कोविड-19 और कनिका कपूर मामले के सन्दर्भ में आईपीसी की धारा 269 एवं 270 को समझिए

SPARSH UPADHYAY

21 March 2020 6:47 AM GMT

  • कोविड-19 और कनिका कपूर मामले के सन्दर्भ में आईपीसी की धारा 269 एवं 270 को समझिए

    जैसा कि हम जानते हैं, भारत में COVID 2019 ने अपने पांव तेज़ी से पसारने की शुरुआत कर दी है। ऐसे कई मामले प्रकाश में आ रहे हैं जो चौंकाने वाले हैं, और जिनके चलते इस वायरस को तेज़ी से बढ़ने में बढ़त मिल रही है।

    हालिया मामला मशहूर पार्श्व गायिका, कनिका कपूर का है, जो COVID 2019 पॉजिटिव पायी गयी हैं, लेकिन ऐसी आशंका है कि उनके जरिये यह वायरस अन्य लोगों में भी फ़ैल गया हो।

    ख़बरों के मुताबिक, कनिका कपूर बीते 9 मार्च को लंदन से वापस भारत आई थीं, और बकौल कनिका, एयरपोर्ट पर उनकी थर्मल स्क्रीनिंग भी हुई थी, लेकिन तब तक उनके लक्षण सामने नहीं आए थे।

    लंदन से आने के बाद कनिका कपूर ने लखनऊ में दो-तीन बड़ी पार्टियों में बतौर कलाकार हिस्सा लिया था जिनमें बड़ी संख्या में लोग शामिल थे। कनिका में COVID 2019 की पुष्टि के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनके खिलाफ लखनऊ के सरोजनी नगर थाने में भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 188, धारा 269 और धारा 270 के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज की है।

    मौजूदा लेख में हम भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 269 और धारा 270 को संक्षेप में समझने का प्रयास करेंगे। चलिए इस लेख की शुरुआत करते हैं।

    क्या है भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 269?

    यह तार्किक है कि यदि कोई एक व्यक्ति, किसी रोग/इन्फेक्शन से ग्रसित है तो वह औरों को उस रोग से ग्रसित करने में एक भूमिका न निभाए। हालाँकि अधिकतर बार ऐसा संभव नहीं होता कि ऐसा होने से रोका जा सके।

    परन्तु, भारतीय दंड संहिता, 1860 में इस सम्बन्ध में प्रावधान दिया गया है, जहाँ पर कोई व्यक्ति यदि किसी ऐसे रोग को फैलाने में एक भूमिका निभाता जो जानलेवा हो तो उसे इसके लिए उसे दण्डित किया जा सके।

    पूर्व में इस धारा का इस्तेमाल हैज़ा, प्लेग इत्यादि से सम्बंधित मामलों में हो चुका है। मौजूदा समय में, इसी धारा का इस्तेमाल कनिका कपूर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए किया गया है. आइये, आगे बढ़ने से पहले इस धारा को पढ़ लेते हैं।

    [धारा 269] उपेक्षापूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो।

    भारतीय दंड संहिता की धारा 269 के अनुसार, जो कोई विधिविरुद्ध रूप से या उपेक्षा से ऐसा कोई कार्य करेगा, जिससे कि और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि, जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रम फैलना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

    धारा 269 का उद्देश्य, लोगों को गैरकानूनी या उपेक्षापूर्ण रूप से ऐसा कोई कार्य करने से रोकना है, जिससे कि, और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता है कि, जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रम फैलने की सम्भावना है।

    उदाहरण:

    एक मामले, कृष्णप्पा, 1883 ILR 7 Cal. 494 में, एक व्यक्ति 'अ', जबकि वह यह जानता था कि वह हैजा से पीड़ित है, उसने रेलवे के अफसरों को इस बारे में बताये बिना, ट्रेन से सफ़र किया और एक अन्य व्यक्ति 'ब' द्वारा, 'अ' की स्थिति जानते हुए उसके साथ ट्रेन का टिकट खरीद कर सफ़र किया गया।

