SC के ताज़ा फैसले

BREAKING| 498A की FIR में दो महीने तक नहीं होगी गिरफ्तारी, मामले परिवार कल्याण समितियों को सौंपे जाएं: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों बरकरार रखा
BREAKING| 498A की FIR में दो महीने तक नहीं होगी गिरफ्तारी, मामले परिवार कल्याण समितियों को सौंपे जाएं: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (क्रूरता अपराध) के दुरुपयोग को रोकने के लिए परिवार कल्याण समिति (FWC) की स्थापना के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित सुरक्षा उपायों का समर्थन किया।न्यायालय ने निर्देश दिया कि हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने आदेश दिया:"इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 13.06.2022 के आपराधिक...

सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासी महिलाओं को पुरुषों के समान दिया उत्तराधिकार का अधिकार, कहा- महिला उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकार से वंचित करना भेदभावपूर्ण
सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासी महिलाओं को पुरुषों के समान दिया उत्तराधिकार का अधिकार, कहा- 'महिला उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकार से वंचित करना भेदभावपूर्ण'

उत्तराधिकार से संबंधित विवाद में आदिवासी परिवार की महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित करना अनुचित और भेदभावपूर्ण है।न्यायालय ने कहा कि यद्यपि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आदिवासी महिलाएं स्वतः ही उत्तराधिकार से वंचित हो जाती हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि यह देखा जाना चाहिए कि क्या कोई प्रचलित प्रथा मौजूद है, जो पैतृक संपत्ति में महिला आदिवासी हिस्सेदारी के अधिकार को...

पेंशन संवैधानिक अधिकार, उचित प्रक्रिया के बिना इसे कम नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
पेंशन संवैधानिक अधिकार, उचित प्रक्रिया के बिना इसे कम नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व कर्मचारी को राहत प्रदान की, जिसकी पेंशन निदेशक मंडल से परामर्श किए बिना एक-तिहाई कम कर दी गई थी। तर्क दिया गया कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (कर्मचारी) पेंशन विनियम, 1995 ("विनियम") के तहत अनिवार्य है।न्यायालय ने दोहराया कि पेंशन कर्मचारी का संपत्ति पर अधिकार है, जो संवैधानिक अधिकार है, जिसे कानून के अधिकार के बिना अस्वीकार नहीं किया जा सकता, भले ही किसी कर्मचारी को कदाचार के कारण अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया गया हो।बैंक के विनियम 33 में स्पष्ट रूप...

सुप्रीम कोर्ट ने जांच को दोषपूर्ण बताते हुए मौत की सज़ा पाए व्यक्ति को बरी किया, DNA साक्ष्यों के प्रबंधन पर राष्ट्रव्यापी दिशानिर्देश जारी किए
सुप्रीम कोर्ट ने जांच को 'दोषपूर्ण' बताते हुए मौत की सज़ा पाए व्यक्ति को बरी किया, DNA साक्ष्यों के प्रबंधन पर राष्ट्रव्यापी दिशानिर्देश जारी किए

सुप्रीम कोर्ट ने एक दंपत्ति की हत्या और पीड़िता के साथ बलात्कार के मामले में मौत की सज़ा पाए व्यक्ति को DNA साक्ष्यों के प्रबंधन में गंभीर प्रक्रियात्मक खामियों का हवाला देते हुए बरी कर दिया। ऐसा करते हुए न्यायालय ने आपराधिक जांच में DNA और अन्य जैविक सामग्रियों के उचित संग्रह, संरक्षण और प्रसंस्करण को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रव्यापी बाध्यकारी दिशानिर्देश जारी किए।न्यायालय ने कहा,"इस फैसले के माध्यम से पूरी प्रक्रिया में सामान्य सूत्र जो चलता हुआ दिखाई देता है, वह है दोषपूर्ण जांच।"यह मामला...

BREAKING| वैवाहिक मामलों में पति-पत्नी की गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई टेलीफोनिक बातचीत स्वीकार्य साक्ष्य: सुप्रीम कोर्ट
BREAKING| वैवाहिक मामलों में पति-पत्नी की गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई टेलीफोनिक बातचीत स्वीकार्य साक्ष्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (14 जुलाई) को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि पत्नी की जानकारी के बिना उसकी टेलीफोन बातचीत रिकॉर्ड करना उसकी निजता के मौलिक अधिकार का "स्पष्ट उल्लंघन" है और इसे फैमिली कोर्ट में साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने इस प्रकार यह निर्णय दिया कि पति-पत्नी की गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई टेलीफोन बातचीत वैवाहिक कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है।भारतीय...

