हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

20 Dec 2025 10:00 PM IST

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    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (15 दिसंबर, 2025 से 19 दिसंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    क्या आरोपी सेशंस कोर्ट जाए बिना नए सबूतों के आधार पर सीधे हाईकोर्ट में लगातार जमानत याचिका दायर कर सकता है? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया जवाब

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि दूसरी जमानत याचिका, या लगातार जमानत याचिकाएं, हाईकोर्ट द्वारा ट्रायल के दौरान इकट्ठा किए गए सबूतों के आधार पर सुनी जा सकती हैं, भले ही ये सबूत सेशंस कोर्ट या हाईकोर्ट के पास तब उपलब्ध न हों जब पिछली जमानत याचिका खारिज की गई थी। हालांकि, जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की बेंच ने साफ किया कि सही मामलों में हाईकोर्ट आवेदक-आरोपी को नए सबूतों के आधार पर सेशंस कोर्ट के सामने लगातार जमानत याचिकाएं दायर करने का निर्देश दे सकता है।

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    [Bihar Excise Act] अगर सह-यात्री के पास शराब मिलती है तो मोटरसाइकिल मालिक के खिलाफ कोई अनुमान नहीं: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जहां अवैध शराब सह-आरोपी व्यक्ति से बरामद की जाती है, न कि वाहन के किसी हिस्से से, तो यह नहीं कहा जा सकता कि मोटरसाइकिल का इस्तेमाल बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम (Bihar Excise Act) के तहत अपराध करने में किया गया।

    नतीजतन, अधिनियम की धारा 32 के तहत वाहन के मालिक के खिलाफ कानूनी अनुमान तब तक नहीं लगाया जा सकता, जब तक अभियोजन पक्ष यह साबित न कर दे कि वाहन का इस्तेमाल कथित अपराध करने में किया गया।

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    आरोपी द्वारा हस्ताक्षरित विस्तृत रिकवरी मेमो गिरफ्तारी के आधारों की लिखित सूचना की आवश्यकता को पूरा करता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एक विस्तृत रिकवरी मेमो (फर्द बरामदगी), जो उसी समय तैयार किया गया हो, जिसमें लागू की गई दंडात्मक धाराएं शामिल हों और जिस पर आरोपी के हस्ताक्षर हों, वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 (1) के तहत गिरफ्तारी के आधारों की लिखित रूप में सूचना देने की आवश्यकता को पूरा करता है।

    कोर्ट ने कहा कि जहां ऐसा कोई दस्तावेज़ मौजूद है, वहां औपचारिक गिरफ्तारी मेमो में आधारों की तकनीकी चूक घातक नहीं होगी, क्योंकि यह गिरफ्तारी के आधार की सूचना देने की आवश्यकता का पर्याप्त अनुपालन है। इससे हिरासत अवैध नहीं होगी या रिमांड आदेश गलत नहीं होगा।

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    एक ही मुद्दों पर IPR विवादों की सुनवाई एक साथ की जा सकती है, भले ही वे गैर-वाणिज्यिक अदालतों में लंबित हों: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एक ही या मिलते-जुलते मुद्दों से जुड़े इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी विवादों की सुनवाई एक साथ की जानी चाहिए ताकि समानांतर मामलों और विरोधाभासी फैसलों को रोका जा सके, भले ही उनमें से कुछ मामले गैर-वाणिज्यिक अदालतों में लंबित हों।

    कोर्ट ने कहा कि सिविल प्रोसीजर कोड के तहत मामलों को ट्रांसफर करने की उसकी शक्ति व्यापक है और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी विवादों पर भी लागू होती है। यह शक्ति इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी डिवीजन (IPD) नियमों द्वारा सीमित नहीं है, जिसमें मुख्य रूप से वाणिज्यिक अदालतों के संदर्भ में मामलों को एक साथ जोड़ने का उल्लेख है।

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    'बिजली अधिनियम की धारा 127(2) के तहत जमा की गई वैधानिक जमा राशि पर उपभोक्ता ब्याज का दावा नहीं कर सकता': बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि बिजली अधिनियम, 2003 की धारा 127(2) के तहत अनिवार्य रूप से जमा की गई राशि पर ब्याज का दावा करने का उपभोक्ता के पास कोई लागू करने योग्य वैधानिक अधिकार नहीं है, जब बिजली के अनधिकृत उपयोग के मूल्यांकन को अपील में रद्द कर दिया जाता है।

