जानिए हमारा कानून
आदेश 33, सीपीसी: जानिए कौन है 'निर्धन व्यक्ति' जिसे प्रथमतः कोर्ट-फीस देने से मिल सकती है छूट?
जैसा कि हम जानते हैं, किसी व्यक्ति को न्याय तक उसकी पहुंच से केवल इसीलिए दूर नहीं किया जा सकता है क्योंकि उसके पास अदालत के लिए निर्धारित शुल्क (जिसे हम 'कोर्ट-फीस' कहते हैं) का भुगतान करने के लिए पर्याप्त साधन मौजूद नहीं है [ए. ए. हजा मुनिउद्दीन बनाम भारतीय रेलवे, (1992) 4 एससीसी 736]। सुप्रीम कोर्ट ने शीला बरसे बनाम महाराष्ट्र राज्य AIR (1983) SC 378, सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन AIR 1978 SC 1675, एम. एच. होसकोट बनाम महाराष्ट्र राज्य AIR 1978 SC 1548, हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य AIR...
बलात्कार के अपराध के संबंध में दंड के उपबंध (भाग-2)
बलात्कार के अपराध के संबंध में पूर्व के आलेख में बलात्कार के अपराध की परिभाषा प्रस्तुत की गई थी। इस आलेख में बलात्कार के संबंध में भारतीय दंड संहिता में दंड के उपबंध पर चर्चा की जा रही है। बलात्कार भारतीय दंड संहिता का ऐसा अपराध है जिस पर अत्यंत विस्तृत उपबंध दंड संहिता के अंतर्गत किए गए हैं, जितनी विस्तृत इस अपराध की परिभाषा को रखा गया है, उतना ही विस्तृत अपराध के अधीन दंड दिए जाने का उपबंध किया गया है। यह ऐसा विशेष अपराध है, जिस अपराध के घटित होने पर दंड भी अलग अलग प्रकार से अलग-अलग पद...
बलात्कार के अपराध के संबंध में जानिए मुख्य बातें
बलात्कार का अपराध संपूर्ण भारत को हिला चुका है तथा यह अपराध भारतीय समाज के लिए एक महामारी के रूप में सामने आया है। राज्य और भारतीय विधान द्वारा इस अपराध को रोके जाने के कई प्रयास किए जा रहे हैं। सामाज में बलात्कार का अपराध एक अभिशाप बनकर आया है, विभिन्न सामाजिक स्तरों पर बलात्कार को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। बलात्कार जैसे अपराध से केवल वयस्क स्त्रियां ही पीड़ित नहीं हैं, अपितु दुधमुंही बच्चियां भी बलात्कार जैसे जघन्य अपराध से पीड़ित हो रही हैं।अपराधी दुधमुंही बच्चियों के भी बलात्कार कर...
जानिए क्या होता है आपराधिक न्यास भंग और कब बनता है यह अपराध
आपराधिक न्यास भंग भारतीय दंड संहिता में एक बड़ा अपराध माना गया है तथा समाज में विश्वास के नाते में दुर्विनियोग समाप्त करने हेतु आपराधिक न्यास भंग को एक बड़े अपराध के रूप में भारतीय दंड संहिता में डाला गया है। कई बार हम आपराधिक न्यास भंग एवं चोरी के अपराध में स्पष्ट अंतर नहीं समझ पाते हैं। भारतीय दंड संहिता में आपराधिक न्यास भंग एक पृथक अपराध है तथा इस अपराध में आजीवन कारावास तक की सजा है, इसलिए इस अपराध को भारतीय दंड संहिता का बड़ा अपराध माना जा सकता है। कई मामलों में इस अपराध के कारित होने पर...
क्या द्वितीयक साक्ष्य (Secondary Evidence) देने से पहले अदालत की अनुमति लेना है आवश्यक?
जैसा कि हम जानते हैं, अदालतें मूल रूप से या तो प्राथमिक साक्ष्य (Primary Evidence) पर भरोसा करती हैं या द्वितीयक साक्ष्य पर। जहां तक भी संभव हो, अदालतों द्वारा द्वितीयक साक्ष्य का उपयोग करने से बचने की कोशिश की जाती है। इस दृष्टिकोण को 'सर्वश्रेष्ठ साक्ष्य नियम' (Best Evidence Rule) कहा जाता है। हालाँकि, एक अदालत कई स्थितियों में एक पक्ष को द्वितीयक साक्ष्य (Secondary evidence) पेश करने की अनुमति दे सकती है। हम यह भी जानते हैं कि दस्तावेजों की अंतर्वस्तु (Contents of Documents) के सम्बन्ध में...
