हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

31 Dec 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (26 दिसंबर 2023 से 30 दिसंबर 2023 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    पश्चिम बंगाल क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट रेगुलेटरी कमीशन मेडिकल लापरवाही के मामलों पर फैसला नहीं दे सकता: हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि मेडिकल लापरवाही के मुद्दों पर पश्चिम बंगाल क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट रेगुलेटरी कमीशन (WBCERC) द्वारा निर्णय नहीं लिया जा सकता। हाईकोर्ट ने इसके साथ ही बीएम बिड़ला हार्ट रिसर्च सेंटर की अपील स्वीकार कर ली और एकल पीठ का वह आदेश भी रद्द कर दिया, जिसमें अपीलकर्ता को "सेवा और निदान में लापरवाही" के लिए WBCERC द्वारा उस पर लगाए गए 20 लाख रुपये के कुल जुर्माने में से 15 लाख रुपये की राशि जमा करने का निर्देश दिया गया था।

    मामला: बी. एम. बिड़ला हार्ट रिसर्च सेंटर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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    कॉलेज प्रिंसिपल का चैंबर सार्वजनिक जगह, वहां सहकर्मियों को अपशब्द कहना अश्लील हरकत: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने हाल ही में महाराष्ट्र के मुर्तिज़ापुर में मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा पारित आदेश बहाल किया, जिसमें कॉलेज प्रिंसिपल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 294, 504 और 506 के तहत अपराध के लिए प्रक्रिया जारी की गई। जस्टिस अनिल पंसारे ने कहा कि प्रिंसिपल द्वारा कथित तौर पर अपने सहकर्मियों से यह पूछने पर कि "क्या आपकी पत्नियां मेरे पास सोने के लिए आईं, आपको यह बताने के लिए कि मैं बुरे चरित्र का हूं" कहे गए शब्द उनके चैंबर के अंदर तीन अन्य प्रोफेसरों के सामने अश्लील कृत्य के समान होंगे।

    केस टाइटल- नितिन शिवदास सातपुते बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    शराब की खाली बोतलों को स्क्रैप में शामिल नहीं किया जा सकता, TCS लागू नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने माना कि खाली शराब की बोतलों को स्क्रैप में शामिल नहीं किया जा सकता, इसलिए TCS लागू नहीं होगा। जस्टिस सी. सरवनन की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता न तो बोतल का मालिक है और न ही स्क्रैप उत्पन्न करता है, जैसा कि Income Tax Act, 1961 के तहत माना जाता है। खोलने और खोलने की गतिविधि "सामग्री का यांत्रिक कार्य" नहीं है।

    इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 206सी, 206सीसी और 206सीसीए का आह्वान याचिकाकर्ता के खिलाफ देय लाइसेंस शुल्क के 99% पर 1% कर एकत्र करने में कथित विफलता के लिए परिस्थितियों में पूरी तरह से गलत और अनुचित है। सरकार और 1% एजेंसी कमीशन के रूप में बरकरार रखा गया।

    केस टाइटल: मैसर्स तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम डीसीआईटी

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    विवाहित सैन्य अधिकारी आवास का हकदार, लेकिन पति/पत्नी आवंटित परिसर को बरकरार रखने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा कि क्वार्टरमास्टर रूल्स का नियम 4 केवल विवाहित सैन्य अधिकारी को आवास का अधिकार देता है। यह अधिकारी के पति या पत्नी को आवंटित आवास बरकरार रखने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं देता।

    चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस अनिल कुमार जुकांति की खंडपीठ ने सेना के कर्नल की पत्नी द्वारा दायर रिट अपील में यह आदेश पारित किया, जिसमें उसने अपने पति को पहले आवंटित आवास के संबंध में स्टेशन कमांडर, सिकंदराबाद (प्रतिवादी नंबर 3) द्वारा जारी बेदखली नोटिस को चुनौती दी थी, जिसमें वह निवास करती रही।

