सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (30 अक्टूबर 2023 से 03 नवंबर 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
महिला अधिकारियों की पदोन्नति के लिए सेना का दृष्टिकोण मनमाना, फैसले के विपरीत: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (3 नवंबर) को उन महिला अधिकारियों की पदोन्नति के प्रति अपने "मनमाने" रवैये के लिए भारतीय सेना की आलोचना की, जिन्हें कोर्ट के पहले के फैसले के अनुसार स्थायी कमीशन दिया गया है। न्यायालय ने कहा कि सेना द्वारा अपनाए गए मानदंडों ने "महिला अधिकारियों को न्याय प्रदान करने की आवश्यकता के साथ अन्याय किया है, जिन्होंने अपने पुरुष समकक्षों के रूप में उचित अधिकार प्राप्त करने के लिए लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी।"
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ईवीएम- वीवीपीएटी गणना बढ़ाने से बिना किसी फायदे के चुनाव आयोग का काम बढ़ जाएगा : सुप्रीम कोर्ट
2024 के आम चुनावों से पहले, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (3 नवंबर) को मौखिक रूप से कहा कि मतदाता-सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) रिकॉर्ड के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) डेटा क्रॉस-चेकिंग के पैमाने को बढ़ाने से बिना किसी 'बड़े फायदे ' के चुनाव आयोग का काम बढ़ जाएगा।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ मतदाता-सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल रिकॉर्ड के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन डेटा के अधिक व्यापक सत्यापन के लिए गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी।
मामले का विवरण- एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत निर्वाचन आयोग एवं अन्य। | रिट याचिका (सिविल) संख्या 434/ 2023
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अदालत के लिए महिला आरक्षण को तुरंत लागू करने का आदेश देना मुश्किल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (3 नवंबर) को केंद्र सरकार को 2024 के आम चुनावों से पहले संविधान (106वां संशोधन) अधिनियम, 2023 को तुरंत लागू करने का निर्देश देने के बारे में अपनी आपत्ति व्यक्त की, जो लोकसभा, राज्य विधानमंडलों के ऊपरी सदन और दिल्ली विधान सभा में महिला आरक्षण शुरू करने का प्रस्ताव करता है। हालांकि सितंबर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संवैधानिक संशोधन पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन यह अधिनियम तब तक लागू नहीं किया जाएगा जब तक कि अगली जनगणना के बाद परिसीमन अभ्यास आयोजित नहीं किया जाता।
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Gyanvapi Dispute | सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीजे द्वारा केस को दूसरी बेंच से अपने पास ट्रांसफर करने के खिलाफ दायर मस्जिद समिति की चुनौती खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (3 नवंबर) को काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित मामलों को किसी अन्य न्यायाधीश की पीठ से अपनी पीठ में ट्रांसफर करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के ट्रांसफर ऑर्डर को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेजेमिया मसाजिद वाराणसी (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी बनाम प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश और अन्य। एसएलपी(सी) नंबर 23850-23851/2023
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वोटर्स का जानने का अधिकार बनाम डोनर्स की गोपनीयता: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टरोल बॉन्ड मामले में फैसला सुरक्षित रखा
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (2 नवंबर) को इलेक्टरोल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने तीन दिनों तक मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), डॉ जया ठाकुर ने वित्त अधिनियम 2017 द्वारा पेश किए गए संशोधनों को चुनौती दी, जिसने इलेक्टरोल बॉन्ड स्कीम का मार्ग प्रशस्त किया।
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क्या ट्रांस महिला घरेलू हिंसा अधिनियम का उपयोग कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा
