UP Victim Compensation Scheme 2014 | बलात्कार पीड़ितों के लिए मुआवजे की पात्रता/मात्रा DLSA तय करेगी, अदालत नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

2 Jan 2024 7:23 AM GMT

  • UP Victim Compensation Scheme 2014 | बलात्कार पीड़ितों के लिए मुआवजे की पात्रता/मात्रा DLSA तय करेगी, अदालत नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पीड़ित मुआवजा योजना 2014 (UP Victim Compensation Scheme 2014) के तहत मुआवजे की मांग कर रही बलात्कार पीड़िता को जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA) से संपर्क करने को कहा।

    जस्टिस ज्योत्सना शर्मा ने बलात्कार पीड़ितों के लिए मुआवज़े का दावा करने की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए कहा,

    “मुआवजा देने और उसकी मात्रा के लिए पीड़िता की 'पात्रता' केवल DLSA द्वारा तय की जा सकती है। संबंधित अदालत केवल 'सिफारिश' ही कर सकती है। यह DLSA के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह तय करने के लिए कि 'दावा' 2014 की योजना के मापदंडों के अंतर्गत आता है या नहीं। ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय की भूमिका औपचारिक है, इससे अधिक नहीं।”

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

    सेशन ट्रायल में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363 और 376 के तहत आरोपी को दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास और 25,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई। मुआवजे के तौर पर पीड़िता को आधी रकम का भुगतान किया जाएगा। चूंकि अभियुक्त जेल में है और उसने दोषसिद्धि आदेश के विरुद्ध अपील दायर की है, इसलिए कोई जुर्माना जमा नहीं किया गया। नतीजतन, याचिकाकर्ता को कोई मुआवजा नहीं मिला।

    याचिकाकर्ता ने मुआवजा देने के लिए रिट अदालत का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, उसे इसके लिए निचली अदालत से संपर्क करने का निर्देश दिया गया। याचिकाकर्ता के आवेदन पर, संबंधित जिला प्रोबेशन अधिकारी ने रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया कि "उत्तर प्रदेश रानी लक्ष्मी बाई महिला एवं बाल सम्मान कोष" योजना 2015 में लाई गई, जबकि वर्तमान मामले में घटना 2010 में हुई थी। तदनुसार, याचिकाकर्ता योजना के तहत किसी भी मुआवजे की हकदार नहीं है। रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन को निचली अदालत ने खारिज कर दिया।

    तदनुसार, याचिकाकर्ता ने अपने रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग करके फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    कोर्ट ने कहा,

    “जिस तरह से मुआवजे के मामले को संबंधित अदालत ने संभाला है, उससे यह आभास होता है कि अदालत इस योजना और यूपी पीड़ित मुआवजा योजना, 2014 के तहत मुआवजा देने के लिए आवश्यक औपचारिकताओं से अनभिज्ञ है। आगे बढ़ने से पहले मुझे कानून के प्रासंगिक प्रावधानों का अध्ययन करना उचित लगता है।'

    कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता में 31 दिसंबर 2009 को शुरू की गई धारा 357-ए राज्य सरकार को पीड़ित या उसके आश्रितों को मुआवजा देने के उद्देश्य से धन उपलब्ध कराने के लिए योजना तैयार करने का अधिकार देती है, जिन्हें नुकसान हुआ हो या केंद्र सरकार के समन्वय में अपराध के परिणामस्वरूप चोट।

    उत्तर प्रदेश पीड़ित मुआवजा योजना 2014 धारा 357-ए आईपीसी के तहत प्रख्यापित की गई। योजना के तहत स्थापित पीड़ित मुआवजा कोष का संचालन सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा किया जाता है। योजना के साथ संलग्न अनुसूची-1 में बलात्कार पीड़िता को दिए जाने वाले मुआवजे की अधिकतम सीमा का प्रावधान है।

    मुआवजे के आवेदन की प्रक्रिया के संबंध में न्यायालय ने कहा,

    “योजना के पैरा-5 में प्रावधान है कि मुआवजा देने की सिफारिश अदालत द्वारा की जा सकती है। यह सिफ़ारिश पीड़ित द्वारा दिए गए आवेदन पर या अदालत द्वारा स्वत: संज्ञान से की जा सकती है। जब भी, ऐसी सिफारिश जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को प्राप्त होती है तो वह मामले की जांच करेगा और दावे की सामग्री को सत्यापित करेगा और योजना के तहत प्रदान की गई अन्य औपचारिकताओं का पालन करने के बाद और उचित जांच के बाद प्राप्ति की तारीख से दो महीने के भीतर योजना के प्रावधानों के अनुसार मुआवजा दिए जाने की अनुशंसा करेगा।"

    न्यायालय ने याचिकाकर्ता को निचली अदालत या जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के समक्ष आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता दी और उस पर कानून के अनुसार विचार किया जाएगा।

    केस टाइटल: रमेश उर्फ मेहंदी हसन बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [अनुच्छेद 227 नंबर- 5804/2023 के तहत मामले]

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