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प्रेरणा से धर्मांतरण सामाजिक संकट: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आदिवासी गांवों में पादरियों के प्रवेश पर लगी रोक रखी बरकरार
प्रेरणा से धर्मांतरण सामाजिक संकट: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आदिवासी गांवों में पादरियों के प्रवेश पर लगी रोक रखी बरकरार

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण की प्रथा पर कड़ी चिंता व्यक्त करते हुए इसे सामाजिक संकट करार दिया।न्यायालय ने उन ग्राम सभाओं द्वारा उठाए गए कदम को संवैधानिक रूप से सही ठहराया, जिन्होंने अपने गांवों के प्रवेश द्वार पर ईसाई पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश को रोकने वाले होर्डिंग लगाए थे।चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि धर्मांतरण तब एक गंभीर समस्या बन जाता है, जब यह...

पौधे लगाने और गायों की सेवा करने से लेकर राखी बांधने तक: हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई ज़मानत की अजीबोगरीब शर्तों पर एक नज़र
पौधे लगाने और गायों की सेवा करने से लेकर राखी बांधने तक: हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई ज़मानत की अजीबोगरीब शर्तों पर एक नज़र

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक हत्या के दोषी की सज़ा निलंबित करने के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि लगाई गई शर्त - जिसमें अपीलकर्ता को "सामाजिक हित के लिए" फलदार, नीम या पीपल के दस पौधे लगाने की आवश्यकता थी - ज़मानत न्यायशास्त्र की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकती।न्यायालय ने ऐसे निर्देशों पर नाराज़गी व्यक्त की और कहा कि सुधारात्मक उपाय या सामाजिक ज़िम्मेदारी के कार्य सज़ा के निलंबन या ज़मानत देने से संबंधित वैधानिक आवश्यकताओं के स्वतंत्र विकल्प के रूप में काम नहीं कर...

जस्टिस सूर्यकांत: भारत के भावी मुख्य न्यायाधीश द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णय और उल्लेखनीय मामले
जस्टिस सूर्यकांत: भारत के भावी मुख्य न्यायाधीश द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णय और उल्लेखनीय मामले

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई के 23 नवंबर को पद छोड़ने के बाद जस्टिस सूर्यकांत भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालेंगे। वे 9 फ़रवरी, 2027 तक इस पद पर बने रहेंगे, जिस दिन वे सेवानिवृत्त होंगे।जिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं है, उन्हें बता दें कि जस्टिस कांत हरियाणा के हिसार से हैं और वे राज्य के पहले व्यक्ति होंगे जो मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे। वे पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील के रूप में नामित थे और हरियाणा राज्य द्वारा एडवोकेट जनरल के रूप में नियुक्त...

निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक अनादर पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया महत्वपूर्ण फैसले
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक अनादर पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया महत्वपूर्ण फैसले

सुप्रीम कोर्ट ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (NI Act) पर कुछ महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जिनमें चेक अनादर की शिकायत दर्ज करने के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करने से लेकर शिकायत दर्ज करने के लिए वाद का कारण कब उत्पन्न होता है, यह स्पष्ट करने तक के मुद्दे शामिल हैं। न्यायालय ने एनआई अधिनियम के मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए भी निर्देश जारी किए हैं। इसके अलावा, यह मानते हुए कि 20,000 रुपये से अधिक के नकद ऋण के लिए चेक अनादर की शिकायत सुनवाई योग्य है, दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC)...

सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वाले BJP नेता के खिलाफ हाईकोर्ट ने दिया पुलिस कार्रवाई का आदेश
सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वाले BJP नेता के खिलाफ हाईकोर्ट ने दिया पुलिस कार्रवाई का आदेश

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह नैनीताल पुलिस को रामनगर (ज़िला नैनीताल) में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में कथित भूमिका के लिए स्थानीय भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता मदन जोशी के खिलाफ कार्रवाई करने और 6 नवंबर तक कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।चीफ जस्टिस जी. नरेंद्र और जस्टिस सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने यह आदेश नूरजहां नामक व्यक्ति द्वारा दायर सुरक्षा याचिका पर पारित किया। नूरजहां एक ड्राइवर (नासिर) की पत्नी हैं, जिसकी 23 अक्टूबर को रामनगर में गोमांस ले जाने के आरोप में कथित तौर पर...