सुप्रीम कोर्ट इस बात की जांच करने के लिए तैयार है कि क्या एक ट्रांसजेंडर महिला, जिसने सेक्स री-असाइनमेंट सर्जरी करवाई है, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत "पीड़ित व्यक्ति" हो सकती है और उसे घरेलू हिंसा के मामले में अंतरिम भरण-पोषण मांगने का अधिकार है। मामले को 2025 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील में अनुमति दे दी, जिसमें कहा गया था कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति जिसने लिंग को महिला में बदलने के लिए सर्जरी करवाई है, वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कर सकता है।
केस डिटेलः विट्ठल माणिक खत्री बनाम सागर संजय कांबले, विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) डायरी नंबर 34425/2023
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सर्विस लॉ | सुप्रीम कोर्ट ने सीनियारिटी लिस्ट की एंटी-डेटिंग को बरकरार रखा; कहा-डिग्री और डिप्लोमा धारकों के लिए अलग-अलग कोटा निर्धारित होने से कोई पूर्वाग्रह नहीं होता
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कानूनी रूप से अस्थिर होने के कारण वरिष्ठता सूची की एंटी-डेटिंग के खिलाफ दायर एक अपील खारिज कर दी। इस मामले में अपीलकर्ता केरल हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के आदेश को चुनौती दे रहा था, जिसने निजी उत्तरदाताओं की वरिष्ठता में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने पाया कि वरिष्ठता सूची की एंटी-डेटिंग से अपीलकर्ता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि डिग्री धारकों और डिप्लोमा धारकों के लिए अलग-अलग कोटा निर्धारित किया गया था। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता एक ग्रेजुएट इंजीनियर है और निजी उत्तरदाता डिप्लोमा धारक हैं, दोनों अलग-अलग स्ट्रीम से थे और उनके पास अलग-अलग कोटा था।
केस टाइटल: सी अनिल चंद्रन बनाम एमके राघवन और अन्य, सिविल अपील नंबर 8915/2012
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'भेदभाव को स्वीकार करने के बाद भी समलैंगिक जोड़ों की रक्षा न करना अपने कर्तव्यों का त्याग': सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका
सुप्रियो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका दायर की गई है। चार याचिकाकर्ताओं (उदित सूद, सात्विक, लक्ष्मी मनोहरन और गगनदीप पॉल) ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक जोड़ों के साथ होने वाले भेदभाव को स्वीकार करने के बावजूद उन्हें कोई कानूनी सुरक्षा नहीं देने के फैसले को गलत ठहराया है। पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह मौलिक अधिकारों को बनाए रखने और उनकी रक्षा करने के न्यायालय के कर्तव्य से विमुख होने जैसा है। उल्लेखनीय है कि सुप्रियो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से इनकार कर दिया गया था।
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सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, चुनाव आयोग सभी राजनीतिक दलों को 30 सितंबर तक मिले चुनावी बांड फंडिंग का डाटा पेश करे
चुनावी बांड के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को चुनाव आयोग को सभी राजनीतिक दलों को 30 सितंबर तक उन्हें चुनाव बांड से प्राप्त धन का ब्योरा जुटाने और उसे कोर्ट के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ चुनावी बांड स्कीम के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने चुनावी बांड डोनेशन का डाटा उपलब्ध नहीं होने पर चुनाव आयोग से नाराज़गी जताई। पीठ ने कहा कि 12 अप्रैल, 2019 को पारित अंतरिम आदेश के अनुसार, चुनाव आयोग आज तक चुनावी बांड फंडिंग के डाटा को मेंटेन करने के लिए बाध्य था।
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यदि अभियुक्त ने स्थिति का "अनुचित लाभ" उठाया तो आईपीसी की धारा 300 का अपवाद 4 लागू नहीं होगा : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पत्नी की हत्या के लिए एक पति की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि एक अपराधी जो किसी स्थिति का अनुचित लाभ उठाता है वह भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के अपवाद 4 को लागू करने का हकदार नहीं है। इस मामले में मृतक (पत्नी) ने अपने पति (अपीलकर्ता) के साथ झगड़े के बाद आगे की यातना से बचने के लिए खुद पर मिट्टी का तेल डाल लिया था। पति ने कथित तौर पर उसे मारने के इरादे से माचिस की तीली जलाई और "तुम मर जाओ" कहते हुए उस पर फेंक दी।
