गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की 276 दिनों की देरी से अपील दाखिल करने और वैधानिक स्थानीय निकायों को रिट आदेशों के कार्यान्वयन से रोकने पर फटकार लगाई

Amir Ahmad

14 April 2025 8:35 AM

  • गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की 276 दिनों की देरी से अपील दाखिल करने और वैधानिक स्थानीय निकायों को रिट आदेशों के कार्यान्वयन से रोकने पर फटकार लगाई

    गुजरात हाईकोर्ट ने एक रिट आदेश के खिलाफ 276 दिनों की देरी से अपील दाखिल करने पर राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की। अदालत ने कहा कि जब राज्य सरकार को स्थानीय निकायों के साथ एक पक्ष के रूप में मामले में जोड़ा गया हो, तब वह मूक दर्शक बनकर न तो कोई हलफनामा दाखिल करे और न ही अपना पक्ष रखे यह व्यवहार स्वीकार्य नहीं है।

    हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि राज्य सरकार किसी कार्यवाही को चुनौती नहीं देना चाहती है तो वह संबंधित वैधानिक स्थानीय निकायों को उस निर्णय के अनुपालन से नहीं रोक सकती और न ही उन्हें उस आदेश को चुनौती देने का निर्देश दे सकती है, जब वह स्वयं कार्यवाही में भाग नहीं ले रही हो।

    इस मामले में एकल जज ने कुछ व्यक्तियों को राहत दी, यह देखते हुए कि जिला विकास अधिकारी ने यह स्वीकार किया कि ये लोग वर्ष 2015 की सरकारी निर्णय (Government Resolution) के अंतर्गत लाभ पाने के हकदार हैं।

    अदालत ने यह नोट किया कि प्रतिवादी नंबर 1 – गुजरात राज्य, जिसे पंचायत, ग्रामीण आवास और ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया, की ओर से कोई विरोध नहीं किया गया। यह भी सामने आया कि जिला ग्रामीण विकास एजेंसी के निदेशक ने लाभों की स्वीकृति हेतु पहले ही राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा था। हालांकि लेखा और कोषालय विभाग के निदेशक ने यह आपत्ति उठाई थी कि राज्य सरकार से अभी स्वीकृति नहीं मिली है।

    जस्टिस ए.एस. सुपेहिया और जस्टिस निशा एम. ठाकोर की खंडपीठ ने कहा,

    "बिना रिट याचिका का विरोध किए जब याचिकाकर्ताओं ने इस न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों को लागू करने का प्रयास किया, तब अपर आयुक्त ने याचिकाकर्ताओं को लेटर्स पेटेंट अपील दाखिल करने का निर्देश दिया। अतः अपील 276 दिनों की देरी से दाखिल की गई। हमारे विचार में यह राज्य विभाग द्वारा अपनाए गए व्यवहार की निंदा करने का उपयुक्त मामला है। राज्य विभाग ने इस पर गंभीरता से विचार किए बिना केवल याचिकाकर्ताओं को अपील दायर करने का निर्देश दिया और वह भी तब जब याचिकाकर्ता न्यायालय के निर्देशों का पालन करना चाह रहे थे।"

    खंडपीठ ने यह भी देखा कि कई मामलों में जब राज्य सरकार को स्थानीय निकायों के साथ एक पक्ष के रूप में शामिल किया जाता है तब केवल स्थानीय निकाय ही पूरी लड़ाई लड़ते हैं। मुख्य राज्य विभाग कोई जवाब नहीं देता, जबकि स्थानीय निकाय उसी के अधीन आते हैं। अतिरिक्त सरकारी वकील ने तर्क दिया कि ऐसे मामलों में स्थानीय निकायों को प्रशासनिक रूप से यह जिम्मेदारी दी जाती है कि वे मामले को लड़ें और राज्य विभाग केवल मार्गदर्शन कर सकता है।

    खंडपीठ ने कहा,

    "हम राज्य विभाग के इस दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करते। राज्य विभाग न्यायालय की कार्यवाही में मूकदर्शक नहीं रह सकता विशेषकर तब जब मामला उसके अधिकार क्षेत्र में भी आता हो। कार्यान्वयन की जिम्मेदारी स्थानीय वैधानिक निकायों की होती है, जिन्हें राज्य सरकार की स्वीकृति लेनी होती है। हम यह भी देखते हैं कि जब न्यायालय निर्णय दे देता है और स्थानीय निकायों द्वारा उसका पालन करने का प्रयास किया जाता है तब राज्य सरकार उस समय आपत्ति उठाती है। फिर आदेश को चुनौती देने के लिए कहती है, बिना यह देखे कि बहुत देर हो चुकी है। राज्य विभाग को तब ही आपत्ति सूझती है जब अवमानना कार्यवाही की बात आती है।"

    खंडपीठ ने यह भी कहा कि राज्य सरकार की मुख्य शाखाएं न्यायालय की कार्यवाही के दौरान मौन रहती हैं और केवल स्थानीय निकायों को मामले को लड़ने देती हैं, लेकिन जब आदेशों को लागू करने की बात आती है और स्वीकृति मांगी जाती है तो वे आपत्ति उठाते हैं।

    न्यायालय ने यह भी कहा,

    "जब कोई राज्य विभाग, वैधानिक स्थानीय निकायों या अन्य अधीन विभागों के साथ एक पक्ष के रूप में कार्यवाही में शामिल होता है तो वह मौन रहकर कार्यवाही नहीं देख सकता, न कोई हलफनामा, न ही कोई स्पष्ट विचार/रुख। अंततः राज्य विभाग की स्वीकृति के बिना स्थानीय निकाय न्यायालय के निर्देशों के अनुसार लाभ नहीं दे सकते। ऐसी स्थिति में राज्य विभाग को न्यायालय के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत करने चाहिए और केवल स्थानीय निकायों पर जिम्मेदारी नहीं डालनी चाहिए। यदि राज्य विभाग कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेना चाहता तो वह स्थानीय निकायों को आदेशों के अनुपालन से नहीं रोक सकता और न ही उनसे अपील दाखिल करने को कह सकता है, जबकि खुद भाग नहीं ले रहा हो। राज्य विभाग पर यह दायित्व है कि वह न्यायालय को कार्यवाही में उस मुद्दे से संबंधित वित्तीय प्रभावों से अवगत कराए, न कि बाद में आपत्ति उठाए।"

    अंत में अदालत ने निर्देश दिया कि यह आदेश राज्य सरकार के सभी विभाग प्रमुखों को फारवर्ड किया जाए। साथ ही सरकारी वकील को यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि भविष्य में राज्य सरकार और उसकी अधीनस्थ वैधानिक संस्थाएं समन्वित और सुसंगत कानूनी रुख अपनाएं।

    जब सहायक सरकारी वकील ने यह सूचित किया कि राज्य सरकार याचिकाकर्ताओं को लाभ प्रदान करने के लिए उचित आदेश जारी करेगी तो अपीलकर्ता पक्ष ने नागरिक आवेदन और मुख्य अपील को आगे नहीं बढ़ाया।

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