किराया न स्वीकारने या संदेह की स्थिति में किराया प्राधिकरण के पास किराया जमा कराने की प्रक्रिया – राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 22-जी

Himanshu Mishra

12 April 2025 12:25 PM

  • किराया न स्वीकारने या संदेह की स्थिति में किराया प्राधिकरण के पास किराया जमा कराने की प्रक्रिया – राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 22-जी

    राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) की धारा 22-जी (Section 22-G) किरायेदार (Tenant) को यह अधिकार देती है कि जब मकान-मालिक (Landlord) किराया स्वीकार करने से इनकार कर दे या जब यह स्पष्ट न हो कि किराया किसे दिया जाना चाहिए, तब किरायेदार Rent Authority के पास वह किराया जमा कर सके। यह प्रावधान खासकर उन मामलों में बेहद महत्वपूर्ण है जहाँ मकान-मालिक और किरायेदार के बीच विवाद (Dispute) हो या संपत्ति को लेकर स्वामित्व (Ownership) का झगड़ा चल रहा हो।

    इस लेख में हम धारा 22-जी को सरल हिंदी में विस्तार से समझेंगे और इसके पूर्व की धाराओं जैसे धारा 5, 22-ड (Section 22-D), और 22-ई (Section 22-E) का संक्षिप्त संदर्भ भी देंगे ताकि इसका पूर्ण प्रभाव समझा जा सके।

    धारा 5 का संदर्भ (Reference to Section 5):

    धारा 5 के अनुसार, किरायेदार को तय समय पर किराया देना होता है और मकान-मालिक को उसकी रसीद (Receipt) देना अनिवार्य (Mandatory) होता है। लेकिन व्यवहार में कई बार मकान-मालिक किराया लेने से इनकार कर देते हैं या जानबूझकर रसीद नहीं देते, जिससे बाद में वे किरायेदार को 'बकाया' (Default) दिखाकर निकासी (Eviction) का दावा करते हैं। ऐसे हालात से बचने के लिए धारा 22-जी सुरक्षा का काम करती है।

    धारा 22-जी(1) – जब मकान-मालिक किराया स्वीकार न करे (When Landlord Refuses to Accept Rent):

    यदि किरायेदार ने समय पर और उचित तरीके से किराया देने की कोशिश की लेकिन मकान-मालिक ने वह किराया नहीं लिया, तो किरायेदार Rent Authority के पास वह किराया हर महीने तय समय पर जमा कर सकता है। इससे वह यह साबित कर सकता है कि उसने अपनी जिम्मेदारी निभाई और वह जानबूझकर बकाया नहीं हुआ।

    उदाहरण (Illustration):

    रामू ने अपने मकान मालिक से झगड़े के बाद किराया देना चाहा लेकिन मालिक ने लेने से इनकार कर दिया। रामू ने हर महीने Rent Authority में किराया जमा किया और रसीद ली। जब मालिक ने कोर्ट में बकाया किराया का मामला उठाया, रामू ने सारी रसीदें दिखा दीं, जिससे केस खारिज हो गया।

    धारा 22-जी(2) – जब यह स्पष्ट न हो कि किराया किसे दिया जाए (When There is Doubt About Who to Pay Rent To):

    यदि किसी संपत्ति के स्वामित्व को लेकर झगड़ा चल रहा हो और दो या अधिक लोग खुद को मालिक बताएं, तो किरायेदार के सामने असली मालिक की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में किरायेदार Rent Authority में किराया जमा कर सकता है। यह एक 'बोना फाइड डाउट' (Bona Fide Doubt) की स्थिति मानी जाएगी।

    उदाहरण (Illustration):

    सीमा एक फ्लैट में रहती थी, मकान मालिक की मृत्यु के बाद दोनों बेटे किराया मांगने लगे। सीमा को समझ नहीं आया कि किसे देना सही होगा, तो उसने Rent Authority में किराया जमा किया। बाद में Authority ने जांच कर सही व्यक्ति को किराया दिलवाया।

    धारा 22-जी(3) – Rent Authority की भूमिका (Role of Rent Authority):

    जैसे ही किरायेदार किराया जमा करता है, Rent Authority उस मामले की जांच करती है। वह यह देखती है कि किराया सही समय पर और उचित कारणों से जमा किया गया या नहीं। इसके बाद वह उचित आदेश (Order) जारी करती है कि जमा पैसा किसे और कैसे दिया जाए।

    धारा 22-जी(4) – जमा राशि का प्रबंधन (Management of Deposited Rent):

    जो भी किराया Rent Authority में जमा होता है, उसे एक Personal Deposit Account में रखा जाता है। यह खाता पूरी तरह से नियमानुसार संचालित (Operated) होता है और इसमें जमा राशि को मकान-मालिक या वैध हकदार को भुगतान किया जाता है। यह पारदर्शिता (Transparency) और निष्पक्षता (Fairness) सुनिश्चित करता है।

    धारा 22-जी(5) – मकान-मालिक की सुरक्षा (Protection to Landlord):

    यदि मकान-मालिक बाद में Rent Authority से किराया ले लेता है, तो इसका यह मतलब नहीं होगा कि उसने किरायेदार द्वारा किए गए किसी भी बयान को स्वीकार कर लिया है। जैसे – अगर किरायेदार ने लिखा कि वह कम किराया दे रहा है या कोई सेवा नहीं मिल रही है, तो मकान-मालिक को वह बात माननी नहीं पड़ेगी।

    धारा 22-ड और 22-ई का संदर्भ (Reference to Section 22-D and 22-E):

    धारा 22-ड में यह प्रावधान है कि अगर मकान-मालिक ने किरायेदार की अनुमति से किसी मरम्मत, सुधार या बदलाव में खर्च किया हो, तो वह किराया बढ़ा सकता है। यदि कोई विवाद हो जाए, तो धारा 22-ई के तहत Rent Authority उस किराए को तय करती है।

    अब सोचिए, यदि इस प्रक्रिया के दौरान मकान-मालिक बढ़ा हुआ किराया लेने लगे लेकिन किरायेदार उसे सही न माने, तो वह Rent Authority में तयशुदा किराया ही जमा कर सकता है, जिससे विवाद के दौरान भी वह सुरक्षित रहे। यही धारा 22-जी का मकसद है।

    धारा 22-जी एक व्यावहारिक और न्यायपूर्ण प्रावधान है जो किरायेदारों को संरक्षण (Protection) देता है जब मकान-मालिक जानबूझकर किराया नहीं लेते या जब किराया किसे दिया जाए, यह स्पष्ट न हो। यह प्रावधान न सिर्फ किरायेदार को फालतू कानूनी झंझटों से बचाता है, बल्कि मकान-मालिक को भी यह आश्वासन देता है कि उनकी राशि सुरक्षित रूप से उनके पास पहुंचेगी – वह भी Rent Authority की जांच और आदेश के बाद।

    धारा 5, 22-ड और 22-ई के साथ मिलकर यह प्रावधान पूरे कानून में संतुलन बनाए रखने का काम करता है, जिससे मकान-मालिक और किरायेदार के बीच संबंध न्यायसंगत और कानून आधारित रह सकें।

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