केस टाइटल : अनिल कुमार बनाम केरल राज्य
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जमानत की मंजूरी सह-अभियुक्त के आत्मसमर्पण करने पर निर्भर नहीं रखी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने जमानत याचिका की अनुमति देते हुए कहा कि सह-अभियुक्त व्यक्ति को जमानत देना किसी अन्य आरोपी के आत्मसमर्पण पर निर्भर नहीं हो सकता, जो इस मामले में मुख्य आरोपी भी है। कोर्ट ने कहा, "हमारी राय में सह-अभियुक्त व्यक्ति को जमानत देने का सवाल किसी अन्य आरोपी के आत्मसमर्पण पर निर्भर नहीं किया जा सकता, जिसे इस मामले में मुख्य आरोपी व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है।"
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की खंडपीठ ने दहेज हत्या के एक मामले में एक आरोपी की जमानत याचिका पर फैसला करते हुए ये टिप्पणियां कीं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अपीलकर्ता पति का भाई है और एक आरोपी भी है। यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि पति फरार है और उसकी गिरफ्तारी के बिना ही मुकदमा शुरू हो गया था।
केस टाइटल : मुंशी साह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, आपराधिक अपील नंबर 3198-3199/2023
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सीआरपीसी की धारा 362 जमानत आदेशों पर लागू नहीं होती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द करते हुए कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 362, जो किसी फैसले या अंतिम आदेश में संशोधन पर रोक लगाती है, जमानत खारिज करने का आदेश के किसी मामले में लागू नहीं होगी।
न्यायालय द्वारा दिया गया तर्क यह था कि इस तरह के आदेश में एक अंतरिम आदेश की विशेषताएं होती हैं। इस प्रकार, जिन परिस्थितियों में जमानत खारिज की गई थी, उनमें कोई भी बदलाव आरोपी को जमानत के लिए नया आवेदन दायर करने का अधिकार देगा, और धारा 362 के तहत निषेध लागू नहीं होगा। इसी तरह, न्यायालय ने कहा कि यदि इस तरह की भिन्नता का मामला बनता है तो जमानत की शर्तें भी भिन्न हो सकती हैं।
केस टाइटलः रामाधार साहू बनाम मध्य प्रदेश राज्य, (arising from SLP (CRL) No 11130/2023)
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समन्वय पीठ की टिप्पणियां किसी फैसले को रिव्यू करने का आधार नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू के दायरे पर 8 सिद्धांत तय किए
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य कर अधिकारी बनाम रेनबो पेपर्स लिमिटेड 2022 लाइवलॉ (एससी) 743 मामले में 2022 के फैसले के खिलाफ दायर रिव्यू पीटिशन्स को खारिज करते हुए कहा कि किसी फैसले पर की गई समन्वय पीठ की टिप्पणियां इसके रिव्यू का आधार नहीं हो सकती हैं। रेनबो पेपर्स में, जस्टिस इंदिरा बनर्जी (सेवानिवृत्त) और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि आईएंडबी कोड, 2016 के तहत एक समाधान योजना टिकाऊ नहीं हो सकती है, अगर इसमें सरकार को वैधानिक बकाया की अनदेखी की जाती है।
केस टाइटल: संजय अग्रवाल बनाम राज्य कर अधिकारी
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केवल बयानों, सामाजिक पृष्ठभूमि और समग्र परिस्थितियों में विरोधाभास से गवाह बदनाम नहीं होता, उस पर अवश्य विचार किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में गवाहों के बयानों में विरोधाभासों और गवाहों की समग्र विश्वसनीयता के बीच अंतर करने के महत्व पर जोर दिया। न्यायालय ने फिर से पुष्टि की कि किसी गवाह के दो बयानों में विरोधाभास जरूरी नहीं कि उस गवाह को बदनाम करे। साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 145 और 155 को मामले की समग्र परिस्थितियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सोच-समझकर लागू किया जाना था।
केस टाइटल: बीरबल नाथ बनाम राजस्थान राज्य
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'क्या कोई सरकार मंत्रियों के माध्यम से मुकदमा कर सकती है?' : एसडब्ल्यूएम समिति प्रमुख के रूप में एलजी की नियुक्ति के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (31 अक्टूबर) को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पैनल के प्रमुख के रूप में उपराज्यपाल वीके सक्सेना की नियुक्ति के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सवाल किया कि क्या कोई सरकार किसी मंत्री के माध्यम से मुकदमा कर सकती है या मुकदमा दायर कर सकती है।