    इस मामले में जहाँ 'अ' का इस धारा का अंतर्गत दोषी ठहराया जाना उचित माना गया, वहीँ 'ब' को इस संक्रामक रोग के उत्प्रेरण का दोषी ठहराया गया था।

    दरअसल, 'अ' को यह उचित रूप से मालूम था कि वह ट्रेन में सफ़र करते हुए अवश्य ही इस रोग को फैलाएगा और उसके द्वारा अपने इस रोग के बारे में रेलवे अधिकारियों को न बताना, एक उपेक्षापूर्ण कृत्य था।

    उदाहरण:

    एक अन्य मामले, नीदर मल, 1902 PR No. 22 (Cr) 56 में अभियुक्त, अम्बाला में एक ऐसे घर में रहता था जहाँ प्लेग फ़ैल गया था और वह प्लेग रोगी के संपर्क में आया था। उसे प्लेग रोगी के साथ प्लेग रोगियों के लिए बनाये गए अस्पताल में ले जाया गया जहाँ उस रोगी की मृत्यु हो गयी। अभियुक्त को कहीं भी न जाने की सख्त हिदायत दी गयी थी। इस हिदायत के बावजूद, अभियुक्त ट्रेन से एक दूसरे शहर चला गया।

    यह अभिनिर्णित किया गया कि वह अभियुक्त इस धारा के अंतर्गत बताए गए अपराध का दोषी था क्योंकि उसके पास यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण था कि उसका कृत्य संकटपूर्ण है, और उसके कृत्य से एक ऐसा संक्रामक रोग फैलेगा जो जीवन के लिए संकटपूर्ण है।

    धारा 269 के अंतर्गत अपराध गठित के लिए आवश्यक सामग्री

    1- यह दिखाया जाना चाहिए कि जिस रोग/संक्रमण का फैलाव किया गया है वह इन्फेक्शस (संक्रमित किये जाने योग्य) है और वह जीवन के लिए संकटपूर्ण है।

    2- अभियुक्त ने ऐसा कोई कृत्य किया कि जिससे उस रोग को फैलने/बढ़ने में मदद मिले।

    3- अभियुक्त ने वह कृत्य विधिविरुद्ध (Unlawfully) रूप से या उपेक्षा (Negligently) से किया।

    4- अभियुक्त को यह पता था या विश्वास करने का कारण था कि उसका कृत्य उस रोग/इन्फेक्शन को बढ़ने/फ़ैलने में मदद करेगा।

    आखिर क्या है भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 270?

    यदि हम धारा 270 के शब्दों को देखें तो यह पाएंगे कि इसमें धारा 269 के समान ही शब्दों का उपयोग किया गया है। हालाँकि, धारा 270 को, धारा 269 के गंभीर स्वरूप के रूप में समझा जा सकता है। धारा 270 के अंतर्गत शब्द 'परिद्वेषपूर्ण' (Malignantly) का उपयोग किया गया है, जिसका सीधा अर्थ 'मेंस रिया' (दुराशय) से है।

    इसका सीधा मतलब है कि व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत अपराध करते हुए जानबूझकर, दुराशय के परिणामस्वरूप संक्रामक रोग को फैलाता है। आइये इस धारा को भी लेते हैं।

    [धारा 270] परिद्वेषपूर्ण कार्य, जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो - जो कोई परिद्वेष से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे कि, और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि, जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रम फैलना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

    धारा 270 के अंतर्गत अपराध गठित के लिए आवश्यक सामग्री

    1- यह दिखाया जाना चाहिए कि जिस रोग/ संक्रमण का फैलाव किया गया है, वह इन्फेक्शस (संक्रमित किये जाने योग्य) है और वह जीवन के लिए संकटपूर्ण है।

    2- अभियुक्त ने परिद्वेषपूर्ण (Malignantly) कार्य किया।

    3- अभियुक्त को यह पता था या विश्वास करने का कारण था कि उसका कृत्य, उस रोग/इन्फेक्शन को बढ़ने/फ़ैलने में मदद करेगा।

    Next Story