केवल जमानत शर्तों का उल्लंघन जमानत रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
Shahadat
25 Dec 2023 1:38 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जमानत शर्तों का उल्लंघन जमानत रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। एक बार जमानत रद्द करने के लिए आवश्यक ठोस और जबरदस्त परिस्थितियां होनी चाहिए।
जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने NDPS Act मामले में जमानत की शर्त और जमानत रद्द करने का आदेश रद्द करते हुए कहा,
“एकमात्र शर्त जो लगाई जा सकती है, वह यह है कि जांच एजेंसी/शिकायतकर्ता जमानत रद्द करने के लिए आवेदन दायर करने के लिए स्वतंत्र होगा। कानून के अनुसार फैसला सुनाया गया। वास्तव में एक बार दी गई जमानत स्वचालित रूप से और यांत्रिक तरीके से रद्द नहीं की जा सकती। एक बार दी गई जमानत को रद्द करने के लिए आवश्यक ठोस और जबरदस्त परिस्थितियाँ होनी चाहिए।''
पीठ ने आगे स्पष्ट किया कि जमानत शर्तों का उल्लंघन मात्र जमानत रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इसमें कहा गया कि अदालत को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए इसे रद्द करना जरूरी है।
ये टिप्पणियां एएसजे, फ़रीदाबाद द्वारा पारित जमानत शर्त रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिसमें कहा गया कि यदि आवेदक समान प्रकृति के किसी अन्य मामले में शामिल है तो दी गई जमानत बिना किसी पूर्व सूचना के ख़ारिज मानी जाएगी।
आरोपी रजिया पर 1.5 किलोग्राम प्रतिबंधित पदार्थ पाए जाने पर NDPS Act की धारा 20 के तहत मामला दर्ज किया गया।
इसके बाद NDPS Act में दर्ज दो अन्य एफआईआर में आरोपी का नाम प्रकटीकरण बयान में आया और उसे फिर से आरोपी के रूप में सूचीबद्ध किया गया।
अभियोजन पक्ष द्वारा राजिया को दी गई जमानत इस आधार पर रद्द करने के लिए आवेदन दायर किया गया कि बाद में उसे अन्य एफआईआर में शामिल पाया गया।
तदनुसार, उसे दी गई जमानत इस आधार पर रद्द कर दी गई कि आदेश में जमानत स्वत: रद्द होने की शर्त है।
दलीलों पर विचार करते हुए गोडसन बनाम केरल राज्य, [2022(3) अपराध 191] के मामले में केरल हाईकोर्ट पर भरोसा किया गया, जिसमें अदालत द्वारा शर्त लगाई गई कि यदि अपराध करने का आरोप लगाया जाएगा तो जमानत रद्द कर दी जाएगी।
केरल हाईकोर्ट ने कहा था,
“मेरे विचार में केवल इस कारण से कि आरोपी को जमानत देते समय ऐसी शर्त लगाई गई, जिसके परिणामस्वरूप जमानत स्वचालित रूप से रद्द नहीं होगी। यह विशेष रूप से इसलिए है, क्योंकि जमानत रद्द करने का आदेश एक ऐसी चीज है, जो किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करती है, जिसकी गारंटी भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई है, जब तक कि ऐसे आदेश को उचित ठहराने या वारंट करने वाले कारण न हों, पहले से दी गई जमानत रद्द नहीं की जा सकती।”
इसमें आगे कहा गया,
“…इसलिए शर्तों का पालन न करने के आधार पर जमानत रद्द करने के आवेदन पर विचार करते समय अदालत को इस सवाल पर विचार करना होगा कि क्या कथित उल्लंघन न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने का प्रयास है या नहीं। कि क्या इससे उस मामले की सुनवाई प्रभावित होगी जिसमें आरोपी फंसा है।”
अब्दुल लतीफ @ शोककारी लतीफ बनाम केरल राज्य, [सीआरएल] 2022 का एमसी नंबर 6677] का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें यह माना गया,
"...यहां तक कि ऐसे मामले में जहां आरोपी ने जमानत पर रहते हुए अपराध किया, अदालत को इस बात पर विचार करना होगा कि क्या अपराध इतनी गंभीर प्रकृति का है कि यह जमानत रद्द करने की आवश्यकता वाली परिस्थिति के पर्यवेक्षण के बराबर है। इसके लिए बाद के अपराध के संबंध में आरोपों का प्रारंभिक मूल्यांकन होना चाहिए।
यहां ऊपर उल्लिखित निर्णयों के अवलोकन से पता चलता है कि जमानत देते समय जमानत को स्वत: रद्द करने की कोई शर्त नहीं लगाई जा सकती।
पीठ ने कहा,
एकमात्र शर्त जो लगाई जा सकती है, वह यह है कि जांच एजेंसी/शिकायतकर्ता जमानत रद्द करने के लिए आवेदन दायर करने के लिए स्वतंत्र होगा, जिस पर कानून के अनुसार फैसला किया जाएगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि कोर्ट को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए इसे रद्द करना आवश्यक है।
जस्टिस बेदी ने कहा कि मौजूदा मामले में किसी भी परिस्थिति की जांच किए बिना जमानत स्वचालित रूप से रद्द कर दी गई, जिनमें से एक यह है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज दो अन्य मामलों में उसे जमानत मिलने से पहले जमानत की रियायत दी गई, जबकि वर्तमान मामले में जमानत रद्द कर दी गई।
उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने जमानत आदेश में लगाई गई शर्तों को रद्द करते हुए आरोपी को जमानत की रियायत दी।
अपीयरेंस: कुणाल डावर, याचिकाकर्ता के वकील। राजीव गोयल, डीएजी, हरियाणा।
केस टाइटल: राजिया बनाम हरियाणा राज्य
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