सुप्रीम कोर्ट मंथली राउंड अप : अक्टूबर, 2025

Shahadat

7 Nov 2025 9:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट मंथली राउंड अप : अक्टूबर, 2025

    सुप्रीम कोर्ट में अक्टूबर, 2025 में क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट मंथली राउंड अप। अक्टूबर महीने के सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    ट्रायल कोर्ट केवल निजी गवाह के हलफनामे के आधार पर चार्जशीट में न उल्लिखित अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी ट्रायल कोर्ट को केवल निजी गवाहों द्वारा दाखिल किए गए हलफनामों (अफिडेविट्स) के आधार पर चार्जशीट में न उल्लिखित अतिरिक्त अपराधों का संज्ञान नहीं लेना चाहिए, बिना जांच रिकॉर्ड पर भरोसा किए या आगे की जांच के आदेश दिए।

    एक बेंच, जिसमें जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एससी शर्मा शामिल थे, ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के असामान्य आदेश को रद्द कर दिया। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को मंजूरी दी थी, जिसमें शिकायतकर्ता के गवाहों द्वारा प्रस्तुत हलफनामों के आधार पर IPC की धारा 394 (डाका डालने या प्रयास के दौरान जानबूझकर चोट पहुंचाना) के अपराध का संज्ञान लिया गया था, बिना यह तय किए कि यह धारा इस मामले पर लागू होती है या नहीं।

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    Motor Accident Compensation - न्यूनतम मज़दूरी केवल शैक्षिक योग्यता के आधार पर तय नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यूनतम मज़दूरी किसी व्यक्ति की शैक्षिक योग्यता के आधार पर उसके द्वारा किए जा रहे कार्य की प्रकृति के संदर्भ के बिना निर्धारित नहीं की जा सकती।अदालत मोटर दुर्घटना मुआवज़े के मामले पर निर्णय दे रहा था, जहां आय की मात्रा पर विवाद था। यह मामला एक 20 वर्षीय बी.कॉम फाइनल इयर स्टूडेंट से संबंधित था, जिसने भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान में भी दाखिला लिया था।

    हालांकि, 2001 में एक मोटर दुर्घटना के बाद वह लकवाग्रस्त हो गया और अपनी मृत्यु तक दो दशकों तक बिस्तर पर पड़ा रहा। ट्रिब्यूनल और दिल्ली हाईकोर्ट ने मुआवज़ा देने के उद्देश्य से श्रमिकों के लिए अधिसूचित न्यूनतम मज़दूरी, यानी 3,352 रुपये प्रति माह, लागू करके उसकी आय की गणना की थी। हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि हालांकि पीड़ित की शैक्षणिक संभावनाएं थीं, लेकिन उसने अभी तक चार्टर्ड एकाउंटेंट की योग्यता हासिल नहीं की थी। इसलिए उस स्तर पर आय तय नहीं की जा सकती।

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    सशस्त्र बल न्यायाधिकरण को कोर्ट-मार्शल दोषसिद्धि को संशोधित करने और कम दंड लगाने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (10 अक्टूबर) को कहा कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम, 2007 (Armed Forces Tribunal Act) के तहत सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) को कोर्ट मार्शल के निष्कर्षों को प्रतिस्थापित करने का अधिकार है यदि इसके निष्कर्ष अत्यधिक, अवैध या अन्यायपूर्ण है।

    अदालत ने कहा, "इस प्रकार, 2007 अधिनियम की धारा 15 (6) (ए) और (बी) के तहत ट्रिब्यूनल को कोर्ट मार्शल के निष्कर्ष को प्रतिस्थापित करने का अधिकार है, जिसमें अधिनियम के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही शामिल है। यदि यह अत्यधिक, अवैध या अन्यायपूर्ण पाया जाता है तो सजा में हस्तक्षेप करने और दी गई सजा को कम करने का भी अधिकार है।"

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    District Judge Direct Appointment के लिए 7 साल की प्रैक्टिस 'निरंतर' होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिला जज के रूप में सीधी नियुक्ति के लिए संविधान के अनुच्छेद 233(2) के तहत निर्धारित वकील के रूप में 7 साल की प्रैक्टिस के आदेश पर विचार करते समय प्रैक्टिस में ब्रेक को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि आवेदन की तिथि तक 7 साल की प्रैक्टिस "निरंतर" होनी चाहिए। यह टिप्पणी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस अरविंद कुमार, जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस के विनोद चंद्रन की 5 जजों की पीठ ने की।