    कोर्ट ने कहा कि धारा 127(2) के तहत जमा राशि वैधानिक अपील को बनाए रखने के लिए एक पूर्व शर्त है और यह टैरिफ या उपभोग शुल्क के भुगतान के लिए नहीं है; लाइसेंसधारी पर ब्याज का भुगतान करने का पारस्परिक दायित्व बनाने वाले किसी भी स्पष्ट वैधानिक प्रावधान के अभाव में कोर्ट ने कहा कि न्यायसंगत विचारों के आधार पर ब्याज नहीं दिया जा सकता है।

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    सिर कलम करने की मांग पैगंबर का अपमान, उन्होंने बुराई को अच्छाई से दूर किया: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुर्व्यवहार के बावजूद महिला के प्रति उनकी दयालुता को याद किया

    "गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा" (पैगंबर का अपमान करने की एकमात्र सजा सिर कलम करना है) नारे के इरादे की निंदा करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यह "पैगंबर मोहम्मद के आदर्शों का अपमान करने के अलावा और कुछ नहीं है"। हाईकोर्ट ने कहा कि पैगंबर ने कभी भी किसी व्यक्ति का सिर कलम करने की इच्छा नहीं जताई, यहां तक कि उन लोगों का भी नहीं जिन्होंने उन्हें व्यक्तिगत रूप से नुकसान पहुंचाया है।

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    Bareilly Violence | 'सर तन से जुदा' नारा भारत की संप्रभुता के खिलाफ, सशस्त्र विद्रोह भड़काता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत देने से इनकार किया

    सितंबर, 2025 में बरेली हिंसा में शामिल आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भीड़ द्वारा "गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा" (पैगंबर का अपमान करने की एकमात्र सजा सिर कलम करना है) का नारा लगाना कानून के अधिकार और भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए सीधी चुनौती है।

    जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की बेंच ने कहा कि ऐसे नारे लोगों को "सशस्त्र विद्रोह" के लिए उकसाते हैं और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत दंडनीय हैं। सिंगल जज ने कहा कि यह इस्लाम के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है।

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    मुस्लिम शादी | दूसरी पत्नी का भरण-पोषण करना, कानूनी तौर पर शादीशुदा पहली पत्नी को मेंटेनेंस देने से इनकार करने का आधार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    एक मुस्लिम शादी में मेंटेनेंस के विवाद से जुड़े मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि दूसरी पत्नी का भरण-पोषण करने वाला पति, पहली कानूनी तौर पर शादीशुदा पत्नी को मेंटेनेंस देने से इनकार नहीं कर सकता जो पूरी तरह से आर्थिक मदद के लिए अपने माता-पिता पर निर्भर है।

    संक्षेप में, पति ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी, जिसमें उसकी पहली पत्नी को हर महीने 20,000 रुपये मेंटेनेंस देने का आदेश दिया गया था। पति का कहना था कि वह सिर्फ 83,000 रुपये सालाना कमाता है और यह रकम बहुत ज़्यादा है।

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    वक्फ संस्थानों को राज्य ट्रिब्यूनल के सामने विवाद उठाने के लिए कोर्ट फीस से छूट नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार (17 दिसंबर) को अलग-अलग वक्फ संस्थानों द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच को खारिज कर दिया। इन याचिकाओं में गुजरात राज्य वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा पारित उन आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिनमें वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों पर वक्फ अधिनियम के तहत आवेदनों को अपर्याप्त कोर्ट फीस का हवाला देते हुए खारिज कर दिया गया। ऐसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि राज्य में वक्फ अधिनियम की धारा 83(3) के तहत आवेदन दाखिल करने के लिए वक्फ संस्थानों को कोर्ट फीस देने से "कोई पूरी छूट" या माफी नहीं दी गई।

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    'लिव-इन रिलेशनशिप गैर-कानूनी नहीं, राज्य जोड़ों की रक्षा करने के लिए बाध्य': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    एक महत्वपूर्ण आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट (सिंगल जज) ने बुधवार को कहा कि हालांकि लिव-इन रिलेशनशिप का कॉन्सेप्ट सभी को स्वीकार्य नहीं हो सकता है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसा रिश्ता 'गैर-कानूनी' है या शादी की पवित्रता के बिना साथ रहना कोई अपराध है। इसमें यह भी कहा गया कि इंसान के जीवन का अधिकार "बहुत ऊंचे दर्जे" पर है, भले ही कोई जोड़ा शादीशुदा हो या शादी की पवित्रता के बिना साथ रह रहा हो।

