस सुधीर सिंह और जस्टिस सुमीत गोयल की खंडपीठ ने कहा, "कूलिंग ऑफ पीरियड माफ करने की प्रार्थना पर विचार करते समय न्यायालय को संतुष्ट होना चाहिए कि ऐसी अनुमति देने के लिए आवश्यक आधार मौजूद हैं। इसमें पक्षकारों की ओर से कोई छिपाव/गलत बयानी नहीं है। न्यायालय को एक्ट की धारा 23 के संदर्भ में स्वयं को संतुष्ट करना आवश्यक है।"

केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

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आरोप पत्र के खिलाफ रिट पिटिशन सुनवाई योग्य नहीं, जब तक कि यह ऐसे प्राधिकरण की ओर से जारी न की गई हो, जिसे अनुशासनात्मक कार्यवाई शुरु करने का अधिकार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने सार्वजनिक परिवहन के ड्राइवर द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दी। उक्त याचिका में राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा उसे दी गई चार्जशीट रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कुछ यात्रियों को बिना टिकट यात्रा करते हुए पाया गया था। रिट याचिका आम तौर पर आरोप पत्र के खिलाफ नहीं होती है, जब तक कि यह स्थापित नहीं हो जाता कि यह किसी ऐसे प्राधिकारी द्वारा जारी की गई, जो अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने में सक्षम नहीं है।

केस टाइटल: लक्ष्मण सिंह गुर्जर बनाम राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम और 2 अन्य।

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UP Victim Compensation Scheme 2014 | बलात्कार पीड़ितों के लिए मुआवजे की पात्रता/मात्रा DLSA तय करेगी, अदालत नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पीड़ित मुआवजा योजना 2014 (UP Victim Compensation Scheme 2014) के तहत मुआवजे की मांग कर रही बलात्कार पीड़िता को जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA) से संपर्क करने को कहा।

जस्टिस ज्योत्सना शर्मा ने बलात्कार पीड़ितों के लिए मुआवज़े का दावा करने की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए कहा, “मुआवजा देने और उसकी मात्रा के लिए पीड़िता की 'पात्रता' केवल DLSA द्वारा तय की जा सकती है। संबंधित अदालत केवल 'सिफारिश' ही कर सकती है। यह DLSA के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह तय करने के लिए कि 'दावा' 2014 की योजना के मापदंडों के अंतर्गत आता है या नहीं। ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय की भूमिका औपचारिक है, इससे अधिक नहीं।”

केस टाइटल: रमेश उर्फ मेहंदी हसन बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [अनुच्छेद 227 नंबर- 5804/2023 के तहत मामले]

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पदोन्नति पर विचार मौलिक अधिकार का पहलू, रिक्तियां उपलब्ध होने पर योग्य उम्मीदवारों को पदोन्नति देने से इनकार नहीं किया जा सकता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम सरकार के मत्स्य पालन विभाग को निर्देश दिया कि वह सेवानिवृत्त प्रभारी जिला मत्स्य विकास अधिकारी (डीएफडीओ) को उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख पर प्राप्त पद के संबंध में योग्यता के आधार पर डीएफडीओ के पद पर पदोन्नति के लिए उनके प्रतिनिधित्व पर विचार करे। उसे सेवा से बर्खास्त करें और 3 महीने के भीतर उचित आदेश पारित करें।

जस्टिस सुमन श्याम की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा: “कानून अच्छी तरह से स्थापित है कि पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का अधिकार मौलिक अधिकार का पहलू है। यदि पदोन्नति के माध्यम से भरे जाने के लिए रिक्तियां उपलब्ध हैं और पात्र विभागीय उम्मीदवार हैं, जो ऐसे पदों पर पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का अधिकार रखते हैं तो अधिकारी विचार के क्षेत्र में आने वाले ऐसे उम्मीदवारों को मौका देने से इनकार नहीं कर सकते। इस तरह वह न केवल कैरियर की प्रगति की संतुष्टि से बल्कि परिणामी आर्थिक लाभों से भी वंचित हो गया।''

केस टाइटल: सैयद हबीबुर रहमान बनाम असम राज्य और 2 अन्य।

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स्लम पुनर्वास प्राधिकरण का शिकायत निकाय अपने कार्यवृत्त पर बात करने की आड़ में अपने पहले के आदेश पर पुनर्विचार नहीं कर सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (Slum Rehabilitation Authority) की सर्वोच्च शिकायत निवारण समिति (AGRC) आदेश के मिनटों पर बात करने की आड़ में अपने आदेश पर पुनर्विचार नहीं कर सकता। जस्टिस माधव जे जामदार ने AGRC द्वारा पिछले आदेश के मिनटों पर बात करते हुए पारित आदेश रद्द कर दिया, जिसमें पक्षकारों को मूल आदेश में उल्लिखित एक से अलग समझौते को रजिस्टर्ड करने का निर्देश दिया गया था।

केस टाइटल- सितारा अनिल शर्मा बनाम सर्वोच्च शिकायत निवारण समिति, स्लम पुनर्वास प्राधिकरण, बांद्रा, मुंबई और अन्य।

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नागरिकों के सामाजिक बहिष्कार का सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं, प्रशासन को इससे सख्ती से निपटना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट की अवकाश पीठ ने कहा कि किसी नागरिक या उसके परिवार के सदस्य के सामाजिक बहिष्कार से प्रशासन को सख्ती से निपटना होगा। सभ्य समाज में इसका कोई स्थान नहीं है। कोर्ट ने उक्त टिप्पणी ऐसे मामले में की, जिसमें एक व्यक्ति और उसके परिवार का उनके पड़ोस ने बहिष्कार कर दिया था, क्योंकि उन्होंने आपत्ति जताते हुए मंदिर निर्माण के खिलाफ निषेधाज्ञा का अंतरिम आदेश प्राप्त किया था।

केस टाइटल: रणजीत मंडल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

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