शराब पीकर ड्राइविंग करने के आरोप में केस बनने पर क्या किया जा सकता है

Shadab Salim

26 May 2022 12:37 PM GMT

  • शराब पीकर ड्राइविंग करने के आरोप में केस बनने पर क्या किया जा सकता है

    शराब पीकर ड्राइविंग करना एक दंडनीय अपराध है। मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 शराब पीकर ड्राइविंग करने को प्रतिबंधित करती है और इस कृत्य को एक दंडनीय अपराध बनाती है। इसलिए शराब पीकर गाड़ी चलाने से बचना चाहिए। शराब पीना प्रतिबंधित नहीं है लेकिन शराब पीकर गाड़ी चलाना दंडनीय अपराध है।

    कभी-कभी यह होता है कि किसी व्यक्ति पर शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में मुकदमा बना दिया जाता है जबकि हकीकत यह होती है कि उस व्यक्ति द्वारा ट्राफिक के किसी छोटे-मोटे नियम को तोड़ा जाता है। शराब पीकर गाड़ी चलाना एक बड़ा अपराध है लेकिन मोटर वाहन से संबंधित अन्य छोटे अपराध भी हैं।

    जैसे सीट बेल्ट बांधकर गाड़ी नहीं चलाना या फिर रेड सिग्नल को तोड़ देना इत्यादि। देखने में आता है कि अनेक दफा छोटे अपराध होने पर भी किसी व्यक्ति पर अन्यायपूर्ण तरीके से झूठा मुकदमा बनाकर उसे शराब पीकर गाड़ी चलाने के अपराध का आरोपी बना दिया जाता है।

    जब कभी किसी व्यक्ति को शराब पीकर ड्राइविंग करने के आरोप में पकड़ा जाता है तब पुलिस द्वारा ऐसे व्यक्ति की सांसों की जांच की जाती है। यदि इस जांच में पॉजिटिव आता है तब उस व्यक्ति पर मुकदमा बनाया जाता है।

    पुलिस के पास एक मशीन होती है जो व्यक्ति के मुंह में डाली जाती है और उसकी सांसों को कैप्चर किया जाता है। यदि उस मशीन में पॉजिटिव का संकेत मिलता है तब व्यक्ति मोटर व्हीकल अधिनियम की धारा 188 के अंतर्गत आरोपी बना दिया जाता है।

    आरोपी बनने पर क्या परिणाम होंगे

    मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 मौके पर ही पुलिस कर्मियों को यह अधिकार नहीं देती है कि वह शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में किसी भी व्यक्ति का चालान काट दे, बल्कि पुलिस ऐसे व्यक्ति को प्रथम श्रेणी न्यायाधीश के समक्ष पेश करती है।

    जब ऐसा व्यक्ति प्रथम श्रेणी न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब उसके सामने यह विकल्प रखा जाता है कि जो जुर्माना शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले में तय किया गया है उस जुर्माने को भर दे या फिर व्यक्ति यह कहता है कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया है और वह किसी भी प्रकार से शराब पीकर गाड़ी नहीं चला रहा था, अपितु उसने केवल रेड सिग्नल को तोड़ा है तब प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट मामले में विचारण की कार्रवाई करता है।

    विचारण का अर्थ यह होता है कि अब व्यक्ति पर पूरा मुकदमा चलाया जाएगा और मुकदमे के चलने के बाद यह साबित होने पर कि उसके द्वारा यह अपराध किया गया है तभी उसे इसकी सजा दी जाएगी। अगर व्यक्ति अपराध स्वीकार कर लेता है तब उससे जुर्माना भरवाया जाता है।

    धारा 185 के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति के द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने पर ₹10000 का जुर्माना है। अगर व्यक्ति अपराध स्वीकार करता है तब उसे यह ₹10000 जमा करने होते हैं। लेकिन यदि वह निर्दोष है और उसने कोई अपराध नहीं किया है तब उसके पास यह अधिकार है कि वह मामले को न्यायालय में चुनौती दे और अपने विरुद्ध लगाए गए आरोपों को स्वीकार नहीं करें।

    निर्दोष होने पर अपराध स्वीकार नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति की छवि पर भी गलत प्रभाव पड़ता है और उसके संबंध में यह मामला दर्ज हो जाता है कि उसने भूतकाल में किसी प्रकार का कोई अपराध किया है। यह भी अपराध की श्रेणी में ही आता है इसलिए इसे रिकॉर्ड पर रखा जाता है। विचारण की कार्रवाई तारीख दर तारीख चलती है। इस मामले में पुलिस अधिकारियों के बयान होते हैं, मशीन द्वारा बताई गई जांच पर विचार होता है और कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्षी होता है तो उसके बयान लिए जाते हैं।

    गवाहों के प्रतिपरीक्षण किए जाते हैं, फिर न्यायालय द्वारा मामले में अपना निर्णय दिया जाता है। विचारण की कार्रवाई के लिए आरोपी को अपनी जमानत लेना होती है, एक जमानतदार न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जो उसकी ओर से आरोपी की जमानत लेता है।

    देखने में आता है कि निर्दोष लोग भी ऐसे आरोपों में अपराध स्वीकार कर लेते हैं और जुर्माने की राशि भर देते हैं जबकि यह तरीका ठीक नहीं है। निर्दोष व्यक्ति को विचारण की मांग करना चाहिए और सभी गवाहों को अदालत में बुलाना चाहिए, जिससे अदालत में यह साबित हो सके कि उसने क्या वाकई में शराब पीकर गाड़ी चलाई थी। इस मामले में विचारण की कार्रवाई के बाद भी किसी प्रकार का कोई कारावास नहीं होता है।

    हालांकि धारा 188 के अंतर्गत कारावास की सजा का प्रावधान तो है लेकिन यह इतना बड़ा अपराध नहीं है कि इस पर कारावास दिया जाए। अगर आरोपी पर अपराध साबित हो भी जाता है तब भी न्यायालय उसे जहां तक हो सके जुर्माना करने का प्रयास ही करता है। इसलिए विचारण की कार्रवाई से घबराना नहीं चाहिए और निर्दोष होने पर अपने मामले को न्यायालय के सामने रखना चाहिए।

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