हाईकोर्ट स्वतःसंज्ञान से सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन दे सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट का सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन बरकरार रखा
'हाईकोर्ट स्वतःसंज्ञान से सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन दे सकते हैं': सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट का सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें उड़ीसा हाईकोर्ट (सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन) नियम, 2019 का नियम 6(9) रद्द कर दिया गया था। नियम 6(9) हाईकोर्ट के फुल कोर्ट को किसी एडवोकेट को 'सीनियर एडवोकेट' के रूप में नामित करने का स्वतःसंज्ञान अधिकार प्रदान करता है। न्यायालय ने सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन के मामले में जितेंद्र @ कल्ला बनाम दिल्ली राज्य (सरकार) एवं अन्य (2025) मामले में अपने हालिया फैसले का हवाला देते हुए स्वतःसंज्ञान डेजिग्नेशन बरकरार रखा।जितेंद्र कल्ला मामले में...

अनुबंध पर नियुक्त सरकारी वकील को नियमित नियुक्ति का अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
अनुबंध पर नियुक्त सरकारी वकील को नियमित नियुक्ति का अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अनुबंध पर कार्यरत लोक अभियोजक (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) की नियमितीकरण की याचिका खारिज कर दी।जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस जॉयमल्या बागची की खंडपीठ ने कहा कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता की नियमित नियुक्ति की मांग वाली याचिका खारिज कर कोई गलती नहीं की।कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता स्वयं जिलाधिकारी, पुरुलिया से अनुबंध पर काम जारी रखने की अनुमति मांगता रहा ताकि आजीविका चला सके।कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,“याचिकाकर्ता ऐसा कोई वैधानिक या संवैधानिक अधिकार स्थापित...

अनुच्छेद 12 के तहत राज्य मानी जाने वाली संस्था में कार्यरत व्यक्ति सरकारी कर्मचारी नहीं: सुप्रीम कोर्ट
अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' मानी जाने वाली संस्था में कार्यरत व्यक्ति सरकारी कर्मचारी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक व्यक्ति जो एक पंजीकृत सोसायटी में काम करता है जो अनुच्छेद 12 के अर्थ के भीतर एक "राज्य" है, उसे सरकारी सेवक नहीं ठहराया जा सकता है।जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ त्रिपुरा हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सरकारी पद से याचिकाकर्ता को 'जूनियर वीवर' के रूप में खारिज करने को बरकरार रखा गया था। याचिकाकर्ता ने पात्र होने के लिए गलत तरीके से प्रस्तुत किया था कि वह पहले एक सरकारी कर्मचारी था। याचिकाकर्ता, जूनियर बुनकर...

सेल एग्रीमेंट हस्तांतरण नहीं, विशिष्ट निष्पादन के लिए वाद के बिना संपत्ति में कोई अधिकार नहीं दिया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सेल एग्रीमेंट हस्तांतरण नहीं, विशिष्ट निष्पादन के लिए वाद के बिना संपत्ति में कोई अधिकार नहीं दिया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि अनुबंध के विशिष्ट निष्पादन के लिए वाद की अनुपस्थिति में सेल एग्रीमेंट पर स्वामित्व या संपत्ति पर अधिकार का दावा करने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता।अदालत ने कहा,"विशिष्ट निष्पादन के लिए वाद की अनुपस्थिति में सेल एग्रीमेंट पर स्वामित्व का दावा करने या संपत्ति में किसी हस्तांतरणीय हित का दावा करने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता।"जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें प्रतिवादी नंबर 1 ने अनुबंध के विशिष्ट निष्पादन...

रेस जुडिकाटा सिद्धांत एक ही कार्यवाही के विभिन्न चरणों पर भी लागू होता है: सुप्रीम कोर्ट
रेस जुडिकाटा सिद्धांत एक ही कार्यवाही के विभिन्न चरणों पर भी लागू होता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेस जुडिकाटा का सिद्धांत न केवल कार्यवाही के विभिन्न सेटों पर लागू होता है, बल्कि एक ही कार्यवाही के विभिन्न चरणों पर भी लागू होता है।जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन खंडपीठ ने इस प्रकार केरल हाईकोर्ट के निष्कर्ष को बरकरार रखा, जिसने अपीलकर्ता के आदेश I नियम 10 सीपीसी आवेदन को कार्यवाही के बाद के चरण में कानूनी उत्तराधिकारी को अभियोगी बनाने पर आपत्ति जताते हुए खारिज कर दिया, जबकि उसे कार्यवाही के पहले चरण में अभियोगी बनाने पर आपत्ति जताने का अवसर मिला था।अदालत...

