तलाकशुदा मुस्लिम महिला पुनर्विवाह के बावजूद भरण-पोषण की हकदार: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

6 Jan 2024 9:46 AM GMT

  • तलाकशुदा मुस्लिम महिला पुनर्विवाह के बावजूद भरण-पोषण की हकदार: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि दोबारा शादी करने के बावजूद मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 (MWPA) के तहत तलाक के बाद अपने पहले पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।

    जस्टिस राजेश पाटिल ने कहा कि MWPA की धारा 3(1)(ए) के तहत ऐसी कोई शर्त नहीं है, जो मुस्लिम महिला को पुनर्विवाह के बाद भरण-पोषण पाने से वंचित करती हो।

    अदालत ने कहा,

    “MWPA में उल्लिखित सुरक्षा बिना शर्त है। उक्त एक्ट का इरादा कहीं भी पूर्व पत्नी के पुनर्विवाह के आधार पर पूर्व पत्नी को मिलने वाली सुरक्षा को सीमित करने का नहीं है। एक्ट का सार यह है कि तलाकशुदा महिला अपने पुनर्विवाह की परवाह किए बिना उचित और निष्पक्ष प्रावधान और भरण-पोषण की हकदार है। पति और पत्नी के बीच तलाक का तथ्य अपने आप में पत्नी के लिए धारा 3 (1) (ए) के तहत भरण-पोषण का दावा करने के लिए पर्याप्त है।”

    अदालत ने जेएमएफसी, चिपलून और सत्र न्यायालय, खेड़, रत्नागिरी के आदेशों को चुनौती देने वाले व्यक्ति द्वारा दायर पुनर्विचार आवेदन खारिज कर दिया, जिसमें उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था।

    इस जोड़े की शादी 9 फरवरी, 2005 को हुई और उनकी बेटी का जन्म 1 दिसंबर, 2005 को हुआ। यह तर्क दिया गया कि पति रोजगार के लिए सऊदी अरब गया था, जबकि पत्नी और बेटी रत्नागिरी के चिपलुन में अपने माता-पिता के साथ रहीं। जून, 2007 में पत्नी ने कहा कि वह अपनी बेटी के साथ वैवाहिक घर छोड़कर अपने माता-पिता के घर चली गई।

    इसके बाद पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण आवेदन दायर किया और पति ने अप्रैल 2008 में उसे तलाक दे दिया।

    जेएमएफसी, चिपलून ने शुरू में भरण-पोषण आवेदन खारिज कर दिया, लेकिन पत्नी ने MWPA के तहत नया आवेदन दायर किया। परिणामस्वरूप, अदालत ने पति को बेटी के लिए गुजारा भत्ता और पत्नी को एकमुश्त राशि देने का आदेश दिया।

    पति ने आदेशों को चुनौती दी और पत्नी ने भी बढ़ी हुई राशि की मांग करते हुए आवेदन दायर किया। सेशन कोर्ट ने पत्नी का आवेदन आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए एकमुश्त भरण-पोषण राशि बढ़ाकर 9 लाख रुपये कर दिए, जिसके परिणामस्वरूप पति ने वर्तमान पुनर्विचार आवेदन दाखिल किया।

    कार्यवाही के दौरान, यह दिखाया गया कि पत्नी ने अप्रैल 2018 में दूसरी शादी की थी लेकिन अक्टूबर, 2018 में फिर से तलाक हो गया।

    आवेदक की ओर से वकील शाहीन कपाड़िया ने तर्क दिया कि पत्नी दूसरी शादी करने के बाद अपने पहले पति से भरण-पोषण की हकदार नहीं है। उन्होंने कहा कि पत्नी केवल दूसरे पति से ही गुजारा भत्ता मांग सकती है।

    अदालत ने कहा कि एक्ट की धारा 3(1)(ए) पुनर्विवाह के खिलाफ बिना किसी शर्त के उचित और निष्पक्ष प्रावधान और भरण-पोषण का प्रावधान करती है।

    अदालत ने कहा,

    यह गरीबी को रोकने और तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के एक्ट के उद्देश्य पर प्रकाश डालता है, भले ही उन्होंने पुनर्विवाह किया हो।

    अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि तलाक के बाद भरण-पोषण प्रदान करने का पति का कर्तव्य पत्नी के पुनर्विवाह पर समाप्त हो जाता है। अदालत ने कहा कि ऐसी शर्त MWPA के विधायी इरादे का उल्लंघन करेगी।

    अदालत ने आगे कहा,

    "उचित और निष्पक्ष प्रावधान और भरण-पोषण का ऐसा अधिकार तलाक की तारीख पर स्पष्ट होता है।"

    अदालत ने कहा कि जहां एक्ट की धारा 4 तलाकशुदा महिला के पुनर्विवाह तक उसका भरण-पोषण करने के रिश्तेदारों के दायित्व पर सीमा लगाती है, वहीं एक्ट की धारा 3 पति को इस कर्तव्य से मुक्त नहीं करती है, भले ही पूर्व पत्नी पुनर्विवाह का विकल्प चुनती हो।

    अदालत ने डेनियल लतीफी बनाम भारत संघ (2001) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया और इस बात पर जोर दिया कि भरण-पोषण प्रदान करने के लिए मुस्लिम पति का दायित्व न केवल इद्दत अवधि के लिए है, बल्कि तलाकशुदा पत्नी के पूरे जीवन भर है, जब तक कि वह पुनर्विवाह न कर ले। हालांकि, अदालत ने कहा कि पति को इद्दत अवधि के भीतर गुजारा भत्ता देना होगा।

    वर्तमान मामले में अदालत ने कहा कि पति ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही के दौरान आय प्रमाण और विवरण पेश नहीं किया। इसमें कहा गया कि पति ने हाईकोर्ट की कार्यवाही के दौरान देरी से सैलरी सर्टिफिकेट जमा किया, जिसमें 15,000 रुपये की मासिक आय का संकेत दिया गया। पत्नी ने भारतीय दूतावास की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के आधार पर तर्क दिया कि पति की आय अधिक है।

    यह स्वीकार करते हुए कि MWPA में एक बार दी गई भरण-पोषण राशि को बढ़ाने के प्रावधानों का अभाव है, अदालत ने तर्क दिया कि पति द्वारा देय राशि पहले ही स्पष्ट कर दी गई। इसने रेखांकित किया कि भले ही पत्नी भविष्य में पुनर्विवाह करती हो, लेकिन इससे अदालत द्वारा आदेशित एकमुश्त राशि पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

    इसलिए अदालत ने पति का पुनर्विचार आवेदन खारिज कर दिया, पत्नी को पति द्वारा अर्जित ब्याज के साथ 2 लाख रुपये निकालने की अनुमति दी। साथ ही उन्हें अपनी बेटी के लिए गुजारा भत्ता बढ़ाने के लिए आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता दी गई।

    वकील शाहीन कपाड़िया, माहेनूर खान, इरफान उनवाला आई/बी. वृषाली मेनदाद ने पति का प्रतिनिधित्व किया।

    वकील सौरभ बुटाला, पीवी शेखावत, शगुफा पटेल, स्वाति खोत, नितिता मंडानियां ने पत्नी का प्रतिनिधित्व किया।

    एपीपी एसएस कौशिक ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया

    केस नंबर- आपराधिक पुनर्विचार आवेदन नंबर 368/2017

    केस टाइटल- खलील अब्बास फकीर बनाम तब्बसुम खलील फकीर @ तब्बसुम गुलाम हुसैन घरे और अन्य।

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