राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम की धारा 28, 29 और 30

Himanshu Mishra

15 April 2025 9:30 PM IST

  • राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम की धारा 28, 29 और 30

    राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम में वादों के प्रकार के अनुसार न्यायालय शुल्क की गणना की जाती है। इस लेख में हम तीन महत्वपूर्ण धाराओं — धारा 28 (Specific Relief Act के तहत कब्जे के वाद), धारा 29 (अन्य कब्जे के वाद), और धारा 30 (इज़मेन्ट से संबंधित वाद) — का विस्तृत और सरल विश्लेषण करेंगे।

    इन धाराओं का उद्देश्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अचल संपत्ति (immovable property) का कब्जा चाहता है या इज़मेन्ट अधिकार (easement rights) को लागू करना चाहता है, तो उसे न्यायालय शुल्क किस प्रकार देना होगा। इन धाराओं के माध्यम से न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और समानता बनी रहती है।

    धारा 28: Specific Relief Act, 1877 के तहत कब्जे के वाद

    धारा का मूल स्वरूप

    “यदि कोई व्यक्ति Specific Relief Act, 1877 की धारा 9 के अंतर्गत किसी अचल संपत्ति के कब्जे के लिए वाद करता है, तो न्यायालय शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य के आधे (1/2) पर या ₹200, जो भी अधिक हो, के अनुसार गणना की जाएगी।”

    Specific Relief Act की धारा 9 क्या है?

    Specific Relief Act, 1877 की धारा 9 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति के कब्जे से अवैध रूप से बेदखल कर दिया जाता है, तो वह व्यक्ति, भले ही मालिक न हो, केवल कब्जाधारी के रूप में अदालत में वाद दायर कर सकता है और कब्जा वापस पाने का दावा कर सकता है।

    उदाहरण से समझें:

    1. स्थिति:

    रमेश एक खेत पर वर्षों से खेती कर रहा है। एक दिन सुरेश आकर उस खेत पर जबरन कब्जा कर लेता है। रमेश के पास मालिकाना हक नहीं है, लेकिन वह कब्जाधारी है।

    2. कार्यवाही:

    रमेश Specific Relief Act की धारा 9 के तहत अदालत में वाद करता है और कहता है कि सुरेश ने उसे गैरकानूनी रूप से बेदखल किया।

    3. न्यायालय शुल्क:

    खेत का बाजार मूल्य ₹1,00,000 है।

    तो शुल्क = ₹50,000 (आधा मूल्य), लेकिन अधिकतम नहीं कहा गया है।

    चूंकि आधा मूल्य ₹50,000 है जो ₹200 से अधिक है, ₹50,000 के आधार पर शुल्क लिया जाएगा।

    यदि किसी संपत्ति का आधा बाजार मूल्य ₹150 है, तब भी ₹200 शुल्क लिया जाएगा क्योंकि न्यूनतम सीमा ₹200 है।

    धारा 29: कब्जे के वे वाद जो अन्यत्र निर्दिष्ट नहीं हैं

    धारा का मूल स्वरूप

    “जहां किसी अचल संपत्ति के कब्जे के लिए वाद किया गया है और वह वाद अन्य किसी धारा में निर्दिष्ट नहीं है, तो शुल्क उस संपत्ति के बाजार मूल्य पर आधारित होगा। न्यूनतम शुल्क ₹20 होगा।”

    इस धारा का उद्देश्य

    जब किसी कब्जे के वाद को Specific Relief Act या किसी विशेष श्रेणी (जैसे किरायेदारी, पट्टेदारी आदि) में शामिल नहीं किया जा सकता, तो वह इस धारा 29 के अंतर्गत आता है। इसमें पूर्ण रूप से बाजार मूल्य के अनुसार शुल्क देना होगा।

    उदाहरण से समझें:

    1. स्थिति:

    सीमा एक ज़मीन पर दावा करती है कि वह ज़मीन उसकी दादी ने उसे वसीयत में दी थी। लेकिन वर्तमान में उस ज़मीन पर कोई अन्य व्यक्ति कब्जा किए हुए है।

    2. कार्यवाही:

    सीमा अदालत में कब्जा वापसी के लिए वाद करती है, लेकिन मामला Specific Relief Act की धारा 9 के अंतर्गत नहीं आता क्योंकि कब्जा गैरकानूनी तरीके से नहीं लिया गया, बल्कि वाद में स्वामित्व का दावा भी शामिल है।

    3. न्यायालय शुल्क:

