क्रिमिनल कोर्ट लिपिकीय त्रुटियों को सुधारने के अलावा अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
8 Oct 2025 8:33 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि आपराधिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाला कोई भी हाईकोर्ट, विशुद्ध रूप से लिपिकीय या आकस्मिक त्रुटि को सुधारने के अलावा, अंतर्निहित शक्तियों की आड़ में अपना न्यायिक आदेश वापस नहीं ले सकता या उस पर पुनर्विचार नहीं कर सकता। खनन संबंधी विवाद में जांच CBI को ट्रांसफर करने का राजस्थान हाईकोर्ट का निर्देश खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 482 (अब BNSS की धारा 528) का प्रयोग करके पूर्व के आदेश को वापस लेना क्षेत्राधिकार से बाहर है।
कोर्ट ने कहा,
"इस कोर्ट के कई निर्णयों से यह स्थापित है कि क्रिमिनल कोर्ट को अपने फैसले को वापस लेने या उस पर पुनर्विचार करने का कोई अधिकार नहीं है। केवल BNSS की धारा 403 [CrPC की धारा 362] के आधार पर लिपिकीय त्रुटियों को सुधारना ही एकमात्र स्वीकार्य कार्य है।"
मामले की पृष्ठभूमि
प्रतिवादी/शिकायतकर्ता एक खनन पट्टाधारक है। उसने आरोप लगाया कि पूर्व मंत्री सहित प्रभावशाली व्यक्तियों ने उसके खनन कार्यों में हस्तक्षेप किया और उसे धमकाया। कई FIR दर्ज की गईं, लेकिन पुलिस द्वारा निगेटिव रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद उसने निष्पक्ष जांच या किसी स्वतंत्र एजेंसी को मामला सौंपने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।
16 जनवरी, 2025 को राजस्थान हाईकोर्ट ने उसकी याचिका का निपटारा करते हुए उसे उचित कार्रवाई के लिए पुलिस अधीक्षक से संपर्क करने का निर्देश दिया। हालांकि, कुछ दिनों बाद शिकायतकर्ता ने उस आदेश को "वापस लेने" और जांच CBI को सौंपने की मांग करते हुए विविध आवेदन दायर किया। 4 फरवरी, 2025 को हाईकोर्ट ने अपने पिछले आदेश को वापस ले लिया और CBI को जांच अपने हाथ में लेने का निर्देश दिया।
राजस्थान राज्य ने इन बाद के आदेशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का 16 जनवरी का आदेश गुण-दोष पर विचार करने के बाद पारित न्यायिक आदेश था। इसलिए अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र के तहत इसे वापस नहीं लिया जा सकता।
कोर्ट ने कहा,
"आदेश में कोई लिपिकीय या आकस्मिक त्रुटि नहीं थी, जिससे आदेश को वापस लेने का औचित्य सिद्ध हो सके।"
साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि अंतिम आदेश पर पुनर्विचार या उसे वापस लेने का अधिकार भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (CrPC की धारा 362 के अनुरूप) की BNSS की धारा 403 के तहत स्पष्ट रूप से वर्जित है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता ने पहले CBI जांच की मांग करते हुए रिट याचिका दायर की, जिसे उसने वापस ले लिया। उसी राहत की मांग करने वाली बाद की याचिका, हालांकि उसे अंतर्निहित शक्तियों के तहत दायर की गई याचिका के रूप में प्रस्तुत किया गया, उसी मामले पर पुनः मुकदमा दायर करने के समान है और अस्वीकार्य है।
यह स्वीकार करते हुए कि आरोप गंभीर है, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्याय-क्षेत्र की सीमाओं को समानता या जांच में पक्षपात की धारणा के आधार पर दरकिनार नहीं किया जा सकता। जांच को CBI को ट्रांसफर करने के अधिकार का प्रयोग संयम से और कानून के दायरे में किया जाना चाहिए।
तदनुसार, खंडपीठ ने हाईकोर्ट के 24 जनवरी और 4 फ़रवरी, 2025 के आदेशों को रद्द कर दिया, जिसमें पहले के आदेश को वापस लेते हुए जांच को CBI को ट्रांसफर कर दिया गया था। हालांकि, इसने शिकायतकर्ता को यह स्वतंत्रता प्रदान की कि यदि वह चाहे तो पूर्व आदेशों को चुनौती देने के लिए कानून के तहत उचित उपाय अपना सकता है।
Case : State of Rajasthan v Parmeshwar Ramlal Joshi and others

