सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलना संज्ञेय अपराध, बिना वारंट गिरफ्तारी व जांच वैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Praveen Mishra
15 Dec 2025 9:14 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि सार्वजनिक सड़क या सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलने का अपराध, जो पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट, 1867 की धारा 13 के तहत दंडनीय है, संज्ञेय (Cognizable) अपराध है, क्योंकि इस प्रावधान में पुलिस अधिकारी को बिना वारंट गिरफ्तारी का अधिकार दिया गया है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 2(सी) के आवश्यक निहितार्थों को देखते हुए, पुलिस ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के बिना एफआईआर दर्ज कर जांच भी कर सकती है।
जस्टिस विवेक कुमार सिंह की एकलपीठ ने कमरान द्वारा दाखिल धारा 528 BNSS के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, आगरा की अदालत में लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।
पुरा मामला:
दिसंबर 2019 में अभियुक्त को आगरा के सिकंदरा क्षेत्र के एक पार्क में अपने सह-आरोपियों के साथ ताश खेलते हुए गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने उनके पास से ₹750 नकद बरामद किए और उनके खिलाफ पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट, 1867 की धारा 13 के तहत आरोपपत्र दाखिल किया, जो सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलने को दंडनीय बनाता है।
याचिकाकर्ता की दलीलें
अभियुक्त की ओर से दलील दी गई कि उत्तर प्रदेश में धारा 13 के तहत प्रथम अपराध के लिए अधिकतम सजा एक माह का कारावास है। ऐसे में CrPC के अनुसार तीन वर्ष से कम सजा वाले अपराध सामान्यतः असंज्ञेय (Non-cognizable) होते हैं। इसलिए, पुलिस न तो बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के गिरफ्तारी कर सकती थी और न ही जांच शुरू कर सकती थी।
इस संदर्भ में CrPC की धारा 155(2) का हवाला देते हुए कहा गया कि असंज्ञेय मामलों में मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना पुलिस जांच नहीं कर सकती। चूंकि वर्तमान मामले में ऐसी कोई अनुमति नहीं ली गई, इसलिए पूरी कार्यवाही को प्रारंभ से ही शून्य (void ab initio) बताया गया।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह ने कहा कि पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट की धारा 13 की भाषा स्वयं स्पष्ट है, जिसमें कहा गया है कि
“पुलिस अधिकारी बिना वारंट किसी भी व्यक्ति को, जो सार्वजनिक स्थान पर जुआ खेलते पाया जाए, गिरफ्तार कर सकता है।”
न्यायालय ने CrPC की धारा 2(c) का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस अपराध में किसी अन्य प्रचलित कानून के तहत बिना वारंट गिरफ्तारी का अधिकार दिया गया हो, वह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आएगा।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन निर्णयों में एक्ट की धारा 3 और 4 (सामान्य जुआघर से संबंधित) को असंज्ञेय माना गया है, वे अलग परिस्थितियों और कानूनी प्रावधानों पर आधारित थे और वर्तमान मामले पर लागू नहीं होते।
हाईकोर्ट ने माना कि पुलिस ने बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति एफआईआर दर्ज करने और आरोपपत्र दाखिल करने में कोई अवैधता नहीं की। साथ ही, मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने में भी कोई त्रुटि नहीं पाई गई।
हालांकि, अपराध की मामूली प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि मुकदमे का निपटारा यथाशीघ्र, अधिमानतः तीन माह के भीतर, किया जाए।

