संपादकीय

जब सुप्रीम कोर्ट ने PIL दाखिल करने पर रोक लगाई हो तो याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकते : दिल्ली हाईकोर्ट
जब सुप्रीम कोर्ट ने PIL दाखिल करने पर रोक लगाई हो तो याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकते : दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को सुराज़ इंडिया ट्रस्ट और उसके अध्यक्ष राजीव दहिया द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने पहले आदेश जारी किए थे और अपनी रजिस्ट्री को यह निर्देश दिया था कि वह उनके द्वारा दायर किसी भी आवेदन को स्वीकार न करें। "याचिकाकर्ता की सुनवाई करना नहीं है उचित" मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने कहा, "यह हमारे लिए संभव और उचित नहीं है कि याचिकाकर्ता की सुनवाई की जाए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को...

केरल भारतीय क्षेत्र में, इसकी अदालतें सुप्रीम कोर्ट के फैसले मानने के लिए बाध्य, चर्च मामले में हाईकोर्ट का फैसला रद्द
केरल भारतीय क्षेत्र में, इसकी अदालतें सुप्रीम कोर्ट के फैसले मानने के लिए बाध्य, चर्च मामले में हाईकोर्ट का फैसला रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने केरल में चर्चों में प्रशासन और प्रार्थनाओं के संचालन के अधिकार को लेकर वर्ष 2017 के अपने फैसले में दो गुटों के विवाद में केरलहाई कोर्ट द्वारा छेड़छाड़ करने पर अपने फैसले में यह दोहराया है कि भविष्य में न्यायालयों द्वारा सुप्रीम कोर्ट आदेशों और निर्णयों के उल्लंघन को 'गंभीरता से' लिया जाएगा। केरल हाई कोर्ट का आदेश किया गया था रद्द शीर्ष अदालत ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें यह कहा गया था कि मालनकारा चर्चों में प्रार्थना सेवाओं का मालाकार चर्च के दो...

अगर अपराध का इरादा नहीं है तो मकोका के तहत गिरफ़्तारी से संरक्षण दिया जा सकता है, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
अगर अपराध का इरादा नहीं है तो मकोका के तहत गिरफ़्तारी से संरक्षण दिया जा सकता है, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत किसी को गिरफ़्तारी से बचाव का यह पहला उदाहरण हो सकता है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस बारे में सुरजीतसिंह गंभीर की याचिका स्वीकार कर ली है। न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और भारती डांगरे की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पर मकोका के तहत मामला दर्ज करने का फ़ैसला करने वालेआईजी और सीआईडी ने दिमाग़ से काम नहीं लिया है और यह मामला जानबूझकर अपराध करने का नहीं है। इसमें आपराधिक मनःस्थिति ( mens rea) का आभाव था। मकोका के तहत दर्ज हुए मामले में अग्रिम ज़मानत...

कार्य प्रभारी के रूप में दी गई सेवाओं को भी  पेंशन के लिए योग्य सेवा माना जाए , सुप्रीम कोर्ट का फैसला
कार्य प्रभारी के रूप में दी गई सेवाओं को भी पेंशन के लिए योग्य सेवा माना जाए , सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कार्य प्रभारी के रूप में संस्थान में दी जाने वाली सेवाओं को पेंशन देने के लिए योग्य सेवा माना जाना चाहिए। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस एम.आर शाह की पीठ ने इस मामले में दिए अपने फैसले में उन कर्मचारियों की अपील को स्वीकार किया जिन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ अपील दायर की थी। यूपी सेवानिवृत्ति लाभ नियम 1961 की धारा 3(8) के अनुसार 'कार्य प्रभारी' के रूप मेंं संस्थान में दी गई सेवाओं की अवधि को पेंशन के लिए योग्य सेवा नहीं माना गया था । ऐसा...

जब रोगी के परिवार के सदस्य ऑपरेशन के लिए सहमति देते हैं, तो वे इसके परिणाम सहन करने के लिए भी सहमति देते हैं, हाईकोर्ट का फैसला
जब रोगी के परिवार के सदस्य ऑपरेशन के लिए सहमति देते हैं, तो वे इसके परिणाम सहन करने के लिए भी सहमति देते हैं, हाईकोर्ट का फैसला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2 डॉक्टरों के खिलाफ चिकित्सीय लापरवाही के लिए आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया और कहा कि "जोखिम हमेशा शामिल होता है और जब रोगी/परिवार के सदस्य ऑपरेशन किए जाने के लिए सहमति देते हैं, तो वे इस तरह के ऑपरेशन और उससे जुड़े परिणाम सहन करने के लिए सहमति देते हैं।" अधिवक्ता भानु भूषण जौहरी के माध्यम से डॉ. आज़म हसीन और डॉ. आदिल महमूद अली द्वारा दायर अपील के जरिये यह मामला न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह- I के समक्ष रखा गया। उन्होंने अतिरिक्त सीजेएम की अदालत में...

