जानिए हमारा कानून
जानिए संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों के बारे में ख़ास बातें (भाग 2/2)
जैसा कि आप जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के 6 प्रधान अंगों को विस्तार से समझने के लिए हम 2 लेखों की एक श्रृंखला आपके सामने लेकर आये हैं। संयुक्त राष्ट्र संगठन का निर्माण करने वाले 6 प्रधान अंगों को महासभा (The General Assembly), सुरक्षा परिषद (The Security Council), न्यास परिषद (The Trusteeship Council), आर्थिक और सामाजिक परिषद (The Economic and Social Council), अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) एवं सचिवालय (The Secretariat) के नाम से जाना जाता है। इस...
जानिए महिलाओं से संबंधित भारतीय कानून
विश्व भर में समय-समय पर महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठती रही है। भारत में महिलाएं सामाजिक रीति-रिवाजों द्वारा शोषित और दमित होती रही हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भी महिलाओं पर अत्याचारों की संख्याओं में कोई कमी नहीं थी तथा स्वतंत्रता के बाद भी महिलाओं के संबंध में अत्याचार और अपराध निरंतर घटित हो रहे थे। इन अपराधों के निवारण में कमी एवं इन पर रोक हेतु सशक्त विधान की आवश्यकता थी तथा भारतीय संसद में महिलाओं के संबंध में ऐसे विधान को बनाने से तनिक भी संकोच नहीं किया है। समय-समय पर...
भारत के कड़े अधिनियमों में से एक अधिनियम है एनडीपीएस एक्ट 1985, जानिए प्रमुख बातें
भारतीय संसद में 1985 में एनडीपीएस एक्ट पारित किया गया, जिसका पूरा नाम नारकोटिक्स ड्रग्स साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 है। नारकोटिक्स का अर्थ नींद से है और साइकोट्रोपिक का अर्थ उन पदार्थों से है जो मस्तिष्क के कार्यक्रम को परिवर्तित कर देता है। कुछ ड्रग और पदार्थ ऐसे है जिनका उत्पादन और विक्रय ज़रूरी है, लेकिन उनका अनियमित उत्पादन तथा विक्रय नहीं किया जा सकता। उन पर सरकार का कड़ा प्रतिबंध होता है और रेगुलेशन है, क्योंकि ये पदार्थ अत्यधिक मात्रा में उपयोग में लाने से नशे में प्रयोग होने लगते...
जानिए वकील के अदालत एवं न्यायिक अधिकारी के प्रति प्रमुख कर्त्तव्य
कानूनी पेशा, विश्व के सबसे पुराने पेशों में से एक है, और एक रूप में या दूसरे रूप में, यह सदियों से अपनी पहचान के साथ हमारे सामने रहा है। भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद, कानून की प्रैक्टिस के संबंध में कुछ नियम लागू किए गए थे। आजादी से पहले मुख्तार और वकील थे, जिन्हें मुफस्सिल अदालतों में कानून प्रैक्टिस करने की अनुमति थी, हालांकि वे सभी लोग, कानून में स्नातक डिग्री धारक नहीं थे। हालांकि, धीरे-धीरे ऐसे लोगों को इस पेशे से दूर किया गया और उनकी जगह उन लोगों द्वारा ली गई, जिन्हें कानून में डिग्री...
क्या है मानहानि और मानहानि के संबंध में भारतीय कानून के प्रावधान
सभ्य समाज में मानव को दिए अधिकारों में मान, सम्मान और ख्याति को भी अधिकार माना गया है। जहां एक ओर भारतीय में संविधान में अनुच्छेद 19 के अंतर्गत वाक्य स्वतंत्रता दी गयी है, वहीं कुछ निर्बंधन भी लगाए गए है। निर्बंधन वह हैं जो हमें व्यक्ति और राज्य की मानहानि करने से रोकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत में मानहानि के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। राजनीतिक नेता एक दूसरे के खिलाफ निराधार कारणों पर मानहानि के मामले दर्ज कर रहे हैं, जिसके उपरांत सामने वाली पार्टी मानहानि का मामला दर्ज करवाती है। कई...
