धारा 416 और 417 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 – जब अपील का अधिकार नहीं होता
Himanshu Mishra
12 April 2025 12:30 PM

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita - BNSS) में जहाँ एक ओर धारा 415 यह बताती है कि दोषसिद्ध व्यक्ति (Convicted Person) को किन परिस्थितियों में अपील (Appeal) का अधिकार होगा, वहीं धारा 416 और 417 यह स्पष्ट करती हैं कि कुछ विशेष स्थितियों में अपील का अधिकार नहीं होगा।
इन धाराओं का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को अनावश्यक अपीलों से बचाना है, खासकर तब जब मामला बहुत साधारण हो या जब व्यक्ति ने खुद ही अपराध स्वीकार कर लिया हो।
धारा 416 – जब आरोपी ने अपराध स्वीकार कर लिया हो (When Accused Pleads Guilty)
इस धारा के अनुसार, यदि किसी आरोपी ने स्वयं अदालत में यह स्वीकार कर लिया हो कि उसने अपराध किया है (Pleaded Guilty) और उस स्वीकारोक्ति के आधार पर उसे दोषी ठहराया गया हो, तो सामान्यतः उसे अपील का अधिकार नहीं मिलेगा।
लेकिन इसमें दो स्थितियाँ दी गई हैं:
1. अगर दोषसिद्धि हाई कोर्ट द्वारा की गई हो – तब किसी भी प्रकार की अपील नहीं हो सकती।
2. अगर दोषसिद्धि सत्र न्यायालय (Sessions Court) या प्रथम / द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा की गई हो, तब केवल एक विशेष स्थिति में अपील हो सकती है — जब व्यक्ति सज़ा की अवधि (Extent) या कानूनी वैधता (Legality) को चुनौती देना चाहता हो।
उदाहरण: मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने चोरी का अपराध मजिस्ट्रेट के सामने स्वीकार कर लिया और उसे 2 साल की सजा दे दी गई। यदि वह केवल यह कहना चाहता है कि सजा बहुत ज़्यादा है या कानून के अनुरूप नहीं है, तो वह केवल उसी सीमा तक अपील कर सकता है। लेकिन वह दोषसिद्धि को ही चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि उसने अपराध स्वीकार किया था।
इस धारा का मूल उद्देश्य यह है कि जो व्यक्ति स्वयं अपना अपराध मानता है, उसे फिर बाद में उस अपराध से मुकरने और न्याय प्रणाली का दुरुपयोग करने की अनुमति न दी जाए।
धारा 417 – जब मामला अत्यंत मामूली हो (No Appeal in Petty Cases)
धारा 417 के अनुसार, यदि सजा बहुत ही साधारण (Petty) हो — जैसे कि कुछ महीनों की कैद या बहुत कम जुर्माना — तो ऐसे मामलों में अपील नहीं की जा सकती। इसका उद्देश्य यह है कि न्यायिक प्रणाली को तुच्छ मामलों में अपीलों से बोझिल न किया जाए।
यह धारा कुछ विशेष स्थितियों को स्पष्ट करती है:
(a) जब हाई कोर्ट अधिकतम तीन महीने की सजा या ₹1000 से कम जुर्माना (या दोनों) ही सुनाता है:
अगर किसी व्यक्ति को हाई कोर्ट केवल तीन महीने तक की कैद, ₹1000 तक का जुर्माना या दोनों देता है, तो वह व्यक्ति अपील नहीं कर सकता।
(b) जब सत्र न्यायालय अधिकतम तीन महीने की सजा या ₹200 तक का जुर्माना (या दोनों) देता है:
अगर मामला सत्र न्यायालय में चला और सजा केवल तीन महीने या उससे कम की है, या ₹200 या उससे कम जुर्माना है, तो उस पर अपील नहीं की जा सकती।
(c) जब प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट ने केवल ₹100 तक का जुर्माना लगाया है:
इस स्थिति में भी व्यक्ति को अपील का अधिकार नहीं मिलेगा।
(d) जब मामला संक्षिप्त प्रक्रिया (Summary Trial) में चला हो और मजिस्ट्रेट ने केवल ₹200 तक का जुर्माना लगाया हो:
धारा 283 के अंतर्गत अधिकृत मजिस्ट्रेट संक्षिप्त सुनवाई (Summary Hearing) कर सकता है। अगर उसने केवल ₹200 तक का जुर्माना लगाया है, तो वह निर्णय अपील के योग्य नहीं होगा।
अपवाद (Exception):
यदि उपरोक्त किसी भी मामले में सजा के साथ कोई अन्य दंड (Punishment) भी जोड़ा गया हो, तो उस स्थिति में अपील की जा सकती है।
लेकिन केवल इन आधारों पर अपील नहीं की जा सकती:
• दोषसिद्ध व्यक्ति को शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा देने का आदेश दिया गया हो (Furnishing Security to Keep Peace)।
• सजा में यह जोड़ा गया हो कि जुर्माना न देने पर कैद होगी (Imprisonment in Default of Fine)।
• एक से अधिक जुर्माने की सजा दी गई हो, लेकिन कुल राशि उपर्युक्त सीमा से अधिक न हो।
उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति को संक्षिप्त सुनवाई में ₹150 जुर्माना और जुर्माना न देने पर 3 दिन की सजा का आदेश दिया गया हो, तो वह केवल इस आधार पर अपील नहीं कर सकता कि उसके खिलाफ कैद का प्रावधान भी जोड़ा गया है।
धारा 416 और 417 दोनों ही न्याय व्यवस्था को व्यावहारिक बनाने की दिशा में कदम हैं। ये धाराएँ यह सुनिश्चित करती हैं:
• जिन मामलों में व्यक्ति ने अपराध स्वीकार किया है, उनमें केवल सजा से संबंधित विशेष प्रश्नों पर ही अपील हो।
• बहुत मामूली और तुच्छ सज़ाओं के मामलों में अपील की अनुमति न दी जाए, ताकि अदालतों का समय गंभीर और जरूरी मामलों के लिए सुरक्षित रहे।
• अगर कोई अतिरिक्त दंड या अन्य विशेष परिस्थिति हो, तो अपील की अनुमति दी जा सकती है।
इस तरह BNSS की ये धाराएँ अपील की प्रक्रिया को अधिक सटीक, व्यावसायिक और न्यायसंगत बनाती हैं।