BREAKING| पुलिस को लगातार आरोपी की गतिविधियों पर नज़र रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
8 July 2024 12:03 PM IST
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी ज़मानत की शर्त नहीं लगाई जा सकती, जो पुलिस को लगातार आरोपी की गतिविधियों पर नज़र रखने और वस्तुतः आरोपी की निजता में झांकने की अनुमति दे।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ इस बात की जांच कर रही थी कि क्या ज़मानत की शर्त के तहत आरोपी को गूगल मैप्स पर पिन डालना होगा, जिससे जांच अधिकारी उसकी लोकेशन देख सके और यह व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
कोर्ट ने ज़मानत की शर्त को खारिज कर दिया, जिसके तहत आरोपी को अपने मोबाइल डिवाइस में मौजूद गूगल मैप्स पिन को जांच अधिकारी के साथ शेयर करना होगा।
जस्टिस ओक ने मौखिक रूप से फ़ैसला सुनाया,
"ज़मानत की शर्त ज़मानत के मूल उद्देश्य को विफल नहीं कर सकती। ऐसी ज़मानत की शर्त नहीं लगाई जा सकती, जो पुलिस को लगातार आरोपी की गतिविधियों पर नज़र रखने और वस्तुतः आरोपी की निजता में झांकने की अनुमति दे।"
कोर्ट ने ज़मानत की उस शर्त में भी ढील दी, जिसके तहत विदेशी आरोपी को अपने दूतावास से यह आश्वासन लेना होगा कि वे भारत नहीं छोड़ेंगे। खंडपीठ ने कहा कि जमानत की ऐसी शर्तें नहीं हो सकतीं जो जमानत देने के उद्देश्य को विफल कर दें।
न्यायालय ड्रग्स मामले में आरोपी नाइजीरियाई नागरिक फ्रैंक विटस को अंतरिम जमानत देने की दिल्ली हाईकोर्ट की शर्तों के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रहा था।
2022 में उच्च न्यायालय ने आरोपी और सह-आरोपी को गूगल मैप्स पर पिन लगाने का आदेश दिया, जिससे उनका ठिकाना जांच अधिकारी को दिखाई दे सके। इसके अतिरिक्त, हाईकोर्ट ने आरोपियों को नाइजीरियाई उच्चायोग से प्रमाण पत्र प्राप्त करने का निर्देश दिया, जिसमें पुष्टि की गई हो कि वे भारत नहीं छोड़ेंगे और ट्रायल कोर्ट में पेश होंगे।
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गूगल इंडिया से आरोपी को अपना लाइव मोबाइल लोकेशन शेयर करने की आवश्यकता वाली जमानत शर्तों के संदर्भ में गूगल पिन की कार्यप्रणाली को स्पष्ट करने के लिए कहा था।
गूगल इंडिया को इस स्पष्टीकरण से छूट देने के बाद न्यायालय ने गूगल एलएलसी को गूगल पिन की कार्यप्रणाली को स्पष्ट करने का निर्देश दिया। 29 अप्रैल को गूगल एलएलसी के हलफनामे पर पुनर्विचार करने के बाद जस्टिस ओक ने इसे "अनावश्यक" पाया। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि यह ज़मानत शर्त संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आती है।
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) के लिए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने तर्क दिया कि ऐसी शर्त आरोपी के लाइव लोकेशन शेयर करने में मदद करती है। हालांकि, जस्टिस ओक ने असहमति जताते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि यह ज़मानत की शर्त नहीं हो सकती, भले ही अदालत द्वारा दो मामलों में इसका इस्तेमाल किया गया हो।
अदालत ने दो मुख्य मुद्दों पर विचार किया,
क्या किसी आरोपी को ज़मानत की शर्त के रूप में जांच अधिकारी के साथ Google पिन लोकेशन शेयर करनी चाहिए, और क्या किसी विदेशी आरोपी को ज़मानत के लिए उनके दूतावास से यह आश्वासन प्राप्त करने की शर्त रखी जा सकती है कि वे भारत नहीं छोड़ेंगे।
केस टाइटल - फ्रैंक विटस बनाम नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो