जानिए गिरफ्तारी और मजिस्ट्रेट तथा प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी संबंधी प्रावधान

Shadab Salim

21 March 2020 5:30 AM GMT

  • जानिए गिरफ्तारी और मजिस्ट्रेट तथा प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी संबंधी प्रावधान

    गिरफ्तारी शब्द आपराधिक विधि में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आपराधिक विधि में पीड़ित पक्षकार को न्याय देने हेतु आरोपी को गिरफ्तार किया जाना आवश्यक है। पुलिस तथा मजिस्ट्रेट को आपराधिक विधि में गिरफ्तार करने संबंधी शक्तियां दी गई हैं। पुलिस और मजिस्ट्रेट न्याय प्रशासन संबंधी दो महत्वपूर्ण कड़ियां हैं। इन दोनों को ही व्यक्तियों की गिरफ्तारी करने संबंधी अधिकार दिए गए हैं।

    गिरफ्तारी कब की जा सकती है

    दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के अंतर्गत यह बताया गया है कि गिरफ्तारी किस समय की जा सकती है। इस धारा के अंतर्गत किसी पुलिस अधिकारी को बगैर वारंट के गिरफ्तार करने संबंधी अधिकार दिए गए हैं। इस धारा के अंतर्गत पुलिस अधिकारी बिना किसी प्राधिकृत मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सकता है।

    इस धारा के अंतर्गत कुछ कारण दिए गए हैं, कुछ शर्ते रखी गई हैं, जिन कारणों के विद्यमान होने पर पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी कर सकता है, वह भी किसी प्राधिकृत मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और कोई प्राधिकृत मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए वारंट7 के बिना ऐसी गिरफ्तारी कर सकता है।

    1) पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में यदि गिरफ्तार होने वाला व्यक्ति कोई संज्ञेय अपराध करता है तो पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है।

    2) पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को भी गिरफ्तार कर सकता है जिसके विरुद्ध कोई परिवाद मिला है और विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है।

    उस व्यक्ति द्वारा कोई ऐसा अपराध कारित किए जाने की जानकारी है जिस अपराध में 7 वर्ष से कम का कारावास है तो पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है।

    3) पुलिस अधिकारी को परिवाद की जानकारी पर संदेह होता है तो वह संदेह के आधार पर ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी कर सकता है। पुलिस अधिकारी को यह समाधान हो गया है कि ऐसी गिरफ्तारी किसी दूसरे अपराध को करने से निवारित करने के लिए है।

    4) पुलिस अधिकारी को यह विश्वास होता है कि अपराध के समुचित अन्वेषण के लिए ऐसी गिरफ्तारी नितांत आवश्यक है।

    5) पुलिस अधिकारी को या विश्वास होता है कि यदि उसी गिरफ्तारी नहीं की गई तो साक्ष्य से छेड़छाड़ हो जाएगी।

    यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के अंतर्गत पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी करने संबंधी अभूतपूर्व शक्तियां दी गई हैं।

    गिरफ्तारी के संबंध में ऐसी कोई भी रोक नहीं लगाई गई है जिस पर पुलिस अधिकारी को किसी को गिरफ्तारी करने में कोई भी परेशानी हो। पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी करने संबंधी सारी छूट दे दी गई हैं।

    जंगी सिंह वर्सेस सम्राट के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह भी मत प्रकट किया कि धारा में प्रयुक्त पुलिस अधिकारी शब्द से आशय पुलिस विभाग के किसी भी कर्मचारी से है जिसमे सिपाही से लेकर सर्वोच्च अधिकारी तक सम्मलित है। एक सिपाही भी गिरफ्तारी कर सकता है वह भी पुलिस अधिकारी शब्द के दायरे में आता है।

    परंतु गिरफ्तारी से दैहिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है अतः गिरफ्तारी सदैव विधि द्वारा स्थापित सम्यक प्रक्रिया के अनुसार ही की जानी चाहिए।

    गिरफ्तारी तथा संविधान के अनुच्छेद 21 एवं 22 के उपबंध एक पूर्व के लेख में बताए जा चुके हैं।

    मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी

    दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 44 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को गिरफ्तार करने संबंधी शक्तियां दी गई हैं। इन शक्तियों के अधीन मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी कर सकता है।