केवल शादी से इनकार करना IPC की धारा 107 के तहत उकसाने के बराबर नहीं होगा: सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला खारिज किया
'केवल शादी से इनकार करना IPC की धारा 107 के तहत उकसाने के बराबर नहीं होगा': सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला खारिज किया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल शादी से इनकार करना, भले ही सच हो, अपने आप में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 107 के तहत "उकसाने" के बराबर नहीं होगा। कोर्ट ने एक महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR खारिज की, जिसने कथित तौर पर अपनी प्रस्तावित शादी से मुकरने के बाद आत्महत्या कर ली थी।जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ यादविंदर सिंह उर्फ ​​सनी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा IPC की धारा 306 के तहत उसके...

राज्य द्वारा उच्च सीमा तय करने के बाद कोई भेदभाव नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने असम वित्त निगम के रिटायर कर्मचारियों के लिए बढ़ी हुई ग्रेच्युटी राशि बरकरार रखी
'राज्य द्वारा उच्च सीमा तय करने के बाद कोई भेदभाव नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने असम वित्त निगम के रिटायर कर्मचारियों के लिए बढ़ी हुई ग्रेच्युटी राशि बरकरार रखी

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें रिटायर कर्मचारियों को राज्य सरकार द्वारा निर्धारित ग्रेच्युटी की उच्च सीमा प्रदान करने के पक्ष में फैसला सुनाया गया। कोर्ट ने कहा कि एक बार जब राज्य के नियमन में ग्रेच्युटी प्रदान करने की उच्च सीमा निर्धारित हो जाती है तो ग्रेच्युटी राशि के वितरण में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है और प्रत्येक कर्मचारी के साथ समान व्यवहार किया जाएगा।जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की खंडपीठ ने उस मामले...

Industrial Disputes Act | सरकार नई मांग के बिना औद्योगिक विवाद संदर्भ में संशोधन नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
Industrial Disputes Act | सरकार नई मांग के बिना औद्योगिक विवाद संदर्भ में संशोधन नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि बर्खास्तगी से संबंधित किसी भी मांग या विवाद के अभाव में सरकार को इस मामले को श्रम न्यायालय में भेजने का कोई अधिकार नहीं है।कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी बर्खास्तगी केवल एक नए औद्योगिक विवाद या औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2ए के तहत सीधे आवेदन के माध्यम से ही की जा सकती है।जस्टिस अजय मोहन गोयल ने टिप्पणी की:"नौकरी समाप्ति के मुद्दे पर विचार न करने की स्थिति में उपयुक्त सरकार के पास... इस मुद्दे का संदर्भ देने का कोई अधिकार नहीं था... बर्खास्तगी... एक नया वाद-कारण...

पाटिल ऑटोमेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले दायर वाद कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट की धारा 12-ए का पालन न करने के कारण वापस नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
पाटिल ऑटोमेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले दायर वाद कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट की धारा 12-ए का पालन न करने के कारण वापस नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि पाटिल ऑटोमेशन प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रखेजा इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले स्थापित कॉमर्शियल कोर्ट को कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट, 2015 की धारा 12-ए का पालन न करने के कारण वापस नहीं किया जा सकता।कोर्ट ने कहा कि कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट, 2015 की धारा 12-ए के अनुसार, मुकदमा दायर करने से पहले अनिवार्य प्रति-संस्था मध्यस्थता और निपटान के संबंध में फैसले में दिया गया आदेश फैसले की तारीख से लागू होता है, न कि सुप्रीम कोर्ट के...

दिल्ली हाईकोर्ट ने समझौते के बाद द इमरजेंसी की लेखिका का मुकदमा बंद किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने समझौते के बाद 'द इमरजेंसी' की लेखिका का मुकदमा बंद किया

दिल्ली हाईकोर्ट ने सीनियर जर्नालिस्ट और "द इमरजेंसी: ए पर्सनल हिस्ट्री" पुस्तक की लेखिका कूमी कपूर द्वारा मणिकर्णिका फिल्म्स और नेटफ्लिक्स के खिलाफ दायर मुकदमा बंद किया, जिसमें कथित तौर पर अनुबंध का उल्लंघन करने और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया था।जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा कि दोनों पक्षकारों ने दिल्ली हाईकोर्ट मध्यस्थता एवं सुलह केंद्र के समक्ष सौहार्दपूर्ण ढंग से अपना विवाद सुलझा लिया।चूंकि दोनों पक्षकारों ने समझौते की शर्तों का पालन करने का वचन दिया था, इसलिए...