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    Arbitration Act | 2जी फैसला 'कानून में बदलाव', अदालत बहुमत के फैसले को खारिज नहीं कर सकती और अल्पमत के फैसले को कायम नहीं रख सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने आर्बिट्रेशन एक्ट (Arbitration Act) की धारा 34 के तहत दायर याचिका खारिज करते हुए हाल ही में कहा कि 2जी फैसले, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने पहले आओ-पहले पाओ (एफसीएफएस) नीति रद्द कर दी थी, ने स्पेक्ट्रम/लाइसेंस प्रदान करने में "कानून में बदलाव" का गठन किया।

    हाईकोर्ट ने कहा कि 2जी निर्णय पारित करके माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एफसीएफएस पॉलिसी रद्द कर दी, जो स्पेक्ट्रम/लाइसेंस देने के लिए कानून के तहत पहले की सामान्य प्रक्रिया थी। बाद में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश पारित किया कि केवल स्पेक्ट्रम/लाइसेंस ही दिए जाएंगे। नए सिरे से नीलामी आयोजित करने के बाद अनुमति दी जाएगी। इसलिए यह स्पष्ट है कि उपरोक्त निर्णय में निर्णय कानून में बदलाव के समान होगा।

    केस टाइटल: इंडस टावर्स लिमिटेड बनाम सिस्टेमा श्याम टेलीसर्विसेज लिमिटेड, ओ.एम.पी.(COMM) 209/2019

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    Juvenile Justice Act 2015 | आरोपी की किशोर उम्र निर्धारित करने के लिए पहले स्कूल से बर्थ सर्टिफिकेट पर कोई जोर नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने आयोजित किया कि किशोर होने का दावा करने वाले आरोपी को अपनी उम्र निर्धारित करने के लिए अपने 'पहले' स्कूल से बर्थ (डीओबी) सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है और जिस भी स्कूल में उसने पढ़ाई की है, उसका सर्टिफिकेट नए किशोर न्याय अधिनियम 2015, (जेजे एक्ट) के तहत प्रस्तुत किया जा सकता है। जस्टिस एसएम मोदक ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें पुराने जेजे एक्ट और नियमों के आधार पर आरोपी की याचिका पर फैसला सुनाया गया था।

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    इस्लामी कानून बहुविवाह की अनुमति देता है, लेकिन पति को सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि हालांकि इस्लामी कानून एक पति को बहुविवाह करने की अनुमति देता है, लेकिन वह सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार करने के लिए बाध्य है। जस्टिस आरएमटी टीका रमन और जस्टिस पीबी बालाजी की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश की पुष्टि की, जिसमें शादी खत्म की अनुमति दी गई थी। उक्त आदेश में पाया गया कि पति ने पत्नी के साथ दूसरी पत्नी के समान व्यवहार न करके उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया।

    केस टाइटल: पीके मुकमुथु शा बनाम पीएस मोहम्मद अफरीन बानू

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    संविदा कर्मचारियों को निष्पक्ष सुनवाई के बिना बर्खास्त नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि संविदात्मक नियुक्तियों (Contractual Employees) को भी सुनवाई का अवसर दिए बिना समाप्त नहीं किया जा सकता, यदि समाप्ति कदाचार के आरोपों पर आधारित है, जो कर्मचारी पर कलंक लगाती है।

    जस्टिस एम ए चौधरी ने जम्मू-कश्मीर हस्तशिल्प निगम से कर्मचारियों की वापसी को संबोधित करते हुए कहा, "यदि कोई आदेश आरोपों पर आधारित है तो आदेश कलंकपूर्ण और दंडात्मक है। किसी कर्मचारी की सेवाओं को पूर्ण जांच में उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों/आरोपों का बचाव करने का अवसर दिए बिना समाप्त नहीं किया जा सकता।"

    केस टाइटल: फ़िरोज़ अहमद शेख बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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    POCSO Act की धारा 22| बलात्कार के झूठे आरोपों के लिए बच्चे पर झूठी गवाही देने का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने बलात्कार के झूठे आरोपों से जुड़े मामलों में नाबालिगों की सुरक्षा पर जोर देते हुए माना कि बलात्कार के झूठे आरोप लगाने के लिए किसी नाबालिग पर झूठी गवाही का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धारा 22 का हवाला देते हुए बच्चों को झूठी जानकारी के लिए सजा से बचाया जाता है।