किसी अपराध में जुर्माना कैसे तय किया जाता है, अर्थदंड पर क्या कहती है भारतीय दंड संहिता
किसी अपराध में जुर्माना कैसे तय किया जाता है, अर्थदंड पर क्या कहती है भारतीय दंड संहिता

अक्सर ऐसा देखा जाता है कि अपराधी को सज़ा के तौर पर अर्थदंड भी लगाया जाता है। यह प्रश्न स्वाभाविक है कि आखिर एक ही प्रकृति के जुर्म में अर्थदंड कम या अधिक कैसे हो सकता है? आखिर जुर्माने की राशि का निर्धारण कैसे किया जाता है? विधि द्वारा जुर्माने की राशि आखिर कैसे तय होती है? अपराध साबित होने पर भारतीय दंड संहिता 1860 में किसी अपराध के लिए सज़ा के साथ साथ अर्थदड या जुर्माने का भी प्रावधान है। अर्थदंड की राशि किसी कानून की धारा में उल्लेखित राशि द्वारा निर्धारित की जाती है। अगर किसी कानून में...

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस मदन लोकुर ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की हालिया सिफारिशों की आलोचना की
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस मदन लोकुर ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की हालिया सिफारिशों की आलोचना की

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति मदन लोकुर ने इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की हालिया सिफारिशे "मनमानी होने के करीब, निरंतरता की अनुपस्थिति का संकेत देती हैं"। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के चयन की प्रक्रिया को Chancellor's Foot syndrome (अर्थात चांसलर या निर्णय लेने के पद पर बैठे एक व्यक्ति द्वारा पूर्ण रूप से अपने अंतःकरण के मुताबिक निर्णय लिए जाने की प्रथा, जो किसी निर्धारित मानदंड पर आधारित नहीं होती) की संज्ञा देते हुए उन्होंने...

पति ने पत्नी का गलत पता देकर ले ली तलाक की डिक्री, हाईकोर्ट का निर्देश, नए सिरे से करें केस की सुनवाई
पति ने पत्नी का गलत पता देकर ले ली तलाक की डिक्री, हाईकोर्ट का निर्देश, नए सिरे से करें केस की सुनवाई

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक पति को मिली एकपक्षीय (ex-parte) तलाक की डिक्री को पलट दिया है और मामले को नए सिरे से विचार के लिए परिवार न्यायालय (family court) में वापस भेज दिया है, क्योंकि यह पाया गया कि पति ने पत्नी के गलत पते का विवरण दिया था, जिससे उसकी तलाक की याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए पत्नी अदालत न आ सके।पत्नी ने उच्च न्यायालय के समक्ष यह दलील दी कि, "चूंकि अपीलार्थी का पैतृक घर राजस्थान राज्य के शिरोनी में है, इसलिए वह वहां गई और उसने दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन...

कार्यपालिका, न्यायपालिका, सशस्त्र सेनाओं की आलोचना राजद्रोह नहीं है : न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता
कार्यपालिका, न्यायपालिका, सशस्त्र सेनाओं की आलोचना राजद्रोह नहीं है : न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने राज्य की संस्थाओं/निकायों की वैध आलोचना के खिलाफ राजद्रोह कानून के उपयोग के कारण उत्पन्न 'चिलिंग प्रभाव' के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने न्यायपालिका की निष्पक्ष आलोचना के सापेक्ष कंटेम्प्ट कार्रवाई के खतरों का भी उल्लेख किया। "न्यायपालिका आलोचना से ऊपर नहीं है। यदि उच्चतर न्यायालयों के न्यायाधीश उनके द्वारा प्राप्त सभी अवमानना संचारों पर ध्यान देने लगें, तो अवमानना कार्यवाही के अलावा अदालतों में कोई काम नहीं हो सकेगा। वास्तव...

एक महिला होने में दर्द है, लेकिन इसमें गर्व भी है, 21 साल बाद पति को धारा 498 ए का भी दोषी पाया, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
एक महिला होने में दर्द है, लेकिन इसमें गर्व भी है, 21 साल बाद पति को धारा 498 ए का भी दोषी पाया, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीते बुधवार को मृतका वैशाली, जिसने 21 साल पहले कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली थी, उसकी सास मंदाकिनी की सजा को बरकरार रखा। कोर्ट ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि वैशाली का पति दिनेश, आईपीसी की धारा 498 ए के तहत दोषी था और सजा के बिंदु पर उसे सुनवाई का अवसर दिया। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने आरोपी मंदाकिनी एवं राज्य द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। दरअसल राज्य सरकार ने सजा बढाने के लिए अपील दायर की थी। न्यायमूर्ति डांगरे द्वारा लिखित...