Motor Accident Compensation - न्यूनतम मज़दूरी केवल शैक्षिक योग्यता के आधार पर तय नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

29 Sept 2025 1:48 PM IST

  • Motor Accident Compensation - न्यूनतम मज़दूरी केवल शैक्षिक योग्यता के आधार पर तय नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यूनतम मज़दूरी किसी व्यक्ति की शैक्षिक योग्यता के आधार पर उसके द्वारा किए जा रहे कार्य की प्रकृति के संदर्भ के बिना निर्धारित नहीं की जा सकती।अदालत मोटर दुर्घटना मुआवज़े के मामले पर निर्णय दे रहा था, जहां आय की मात्रा पर विवाद था।

    यह मामला एक 20 वर्षीय बी.कॉम फाइनल इयर स्टूडेंट से संबंधित था, जिसने भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान में भी दाखिला लिया था। हालांकि, 2001 में एक मोटर दुर्घटना के बाद वह लकवाग्रस्त हो गया और अपनी मृत्यु तक दो दशकों तक बिस्तर पर पड़ा रहा। ट्रिब्यूनल और दिल्ली हाईकोर्ट ने मुआवज़ा देने के उद्देश्य से श्रमिकों के लिए अधिसूचित न्यूनतम मज़दूरी, यानी 3,352 रुपये प्रति माह, लागू करके उसकी आय की गणना की थी। हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि हालांकि पीड़ित की शैक्षणिक संभावनाएं थीं, लेकिन उसने अभी तक चार्टर्ड एकाउंटेंट की योग्यता हासिल नहीं की थी। इसलिए उस स्तर पर आय तय नहीं की जा सकती।

    इस दृष्टिकोण से असहमत होते हुए जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की खंडपीठ ने कहा कि न्यूनतम मजदूरी अनुसूची केवल शैक्षणिक योग्यता के आधार पर लागू नहीं की जा सकती।

    अदालत ने कहा,

    "हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि न्यूनतम मजदूरी केवल शैक्षणिक योग्यता के आधार पर निर्धारित की जाएगी, बिना कार्य की प्रकृति के संदर्भ के।"

    साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि इन परिस्थितियों में कुशल श्रमिक की मजदूरी अपनाना भी उचित नहीं है। यह ध्यान में रखते हुए कि पीड़ित ग्रेजुएट होने पर एकाउंटेंट के रूप में नियोजित हो सकता था, अदालत ने प्रणय सेठी के अनुसार, भविष्य की संभावनाओं के लिए 40% अतिरिक्त के साथ, 2001 में 5,000 रुपये मासिक आय निर्धारित की।

    इस आधार पर अदालत ने मुआवजे की राशि बढ़ाकर 40.34 लाख रुपये की। साथ ही बीमाकर्ता को पीड़ित के माता-पिता द्वारा उसके जीवनकाल में किए गए सत्यापित मेडिकल व्यय के लिए 20 लाख रुपये अतिरिक्त भुगतान करने का निर्देश दिया। यह निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि आय के नुकसान का आकलन करते समय अदालतों को न्यूनतम मजदूरी के कठोर वर्गीकरण से परे देखना चाहिए और पीड़ितों की वास्तविक रोजगार संभावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए।

    Case : Sharad Singh v HD Narang

    Next Story