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के गठन के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (एनसीटीडी) की आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह याचिका सरकार के शहरी विकास मंत्री के माध्यम से दायर की गई है।
केस टाइटल : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार बनाम दिल्ली के उपराज्यपाल कार्यालय एवं अन्य सिविल अपील नंबर 5388/2023
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मोटर दुर्घटना दावा | सिर्फ इसलिए कि वाहन मालिक ने ड्राइवर का लाइसेंस सत्यापित नहीं किया, बीमाकर्ता को रिकवरी का कोई अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि केवल इसलिए कि वाहन मालिक ने नियोजित ड्राइवर के ड्राइविंग लाइसेंस की प्रामाणिकता को सत्यापित नहीं किया था, बीमा कंपनी यह दावा नहीं कर सकती कि वह मोटर एक्सिडेंट क्लेम में मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह साबित करने का दायित्व बीमा कंपनी पर है कि वाहन मालिक ने नियोजित ड्राइवर के ड्राइविंग लाइसेंस की उचित जांच नहीं की है।
जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार के बेंच ने कहा कि ड्राइवर को नियुक्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा करना अव्यावहारिक होगा कि वह यह सत्यापित और पुष्टि करेगा कि ड्राइवर की ओर से प्रस्तुत ड्राइविंग लाइसेंस वैध और वास्तविक है या नहीं।
केस टाइटल: इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम गीता देवी और अन्य विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 19992/2023
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धारा 47 सीपीसी | एक्सक्यूशन कोर्ट केवल डिक्री एक्सक्यूशन तक सीमित प्रश्नों पर विचार कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में डिक्री एक्सक्यूशन में लंबी देरी पर रोष व्यक्त किया। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा, सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 47 के तहत एक्सक्यूशन कोर्ट केवल डिक्री एक्सक्यूशन तक सीमित प्रश्नों पर विचार कर सकता है, वह डिक्री पर विचार नहीं कर सकता। धारा 47 के अनुसार, जिस मुकदमे में डिक्री पारित की गई हो, उसके पक्षकारों या उनके प्रतिनिधियों के बीच और डिक्री के एक्सक्यूशन, निर्वहन या संतुष्टि संबंधित सभी प्रश्नों का निर्धारण डिक्री एक्सक्यूशन कोर्ट करेगा, न कि एक अलग मुकदमे में निर्धारण होगा।
केस डिटेल: प्रदीप मेहरा बनाम हरिजीवन जे जेठवा, सिविल अपील संख्या 6375/2023
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धारा 313 सीआरपीसी | 'चुप रहने के अधिकार का इस्तेमाल आरोपी के खिलाफ नहीं किया जाना चाहिए': सुप्रीम कोर्ट ने तय किए 12 सिद्धांत
सुप्रीम कोर्ट ने हाल में एक उल्लेखनीय फैसले में एक महिला को बरी कर दिया, जिस पर अपने ही बच्चों की हत्या का आरोप था। निचली अदालतों ने उसे हत्या का दोषी माना था और उम्रकैद की सज़ा दी थी। शीर्ष अदालत ने फैसले में यह भी तय किया कि धारा 313, दंड प्रक्रिया संहिता के तहत बयान में बयान में दोषी के लिए क्या आवश्यक होता है। कई नज़ीरों का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उक्त सवाल के जवाब में 12 सिद्धांत तय किए-
केस डिटेलः इंद्रकुंवर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, आपराधिक अपील संख्या 1730/2012
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पहली याचिका के समय उपलब्ध आधारों पर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दूसरी याचिका सुनवाई योग्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (30 अक्टूबर) को कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत दूसरी याचिका उन आधारों पर सुनवाई योग्य नहीं होगी, जो पहली याचिका दायर करने के समय भी चुनौती के लिए उपलब्ध हैं। जस्टिस सी टी रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि भले ही सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दूसरी याचिका पर कोई पूर्ण रोक नहीं है, लेकिन ऐसी याचिका तब सुनवाई योग्य नहीं होगी जब पहली बार में ही राहत के लिए आधार उपलब्ध हो।
केस टाइटल: भीष्म लाल वर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, विशेष अनुमति याचिका (सीआरएल) नंबर 7976 2023
