क्या एयरबैग जैसे Safety Feature के नाकाम होने पर कार निर्माता को सज़ा मिलनी चाहिए?
Himanshu Mishra
15 April 2025 8:50 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने Hyundai Motor India Ltd. बनाम Shailendra Bhatnagar मामले में यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि क्या कार में दिए गए Safety Feature, जैसे एयरबैग (Airbag), अगर सही समय पर काम न करें, तो क्या यह "डिफेक्ट" (Defect) माना जाएगा और क्या कार निर्माता को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? इस फैसले में कोर्ट ने Consumer Protection Act, 1986 और Sale of Goods Act, 1930 की कानूनी व्याख्या (Interpretation) करते हुए उपभोक्ताओं (Consumers) के अधिकारों को मज़बूती से सामने रखा।
उपभोक्ता कानून का दायरा (Scope of Consumer Protection Law)
कोर्ट ने Consumer Protection Act की धारा 14(1) (Section 14(1)) को केंद्र में रखते हुए बताया कि यदि Consumer Complaint (उपभोक्ता शिकायत) में यह साबित होता है कि उत्पाद (Product) में दोष (Defect) है, तो Forum को यह अधिकार है कि वह उपयुक्त राहत (Relief) दे, भले ही वह Relief शिकायत में विशेष रूप से मांगी गई हो या नहीं।
इस प्रावधान का मकसद है कि तकनीकी कमियों (Technicalities) के कारण न्याय से वंचित न किया जाए। यदि किसी कार में सुरक्षा से जुड़ा गंभीर दोष पाया जाए, तो उपभोक्ता मंच (Forum) उसे बदलने (Replacement), हर्जाना (Compensation), या दंडात्मक हर्जाना (Punitive Damages) देने का आदेश दे सकता है।
Sale of Goods Act के तहत फिटनेस की शर्त (Implied Fitness under Sale of Goods Act)
कोर्ट ने Sale of Goods Act की धारा 2(7) और 16 (Sections 2(7) & 16) का उल्लेख करते हुए कहा कि वाहन (Vehicles) "Goods" (सामान) की परिभाषा में आते हैं और इनमें फिटनेस (Fitness) की एक निश्चित शर्त (Implied Condition) होती है।
अगर कोई उपभोक्ता निर्माता (Manufacturer) के विज्ञापन और अनुभव पर भरोसा करके वाहन खरीदता है, खासकर Safety Feature को ध्यान में रखते हुए, तो निर्माता यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य होता है कि वह वाहन उस उद्देश्य (Purpose) के लिए उपयुक्त (Fit) हो।
इस मामले में, वाहन की सुरक्षा प्रणाली (Safety System) एयरबैग के रूप में दी गई थी, जो टक्कर (Collision) के समय काम नहीं आई, जिससे साबित हुआ कि वह वाहन वांछित फिटनेस स्तर पर खरा नहीं उतरा।
डिप्लॉय न होने वाला एयरबैग एक दोष है (Airbag Deployment Failure is a Defect)
कोर्ट ने कंपनी का यह तर्क नहीं माना कि एयरबैग इसलिए नहीं खुले क्योंकि टक्कर की दिशा (Direction) और तीव्रता (Impact) अपेक्षित नहीं थी। एक साधारण उपभोक्ता को इस बात की जानकारी नहीं होती कि एयरबैग कितनी ताकत की टक्कर पर खुलेंगे।
जब वाहन के आगे का हिस्सा (Front Portion) गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुआ हो और चोटें (Injuries) आई हों, तब एक समझदार उपभोक्ता (Reasonable Consumer) को यह उम्मीद होती है कि एयरबैग खुलेंगे। इसलिए जब वे नहीं खुले, तो यह साफ तौर पर एक दोष था।
यह मामला Res Ipsa Loquitur (जिसका अर्थ है "चीज़ खुद बोले") सिद्धांत के अंतर्गत आया – यानी तस्वीरों और रिकॉर्ड को देखकर साफ है कि वाहन में गंभीर क्षति हुई और एयरबैग का न खुलना दोष दर्शाता है।
दंडात्मक हर्जाना का प्रावधान (Provision of Punitive Damages)