    धारा 44 में वर्णित उपबंध के अधीन कार्यपालक मजिस्ट्रेट तथा न्यायिक मजिस्ट्रेट को गिरफ्तारी करने के लिए विशेष रूप से अधिकृत किया गया है।

    धारा 44 की उपधारा 1 के अनुसार मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में कोई कार्यपालक मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट अपराधी को स्वयं गिरफ्तार कर सकते हैं या किसी अन्य व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकते हैं, बशर्ते कि उक्त अपराधी ने अपराध उसकी उपस्थिति में उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत किया हो।

    धारा के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को गिरफ्तार करने के लिए अपराध के स्थान पर उपस्थित होने की बाध्यता नहीं है, क्योंकि धारा का अगला ही वाक्य मजिस्ट्रेट को यह भी शक्ति दे रहा है कि यदि कोई अपराध उसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर होता है तो भी वह गिरफ्तारी करने के लिए प्राधिकृत होगा।

    मजिस्ट्रेट किसी ऐसे व्यक्ति को भी गिरफ्तार कर सकेंगे या गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकेंगे जिसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी करने के लिए अधिकृत हैं।

    उल्लेखनीय की इस धारा के अंतर्गत की जाने वाली गिरफ्तारी की कार्रवाई प्रशासकीय तथा न्यायिक कार्य है।

    शैलजा नंद पांडे बनाम सुरेश चंद्र गुप्ता ए आई आर 1969 पटना 1947 के मामले में यह कहा गया है कि किसी कानूनी कार्यवाही के लंबित रहने की दशा में गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।

    शक्ति का प्रयोग करने के लिए पुलिस द्वारा प्रारंभ में की गई गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है। बाद में मजिस्ट्रेट के संज्ञान में कोई मामला जाता है तो भी वह गिरफ्तारी कर सकता है।

    गिरफ्तारी में मजिस्ट्रेट की स्थानीय अधिकारिता का महत्व है। मजिस्ट्रेट उसी स्थानीय अधिकारिता में गिरफ्तारी कर सकता है जो उसका क्षेत्राधिकार है। क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर की गई गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी।

    संहिता के अंतर्गत उच्च न्यायालय के आदेश से सत्र न्यायाधीश द्वारा क्षेत्राधिकार प्रदान किया जाता है तथा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अपने से अधीन मजिस्ट्रेट को क्षेत्राधिकार प्रदान कर देता है।

    अमूमन नगर, कस्बों और ग्रामीण के थाना क्षेत्रों के न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायालय के भीतर होते है।इन थाना क्षेत्रों के अलग अलग पीठासीन अधिकारी होते हैं। यही पीठासीन अधिकारी मजिस्ट्रेट होते है। कोई भी मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी तभी कर सकता है, जब अपराध उसको दिए गए थाना क्षेत्र के अंतर्गत किया जाता है।

    किसी व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी

    दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में केवल मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को ही गिरफ्तार करने संबंधी शक्तियां नहीं दी गई हैं अपितु मजिस्ट्रेट एवं पुलिस से अलग हटकर कोई अन्य व्यक्ति भी गिरफ्तारी कर सकता है। अन्य व्यक्ति गिरफ्तारी करता है तो प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी कहा जाता है जिसका उल्लेख दंड प्रक्रिया धारा 43 के अंतर्गत किया गया है।

    धारा 43 के अंतर्गत प्राइवेट व्यक्ति द्वारा की जाने वाली गिरफ्तारी एवं अपनायी जाने वाली प्रक्रिया के बारे में उपबंध किए गए है। इस धारा में वर्णित उपबंध के अनुसार कोई भी व्यक्ति अर्थात जो ना तो मजिस्ट्रेट है और ना ही पुलिस अधिकारी है किसी ऐसे व्यक्ति को जो उस की उपस्थिति में संज्ञेय और अजमानतीय अपराध करता है, को गिरफ्तार कर सकता है तथा ऐसी गिरफ्तारी के पश्चात वह अविलंब ऐसे व्यक्ति को पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष पेश करेगा।

    यदि इस प्रकार गिरफ्तार किया गया व्यक्ति संहिता की धारा 41 के अंतर्गत गिरफ्तार किए जाने योग्य है तो पुलिस अधिकारी उसे उक्त धारा के अधीन गिरफ्तार करेगा या धारा 42 के उपबंधों के अधीन आने की दशा में उसका नाम पता और निवास स्थान निश्चित करने के लिए उसे गिरफ्तार कर सकेगा।