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    आत्मनिर्भर बनने के लिए पत्नी को भरण-पोषण का 10% कौशल विकास पर खर्च करना होगा: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पत्नी को दिए गए भरण-पोषण की राशि बढ़ाने से इनकार करते हुए निर्देश दिया है कि वह प्राप्त हो रही भरण-पोषण राशि का कम से कम 10 प्रतिशत अपने कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) के लिए उपयोग करे। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण का उद्देश्य केवल जीवन-यापन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मकसद दीर्घकालिक गरिमा और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना भी है।

    जस्टिस आलोक जैन ने कहा, “याचिकाकर्ता को अपनी क्षमताओं और जीवन स्तर को बेहतर बनाने की आवश्यकता है ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके। तभी यह कहा जा सकेगा कि भरण-पोषण कानून का वास्तविक उद्देश्य पूरा हुआ है और दी गई राशि का सही परिप्रेक्ष्य में उपयोग हो रहा है। इसलिए यह निर्देश दिया जाता है कि ₹15,000 प्रतिमाह की भरण-पोषण राशि में से कम से कम 10 प्रतिशत राशि व्यावसायिक कौशल में सुधार के लिए खर्च की जाए।”

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    आपसी सहमति से तलाक की पहली अर्जी के लिए एक वर्ष की अलगाव अवधि अनिवार्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम फैसला देते हुए कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B(1) के तहत आपसी सहमति से तलाक की पहली अर्जी दाखिल करने से पहले आवश्यक एक वर्ष की अलगाव अवधि अनिवार्य नहीं है और इसे माफ (वेवर) किया जा सकता है। जस्टिस नवीन चावला, जस्टिस अनुप जयराम भंभानी और जस्टिस रेणु भटनागर की पूर्ण खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि इस अवधि को अधिनियम की धारा 14(1) के प्रावधान (प्रोवाइजो) को लागू करते हुए माफ किया जा सकता है।

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    स्टेट बार काउंसिल डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन के चुनावों को कंट्रोल या रेगुलेट नहीं कर सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि स्टेट बार काउंसिल के पास बार एसोसिएशन के चुनावों को "कंट्रोल या रेगुलेट" करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे अपने खुद के नियमों से चलते हैं। जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता की बेंच ने इस तरह उत्तर प्रदेश बार काउंसिल (प्रतिवादी नंबर 3) द्वारा जारी निर्देश रद्द कर दिया, जिसमें 15 नवंबर, 2025 और फरवरी 2026 के बीच राज्य के सभी बार एसोसिएशन के चुनाव कराने पर अस्थायी रोक लगाई गई थी।

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    कानूनी तौर पर पहली शादी खत्म न होने पर महिला CrPC की धारा 125 के तहत अपने पार्टनर से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अगर किसी महिला की पहली शादी अभी भी कानूनी तौर पर वैलिड है तो वह अपने साथ रहने वाले पार्टनर से CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि शादी जैसा लंबा रिश्ता भी उसे 'पत्नी' का कानूनी दर्जा नहीं देता, अगर उसने अपने पहले पति से तलाक नहीं लिया है। जस्टिस मदन पाल सिंह की बेंच ने कहा कि ऐसे दावों की इजाज़त देने से "हिंदू परिवार कानून की नैतिक और सांस्कृतिक नींव" कमजोर होगी।

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    सिर्फ़ शिकायतें दर्ज करना, भले ही बाद में वे झूठी पाई जाएं, मानहानि नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ शिकायतें दर्ज करना, भले ही बाद में वे झूठी पाई जाएं, अपने आप मानहानि का अपराध नहीं बन जाता। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि मानहानि साबित करने के लिए यह दिखाना होगा कि आरोप प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से लगाए गए या इस जानकारी या विश्वास के साथ लगाए गए कि ऐसे आरोपों से प्रतिष्ठा को नुकसान होगा। कोर्ट ने कहा, "सिर्फ़ शिकायतें दर्ज करना, भले ही बाद में वे झूठी पाई जाएं, अपने आप मानहानि नहीं है, खासकर जब ऐसी शिकायतें कानून के तहत अधिकारियों से की जाती हैं।"