पांच साल पुरानी FIR के आधार पर नज़रबंदी, निकट संबंध के अभाव का संकेत देती है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने PSA के तहत निवारक नज़रबंदी आदेश रद्द किया
'पांच साल पुरानी FIR के आधार पर नज़रबंदी, निकट संबंध के अभाव का संकेत देती है': जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने PSA के तहत निवारक नज़रबंदी आदेश रद्द किया

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि किसी पुरानी और पुरानी घटना पर आधारित निवारक नज़रबंदी आदेश बरकरार नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि कथित अपराध और नज़रबंदी के बीच पांच साल का अंतराल दोनों के बीच किसी भी प्रत्यक्ष और निकट संबंध के अभाव को दर्शाता है।जस्टिस मोक्ष खजूरिया काज़मी, जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम, 1978 (PSA) के तहत ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित 30 अप्रैल 2025 के नज़रबंदी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थीं। यह नज़रबंदी 2020 में शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी...

मामला सौंपे जाने पर आगे की जांच का आदेश केवल सेशन कोर्ट ही दे सकता है, इलाका मजिस्ट्रेट नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
मामला सौंपे जाने पर आगे की जांच का आदेश केवल सेशन कोर्ट ही दे सकता है, इलाका मजिस्ट्रेट नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी मामले के सौंपे जाने पर, केवल सत्र न्यायालय ही आगे की जाँच का आदेश दे सकता है, इलाका मजिस्ट्रेट नहीं।जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस रजनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहा,"मजिस्ट्रेट द्वारा मामला सौंपे जाने के बाद सेशन कोर्ट ही मामले की सुनवाई करता है। BNSS की धारा 193(9) के प्रावधान में कोई संदेह नहीं है कि मामले को सौंपे जाने के बाद आगे की जांच का आदेश देने का अधिकार सेशन कोर्ट के पास है।"कोर्ट ने कहा कि सेशन कोर्ट, जिसे एक बार मूल अधिकार क्षेत्र प्राप्त...

रियल एस्टेट कंपनी की दिवालियेपन प्रक्रिया में घर खरीदारों का हित सर्वोपरि: इलाहाबाद हाईकोर्ट
रियल एस्टेट कंपनी की दिवालियेपन प्रक्रिया में घर खरीदारों का हित सर्वोपरि: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी रियल एस्टेट कंपनी की दिवालियेपन समाधान प्रक्रिया में घर खरीदारों का हित सर्वोपरि है, क्योंकि यह सीधे तौर पर उनके अधिकारों और हितों को प्रभावित करता है।जस्टिस अरुण कुमार ने कहा“किसी रियल एस्टेट कंपनी की दिवालियेपन समाधान प्रक्रिया में मुख्य चिंता रियल एस्टेट परियोजना में घर खरीदार का हित है। घर खरीदार महत्वपूर्ण हितधारक हैं। लेनदारों के दिवालियेपन समाधान की प्रक्रिया सीधे तौर पर उनके अधिकारों और हितों को प्रभावित करती है। किसी भी दिवालियेपन समाधान प्रक्रिया में घर...

छात्रा से पुराने संबंध के आधार पर यौन उत्पीड़न केस रद्द, एमपी हाईकोर्ट ने प्रोफेसर को बहाल किया
छात्रा से पुराने संबंध के आधार पर यौन उत्पीड़न केस रद्द, एमपी हाईकोर्ट ने प्रोफेसर को बहाल किया

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर की बर्खास्तगी को रद्द कर दिया है, जिन पर एक महिला छात्रा का यौन शोषण करने का आरोप था। कोर्ट ने पाया कि प्रोफेसर और छात्रा के बीच संबंध वर्ष 2013 से चल रहे थे, जबकि छात्रा ने विश्वविद्यालय में प्रवेश 2021 में लिया था।कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोपों को खारिज करते हुए प्रोफेसर की तत्काल बहाली के आदेश दिए, हालांकि यह भी कहा कि प्रश्नपत्र लीक से जुड़ी जांच पूरी होने तक वह निलंबित रहेंगे। जस्टिस विवेक जैन की पीठ ने...

