जानिए हमारा कानून
पुलिस द्वारा रिपोर्ट नहीं लिखे जाने पर फरियादी के कानूनी अधिकार
पुलिस राज्य के नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है। पुलिस का यह कर्तव्य है कि वह अपने राज्य के नागरिकों की सुरक्षा करें। भारतीय दंड संहिता और उसी की तरह के अन्य दाण्डिक कानून अलग-अलग अपराधों का उल्लेख करते हैं। बहुत से कार्य और लोप ऐसे हैं जिन्हें पार्लियामेंट या फिर राज्य विधान मंडल ने अपराध बनाया है। किसी भी व्यक्ति के साथ जब ऐसा कोई अपराध घटता है तब उस व्यक्ति को पीड़ित कहा जाता है।ऐसा पीड़ित व्यक्ति सबसे पहले अपने साथ होने वाली घटना के संबंध में शिकायत करने उस क्षेत्र के थाने में जाता है...
ऐसे कॉन्ट्रैक्ट जिनका पालन Specific Relief Act के अनुसार नहीं करवाया जा सकता
Specific Relief Act केवल उन संविदा का उल्लेख नहीं करता है जिनका कोर्ट में प्रवर्तन कराया जा सकता है अपितु उन संविदाओं का भी उल्लेख कर रहा है जिनका प्रवर्तन नहीं कराया जा सकता। धारा 14 के अनुसार निम्नलिखित संविदा को विनिर्दिष्ट प्रवर्तित नहीं कराया जा सकता-वह संविदा जिसके पालन के लिए धन के रूप में प्रतिकर योग्य अनुतोष है यदि संविदा ऐसी है जिसका पालन नहीं किए जाने पर धन के रूप में प्रतिकर दिया जा सकता है और ऐसा प्रतिकर योग्य प्रतिकर है तो विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के अंतर्गत अनुतोष नहीं दिया...
Specific Relief Act के तहत पालन करवाए जा सकने वाले कॉन्ट्रैक्ट
Specific performance के कुछ मूल महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं जिन्हें न केवल स्वीकार किया गया वरण सामान्यता कोर्ट ने लागू करते हैं। सर्वप्रथम महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि Specific Performance की डिक्री पारित करना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। दूसरा मौलिक सिद्धांत यह है कि Specific Performance का अनुतोष उन मामलों में लागू किया जाता है जहां प्रतिकर एक यथायोग्य नहीं अनुतोष है। तीसरा भली-भांति स्थापित सिद्धांत यह है कि कोर्ट उन मामलों में भी विनिर्दिष्ट अनुतोष प्रदान नहीं करते हैं जिनमें कोर्ट द्वारा...
Specific Relief Act में विशेष जंगम संपत्ति के कब्जे की Recovery
जंगम संपत्ति के कब्जे का के प्रत्युद्धरण के संबंध में उपबंध विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 की धारा 7 और 8 में उल्लिखित हैं। इन धाराओं के अनुसार धारा 7 महत्वपूर्ण धारा मानी जाती है। धारा 7 के अनुसार जो व्यक्ति किसी निर्दिष्ट जंगम संपत्ति के कब्जे का हकदार है सिविल प्रक्रिया संहिता 1960 द्वारा उपबंधित प्रकार से उसका वितरण कर सकता है।स्पष्टीकरण एक- न्यासी ऐसी जंगम संपत्ति के कब्जे के लिए इस धारा के अंतर्गत वाद ला सकता है जिसमें कि लाभप्रद हित का वह व्यक्ति हकदार है जिसके लिए वह न्यासी...
Specific Relief Act में कब्ज़े की Recovery
स्थावर संपत्ति के प्रत्युद्धरण के संबंध में अधिनियम के भाग 2 के अध्याय एक में दो प्रकार के उपबंध है। पहले प्रकार का उपबंध कब्जे के हक पर आधारित है तथा इसका वर्णन धारा 5 में किया गया है तथा दूसरे प्रकार का उपबंध कब्ज़े पर आधारित है तथा इसके संबंध में विधि धारा 6 में वर्णित है। जब कभी किसी व्यक्ति को उसके कब्जे की संपत्ति में से निकाल दिया जाता है वहां पर विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 5, 6, 7 और 8 के अनुसार न्याय प्रदान किया जाता है।वी श्रीनिवासन राजू अन्य बनाम भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड अन्य...
