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सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 39: संहिता के अंतर्गत हाईकोर्ट को अपील
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 109 उच्चतम न्यायालय को अपील से संबंधित प्रावधान करती है। हालांकि अपील केवल उच्च न्यायालय को ही नहीं होती अपितु दूसरे न्यायलयों को भी होती लेकिन जिन मामलों में अपील उच्चतम न्यायालय को होती है उसका उल्लेख इस धारा के अंतर्गत मिलता है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 109 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 132 133 और 134 (क) में भी सिविल मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील का प्रावधान है। सर्वोच्च न्यायालय में अपील...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 38: संहिता के अंतर्गत अपील न्यायालय को मिली शक्तियां
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 107 अपील न्यायालय की शक्तियों को उल्लेखित करती है। संहिता ने पहले अपील के संबंध में उल्लेख किया जहां यह बताया कि कौनसे निर्णय की अपील कहाँ और कैसे होगी। वह धाराएं अपील का अधिकार उत्पन्न करती है जबकि धारा 107 न्यायालय के अधिकार उत्पन्न करती है। धारा 107 स्पष्ट करती है कि अपीलीय न्यायालय किस प्रकार काम करता है और अंत में उसके पास किसी निर्णय के संबंध में क्या क्या अधिकार शेष रह जाते हैं। इस आलेख के अंतर्गत इस ही धारा 107 पर टिप्पणी...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 37: संहिता में द्वितीय अपील से संबंधित प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 100 द्वित्तीय अपील से संबंधित है। मूल डिक्री की अपील के बाद अपील में दिए निर्णय अपील सेकेंड अपील कहलाती है। इस आलेख के अंतर्गत द्वित्तीय अपील पर चर्चा की जा रही है।धारा 100 द्वितीय अपील के सम्बन्ध में उपबन्ध करती है। ध्यान रहे कि द्वितीय अपील हमेशा उच्च न्यायालय में की जाती है। सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1976 के माध्यम से धारा 100 में आमूल परिवर्तन कर दिया है, और पुरानी धारा 100 के स्थान पर एक नई धारा ने जन्म ले लिया...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 36: संहिता के अंतर्गत अपील संबंधित प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 96 अपील से संबंधित है। यह धारा मूल डिक्री की अपील से संबंधित है। यह एक प्रकार से पहली अपील भी है। किसी भी निर्णय को बगैर अपील के अंतिम मानना न्यायपूर्ण नहीं है इसलिए इस संहिता में भी अपील संबंधित प्रावधान है। इस आलेख में धारा 96 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।अपील के माध्यम से अधीनस्थ न्यायालय द्वारा निर्णय में की गयी त्रुटियों के निवारण का अवसर प्राप्त होता है। अतः अपील एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालय के...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 35: अनुपूरक कार्यवाहियों के अधीन न्यायालय को शक्तियां
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 94 और 95 के माध्यम से अनुपूरक कार्यवाहियों के बारे में उपबन्ध किया गया है। धारा 94 में वर्णित अनुपूरक कार्यवाहियों को विवेचना से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि ऐसे कार्यवाही की आवश्यकता क्यों पड़ती है? न्यायालय का काम न्याय करना है, और ऐसा कार्य वह डिक्री, आदेश, निर्णय एवं व्यादेशों आदि के माध्यम से पूरा करता है जहाँ कोई पक्षकार न्याय को विफल करना चाहता है वहाँ, न्यायालय उसे ऐसा नहीं करने देगा। दूसरे शब्दों में जब कोई पक्षकार डिक्री...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 34: संहिता की धारा 91 एवं 92
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 91 एवं 92 का संबंध पब्लिक न्यूसेंस (Public nuisance) या सार्वजनिक उपद्रव से है। ऐसा न्यूसेंस जिससे आम जनता को नुकसान होता है। दंड प्रक्रिया संहिता के साथ ही इस संहिता में भी पब्लिक न्यूसेंस से संबंधित प्रावधान है। इस आलेख के अंतर्गत इन दोनों ही धाराओं पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 91पब्लिक न्यूसेंस की परिभाषा संहिता की धाराओं के अधीन नहीं किया गया है। इसकी परिभाषा साधारण खण्ड अधिनियम (General Clauses Act 1897) की धारा 3 की...
गाली गलौज और धमकियां देना भी है संगीन जुर्म, इस पर बनता है मुकदमा
गाली गलौज और जान से मारने की धमकी देना आए दिन देखने को मिलता है। हमारे सामाजिक जीवन में अनेक व्यवहार होते हैं। ऐसे व्यवहारों में कई बार हमारे विवाद भी हो जाते हैं। व्यापारिक व्यवहार, सामाजिक व्यवहार या पारिवारिक व्यवहार। किसी भी परिस्थिति में हमारे छुटपुट विवाद हो जाते हैं, जहां लोग एक दूसरे को गाली गलौज या फिर जान से मारने की धमकियां देते हैं।देखने में आता है कि एक ही कॉलोनी में रहने वाले लोग विवाद होने पर एक दूसरे को अश्लील गालियां देने लगते हैं और इसी के साथ अपने रिश्तेदारों या दोस्तों को...