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    सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलना संज्ञेय अपराध, बिना वारंट गिरफ्तारी व जांच वैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक सड़क या सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलने का अपराध, जो पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट, 1867 की धारा 13 के तहत दंडनीय है, संज्ञेय (Cognizable) अपराध है, क्योंकि इस प्रावधान में पुलिस अधिकारी को बिना वारंट गिरफ्तारी का अधिकार दिया गया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 2(सी) के आवश्यक निहितार्थों को देखते हुए, पुलिस ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के बिना एफआईआर दर्ज कर जांच भी कर सकती है।

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    स्त्रीधन, तोहफ़े पत्नी के भरण-पोषण का दावा खारिज करने के लिए आय का स्रोत नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि स्त्रीधन, विरासत में मिली संपत्ति या पत्नी को उसके माता-पिता या रिश्तेदारों से मिले तोहफ़ों को आय का स्रोत नहीं माना जा सकता, ताकि पति से भरण-पोषण के उसके दावे को खारिज किया जा सके।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि भरण-पोषण के दावे का आकलन पत्नी की वर्तमान कमाई की क्षमता और शादी के दौरान जिस जीवन स्तर की उसे आदत थी, उस स्तर पर खुद को बनाए रखने की क्षमता के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि उसके मायके के परिवार की वित्तीय स्थिति के आधार पर।

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    2017 की गाइडलाइंस के तहत बैंक ब्रांच शिफ्ट करने के लिए RBI की परमिशन ज़रूरी नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत देने से इनकार किया, जिसने RBI की परमिशन के बिना इंडियन बैंक की ब्रांच को दूसरे गांव में शिफ्ट करने को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता, ग्राम प्रधान, ने ब्लॉक मऊ आइमा, तहसील सोरांव, जिला प्रयागराज में स्थित इंडियन बैंक की ब्रांच को दूसरी जगह शिफ्ट करने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि इससे आस-पास के गांवों के साथ-साथ उनके गांव के लोगों को भी बहुत परेशानी होगी।

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    S.125 CrPC | पूर्व पति के साथ वैध पुनर्विवाह तभी माना जाएगा, जब मुस्लिम महिला की बाद की शादी का टूटना साबित हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में साफ किया कि CrPC की धारा 125 के तहत मुस्लिम पुरुष और उसकी पूर्व पत्नी के बीच वैध पुनर्विवाह का अनुमान तभी लगाया जा सकता है, जब उसकी बाद की शादी उसके पूरे होने और टूटने का सबूत हो भले ही वे लंबे समय से साथ रह रहे हों।

    जस्टिस डॉ. कौसर एडप्पागाथ मुस्लिम पुरुष द्वारा दायर रिवीजन पर विचार कर रहे थे, जिसमें उसने फैमिली कोर्ट द्वारा अपनी पहली पत्नी को दिए गए मेंटेनेंस को चुनौती दी थी। पत्नी ने दावा किया कि दूसरे आदमी से अपनी दूसरी शादी टूटने के बाद उसने उससे दोबारा शादी कर ली थी।

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    प्रमोशन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चार्जशीट दी गई हो तो अधिकारी का प्रमोशन नहीं रोका जा सकता: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दोहराया

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक आदेश पर रोक लगाई, जिसमें एक व्यक्ति को फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर के पद पर प्रमोशन देने पर रोक लगा दी गई थी। यह रोक उसके खिलाफ जारी की गई चार्जशीट के आधार पर लगाई गई, जो उसे प्रमोशन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दी गई।

    ऐसा करते हुए कोर्ट ने दोहराया कि किसी व्यक्ति का प्रमोशन इस आधार पर रोकना कि चार्जशीट प्रमोशन की प्रक्रिया शुरू होने से पहले की तारीख में जारी की गई, कानून की नज़र में सही नहीं है, खासकर तब जब कर्मचारी को उसके प्रमोशन पर विचार करते समय चार्जशीट नहीं दी गई।

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    आय छिपाने के कारण भरण-पोषण न मिलने से पत्नी का आवास अधिकार समाप्त नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि पत्नी द्वारा अपनी आय छिपाने के कारण उसे आर्थिक भरण-पोषण (monetary maintenance) का अधिकार नहीं दिया जाता, तो भी इससे उसे घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act) के तहत आवास आदेश (residence order) से वंचित नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस स्वरना कांता शर्मा पत्नी द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत पति द्वारा दी जाने वाली अंतरिम भरण-पोषण राशि को पत्नी के लिए निरस्त कर दिया गया था।

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