जानिए 'इन -कैमरा' (बंद कमरा) कार्यवाही क्या होती है, इसे कब आयोजित किया जाता है?
भारत में स्थापित न्यायिक प्रणाली की एक आवश्यक और आंतरिक व्यवस्था के रूप में यह अच्छी तरह से तय किया गया है कि देश में 'खुले न्यायालय' (Open Court) का सिद्धांत कार्यशील होगा। अर्थात न्यायालय में कोई भी न्यायिक कार्य एवं न्यायालय की कार्यशैली, जनसाधारण की नजरों से दूर नहीं होगी, और कोई भी व्यक्ति, जब चाहे न्याय के मंदिर में प्रवेश करते हुए वहां की कार्यप्रणाली का अनुभव कर सकता है। यह सिद्धांत, किसी भी आमजन को, जो कानून के शासन के वास्तविक प्रवर्तन को देखने का इच्छुक है, ऐसा करने में सक्षम बनाता...
प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंंचाने के मामलों पर क्या कहता है कानून?
कई बार देश में विरोध प्रदर्शन, हिंसक हो जाते हैं और जिसके परिणामस्वरूप लोक संपत्ति को काफी नुकसान पहुचंता है। हाल के समय में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और असम के कुछ हिस्सों में इसी प्रकार की हिंसा देखने को मिली, जहाँ लोक संपत्ति को नुकसान पहुंंचाया गया। हम एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह समझते हैं कि इस तरह की हिंसा में न केवल लोक संपत्ति को नुकसान पहुंंचता है, बल्कि टैक्स अदा करने वाले नागरिकों के धन का नुकसान होता है, सरकार के खर्चों पर बोझ बढ़ता है, अशांति फैलती है और आमजन का जीवन...
एक्सप्लेनरः धारा 144 सीआरपीसी लगाने के आधार क्या हैं?
इन दिनों ' धारा 144 सीआरपीसी' की खासी चर्चा हो रही है। हाल ही में संसद से पास नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ बड़े पैमाने पर हो रहे विरोध पर लगाम लगाने के लिए देश् भर में पुलिस ने धारा 144 का इस्तेमाल किया है। उत्तर प्रदेश की तकरीबन आबादी 20 करोड़ है और पुलिस ने बीते दिनों पूरे सूबे पर धारा 144 लगा दी थी। यूपी डीजीपी ने ये जानकारी ट्विटर पर दी थी। बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त ने धारा 144 लगाने को सही ठहराते हुए कहा कि जब दूसरों को 'असुविधा' हो तो मौलिक अधिकारों पर अंकुश लगाया जा सकता है। क्या...
जानिए वकील के अपने मुवक्किल के प्रति प्रमुख कर्त्तव्य
न्याय प्राप्त करना हम सभी का मूलभूत अधिकार है और ऐसा करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य 1994 SCC (3) 569 में भी अभिनिर्णित किया गया, जहाँ यह कहा गया कि 'स्पीडी ट्रायल' का अधिकार, जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। इसी अधिकार को अदालत में प्राप्त करने के लिए जब मुवक्किल एक वकील से संपर्क करता है, तो एक वकील की भूमिका अहम् हो जाती है। हम सभी यह भी जानते हैं कि अदालतों में मामलों की पेंडेंसी के कारण हाल के समय में वकीलों की आवश्यकता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए भी है...
[धारा 151 CrPC] जानिए संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए पुलिस की गिरफ्तार करने की शक्ति
सामान्य अर्थ में गिरफ्तारी की शक्ति,हमेशा किसी को पुलिस हिरासत में लेने से जुड़ी रही है। हालाँकि एक मजिस्ट्रेट और एक आम व्यक्ति भी कुछ मामलों में किसी की गिरफ्तारी करने में सक्षम हैं। आपराधिक कानूनों में गिरफ्तारी एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जिसका उद्देश्य अदालत के सामने एक अपराधी को पेश करना और उसे कानून की पकड़ से भागने से रोकना है। गिरफ्तारी का मतलब किसी ऐसे व्यक्ति को पकड़ना है, जिसने अपराध किया है या उसके द्वारा अपराध किये जाने की संभावना है। गिरफ्तारी के जरिये, इस आशंका को खत्म किया जाता है कि...
