कॉलेज प्रिंसिपल का चैंबर सार्वजनिक जगह, वहां सहकर्मियों को अपशब्द कहना अश्लील हरकत: बॉम्बे हाईकोर्ट
Shahadat
30 Dec 2023 11:13 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने हाल ही में महाराष्ट्र के मुर्तिज़ापुर में मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा पारित आदेश बहाल किया, जिसमें कॉलेज प्रिंसिपल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 294, 504 और 506 के तहत अपराध के लिए प्रक्रिया जारी की गई।
जस्टिस अनिल पंसारे ने कहा कि प्रिंसिपल द्वारा कथित तौर पर अपने सहकर्मियों से यह पूछने पर कि "क्या आपकी पत्नियां मेरे पास सोने के लिए आईं, आपको यह बताने के लिए कि मैं बुरे चरित्र का हूं" कहे गए शब्द उनके चैंबर के अंदर तीन अन्य प्रोफेसरों के सामने अश्लील कृत्य के समान होंगे।
अदालत ने कहा,
जैसा कि आईपीसी की धारा 294 के तहत माना गया, कॉलेज प्रिंसिपल का चैंबर 'सार्वजनिक जगह' है, "सत्र न्यायालय ने हालांकि, गलत विचार रखा कि प्रिंसिपल का चैंबर सार्वजनिक जगह नहीं है।"
कोर्ट ने कहा,
“सार्वजनिक स्थान के संबंध में यह कृत्य प्रतिवादी नंबर 2 के चैंबर में किया गया, जो कॉलेज परिसर में स्थित है। कॉलेज परिसर निश्चित रूप से सार्वजनिक जगह है, क्योंकि स्टूडेंट, टीचर्स, कर्मचारियों और कॉलेज से जुड़े अन्य व्यक्तियों को उस भवन तक पहुंच है, जिसमें प्राचार्य का चैंबर स्थित है। उस अर्थ में प्रिंसिपल का चैंबर सार्वजनिक स्थान कहा जा सकता है।”
अदालत ने सीआरपीसी की धारा 155 (2) के तहत गैर-संज्ञेय शिकायत की जांच के लिए मजिस्ट्रेट से संपर्क करने में जांच अधिकारी की विफलता पर भी कड़ी आपत्ति जताई।
जस्टिस पानसरे ने मुर्तिज़ापुर में गाडगे महाराज महाविद्यालय के लाइब्रेरियन द्वारा अकोला सेशन कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर वर्तमान याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें प्रिंसिपल को दोषी नहीं पाया गया और मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया गया।
मामला 11 नवंबर, 2020 की घटना से संबंधित है, जब कॉलेज के प्रिंसिपल संतोष माधवराव ठाकरे ने कथित तौर पर अपने चैंबर में याचिकाकर्ता के साथ अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हुए दुर्व्यवहार किया, जहां तीन अन्य स्टाफ सदस्य भी मौजूद है।
सतपुते की शिकायत पर जांच अधिकारी ने गैर-संज्ञेय अपराध दर्ज किया। सतपुते ने बाद में सीआरपीसी की धारा 200 के तहत मजिस्ट्रेट से संपर्क किया, जिसके आधार पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया और आईपीसी की धारा 294, 504 और 506 के तहत प्रक्रिया जारी की।
सत्र न्यायालय ने मजिस्ट्रेट के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि प्रिंसिपल का कक्ष सार्वजनिक स्थान नहीं है और याचिकाकर्ता द्वारा रिकॉर्ड पर कोई वीडियो साक्ष्य नहीं रखा गया।
जस्टिस पानसरे ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि कॉलेज परिसर जहां प्राचार्य का कक्ष स्थित है, वह सभी के लिए सुलभ सार्वजनिक स्थान है। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने घटना के वीडियो साक्ष्य वाली एक पेन ड्राइव जमा की थी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा,
“वर्तमान मामले में प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा कहे गए अपमानजनक शब्द हैं, “क्या तुम्हारी पत्नियां मेरे पास सोने के लिए यह बताने आईं कि मैं बुरे चरित्र का हूं,” इस कृत्य को अश्लील कृत्य कहा जा सकता है। किए गए कृत्य को दूसरों को परेशान करने के लिए किया गया अश्लील कृत्य कहा जा सकता।”
मामले की परिस्थितियों पर हाईकोर्ट ने राज्य पुलिस प्रमुख को सीआरपीसी की धारा 155(2) के तहत उचित मामलों में गैर-संज्ञेय अपराधों की जांच करने के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति लेने के लिए जांच अधिकारियों के लिए दिशानिर्देश जारी करने का भी निर्देश दिया। इसमें कहा गया कि गैर-संज्ञेय अपराधों की जांच शिकायतकर्ता पर छोड़ने की प्रथा को बदलने की जरूरत है।
अपीयरेंस- याचिकाकर्ता के लिए वकील एस.एम. वैष्णव। प्रतिवादी राज्य के लिए एपीपी एआर चुटके।
केस टाइटल- नितिन शिवदास सातपुते बनाम महाराष्ट्र राज्य
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