    जस्टिस राजेश ओसवाल ने कहा, "यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम की धारा 22(2) के अवलोकन से पता चलेगा कि यदि किसी बच्चे द्वारा झूठी शिकायत की गई, या गलत जानकारी दी गई तो ऐसे बच्चे को कोई सजा नहीं दी जाएगी।"

    केस टाइटल: जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश बनाम एक्स

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    'ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 22 के तहत पुलिस के पास तलाशी और जब्ती का अधिकार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पुलिस के पास ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के उल्लंघन में कथित अवैध उत्पाद की खोज करने या जब्त करने का कोई अधिकार नहीं है, जब्त करने की शक्ति अधिनियम के तहत नियुक्त निरीक्षक के पास होगी।

    संदर्भ के लिए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 22 के अनुसार, किसी भी तलाशी और जब्ती की शक्ति पूरी तरह से ड्रग इंस्पेक्टर के पास निहित है। वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता पर बिना किसी अपेक्षित लाइसेंस के कथित तौर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन को विनियमित दर से अधिक कीमत पर बेचने की पेशकश करने के लिए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    केस टाइटल: गौरव चावला बनाम यू.टी. राज्य चंडीगढ़

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    विदेश यात्रा करना मौलिक अधिकार, अथॉरिटी पासपोर्ट देने से इनकार करने के लिए आवेदक के पते पर चल रहे विवाद का हवाला नहीं दे सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी, मुंबई को महिला और उसके दो बेटों के पासपोर्ट को नवीनीकृत करने का निर्देश दिया, जिसे पहले महिला के जीजा द्वारा उनके द्वारा उनके पासपोर्ट आवेदनों में बताए गए पते पर आपत्ति जताने के कारण पासपोर्ट अथॉरिटी ने खारिज कर दिया था।

    जस्टिस एएस चंदुरकर और फिरदोश पी. पूनीवाला ने की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ''किसी व्यक्ति को इस आधार पर विदेश यात्रा करने के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता कि उस संपत्ति के संबंध में कोई विवाद है, जिसका उल्लेख उसके द्वारा दिए गए पते में किया गया।"

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    बिना पर्याप्त आधार के अदालत को 'बदनाम' करने वाली याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने वाले वकीलों को अवमानना के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो वकीलों के खिलाफ कार्रवाई पर विचार करते हुए दोहराया और उनके मुवक्किल के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करते हुए कहा कि कृत्रिम स्थिति पैदा करने के लिए उचित आधार के बिना जो वकील आवेदन पर हस्ताक्षर करके अदालत के खिलाफ निंदनीय टिप्पणी करता है, जिससे मामले को जज द्वारा अलग कर दिया जाए, वह अवमानना कार्रवाई के लिए उत्तरदायी हो सकता है।

    जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस एनआर बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि वकील के न्यायालय के प्रति दायित्वों और क्लाइंट के प्रति उसके कर्तव्य के बीच टकराव में, जो सबसे पहले प्रबल होता है, वह न्यायालय के प्रति उसका दायित्व है।

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    जीवनसाथी द्वारा विवाहेत्तर अवैध संबंध का आरोप लगाना क्रूरता: पटना हाईकोर्ट

    एक उल्लेखनीय फैसले में, पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ व्यभिचार, अनैतिक यौन संबंध और जबरन वेश्यावृत्ति के निराधार आरोप लगाना न केवल उत्पीड़न और चरित्र हनन है, बल्कि समाज में व्यक्ति की सार्वजनिक प्रतिष्ठा को भी धूमिल करता है।

    जस्टिस पीबी बजथरी और जस्टिस रमेश चंद मालवीय की डिवीजन बेंच ने कहा, “एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे पर विवाहेतर विभिन्न व्यक्तियों के साथ कथित अवैध संबंध रखने का झूठा आरोप लगाना मानसिक क्रूरता है। वर्तमान मामले में, प्रतिवादी - पत्नी ने अपीलकर्ता के नियोक्ता के समक्ष आरोप लगाए और घरेलू हिंसा में अपीलकर्ता और उसकी मां द्वारा वेश्यावृत्ति के लिए उकसाने और व्यभिचार और अनैतिक यौन संबंध आदि में शामिल होने का आरोप लगाया। प्रतिवादी ने स्वीकार किया कि ये आरोप उसके वकील के कहने पर लगाए गए हैं और ये सच नहीं हैं।''