हाईकोर्ट दोषी की अपील में सजा बढ़ाने के लिए स्वतःसंज्ञान संशोधन शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
हाईकोर्ट दोषी की अपील में सजा बढ़ाने के लिए स्वतःसंज्ञान संशोधन शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट दोषी/आरोपी द्वारा दोषसिद्धि के विरुद्ध दायर अपील पर विचार करते समय सजा बढ़ाने के लिए स्वतःसंज्ञान संशोधन शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 401 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 442) के तहत अपने संशोधन क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता, जब वह पक्ष जो संशोधन याचिका दायर कर सकता था, जैसे कि राज्य या शिकायतकर्ता, ने ऐसा न करने का विकल्प चुना हो।जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की...

महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम | धारा 48(ई) के तहत आरोपित संपत्ति का हस्तांतरण तब तक अमान्य नहीं होगा, जब तक कि सोसायटी लेन-देन को चुनौती न दे : सुप्रीम कोर्ट
महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम | धारा 48(ई) के तहत आरोपित संपत्ति का हस्तांतरण तब तक अमान्य नहीं होगा, जब तक कि सोसायटी लेन-देन को चुनौती न दे : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि संपत्ति का हस्तांतरण, जिस पर सहकारी सोसायटी के पक्ष में प्रभार बनाया गया, महाराष्ट्र सहकारी सोसायटी अधिनियम, 1960 की धारा 48(ई) के अनुसार तभी अमान्य होगा, जब संबंधित सोसायटी लेन-देन को अमान्य करने की मांग करेगी। दूसरे शब्दों में ऐसा लेन-देन शुरू से ही अमान्य नहीं है और केवल सोसायटी के कहने पर ही अमान्य किया जा सकता है।यदि सोसायटी प्रभार को लागू करने और हस्तांतरण को अमान्य करने की मांग करने के लिए आगे नहीं आती है तो कोई तीसरा पक्ष यह तर्क नहीं दे सकता कि लेन-देन अमान्य...

NI Act की धारा 138 मामले में शिकायतकर्ता CrPC की धारा 372 प्रावधान के तहत बरी किए जाने के खिलाफ पीड़ित के रूप में अपील दायर कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट
NI Act की धारा 138 मामले में शिकायतकर्ता CrPC की धारा 372 प्रावधान के तहत बरी किए जाने के खिलाफ 'पीड़ित' के रूप में अपील दायर कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत अपराध के लिए चेक अनादर मामले में शिकायतकर्ता दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 2(wa) [भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 2(y)] के अर्थ में एक "पीड़ित" है, जो CrPC की धारा 372 [BNSS की धारा 413] के प्रावधान के तहत बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर कर सकता है।जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा,"NI Act की धारा 138 के तहत आरोपी के खिलाफ कथित अपराध के...

संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी भी कानून को कोर्ट की अवमानना ​​नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी भी कानून को कोर्ट की अवमानना ​​नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

2007 का सलवा जुडूम मामला बंद करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कोई भी कानून न्यायालय की अवमानना ​​नहीं माना जा सकता।जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा,“हम यह भी देखते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य विधानमंडल द्वारा इस न्यायालय के आदेश के बाद पारित किसी अधिनियम को इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश की अवमानना ​​नहीं कहा जा सकता... किसी अधिनियम का सरलीकृत रूप से प्रवर्तन केवल विधायी कार्य की अभिव्यक्ति है। इसे न्यायालय की...

कर्मचारी को रिटायरमेंट की आयु चुनने का कोई मौलिक अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
कर्मचारी को रिटायरमेंट की आयु चुनने का कोई मौलिक अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी कर्मचारी को अपने रिटायरमेंट की आयु निर्धारित करने का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं है। यह अधिकार राज्य के पास है, जिसे अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का पालन करते हुए उचित रूप से इसका प्रयोग करना चाहिए।कोर्ट ने कहा,"किसी कर्मचारी को इस बात का कोई मौलिक अधिकार नहीं है कि वह किस आयु में रिटायर होगा।"जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें अपीलकर्ता लोकोमोटर-विकलांग इलेक्ट्रीशियन है। उसको 58 वर्ष की आयु में...