Specific Relief Act में Recovery Of Property और कॉन्ट्रैक्ट का पालन करवाने की रिलीफ
Recovery of Propertyविनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के भाग 2 के अध्याय 1 में Recovery of Property से संबंधित उपबंध है। यह उपबंध विनिर्दिष्ट स्थावर तथा विनिर्दिष्ट जंगम दोनों प्रकार की संपत्तियों के संबंध में है। विनिर्दिष्ट स्थावर संपत्ति के कब्जे के प्रत्युध्दरण से संबंधित उपबंध धारा 5 धारा 6 में है जबकि विनिर्दिष्ट जंगम संपत्ति के प्रत्युध्दरण के बारे में उपबंध धारा 7 तथा धारा 8 में दिए गए हैं।भारत में संविदा विधि के मूल सिद्धांत भारतीय संविदा अधिनियम 1872 में उल्लिखित हैं परंतु उनमें...
Specific Relief Act के प्रावधान
यह अधिनियम किसी विशेष व्यक्ति के विरुद्ध अनुतोष के संबंध में उल्लेख कर रहा है, यदि कोई अधिकार प्रभुसत्ता द्वारा व्यक्ति को दिया जाता है तो इस अधिकार के साथ में उस अधिकार के लिए उपचार भी दिए जाते हैं। यदि केवल अधिकार दे दिया जाए उपचार नहीं दिया जाए तो ऐसी स्थिति में उस अधिकार का कोई महत्व नहीं रह जाता है। सिविल अधिकार जब दिए जाते हैं तो उस अधिनियम में उस अधिकार के उपचार से संबंधित प्रावधानों का भी उल्लेख किया जाता है जैसे कि भारत के संविधान के अंतर्गत भाग 3 में मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है...
Partnership Act पार्टनरशिप बिजनेस का कानून
भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 साझेदारी से संबंधित समस्त प्रावधानों को अधिनियमित करता है। साझेदारी व्यापार को नियंत्रित करने हेतु यह अधिनियम उपयोगी अधिनियम हैं। आज भी भारत की अर्थव्यवस्था साझेदारी उद्योग धंधों से संचालित हो रही है क्योंकि कंपनी संचालित कर पाना इतना सरल नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था में या तो एकल व्यवसाय किया जा रहा है या फिर भागीदारी व्यवसाय किया जा रहा है। अधिकांश उद्योग व्यापार एकल या साझेदारी के आधार पर ही संचालित हो रहे है। इस प्रकार के उद्योगों को संचालित करने के लिए राज्य पर...
Partnership Act के अनुसार पार्टनर कौन है?
भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932 इस संबंध में उल्लेख कर रहा है कि भागीदारी क्या होती है तथा भागीदारी किस प्रकार संचालित की जाती है। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी कारोबार में व्यक्तियों का कोई दल या व्यक्ति भागीदार है या नहीं यहां भी उल्लेखित किया गया। अधिनियम की धारा 6 उल्लेखित करती है कि यह अवधारणा करने के लिए की व्यक्तियों का कोई समूह फर्म है या नहीं या कोई व्यक्ति फर्म का भागीदार है या नहीं पक्षकारों के बीच वास्तविक संबंध को ध्यान में रखा जाएगा जो शख्स व्यक्तियों को एक साथ लेने में दर्शित होता...
S. 223 CrPC/S. 243 BNSS | सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में जॉइंट ट्रायल के सिद्धांत निर्धारित किए
CrPCC की धारा 223 (अब BNSS की धारा 243) की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां एक ही लेन-देन से उत्पन्न अपराधों में कई अभियुक्त शामिल हों, वहां संयुक्त सुनवाई स्वीकार्य है। अलग सुनवाई तभी उचित होगी जब प्रत्येक अभियुक्त के कृत्य अलग-अलग और पृथक करने योग्य हों।न्यायालय ने संयुक्त सुनवाई के संबंध में निम्नलिखित प्रस्ताव रखे:-(i) CrPC की धारा 218 के अंतर्गत अलग सुनवाई का नियम है। संयुक्त सुनवाई की अनुमति तब दी जा सकती है, जब अपराध एक ही लेन-देन का हिस्सा हों या CrPC की धारा 219-223 की...