एक्सप्लेनरः कैसे मिलती है भारतीय नागरिकता, कैसी होती है खत्म
नागरिकता अधिकारों का गट्ठर है, जो व्यक्ति और राज्य के बीच संबंधों को परिभाषित करती है। भारत में मौलिक अधिकारों और कई वैधानिक अधिकारों का उपभोग भारतीय नागरिकता होने पर निर्भर हैं।जन्म और वंश से नागरिकतादुनिया भर के देश नागरिकता की दो अवधारणाओं का पालन करते हैं: 1-'jus soli' (मिट्टी का अधिकार) या जन्मसिद्ध नागरिकता 2-'jus sanguinis' (रक्त का अधिकार) या वंश द्वारा नागरिकता। पहले मॉडल में, माता-पिता की राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना उन सभी को नागरिकता दी जाती है] जो देश की सीमा के भीतर पैदा...
जानिये क्या है गर्भपात को लेकर भारत में कानून और गर्भावस्था की किस अवधि तक यह होता है वैध?
चिकित्सा शब्दावली के अनुसार, 'गर्भपात' (Abortion), 'गर्भावस्था' (Pregnancy) की समाप्ति है। भारत में गर्भपात के कानून को गर्भ का चिकित्सभकीय समापन अधिनियम, 1971 (Medical Termination of Pregnancy- MTP Act) के तहत नियंत्रित किया जाता है। शब्द 'गर्भपात' जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है, जन्म से पहले गर्भावस्था का समापन है। दूसरे शब्दों में, जब पूर्ण रूप से विकसित होने से रोकने के उद्देश्य से मातृ गर्भाशय से एक विकासशील भ्रूण को समाप्त किया जाता है तो यह गर्भपात (Abortion) कहलाता है। गौरतलब है कि...
बीमा कानून, दुर्घटना मृत्यु और मुआवजा, जानिए अदालत के प्रमुख निर्णय
यद्यपि सुनने में भले ही अटपटा लगे, लेकिन 'दुर्घटना क्या है'यह हमेशा से दिलचस्प न्यायिक चर्चाओं के केंद्र में रहा है। सामान्य रूप से समझा जाता है कि दुर्घटना एक अप्रत्याशित घटना है, जो सामान्य रूप से घटित नहीं होती, बल्कि जिससे अप्रिय, दुखद या चौंकाने वाले परिणाम सामने आते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 'श्रीमती अलका शुक्ला बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम' मामले में अपना फैसला सुनाते हुए इस पहलू पर विस्तार से चर्चा की है। इन दिनों जीवन बीमा पॉलिसियों में 'दुर्घटना मृत्यु लाभ' की शर्त बहुत ही आम बात है।...
क्या अदालत अग्रिम जमानत के लिए नगद राशि जमा कराने का आदेश दे सकती है? जानिए सुप्रीम कोर्ट की राय
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ही याचिकाकर्ता की चार याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई करते हुए कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 (2) के तहत अग्रिम जमानत देने की शर्त के रूप में नकदी जमा करने की अनुमति है, लेकिन इस तरह के अधिकार का इस्तेमाल पूर्ण संयम से साथ किया जाना चाहिए तथा जमा की जाने वाली राशि अत्यधिक या दुष्कर नहीं होनी चाहिए। मौजूदा मामले में महिला याचिकाकर्ता भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत अपराध की अभियुक्त थी। यह आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने कारोबार के...