कोर्ट ने यह भी माना कि इस तरह के मामलों में हर्जाना केवल Compensation (मुआवज़ा) तक सीमित नहीं होना चाहिए। Consumer Protection Act की धारा 14 (Section 14) के अंतर्गत Punitive Damages (दंडात्मक हर्जाना) भी दिए जा सकते हैं, जब कोई दोष उपभोक्ता को गंभीर चोट या जान का नुकसान पहुंचा सकता है।
कोर्ट ने M.C. Mehta v. Union of India (1987) का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई बड़ी कंपनी किसी खतरनाक या संवेदनशील प्रणाली (Sensitive System) में लापरवाही बरतती है, तो उसे उसकी आर्थिक क्षमता (Financial Capacity) के अनुसार सज़ा मिलनी चाहिए, ताकि इसका एक डराने वाला (Deterrent) प्रभाव हो।
इसलिए जब Hyundai जैसी बड़ी कंपनी सुरक्षा फीचर में लापरवाही करती है, तो Punitive Damages पूरी तरह उचित हैं।
उपभोक्ता मंच को राहत बदलने का अधिकार (Power to Modify Relief by Consumer Forums)
कोर्ट ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि चूंकि शिकायत में कार को बदलने (Replace) की मांग नहीं की गई थी, इसलिए वह आदेश नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यदि Relief कानून के अनुसार है और Complaint के तथ्यों (Facts) से मेल खाती है, तो उपभोक्ता मंच (Consumer Forum) उसे दे सकता है।
यह व्यवस्था उपभोक्ताओं के पक्ष में है और कंपनियों को यह याद दिलाती है कि तकनीकी आधारों पर वे जवाबदेही (Accountability) से नहीं बच सकते।
साफ मामलों में Expert Evidence की ज़रूरत नहीं (No Need for Expert Evidence in Obvious Cases)
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब दुर्घटना की गंभीरता (Severity) और तस्वीरें खुद ही सब कुछ बता रही हों, तब विशेषज्ञ राय (Expert Opinion) की ज़रूरत नहीं होती।
यह उपभोक्ताओं के हित में एक बड़ा कदम है क्योंकि इससे उन्हें लंबी और महंगी तकनीकी प्रक्रिया से बचाया जाता है। कोर्ट ने यह बात स्वीकार की कि एक आम उपभोक्ता से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह भौतिकी (Physics) की गहराइयों में जाकर Impact की गणना करे।
व्यापार में ईमानदारी और पारदर्शिता आवश्यक (Fairness and Transparency in Trade)
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई कंपनी अपने उत्पाद में किसी खास Feature (जैसे Airbag) को प्रमोट करती है, तो उसे यह भी साफ करना होगा कि वह Feature कब काम करेगा और कब नहीं।
उपभोक्ता जब ऐसे वादों (Claims) के आधार पर खरीददारी करता है, और जब वह Feature ज़रूरत पड़ने पर काम नहीं करता, तो यह केवल धोखा नहीं बल्कि Unfair Trade Practice भी हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उपभोक्ता अधिकारों (Consumer Rights) को मज़बूती देता है और यह स्पष्ट करता है कि कंपनियां अपने उत्पादों की गुणवत्ता (Quality) और सुरक्षा (Safety) के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं।
इस फैसले से यह संदेश गया है कि Safety Features जैसे Airbag महज़ दिखावे के लिए नहीं हो सकते – वे वास्तव में काम करें, यह सुनिश्चित करना निर्माता की ज़िम्मेदारी है। अगर ऐसा नहीं होता तो उपभोक्ता को न सिर्फ हर्जाना मिलना चाहिए, बल्कि कंपनी को दंडात्मक हर्जाना (Punitive Damages) भी देना चाहिए।
यह फैसला उपभोक्ताओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की दिशा में एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम है।