The Indian Contract Act में एजेंसी के कॉन्ट्रैक्ट में एजेंट की Liability
भारतीय संविदा विधि 1872 के अंतर्गत अभिकरण की संविदा पर विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया है। अभिकरण की संविदा के अंतर्गत मालिक तथा स्वामी के बीच संविदा होती है, इस संविदा में मालिक के प्रति एजेंट के कर्तव्यों का सर्वाधिक महत्व है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 211 मालिक के प्रति एजेंट के कर्तव्य के संबंध में उल्लेख कर रही है। हालांकि केवल यह धारा ही एजेंट के कर्तव्यों का उल्लेख नहीं करती है अपितु इस अधिनियम के अंतर्गत ऐसी अनेकों धाराएं हैं जो मालिक के प्रति एजेंट के कर्तव्यों का उल्लेख कर रही...
The Indian Contract Act में एजेंसी के कॉन्ट्रैक्ट में एजेंट को परिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 219 सर्वप्रथम एजेंट के पारिश्रमिक का उल्लेख करती है। इस धारा के अनुसार एजेंट का सबसे पहला अधिकार है कि वह अपने मालिक से पारिश्रमिक प्राप्त करें। जब एजेंट को सौंपा गया कार्य पूर्ण हो जाता है तब एजेंट उस कार्य के लिए अपने मालिक से पारिश्रमिक प्राप्त करने का हकदार हो जाता है।जैसे राम से 1000 वसूल करने के लिए शाम को घनश्याम ने नियोजित किया, श्याम के कपट के कारण धन वसूल नहीं होता है, यहां पर श्याम अपनी सेवाओं के लिए किसी भी पारिश्रमिक का हकदार नहीं है।श्री दिग्विजय...
The Indian Contract Act में एजेंट को दी गयी पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी का रेवोकेशन और एजेंट के अन्य अधिकार
यह मालिक की इच्छा पर है कि वह मुख्तारनामा का प्रतिसंहरण कर दे अर्थात उसे रद्द कर दे, किंतु जहां कोई मुख्तारनामा किसी अभिकर्ता के संबंध में सृजित किया गया है तो वह उसी मुख्तारनामा के अनुसार कार्य करेगा वरना मुख्तारनामा की बाबत अप्रतिसंहरण शब्द का प्रयोग हुआ है किंतु यह ध्यान देने की बात है कि मालिक इसके बावजूद भी मुख्तारनामा का रेवोकेशन करने के लिए अधिकृत है।जब भी कोई एजेंसी की संविदा की जाती है तो इसमें मालिक द्वारा एजेंट को मुख्तारनामा दे दिया जाता है तथा कई शक्तियां दे दी जाती हैं। जिन शर्तों...
The Indian Contract Act में एजेंट को दिए गए अधिकार
अभिकरण की संविदा के अंतर्गत मालिक अपने द्वारा किए जाने वाले कार्यों को किसी अभिकर्ता को सौंप देता है। इस प्रकार वह अपने कार्यों का प्रत्यारोपण कर देता है। मालिक के कार्य अभिकर्ता द्वारा किए जाते हैं तो मालिक अभिकर्ता को अपने अधिकार भी सौंप देता है।भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 188 अभिकर्ता के प्राधिकार के विस्तार के संबंध में उल्लेख कर रही है। यह धारा इस बात पर प्रकाश डालती है कि किसी अभिकर्ता के प्राधिकार या उसकी शक्ति का विस्तार कहां तक होता है।इस धारा के अनुसार- किसी कार्य को करने का...
The Indian Contract Act में एजेंसी के कॉन्ट्रैक्ट में एजेंट का प्राधिकार
इस एक्ट में एजेंट का प्राधिकार दो तरह से होताअभिव्यक्त, विविक्षितप्राधिकार जब अभिव्यक्त होता है जबकि वह लिखित या मौखिक शब्दों द्वारा किया जाता है और वह भी विकसित होता है जबकि उसका अनुमान मामले की परिस्थितियों पर आधारित होता है।हरिचरण बनाम तारा प्रसन्ना 1925 कोलकाता 541 के प्रकरण में कहा गया है इस संबंध में यह साबित किया जाना आवश्यक होता है कि यदि अ और ब के मध्य कोई संविदा की जाती है जिससे स नामक व्यक्ति मध्य में अभिकर्ता था तो उसे एक अभिकर्ता की हैसियत से अपने कार्यों का संपादन करना चाहिए।जब...