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    Stamp Act | स्टाम्प ड्यूटी का निर्धारण दस्तावेज़ के कानूनी स्वरूप से होता है, न कि उसके नामकरण से: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्टाम्प ड्यूटी की प्रभार्यता का निर्धारण करते समय निर्णायक कारक दस्तावेज़ के वास्तविक कानूनी स्वरूप का पता लगाना है, न कि दस्तावेज़ को दिए गए नामकरण से। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने एक कंपनी द्वारा दायर अपील खारिज की, जिसने कम स्टाम्प ड्यूटी आकर्षित करने के लिए बंधक विलेख को सुरक्षा बांड की तरह रंगने का प्रयास किया और विलेख पर स्टाम्प ड्यूटी की उच्च मांग की पुष्टि की।

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    S.138 NI Act | ट्रस्ट को आरोपी बनाए बिना ट्रस्टी के खिलाफ चेक अनादर की शिकायत सुनवाई योग्य: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (9 अक्टूबर) को कहा कि ट्रस्ट की ओर से चेक पर हस्ताक्षर करने वाले ट्रस्टी के खिलाफ चेक अनादर की शिकायत ट्रस्ट को आरोपी बनाए बिना सुनवाई योग्य होगी। कोर्ट ने तर्क दिया कि चूंकि ट्रस्ट कोई न्यायिक व्यक्ति नहीं है। न तो मुकदमा करता है और न ही उस पर मुकदमा चलाया जाता है, इसलिए ट्रस्ट के दिन-प्रतिदिन के कार्यों के लिए जिम्मेदार ट्रस्टी, विशेष रूप से चेक पर हस्ताक्षर करने वाले ट्रस्टी, उत्तरदायी होंगे।

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    जिला जजों की सीधी भर्ती में केवल वकीलों का विशेष कोटा नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज यह फैसला दिया कि जिला न्यायाधीशों के पदों पर सीधी भर्ती के लिए निर्धारित 25% कोटा केवल वकीलों (बार के उम्मीदवारों) के लिए आरक्षित नहीं है। चीफ़ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस एम.एम. सुंदरेश, जस्टिस अरविंद कुमार, जस्टिस एस.सी. शर्मा और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने कहा — “हम प्रतिवादियों की इस दलील से सहमत नहीं हैं कि 25% सीधी भर्ती का कोटा केवल प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं के लिए आरक्षित है। यदि इस तर्क को स्वीकार किया जाए तो यह सात वर्ष की प्रैक्टिस वाले अधिवक्ताओं के लिए एक अलग 'कोटा' बना देगा। अनुच्छेद 233(2) का स्पष्ट और शाब्दिक अर्थ ऐसी व्यवस्था का समर्थन नहीं करता। इसलिए यह तर्क स्वीकार्य नहीं है।”

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    आवेदन की तिथि पर 7 वर्षों का संयुक्त अनुभव रखने वाले न्यायिक अधिकारी जिला जज के रूप में सीधी नियुक्ति के पात्र: सुप्रीम कोर्ट

    एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज कहा कि एक न्यायिक अधिकारी, जिसके पास न्यायिक अधिकारी और वकील के रूप में संयुक्त रूप से सात वर्षों का अनुभव है, जिला न्यायाधीश के रूप में सीधी नियुक्ति के लिए आवेदन करने के पात्र हैं। पात्रता आवेदन की तिथि के अनुसार देखी जाएगी। समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए, न्यायालय ने कहा कि जिला न्यायाधीशों की सीधी भर्ती के लिए आवेदन करने वाले सेवारत उम्मीदवारों की न्यूनतम आयु 35 वर्ष होनी चाहिए।

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    क्रिमिनल कोर्ट लिपिकीय त्रुटियों को सुधारने के अलावा अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि आपराधिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाला कोई भी हाईकोर्ट, विशुद्ध रूप से लिपिकीय या आकस्मिक त्रुटि को सुधारने के अलावा, अंतर्निहित शक्तियों की आड़ में अपना न्यायिक आदेश वापस नहीं ले सकता या उस पर पुनर्विचार नहीं कर सकता। खनन संबंधी विवाद में जांच CBI को ट्रांसफर करने का राजस्थान हाईकोर्ट का निर्देश खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 482 (अब BNSS की धारा 528) का प्रयोग करके पूर्व के आदेश को वापस लेना क्षेत्राधिकार से बाहर है।