भरण पोषण क्यों है प्रक्रिया विधि का हिस्सा? जानिए सीआरपीसी की धारा 125 से संबंधित मुख्य बातें
भारतीय विधि ने व्यक्ति पर अपनी पत्नी, संतान और वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण का दायित्व सौंपा है। भरण-पोषण के संबंध में अदालतों के कई ऐसे निर्णय हैं, जिनमें किसी व्यक्ति को अपने आश्रितों के भरण पोषण को सामाजिक दायित्व कहा है। जागीर कौन बनाम जसवंत कौर AIR 1963 सुप्रीम कोर्ट 1521 के मामले में यह कहा गया है कि यह केवल व्यक्ति का ही दायित्व नहीं अपितु सामाजिक दायित्व भी है। किसी सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु दंड प्रक्रिया संहिता में पत्नी संतान एवं वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण संबंधी वैधानिक...
सीपीसी आदेश-VIII : जवाब-दावा दाखिल करने की समय सीमा पर क्या है कानून?
जैसा कि हम जानते हैं कि एक लिखित कथन (या जवाबदावा), किसी मामले में वादी को प्रतिवादी की ओर से अदालत के जरिये दिया गया आधिकारिक उत्तर होता है, जिसमें प्रतिवादी, वादपत्र में दिए गए प्रत्येक आरोप या तथ्यों को या तो अस्वीकार या स्वीकार करता है। वादी द्वारा लगाए गए आरोप के खिलाफ प्रतिवादी का डिफेन्स क्या होगा, उसे यह अदालत को लिखित कथन के जरिये बताना होता है। अभिव्यक्ति 'लिखित कथन' (Written Statement) विशिष्ट अर्थ का एक शब्द है, जो प्रतिवादी द्वारा वादी को दिए गए आधिकारिक उत्तर का संकेत देता है...
जानिए अदालत में चेक बाउंस केस लगाने की पूरी प्रक्रिया
चेक बाउंस का प्रकरण अत्यंत साधारण प्रकरण होता है। इस प्रकरण की किसी भी कोर्ट में अत्यधिक भरमार है। वर्तमान समय में अधिकांश भुगतान चेक के माध्यम से किए जा रहे हैं। किसी भी व्यापारिक एवं पारिवारिक क्रम में लोगों द्वारा एक दूसरों को चेक दिए जा रहे हैं। चेक के अनादर हो जाने के कारण चेक बाउंस जैसे मुकदमों की भरमार न्यायालय में हो रही है। नए अधिवक्ताओं के लिए चेक बाउंस का मुकदमा संस्थित करना और कार्यवाही करना रोचक होता है और स्कूल के समान होता है, जहां नए अधिवक्ता इस चेक बाउंस के प्रकरण को संस्थित...
प्रति परीक्षण में गवाह के पक्षद्रोही (Hostile) हो जाने के क्या होते हैं परिणाम
किसी भी आपराधिक मामले में प्रति परीक्षण का अत्यधिक महत्व होता है। साक्षी की परीक्षा के विषय में प्रति परीक्षण महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रति परीक्षण को छलनी मानी जा सकता है, यह एक यात्रा है जिस यात्रा से गुजरने के बाद ही साक्षी के दिए कथन सत्यापित हो पाते हैं। कथनों को न्यायालय में साबित या नासाबित हुआ तब ही माना जा सकता है जब वह प्रतिपरीक्षा से गुजर जाते हैं। साक्षी की जब उसे न्यायालय में बुलाने वाले व्यक्ति द्वारा परीक्षा ली जाती है, वह मुख्य परीक्षा (examination in chief) होती है। इस...
मजिस्ट्रेट के दंड देने की शक्तियां एवं पद- भाग 2
इसके पूर्व के आलेख में दंड न्यायालय की दंड देने की शक्तियां में सत्र न्यायाधीश, उच्च न्यायालय की शक्तियों को समझा गया था। इस लेख के माध्यम से मजिस्ट्रेट द्वारा दंड दिए जाने की शक्ति को समझने का प्रयास किया जा रहा है। दंड प्रक्रिया संहिता धारा 29 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को दंड देने की शक्तियां दी गई है तथा या उल्लेख किया गया है कि मजिस्ट्रेट कितना दंड दे सकेंगे। न्याय तंत्र की समस्त पदावली को दो भागों में बांटा गया है। पहला न्यायाधीश, दूसरा मजिस्ट्रेट। मजिस्ट्रेट न्यायपालिका की अहम कड़ी है...