डॉक्टर की लापरवाही से मरीज को नुकसान होने या उसकी मौत हो जाने पर क्या है प्रावधान
इलाज आज के समय की मूल आवश्यकताओं में से एक है। विज्ञान के सहारे से बीमारों का इलाज किया जाता है। सरकार ने इलाज करने के लिए चिकित्सक रजिस्टर्ड किए हैं। यही रजिस्टर्ड चिकित्सक अपनी पद्धति से इलाज कर सकते हैं। कोई भी एलोपैथी का रजिस्टर्ड चिकित्सक एलोपैथी से इलाज कर सकता है। इसी तरह दूसरी अन्य पद्धतियां भी हैं जिनके चिकित्सक अपनी पद्धति अनुसार इलाज करते हैं।ऑपरेशन जैसी पद्धति एलोपैथिक चिकित्सा द्वारा होती है। एलोपैथी का रजिस्टर्ड डॉक्टर ऑपरेशन करता है। कभी-कभी देखने में यह आता है कि डॉक्टर की...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 33:अन्तराभिवाची वाद क्या होते है
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 88 अन्तराभिवाची का उल्लेख करती है। इस वाद का अर्थ होता है कि कोई विवाद की विषय वस्तु प्रतिवादियों के बीच होना। संहिता में इस धारा को डालने का उद्देश्य यह है कि केवल वादी प्रतिवादी के बीच ही मुकदमे नहीं सुने जाए अपितु प्रतिवादियों के मध्य के विवाद को भी सुलझाया जाए।यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल स्वरूप है-धारा 88अन्तराभिवाची वाद कहाँ संस्थित किया जा सकेगा-जहाँ दो या अधिक व्यक्ति उसी ऋण, धनराशि या अन्य जंगम या स्थावर...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 32:संहिता की धारा 81,82,83 एवं 84
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 81,82,83 एवं 84 यह चारों ही धाराएं विशेष वाद से संबंधित है। विशेष वाद अर्थात सरकार के द्वारा या सरकार के विरुद्ध वाद है। इस आलेख में इन चारों ही धाराओं पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल रूप है।धारा 81गिरफ्तारी और स्वीय उपसंजाति से छूट- ऐसे किसी भी कार्य के लिये, जो लोक अधिकारी द्वारा उसकी पदीय हैसियत में किया गया तात्पर्यित है, उसके विरुद्ध संस्थित किये गये वाद में -(क) डिक्री के निष्पादन में...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 31:सरकार के द्वारा या सरकार के विरुद्ध वाद
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 79 सरकार के द्वारा और सरकार के विरुद्ध होने वाले वादों से संबंधित प्रक्रिया निर्धारित करती है। इसके साथ ही दूसरी धाराएं भी है जो इस ही प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है। जैसे धारा 80 भी इससे ही संबंधित है। इस आलेख में इन दोनों ही धाराओं पर संयुक्त रूप से टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 79धारा 79 के माध्यम से एक प्रक्रिया बतायी गयी है जिसके अनुसार सरकार के द्वारा या सरकार के विरुद्ध वाद संस्थित किया जा सकता है। यह धारा किसी भी प्रकार की...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 30: कमीशन निकालने की न्यायालय की शक्ति
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 75 कमीशन से संबंधित है। जिस तरह आपराधिक मामलों में न्यायालय कमीशन जारी करके गवाहों के बयान ले सकता है इस ही तरह सिविल मामलों में भी कमीशन जारी किया जा सकता है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 75 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 75वाद का संचालन सुचारु रूप से आगे बढ़ाने के लिये संहिता के अन्तर्गत आनुषंगिक कार्यवाहियों का उपबन्ध किया गया है। ऐसी आनुषंगिक कार्यवाहियों में न्यायालय को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह धारा 75 में वर्णित...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 29: आस्तियों का वितरण
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 73 अस्तियों के वितरण से संबंधित प्रावधानों को इंगित करती है। किसी भी कुर्क की गई संपत्ति को विक्रय करने पर निर्णीत ऋणी के डिक्री किए गए धन को ही दिया जाता है, सारी संपत्ति जितना मूल्य अदा नहीं किया जाता है। यह धारा अस्तियों के वितरण को नियमित करती है। इस आलेख के अंतर्गत इस धारा पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 73 आस्तियों के वितरण का उपबन्ध करती है। आस्तियों के वितरण का प्रश्न कहाँ उठता है?'अ' ने 'ब' के विरुद्ध 15000 रुपये की...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 28: संहिता की धारा 61,62,63 एवं 64