    ज़मीन का बाजार मूल्य ₹80,000 है।

    चूंकि धारा 29 के अनुसार पूरा बाजार मूल्य लिया जाता है, तो शुल्क ₹80,000 पर आधारित होगा।

    यदि बाजार मूल्य बहुत कम है, जैसे ₹500, तब भी न्यूनतम शुल्क ₹20 लगेगा।

    धारा 30: इज़मेन्ट से संबंधित वाद (Easement Rights)

    धारा का मूल स्वरूप

    “किसी इज़मेन्ट अधिकार से संबंधित वाद में (चाहे वह अधिकार धारक द्वारा हो या जिससे अधिकार प्रभावित होता है), शुल्क उस राशि पर आधारित होगा जिस पर वादी ने राहत को मूल्यांकित किया है, परंतु यह राशि कभी भी ₹200 से कम नहीं हो सकती।

    यदि क्षतिपूर्ति (compensation) की मांग भी की गई हो, तो उस पर भी अलग से शुल्क लिया जाएगा।”

    इज़मेन्ट अधिकार क्या होता है?

    जब किसी संपत्ति के मालिक को अपने पड़ोसी की संपत्ति का कुछ हिस्सा सीमित रूप से उपयोग करने का अधिकार होता है, तो उसे इज़मेन्ट अधिकार कहा जाता है। जैसे:

    • पड़ोसी की भूमि से होकर रास्ता निकालना (right of way)

    • नाली निकालने का अधिकार

    • प्रकाश या हवा पाने का अधिकार

    उदाहरण से समझें:

    1. स्थिति:

    मोहन की दुकान है, जिसमें सामने की ओर सूरज की रोशनी आती है। रामलाल ने पास में एक ऊंची दीवार बना दी, जिससे प्रकाश पूरी तरह बंद हो गया। मोहन का कहना है कि वह पिछले 20 वर्षों से उस रोशनी का उपयोग करता आया है।

    2. कार्यवाही:

    मोहन एक इज़मेन्ट अधिकार के तहत अदालत में वाद करता है।

    3. न्यायालय शुल्क:

    मोहन अपने वाद में कहता है कि इस रोशनी की बाधा से उसे ₹10,000 की क्षति हो रही है और वह यही मूल्य राहत के रूप में मांगता है।

    तो शुल्क ₹10,000 पर आधारित होगा।

    लेकिन अगर वह मूल्यांकन ₹100 करता, तब भी ₹200 शुल्क देना होता क्योंकि यह न्यूनतम सीमा है।

    4. यदि क्षतिपूर्ति भी मांगी जाए:

    मान लीजिए मोहन ने क्षतिपूर्ति के रूप में ₹5000 की अतिरिक्त मांग की, तो इस पर अलग से शुल्क देना होगा।

    धारा 28, 29 और 30 का तुलनात्मक विश्लेषण

    बिंदु धारा 28 धारा 29 धारा 30

    लागू होने का आधार Specific Relief Act की धारा 9 अन्य कब्जे के वाद इज़मेन्ट अधिकार से संबंधित वाद

    शुल्क का आधार बाजार मूल्य का आधा या ₹200 (जो अधिक हो) पूरा बाजार मूल्य, न्यूनतम ₹20 वादी द्वारा घोषित मूल्य, न्यूनतम ₹200

    क्षतिपूर्ति पर शुल्क लागू नहीं लागू नहीं अलग से शुल्क लगेगा

    संपत्ति का प्रकार अचल संपत्ति अचल संपत्ति इज़मेन्ट (संपत्ति से जुड़ा अधिकार)

    धारा 28, 29 और 30 राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम में भूमि अधिकारों और संपत्ति उपयोग से संबंधित तीन प्रमुख स्थितियों में न्यायालय शुल्क की गणना को स्पष्ट करती हैं।

    • धारा 28 उन लोगों को राहत देती है जो केवल कब्जे के लिए Specific Relief Act के तहत वाद करते हैं और उनका स्वामित्व विवादित नहीं है।

    • धारा 29 ऐसे मुकदमों पर लागू होती है जिनका कोई विशेष वर्गीकरण नहीं होता, लेकिन कब्जा मांगते हैं।

    • धारा 30 संपत्ति से जुड़े सीमित उपयोग अधिकार (इज़मेन्ट) के मामलों को कवर करती है और न्यूनतम शुल्क की सीमा तय करती है।

    इन तीनों धाराओं का उद्देश्य यह है कि न्यायालयों में दाखिल किए जाने वाले वादों में स्पष्टता और पारदर्शिता बनी रहे, साथ ही न्याय पाने का रास्ता अत्यधिक खर्चीला न हो।

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