क्या नाराजी याचिका को परिवाद (Complaint) मानना मजिस्ट्रेट के लिए अनिवार्य है?
हम अक्सर देखते हैं कि जब कोई अपराध घटित होता है तो कोई व्यक्ति (कभी मामले का पीड़ित या उसके सम्बन्धी या अन्यथा कोई व्यक्ति) जाकर पुलिस के समक्ष उस अपराध के सम्बन्ध में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराता है। पुलिस उस मामले में अन्वेषण करती है और इसके पश्च्यात वो किसी निष्कर्ष पर पहुँचती है। पुलिस द्वारा उस निष्कर्ष को एक रिपोर्ट के जरिये सम्बंधित मजिस्ट्रेट तक पहुँचाया जाता है। इस रिपोर्ट में पुलिस FIR में नामजद व्यक्ति/व्यक्तियों के विरुद्ध या तो मामला बनाती है या नहीं बनाती है और मामला बंद...
जानिए कब पुलिस रिपोर्ट पर विचार करते हुए मजिस्ट्रेट के लिए अपराध की सूचना देने वाले (Informant) को सुनना होता है अनिवार्य
पिछले लेख में हमने जाना कि नाराजी याचिका (Protest Petition) क्या होती है और कौन कर सकता है इसे दाखिल। हम ने यह समझा कि "प्रोटेस्ट पिटीशन" (नाराजी याचिका) के सम्बन्ध में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973, भारतीय दंड संहिता, 1860 या भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 या किसी अन्य अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं दिया गया है। हालाँकि, नाराजी याचिका की अवधारणा पीड़ित पक्ष या मामले की पुलिस को इत्तिला देने वाले पक्ष के लिए एक अहम् अधिकार के रूप में साबित हुई है। हम यह कह सकते हैं कि जब पुलिस किसी आपराधिक मामले...
जानिए दंड न्यायालय के दंड देने की शक्तियां और पद
किसी समय राजा ही विधि का निर्माण करता था तथा राजा ही व्यक्तियों को अभियोजित करता था। राजा ही न्यायाधीश का काम करता था। लोकतांत्रिक व्यवस्था के आने के बाद न्याय के कार्य न्यायपालिका को प्राप्त हो गए तथा राज्य ने विधि के माध्यम से न्यायपालिका को दोषियों को दंड देने हेतु सशक्त किया। न्यायपालिका के भीतर अलग अलग दंड न्यायालय होते हैं तथा इन दंड न्यायालयों को शक्तियां दी गई हैं। यह लोगों के अपराध में विचारण कर सकते हैं तथा इन व्यक्तियों को उस विचारण के परिणामस्वरूप दंड भी दे सकते हैं। दंड...
सीपीसी : जानिए एकपक्षीय डिक्री और उसे अपास्त किए जाने के आधार
सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अंतर्गत जब पक्षकारों को समन किया जाता है तो आदेश 9 के अंतर्गत पक्षकारों की उपस्थिति या अनुपस्थिति के परिणाम दिए गए है। इन परिणामों में से एक परिणाम एकपक्षीय आदेश (Ex Parte) या डिक्री होता है। एकपक्षीय आज्ञप्ति का अर्थ बुलाए गए पक्षकारों द्वारा अदालत में उपस्थित नहीं होने के कारण किसी एक पक्षकार को सुना जाना तथा जो पक्षकार अदालत में उपस्थित न होकर अपने लिखित अभिकथन नहीं करता है उस पक्षकार को वाद से एकपक्षीय कर दिया जाता है। जो पक्षकार न्यायालय में वाद लेकर आता है...
जानिए नाराजी याचिका (Protest Petition) क्या होती है और कौन कर सकता है इसे दाखिल?
हम अक्सर ही ऐसे मामले देखते हैं जहां एक व्यक्ति (victim/informant) एक मामले को लेकर एक FIR दर्ज करता है, पुलिस उस मामले में अन्वेषण करती है और उसके पश्च्यात पुलिस द्वारा मामले में क्लोजर रिपोर्ट अदालत में दाखिल कर दी जाती है। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट तब दाखिल की जाती है जब पुलिस को अपने अन्वेषण में FIR में अभियुक्त के तौर पर नामजद व्यक्ति/व्यक्तियों के खिलाफ कोई मामला बनता नहीं दिखता है। इसके परिणामस्वरूप कई बार मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसे व्यक्ति/व्यक्तियों को डिस्चार्ज कर दिया जाता है (हालाँकि,...