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    मुस्लिम कानून में वैध मौखिक हिबा के लिए सार्वजनिक कब्जा जरूरी, म्युटेशन न होने पर संदेह पैदा होता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत मौखिक उपहार (हिबा) को “सरप्राइज तरीका” बनाकर संपत्ति पर दावा नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वैध हिबा के लिए तीन जरूरी चीजें पूरी होनी चाहिए:

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    एक राज्य के भीतर पूर्व आपूर्ति की आवश्यकता वाली निविदा शर्त अतार्किक, अनुच्छेद 19(1)(g) का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (6 अक्टूबर) को छत्तीसगढ़ सरकार की उस निविदा शर्त को रद्द कर दिया, जिसके तहत बोलीदाताओं को राज्य के सरकारी स्कूलों को खेल किट की आपूर्ति के लिए बोली में भाग लेने के लिए पिछले तीन वर्षों में राज्य सरकार की एजेंसियों को कम से कम ₹6 करोड़ की आपूर्ति का पूर्व अनुभव दिखाना अनिवार्य है।

    अदालत ने कहा कि किसी निविदा में भाग लेने की पात्रता को केवल एक ही राज्य के भीतर संचालित संस्थाओं तक सीमित रखना न केवल अतार्किक है, बल्कि खेल किटों की कुशल और प्रभावी आपूर्ति सुनिश्चित करने के घोषित लक्ष्य के प्रति भी असंगत है।

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    ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सेक्स चेंज सर्जरी के लिए नियोक्ता की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर और लिंग-विविध व्यक्तियों को लिंग पुष्टिकरण या सर्जरी कराने के लिए अपने नियोक्ता से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि जेंडर के आत्मनिर्णय का अधिकार व्यक्तिगत स्वायत्तता और सम्मान का मामला है। अदालत ने कहा, "हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कोई भी ट्रांसजेंडर या लिंग-विविध व्यक्ति सर्जरी कराने के लिए अपने नियोक्ता से अनुमति लेने के लिए बाध्य नहीं है, जब तक कि उनके काम की प्रकृति ऐसी न हो कि वह किसी की लिंग पहचान पर आधारित हो।"

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    संतानहीन मुस्लिम विधवा को मृतक पति की संपत्ति में एक चौथाई हिस्सेदारी का अधिकार- सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि की, जिसमें एक मुस्लिम विधवा को उनके मृत पति की संपत्ति में ¾ हिस्सेदारी से वंचित किया गया था। कोर्ट ने कहा कि यदि मुस्लिम पत्नी के कोई संतान नहीं है, तो वह केवल ¼ हिस्सेदारी की हकदार होती है। साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मृतक के भाई द्वारा किए गए बिक्री समझौते से विधवा के वारिस होने के अधिकार प्रभावित नहीं होते, क्योंकि ऐसा समझौता मालिकाना हक स्थानांतरित या समाप्त नहीं करता।

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    चयनित उम्मीदवारों के पद ग्रहण करने पर प्रतीक्षा सूची के उम्मीदवारों का अधिकार समाप्त: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (15 अक्टूबर) को यह टिप्पणी करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया कि उम्मीदवारों की प्रतीक्षा सूची अनिश्चित काल तक संचालित नहीं हो सकती और एक बार जब भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से सभी पद भर जाते हैं तो यह समाप्त हो जाती है। जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदूरकर की खंडपीठ ने केंद्र सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए पाया कि उम्मीदवार का प्रतीक्षा सूची में उम्मीदवार के रूप में दावा तब समाप्त हो गया, जब सभी चयनित उम्मीदवारों ने अपने संबंधित पदों पर कार्यभार ग्रहण कर लिया।