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यदि अभियुक्त की गलती के बिना ट्रायल में देरी होती है तो अदालतों को जमानत देने पर विचार करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार करते हुए अपने फैसले में कहा कि किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने से पहले हिरासत या जेल को बिना सुनवाई के सजा नहीं माना जाना चाहिए। कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया है कि त्वरित सुनवाई का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे में एक मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि, अगर आरोपी की कोई गलती न होने पर भी मुकदमे में अनावश्यक रूप से देरी होती है तो अदालत को जमानत देने की अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
केस टाइटल : मनीष सिसौदिया बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 8167/2023
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सुप्रीम कोर्ट का महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर को निर्देश: शिवसेना में विभाजन के बाद दायर अयोग्यता याचिकाओं पर 31 दिसंबर तक और एनसीपी में विभाजन मामले पर 31 जनवरी तक फैसला करें
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर को निर्देश दिया कि वह शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में विभाजन के संबंध में दायर अयोग्यता याचिकाओं पर क्रमशः 31 दिसंबर, 2023 और 31 जनवरी, 2024 तक फैसला करें। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ शिवसेना के सदस्य सुनील प्रभु (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी के सदस्य (शरद पवार) के जयंत पाटिल द्वारा दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इनमें क्रमशः एकनाथ शिंदे और अजीत पवार गुटों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर स्पीकर द्वारा शीघ्र निर्णय लेने की मांग की गई है।
केस टाइटल: सुनील प्रभु बनाम स्पीकर, महाराष्ट्र राज्य विधानसभा डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 685/2023 + जयंत पाटिल कुमार बनाम स्पीकर महाराष्ट्र राज्य विधानसभा डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1077/2023
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नागरिकों को राजनीतिक दलों के धन का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है: चुनावी बांड मामले में अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने चुनावी बांड मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक बयान में कहा है कि नागरिकों को आर्टिकल 19(1)(ए) के तहत किसी राजनीतिक दल की फंडिंग के संबंध में सूचना का अधिकार नहीं है। एजी ने चुनावी बांड योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि नागरिकों को एक राजनीतिक दल के वित्त पोषण के स्रोत के बारे में जानने का अधिकार है।
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सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति घोटाला मामले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (30 अक्टूबर) को दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार कर दिया, जो राष्ट्रीय राजधानी में अब खत्म हो चुकी शराब नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित अनियमितताओं को लेकर मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी (आप) नेता इस साल फरवरी से हिरासत में हैं और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) दोनों उनकी जांच कर रहे हैं।
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क्रिमिनल ट्रायल में खुलासे की आवश्यकता निजता के अधिकार को खत्म नहीं कर सकती: सुप्रीम कोर्ट ने नवजात की हत्या की आरोपी महिला को बरी किया
सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक अपील पर फैसला करते समय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार किया कि क्या आरोपी महिला को आपराधिक मुकदमे में अपने निजी जीवन से संबंधित पहलुओं का खुलासा करना आवश्यक है। अदालत महिला द्वारा दायर अपील पर फैसला कर रही थी, जिस पर अपने ही बच्चे की हत्या का आरोप है और उसे हत्या के लिए दोषी ठहराया गया है। इसके लिए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
केस टाइटल: इंद्रकुंवर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, आपराधिक अपील नंबर 1730 2012