मेडिकल सेंटर चलाने से रोकने वाली ज़मानत शर्त आजीविका के अधिकार का उल्लंघन नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
मेडिकल सेंटर चलाने से रोकने वाली ज़मानत शर्त आजीविका के अधिकार का उल्लंघन नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी डॉक्टर को ज़मानत की शर्तों के तहत अपने मेडिकल सेंटर चलाने से रोकना उसके आजीविका के अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(g)) का उल्लंघन नहीं है।जस्टिस सुब्रमोनियम प्रसाद ने कहा कि, “आवेदक, जो एक डॉक्टर हैं, वे किसी अन्य मेडिकल सेंटर से जुड़कर अपना पेशा जारी रख सकते हैं। ट्रायल पूरा होने तक अपने सेंटर को चलाने से रोकना उनकी रोज़ी-रोटी नहीं छीनता।”यह मामला उस आवेदन से जुड़ा था जिसमें डॉक्टर ने ज़मानत की दो शर्तों को हटाने की मांग की थी — (1) मेडिकल सेंटर चलाने के...

सरकारी जमीन पर पूर्व विधायक की मूर्ति लगाने का मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर हटाने की रिपोर्ट तलब की
सरकारी जमीन पर पूर्व विधायक की मूर्ति लगाने का मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर हटाने की रिपोर्ट तलब की

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर में सरकारी भूमि पर बिना अनुमति मूर्तियां लगाए जाने की समस्या पर स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका (PIL) दर्ज की है।जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने पूर्व विधायक इंद्रभद्र सिंह (धनपतगंज, सुल्तानपुर) की मूर्ति से संबंधित याचिका को जनहित याचिका में बदलते हुए इसका शीर्षक रखा — “In Re: Installation of Statue etc. on Public Land and Their Removal”। याचिकाकर्ता अमित वर्मा ने आरोप लगाया था कि पूर्व विधायक की मूर्ति सुल्तानपुर की सरकारी भूमि पर लगाई गई...

OBC युवक से पैर धुलाने वाले वीडियो पर मीडिया को भेजे नोटिस की रिपोर्ट पेश की जाए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
OBC युवक से पैर धुलाने वाले वीडियो पर मीडिया को भेजे नोटिस की रिपोर्ट पेश की जाए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार (31 अक्टूबर) को अपनी रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह यह स्पष्ट करे कि जिन अखबारों, यूट्यूब चैनलों और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक वीडियो और खबरें प्रकाशित हुई थीं — जिसमें कथित तौर पर एक पिछड़ा वर्ग (OBC) युवक को किसी व्यक्ति के पैर धोने के लिए मजबूर किया गया था — क्या उन्हें नोटिस जारी किए गए हैं या नहीं।जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह की खंडपीठ ने आदेश दिया: “ऑफिस यह स्पष्ट रिपोर्ट दे कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और अखबारों को नोटिस दिए...

दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की वैधानिक आयु सीमा पार करने के बावजूद दंपत्ति को सरोगेसी प्रक्रिया अपनाने की अनुमति दी
दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की वैधानिक आयु सीमा पार करने के बावजूद दंपत्ति को सरोगेसी प्रक्रिया अपनाने की अनुमति दी

दिल्ली हाईकोर्ट ने इच्छुक दंपत्ति को सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत निर्धारित अधिकतम आयु सीमा से अधिक होने के बावजूद सरोगेसी प्रक्रिया अपनाने की अनुमति दी।जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा कि चूंकि दंपत्ति ने अधिनियम के लागू होने से पहले सरोगेसी प्रक्रिया शुरू की थी, इसलिए धारा 4(iii)(v)(c)(I) के तहत आयु सीमा उन पर लागू नहीं होगी।यह प्रावधान सरोगेसी चाहने वाले इच्छुक दंपत्तियों के लिए आयु सीमा निर्धारित करता है। इसमें कहा गया कि महिला की आयु 23 से 50 वर्ष के बीच होनी चाहिए, जबकि पुरुष की आयु 26...