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 61, 62, 63 एवं 64 भी कुर्की से संबंधित प्रावधान प्रस्तुत करती है। यह तीनों धाराएं धारा 60 की सहायक धाराएं है। धारा 60 में कुर्की से संबंधित विस्तृत उल्लेख किया गया है जिसका विवेचन पिछले आलेख में प्रस्तुत किया गया है, शेष 61, 62, 63 एवं 64 में भी धारा 60 से संबंधित बातों को ही स्पष्ट किया गया है। इस आलेख में इन सभी धाराओं पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 61यह संहिता में प्रस्तुत धारा के मूल शब्द हैकृषि उपज को भागतः छूट- राज्य...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 27: संपत्ति की कुर्की
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 60 कुर्की से संबंधित धारा है। यह धारा संहिता की महत्वपूर्ण धारा है। कुर्की एक प्रसिद्ध शब्द है, जहां किसी कर्जदार से वसूली के लिए उसकी संपत्ति को न्यायालय कुर्क करता है, फिर उसकी बोली लगाकर लेनदार को अदायगी करवाई जाती है। हालांकि कुर्की केवल कर्ज़ के मामले में नहीं अपितु प्रत्येक निर्णीत ऋणी के विरुद्ध की जा सकती है। इस आलेख के अंतर्गत कुर्की से संबंधित धारा 60 पर विस्तृत विवेचन किया जा रहा है।धारा 60 इस बात का उपबन्ध करती है कि धन...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 26: संहिता में गिरफ्तारी से संबंधित प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 55, 56, 58 सिविल मामलों में गिरफ्तारी से संबंधित प्रावधान करती है। इस आलेख में इन तीनों महत्वपूर्ण धाराओं पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है जिससे गिरफ्तारी से संबंधित प्रावधान पूरी तरह स्पष्ट हो सके।धारा 55धारा 55 निर्णीत-ऋणी के निष्पादन में गिरफ्तारी और निरोध से सम्बन्धित उपबन्ध करती है। इस धारा के अनुसार निर्णीत-ऋणी को डिक्री के निष्पादन के किसी भी समय और किसी भी दिन गिरफ्तार किया जा सकेगा और यथासाध्य शीघ्रता से न्यायालय के समक्ष...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 25: संहिता की धारा 51, 52, 53 एवं 54 पर टिप्पणी
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 51, 52, 53 एवं 54 पर संयुक्त रूप से टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 51डिक्री के निष्पादन हेतु यह धारा न्यायालय की अधिकारिता और शक्ति को परिभाषित करती है। किस प्रकार डिक्री का निष्पादन किया जाय, तरीका संहिता की अनुसूची (schedule) में दिया गया है। सामान्य तौर से यह धारा उन तमाम ईंगों को बताती है जिसके अनुसार डिक्री का निष्पादन किया जा सकता है। इस धारा में जितने ढंग बताये गये हैं, न्यायालय उन सब का उपयोग किसी मामले में नहीं कर सकती।...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 24: अन्तरिती और विधिक प्रतिनिधि
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 49 अन्तरिती और धारा 50 विधिक प्रतिनिधि के संबंध में घोषणा करती है। इस आलेख में इन दोनों ही महत्वपूर्ण धाराओं पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।धारा 49 (अन्तरिती)धारा 49 प्रावधान ठीक उसी प्रकार से है जो सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम 1882 की धारा 132 के हैं। धारा 132 के अनुसार एक समुनेदशिती (अन्तरिती) की स्थिति समनुदेशक से अच्छी नहीं होती जहाँ तक समनुदेशक (assignor) और उसके ऋणदाता के बीच की साम्या का प्रश्न है, वह साम्या जो समनुदेशन के समय...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 23: डिक्री का निष्पादन करने वाली अदालत कौन से प्रश्नों को निर्धारित कर सकती है
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 47 और संहिता की धारा 11 एक दूसरे की पूरक हैं क्योंकि दोनों धाराओं का उद्देश्य अनावश्यक मुकदमेंबाजी को रोकना है। इस धारा के माध्यम से डिक्री के निष्पादन से सम्बन्धित प्रश्नों का निपटारा कम समय और खर्चे में किया जा सकेगा अन्यथा अलग वाद के माध्यम से खर्चे में बढ़ोत्तरी और विलम्ब की पूरी संभावना बनी रहती है। दूसरे शब्दों में धारा 47 निष्पादन से सम्बन्धित सभी प्रश्नों का निपटारा करने की व्यवस्था करके न्यायालय को सशक्त बनाकर एक सस्ती,...
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भाग 22: आज्ञापत्र किसे कहा जाता है
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 (Civil Procedure Code,1908) की धारा 46 आज्ञापत्र से संबंधित है। यह वही आज्ञापत्र है जो एक प्राधिकारी द्वारा दूसरे प्राधिकारी को कानून द्वारा दी गई शक्ति के अधीन प्रेषित किया जाता है। इस आलेख में आज्ञापत्र से संबंधित प्रावधानों को समझने का प्रयास किया जा रहा है।संहिता में प्रस्तुत की गई धारा में आज्ञापत्र को इन शब्दों में उल्लेखित किया गया है-धारा 46आज्ञापत्र - (1) जब कभी डिक्री पारित करने वाला न्यायालय डिक्रीदार के आवेदन पर ठीक समझे तब वह किसी ऐसे अन्य न्यायालय को, जो...