    इस धारा के अधीन कोई भी व्यक्ति केवल ऐसे व्यक्ति को ही गिरफ्तार कर सकेगा जिसने कोई संज्ञेय अजमानतीय अपराध किया हो।

    कोई भी प्राइवेट व्यक्ति किसी व्यक्ति को केवल सूचना मात्र के आधार पर गिरफ्तार नहीं कर सकता यदि उसने सूचना मात्र के आधार पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया है तो ऐसी गिरफ्तारी पूर्णतः अवैध और दोषपूर्ण होगी। अपराध गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति के सामने घटित होना चाहिए उस समय वह व्यक्ति उस स्थान पर उपस्थित होना चाहिए।

    परंतु गोरी प्रसाद बनाम चार्टर्ड बैंक आफ इंडिया का एक वाद है। इस वाद में अभिनिर्धारित किया गया है कि आवश्यक नहीं है कि गिरफ्तार करने वाला पहला व्यक्ति संज्ञेय तथा अजमानतीय होते समय भौतिक रूप से घटनास्थल पर उपस्थित हो।

    यदि उसके समक्ष ऐसा अपराध किया जाता है तो ऐसे अपराधी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा भी गिरफ्तार करवा सकता है अर्थात ऐसा व्यक्ति सूचना देकर किसी अन्य व्यक्ति से गिरफ्तार करवा सकता है।

    बजिंदर सिंह बनाम मध्यप्रदेश राज्य 2012 का एक महत्वपूर्ण मामला है। इस वाद में अभियुक्त के विरुद्ध आरोप था कि वह मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश हेतु व्यवासिक परीक्षा मंडल द्वारा आयोजित प्री मेडिकल एंट्रेंस में किसी अन्य की जगह उसका प्रतिरूपण करते हुए परीक्षा दे रहा था।

    उसे व्यवासिक परीक्षा मंडल के परीक्षा हाल में ड्यूटी कर रहे हैं वीक्षक ने प्रतिरूपण करते हुए पकड़ा था। उसका कहना था कि वह वही परीक्षार्थी है जिसके नाम से परीक्षा दे रहा था उसके द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया है।

    आरोपी का फोटो विधि विज्ञान प्रयोगशाला परीक्षण हेतु भेजा गया। इस जांच के दौरान अभियुक्त को मेडिकल कॉलेज में कक्षा में उपस्थित रहने की अस्थाई अनुमति इस शर्त के साथ दी गई कि यदि वह प्रतिरूपण के अपराध का दोषी पाया गया तो उसे कक्षा में हाजिरी की पात्रता नहीं होगी और उसके विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही की जाएगी।

    फॉरेंसिक परीक्षण में विलंब को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने इस प्रकरण में तीन लोगो की एक समिति बना दी जिसमें एक प्रोफेसर एनाटॉमी का होना आवश्यक था तथा समिति की रिपोर्ट को अनुमति दी गयी।

    इस मामले में प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी का महत्वपूर्ण रोल है, क्योंकि गिरफ्तार करने वाला वीक्षक ना तो मजिस्ट्रेट और ना ही पुलिस अफसर था। गिरफ्तार करने के बाद शिक्षक द्वारा अभियुक्तों को पुलिस के हवाले कर दिया गया।

    इस धारा का प्रावधान यही है कि यदि कोई प्राइवेट व्यक्ति किसी को गिरफ्तार करता है तो उसमें केवल दो शर्त महत्वपूर्ण हैं।

    पहली शर्त यह है कि ऐसा प्राइवेट व्यक्ति केवल संज्ञेय अजमानतीय अपराध की दशा में ऐसी गिरफ्तारी कर सकता है।

    दूसरी शर्त यह है कि गिरफ्तारी के तुरंत बाद निकटतम पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को सौंपा जाए।

    यदि गिरफ्तारी धारा 41 के उपबंध के अंतर्गत आती है तो पुलिस अधिकारी फिर से गिरफ्तारी करता है।

    दंड प्रक्रिया सहिंता के अध्याय 5 के गिरफ्तारी संबंधी अन्य प्रावधान अन्य लेख में दिए जाएंगे।

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