The Indian Contract Act में एजेंसी के कॉन्ट्रैक्ट
भारतीय संविदा अधिनियम एजेंसी पर एक पूरे अध्याय में उल्लेख करता है। अधिनियम की धारा 182 एजेंसी की परिभाषा प्रस्तुत करती है।धारा 182 के अनुसार अभिकर्ता वह व्यक्ति होता है जो किसी अन्य की ओर से कोई कार्य करने के लिए नियोजित होता है। वह दूसरे व्यक्ति से व्यवहारों में किसी अन्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियोजित होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अभिकर्ता वह व्यक्ति है जो किसी अन्य की ओर से कोई कार्य करने के लिए व्यवसायों में किसी अन्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियोजित है।अंग्रेजी विधि के सामान्य...
The Indian Contract Act में गिरवी के Contract में Pawnee कब गिरवी वस्तु बेच सकता है?
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 176 Pawnee के अधिकारों का उल्लेख कर रही है। इस धारा के अनुसार Pawnee के अधिकारों के उल्लेख में एक महत्वपूर्ण वर्णन यह है कि यदि Pawner उस धन के संदाय में या अनुबंध समय पर उस वचन का पालन करने में जिसके लिए माल गिरवी रखा गया है व्यतिक्रम करता है चूक करता है तो Pawnee गिरवीदार के विरुद्ध वाद लाने के लिए सक्षम हो जाता है।ऐसी स्थिति में उक्त गिरवी माल को समपार्श्विक प्रतिभूति के रूप में प्रतिधारण कर सकता है। यह गिरवी चीज को बेचने की युक्तियुक्त सूचना Pawner को...
The Indian Contract Act में गिरवी का Contract
गिरवी एक साधारण अवधारणा है जो आम जीवन में हमें देखने को मिलती है। कर्ज के लिए गिरवी किसी कीमती वस्तु को रखा जाता है तथा कर्ज के भुगतान के समय उसे पुनः वापस ले लिया जाता है। संविदा विधि के अंतर्गत गिरवी की अवधारणा को वैधानिक बल दिया गया है। भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 172 के अंतर्गत गिरवी की परिभाषा प्रस्तुत की गई है। गिरवी एक प्रकार का उपनिधान ही होता है परंतु गिरवी में किसी वचन के पालन हो जाने तक वस्तु हस्तांतरित नहीं की जाती है जबकि उपनिधान में किसी प्रयोजन के पूरा हो जाने तक वस्तु...
The Indian Contract Act में Bailment के कॉन्ट्रैक्ट में अचानक होने वाली घटना पर Bailee की क्या जिम्मेदारी होगी
कुछ घटनाएं ऐसी होती है जो प्राकृतिक होती है। उन घटनाओं पर मनुष्य का कोई निर्णय नियंत्रण नहीं होता है। यह बिल्कुल अप्रत्याशित घटना होती है, इस प्रकार की अप्रत्याशित घटना के घटित होने के परिणामस्वरूप कोई हानि हो जाती है तो ऐसी स्थिति में उक्त प्रकार की क्षति के लिए प्रतिवादी दायीं होगा परंतु इसके लिए एक सिद्धांत है। प्रतिवादी केवल उन्हीं हानियों के लिए उत्तरदायीं ठहराया जा सकता है जिसके अंतर्गत वह-अपने प्रयास से हानि को बचा सकता था-जिनका सुरक्षित कर लिया जाना युक्तिसंगत प्रयास के द्वारा उचित और...
The Indian Contract Act में Bailment के Contract में Bailee जिम्मेदारी
उपनिधान की संविदा के अंतर्गत Bailee और उपनिधाता के बीच संविदा होती है। किसी कार्य के प्रयोजन हेतु इस प्रकार की संविदा का निर्माण किया जाता है तथा उस कार्य के पूरा हो जाने के पश्चात संविदा के अंतर्गत दी गई वस्तु Bailee द्वारा वापस लौटा दी जाती है।जैसे कि किसी साइकिल स्टैंड पर साइकिल रखने वाला उपनिधाता होता है तथा उस स्टैंड का मालिक Bailee होता है। जितने समय तक साइकिल को स्टैंड पर रखने की संविदा होती है उस समय के पूरा हो जाने के बाद साइकिल स्टैंड का मालिक साइकिल को उसके मूल मालिक को सौंप देता है।...
