क्या कहता है अधिवक्ता अधिनियम 1961, जानिए खास बातें
शादाब सलीमवकीलों की हड़ताल अधिकांश अधिवक्ता अधिनियम (एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट) की मांग को लेकर होती है। एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की अपनी पृथक मांगें है लेकिन भारतीय संसद ने वकीलों से संबंधित एक अधिनियम बना रखा है जिसे अधिवक्ता अधिनियम 1961 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत पर है। क्या है अधिवक्ता अधिनियम 1961- यह अधिनियम भारतीय विधि व्यवसायियों के लिए बनाया गया है। यह भारतीय वकीलों के लिए एक संपूर्ण सहिंताबद्ध विधि है जो समस्त भारत के वकीलों का निर्धारण करता है। यह...
जानिए पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश
हैदराबाद में महिला डॉक्टर से बलात्कार के बाद जलाकर हत्या करने के चार आरोपियों की मुठभेड़ को ' फर्जी' बताते हुए जांच की मांग को लेकर दो याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं। पहली दो वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जी एस मणि और प्रदीप कुमार यादव ने अपनी याचिका में मांग की है कि इस मुठभेड़ पर पुलिस टीम के मुखिया समेत सभी अफसरों पर FIR दर्ज कर जांच कराई जानी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि ये जांच सीबीआई, SIT, CID या किसी अन्य निष्पक्ष जांच एजेंसी से कराई जाए जो तेलंगाना...
क्या है उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम और अयोध्या विवाद से इसका क्या सम्बन्ध?
शशांक शेखर मिश्र अयोध्या- रामजन्मभूमि मामला जब सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था तो उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 का अक्सर ज़िक्र आया और जब 9 नवंबर 2019 को अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया तो इस अधिनियम का बड़े पैमाने पर ज़िक्र हुआ। उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम 1991 को संसद द्वारा पूजा स्थलों के जबरन परिवर्तन पर रोक लगाने के उद्देश्य से पारित किया गया था। अधिनियम की पृष्ठभूमि स्वतंत्रता के दो वर्ष बाद ही, 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रख दी गईं। इससे...
जानिए वकीलों को अपनी सेवाओं का विज्ञापन देने की अनुमति क्यों नहीं है? समझिये प्रतिबंध से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें
भारत में हर साल बड़ी संख्या में लोग, बार काउंसिल में वकील के तौर पर नामांकित होने के लिए आवेदन करते हैं। इसके पश्च्यात, इस पेशे में अपना नाम बनाने की आकांक्षा के साथ वे वकालत शुरू करते हैं। लेकिन न तो कानून पेशा अपनाने वाले लोगों को और न ही लॉ फर्मों को अपने पेशे का विज्ञापन करने का अधिकार प्राप्त है। दरअसल वकीलों को ऐसा कुछ भी करने से प्रतिबंधित किया जाता है, जो भावी मुवक्किलों को प्रभावित कर सकता है। भारत में अधिवक्ताओं को बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा तैयार किए गए नियमों के तहत उनकी सेवाओं या...
क्या वकील क्लाइंट द्वारा फीस न दिए जाने की स्थिति में उसके कागज़ात वापस करने से मना कर सकते हैं?
जैसा कि हम जानते हैं कि वकालत एक पेशा है, यह कोई व्यवसाय नहीं और इस पेशे का उद्देश्य, लोगों की सेवा करना है। एक पेशे की अहमियत को समझाते हुए, रोस्को पाउंड ने कहा था: "ऐतिहासिक रूप से, पेशे में 3 विचार शामिल हैं: संगठन (Organisation), सीखने और सार्वजनिक सेवा की भावना। ये आवश्यक हैं। इसके अलावा, आजीविका प्राप्त करने का विचार, इसके साथ है (पर अधिक महत्वपूर्ण नहीं)।" कानूनी पेशा अपनाने वाले व्यक्तियों पर, समाज में कानून के शासन को बनाए रखने की एक बड़ी जिम्मेदारी होती है। सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ...

