सीपीसी : जानिए निर्णय, डिक्री और आदेश में क्या है अंतर
निर्णय, आदेश और डिक्री यह तीन शब्द आम धारणा में एक जैसे प्रतीत होते हैं, परंतु इन शब्दों में अत्यधिक भेद है। इन शब्दों में भेद का वर्णन हमें सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में मिलता है। बहुत से लोग इन 3 शब्दों में ज्यादा कन्फ्यूज्ड होते हैं, क्योंकि प्रकृति से यह तीनों शब्द एक जैसे आभास होते हैं। न्यायालय कार्यवाही में निरंतर इन शब्दों का प्रयोग किया जाता है। विधि के इन शब्दों के संबंध में संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए तथा इस बात का ज्ञान होना चाहिए यह तीनों शब्द अपने अपने अर्थों में क्या महत्व...
क्या हम अपने मूल अधिकारों का परित्याग कर सकते हैं, जानिए सुप्रीम कोर्ट का मत
भारत का संविधान अपने नागरिकों को (कुछ मामलों में गैर-नागरिकों को भी) कुछ मौलिक अधिकारों को लागू करने की गारंटी देता है। संविधान के अंतर्गत मौजूद मौलिक अधिकार, वैदिक काल से इस देश के लोगों द्वारा पोषित मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये अधिकार, मानवाधिकारों की बुनियादी संरचना के मद्देनजर कुछ मूलभूत गारंटियों का पैटर्न बुनते हैं।इसके अलावा यह अधिकार, राज्य पर सम्बंधित नकारात्मक दायित्वों को लागू करते हैं, ताकि इसके विभिन्न आयामों में व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अतिक्रमण न किया जा सके।...
जानिए सिविल मामलों में विचारण (Trial) की प्रक्रिया
नए अधिवक्ता एवं छात्रों द्वारा सिविल विधि को कठिन समझा जाता है। सिविल विधि आपराधिक विधि के मुकाबले थोड़ी कठिन होती है। सिविल विधि को यदि उसके व्यवस्थित क्रम में पढ़ा जाए तो यह विधि कठिन नहीं होती। इस लेख के माध्यम से हम सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के प्रावधानों से विचारण (Trial) की प्रक्रिया को सरलतापूर्वक समझने का प्रयास करेंगे। सिविल प्रक्रिया संहिता विचारण की प्रक्रिया बताती है। सहिंता के अनुसार व्यवस्थित प्रक्रिया दी गई है तथा कोई भी मुकदमा किस प्रकार प्रारंभ से समाप्त होता है। वाद पत्र...
जानिए क्या होती है कोर्ट मैरिज और कैसे की जा सकती है
भारत में विवाह के लिए अलग-अलग धार्मिक समुदायों को अलग-अलग अधिकार और दायित्व दिए गए हैं। पर्सनल लॉ सभी धर्म के लोगों को अलग अलग उपलब्ध कराया गया है, जैसे हिंदुओं के लिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 एवं हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम तथा मुसलमानों के लिए शरियत का कानून है। यह कानून मुसलमानों की पर्सनल विधि का काम करता है, जैसे विवाह, उत्तराधिकार, तलाक, भरण पोषण दत्तक ग्रहण इत्यादि विषयों पर यह विधि होती है। विवाह एक मानव अधिकार है कोई भी समुदाय या विधि विवाह करने से व्यक्ति को रोक नहीं सकती है। ...
जानिए साक्ष्य अधिनियम में स्वीकृति का क्या अर्थ है
भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत स्वीकृति (Admission) को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य को मान लेता है या अपराध को स्वीकार कर लेता है तो उसे आम भाषा में इसे स्वीकृति कहा जाता है। साक्ष्य अधिनियम में इसे विस्तार से समझाया गया है। अधिनियम की धारा 17 के अनुसार- स्वीकृति वह (मौखिक या दस्तावेजी या इलेक्ट्रॉनिक रूप में अंतर्विष्ट) कथन है,जो किसी विवाधक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में कोई अनुमान इंगित करता है और जो ऐसे व्यक्तियों में से किसी के द्वारा ऐसी परिस्थितियों...