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    JAG की नियुक्तियों में जेंडर-न्यूट्रल का निर्देश देने वाला निर्णय पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू नहीं होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि भारतीय सेना के जज एडवोकेट जनरल (JAG) पद पर पुरुषों के लिए आरक्षण को रद्द करने वाला उसका निर्णय वर्तमान भर्ती प्रक्रिया में पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू नहीं होना चाहिए। अर्शनूर कौर बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के 11 अगस्त के निर्णय के अनुसरण में, जिसमें न्यायालय ने कहा कि JAG में भर्ती जेंडर-न्यूट्रल होनी चाहिए, याचिकाकर्ता सीरत कौर ने 35वें भर्ती चक्र (अक्टूबर 2025) में नियुक्ति के माध्यम से राहत की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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    मजिस्ट्रेट का गवाहों को वॉइस सैंपल देने का निर्देश देना अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट न केवल अभियुक्तों से बल्कि गवाहों से भी वॉइस सैंपल लेने का निर्देश दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे सैंपल, चाहे वॉइस, उंगलियों के निशान, लिखावट या DNA हों, साक्ष्य के बजाय भौतिक साक्ष्य होते हैं, इसलिए अनुच्छेद 20(3) के तहत आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध संवैधानिक संरक्षण का उल्लंघन नहीं करते हैं।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने 2019 के रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले के उदाहरण का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि दंड प्रक्रिया संहिता में स्पष्ट प्रावधान न होने पर भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को किसी "व्यक्ति" को जांच के लिए आवाज़ का नमूना देने का निर्देश देने का अधिकार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि "व्यक्ति" शब्द केवल अभियुक्त तक ही सीमित नहीं है, बल्कि गवाहों पर भी लागू होता है।

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    उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून में कठोर शर्तें, धर्मांतरित व्यक्ति का विवरण प्रकाशित करने के आदेश की जांच की आवश्यकता हो सकती है: सुप्रीम कोर्ट

    प्रयागराज स्थित सैम हिगिनबॉटम कृषि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय (SHUATS) के कुलपति और अन्य अधिकारियों के खिलाफ कथित रूप से लोगों के जबरन सामूहिक धर्मांतरण के मामले में दर्ज FIRs रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों पर चिंता जताई।

    न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 उस व्यक्ति पर बहुत कठोर बोझ डालता है, जो अपने धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को अपनाना चाहता है।

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    हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 (HSA) अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों पर लागू नहीं होता। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा जारी उस निर्देश को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया कि राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में बेटियों को संपत्ति का उत्तराधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार मिलेगा, न कि आदिवासी रीति-रिवाजों के अनुसार। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा निर्देश हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) के विपरीत है।

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    टेंडर अथॉरिटी टेंडर आमंत्रण सूचना के विपरीत शर्तें नहीं लगा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (31 अक्टूबर) को ने एक टेंडर प्रक्रिया में एक बोलीदाता को अयोग्य ठहराए जाने का फैसला खारिज कर दिया और कहा कि टेंडर अथॉरिटी ने बोलीदाता को टेंडर आमंत्रण सूचना (NIT) में निर्धारित नहीं की गई शर्त को पूरा करने के लिए बाध्य किया। अदालत ने कहा, "हमारा मानना है कि अपीलकर्ता की तकनीकी बोली को इस आधार पर खारिज करना कि अपीलकर्ता का प्रमाण पत्र जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी नहीं किया गया, NIT की शर्तों के विरुद्ध है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।"

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    वकीलों को मुवक्किलों के साथ संचार का खुलासा करने के लिए जांच एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली धमकियों से बचाना ही BSA की धारा 132 का उद्देश्य: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने जांच अधिकारियों द्वारा वकीलों को मनमाने ढंग से समन भेजने से बचाने के लिए निर्देश जारी करते हुए कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की धारा 132-134 का उद्देश्य वकीलों को अपने मुवक्किलों के साथ विशेष संचार का खुलासा करने के लिए अनावश्यक धमकाने से बचाना है।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने जांच एजेंसियों द्वारा अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को मनमाने ढंग से समन भेजने के मुद्दे पर कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लिए गए मामले में यह निर्णय सुनाया।