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    यदि अभियोजन पक्ष के बयान की पुष्टि के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हों तो पहले बयान से पलट जाने वाले शिकायतकर्ता के बयान पर भरोसा किया जा सकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में दोषसिद्धि खारिज करने से इनकार करते हुए स्पष्ट किया कि जहां अभियोजन पक्ष की बात को पुष्ट करने के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध हैं, वहीं क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान शिकायतकर्ता के बयान से पलट जाने के बावजूद भी उसके बयान पर भरोसा किया जा सकता है।

    जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस गुरबीर सिंह की खंडपीठ ने कहा, ".. जहां अभियोजन पक्ष की बात को पुष्ट करने के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध हैं, वहां क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान शिकायतकर्ता के मुकर जाने के बावजूद उसके बयान पर सुरक्षित रूप से भरोसा किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: शौकीन बनाम हरियाणा राज्य

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    समता याचिका आरोपी को जमानत देने के लिए अदालत पर बाध्यकारी नहीं, व्यक्तिगत अपराधों/प्रकट कृत्यों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि जमानत मांगने के लिए आरोपी द्वारा उठाई गई समता की दलील अदालत के लिए बाध्यकारी नहीं है। व्यक्तिगत अपराधों और व्यक्तिगत प्रत्यक्ष कृत्यों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए, न कि केवल अन्य आरोपियों के आदेशों का पालन करना, जो समता पर समान अनुदान के तहत जमानत पर रिहा हुए हैं।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने अल्मास पाशा द्वारा दायर दूसरी जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 का आरोप है।

    केस टाइटल: अल्मास पाशा और कर्नाटक राज्य

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    केवल जमानत शर्तों का उल्लंघन जमानत रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जमानत शर्तों का उल्लंघन जमानत रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। एक बार जमानत रद्द करने के लिए आवश्यक ठोस और जबरदस्त परिस्थितियां होनी चाहिए।

    जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने NDPS Act मामले में जमानत की शर्त और जमानत रद्द करने का आदेश रद्द करते हुए कहा, “एकमात्र शर्त जो लगाई जा सकती है, वह यह है कि जांच एजेंसी/शिकायतकर्ता जमानत रद्द करने के लिए आवेदन दायर करने के लिए स्वतंत्र होगा। कानून के अनुसार फैसला सुनाया गया। वास्तव में एक बार दी गई जमानत स्वचालित रूप से और यांत्रिक तरीके से रद्द नहीं की जा सकती। एक बार दी गई जमानत को रद्द करने के लिए आवश्यक ठोस और जबरदस्त परिस्थितियाँ होनी चाहिए।''

    केस टाइटल: राजिया बनाम हरियाणा राज्य

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    MSMED Act के तहत चक्रवृद्धि ब्याज का भुगतान सभी समझौतों और कानूनों का स्थान लेता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    MSMED Act की धारा 16 के तहत चक्रवृद्धि ब्याज की वैधानिक प्रकृति पर जोर देते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि इस धारा के तहत चक्रवृद्धि ब्याज का भुगतान अनिवार्य है और यह अनुबंधों या मौजूदा कानूनों में किसी भी परस्पर विरोधी शर्तों का स्थान लेता है।

    जस्टिस संजीव कुमार की पीठ ने कहा, “खरीदार द्वारा देय तिथि पर भुगतान करने में विफलता पर चक्रवृद्धि ब्याज के भुगतान की यह शर्त वैधानिक है और खरीदार और आपूर्तिकर्ता के बीच किए गए समझौते में किसी भी शर्त को खत्म कर देती है। यह उस समय लागू किसी भी कानून में किए गए हित के संबंध में ऐसी किसी भी शर्त को खत्म कर देता है।''

    केस टाइटल: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर बनाम नॉर्दर्न ट्रांसफॉर्मर्स

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