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    इन-हाउस काउंसल 'वकील' नहीं, नियोक्ता के साथ उनका संवाद BSA की धारा 132 के तहत संरक्षित नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इन-हाउस वकीलों और उनके नियोक्ताओं के बीच संवाद भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की धारा 132 के तहत मुवक्किल-वकील विशेषाधिकार द्वारा संरक्षित नहीं है, क्योंकि एडवोकेट एक्ट, 1961 के अर्थ में इन-हाउस काउंसल 'वकील' नहीं हैं।

    हालांकि, कोर्ट ने माना कि इन-हाउस वकील और उनकी कंपनी के कानूनी सलाहकार के बीच संवाद BSA की धारा 134 के तहत प्रकटीकरण से संरक्षित रहेगा। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने यह टिप्पणी जांच एजेंसियों द्वारा अपने मुवक्किलों को दी गई कानूनी सलाह पर वकीलों को तलब करने के मुद्दे पर स्वप्रेरणा से दर्ज मामले में की।

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    BSA की धारा 132 के तहत अपवादों को छोड़कर वकीलों को समन जारी नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए निर्देश

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (31 अक्टूबर) को कुछ निर्देश जारी किए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जांच एजेंसियां आपराधिक मामलों में अभियुक्तों को दी गई कानूनी सलाह के आधार पर वकीलों को मनमाने ढंग से समन जारी न करें। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने जांच एजेंसियों द्वारा अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को मनमाने ढंग से समन जारी करने के मुद्दे पर कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लिए गए मामले में यह निर्णय सुनाया।

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    750 रुपये से अधिक एनरोलमेंट फीस लेने पर बार काउंसिलों पर अवमानना की कार्रवाई होगी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने राज्य बार काउंसिलों को पिछले साल जारी अपने निर्देशों का पालन करने का आखिरी मौका दिया, जिसमें एनरोलमेंट फीस के रूप में 750 रुपये से अधिक फीस न लेने का निर्देश दिया गया। गौरव कुमार बनाम भारत संघ (2024) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बार काउंसिल एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 24 के तहत निर्धारित फीस से अधिक एनरोलमेंट फीस नहीं ले सकते। धारा 24 में प्रावधान है कि सामान्य वर्ग के वकीलों के लिए एनरोलमेंट फीस 750 रुपये और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के वकीलों के लिए 125 रुपये से अधिक नहीं हो सकता।

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    Motor Accident | रूट परमिट का उल्लंघन होने पर भी बीमाकर्ता को मुआवज़ा देना होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनियां दुर्घटना पीड़ितों को सिर्फ़ इसलिए मुआवज़ा देने से इनकार नहीं कर सकतीं, क्योंकि संबंधित वाहन अपने स्वीकृत रूट से भटक गया था। मोटर वाहन बीमा के सामाजिक उद्देश्य पर ज़ोर देते हुए, कोर्ट ने कहा कि इस तरह के तकनीकी आधार पर मुआवज़ा देने से इनकार करना "न्याय की भावना के विरुद्ध" होगा।

    जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने वाहन मालिक के. नागेंद्र और बीमाकर्ता, द न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर अपीलों को खारिज करते हुए ये टिप्पणियाँ कीं। यह मामला एक बस से हुई घातक दुर्घटना से उत्पन्न हुआ, जो दुर्घटना के समय अपने स्वीकृत रूट से भटक गई थी। जहां बीमाकर्ता ने पहले मुआवज़ा देने और बाद में मालिक से वसूलने के हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती दी, वहीं मालिक ने उससे वसूली की अनुमति देने वाले हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी।

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    S.195A IPC | गवाह को धमकाने के अपराध में पुलिस FIR दर्ज कर सकती है, औपचारिक शिकायत की ज़रूरत नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (28 अक्टूबर) को फैसला सुनाया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 195ए के तहत गवाह को धमकाने का अपराध संज्ञेय अपराध है, जिससे पुलिस को अदालत से औपचारिक शिकायत का इंतज़ार किए बिना सीधे FIR दर्ज करने और जांच करने का अधिकार मिल गया।

    जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की खंडपीठ ने केरल हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि IPC की धारा 195ए के तहत गवाह को धमकाने से संबंधित अपराध के लिए पुलिस FIR दर्ज नहीं कर सकती है। ऐसे अपराधों के लिए केवल दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 195 और 340 के तहत संबंधित अदालत में लिखित शिकायत के माध्यम से मुकदमा चलाया जा सकता है।

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