संपादकीय
जब सुप्रीम कोर्ट ने PIL दाखिल करने पर रोक लगाई हो तो याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकते : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को सुराज़ इंडिया ट्रस्ट और उसके अध्यक्ष राजीव दहिया द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने पहले आदेश जारी किए थे और अपनी रजिस्ट्री को यह निर्देश दिया था कि वह उनके द्वारा दायर किसी भी आवेदन को स्वीकार न करें। "याचिकाकर्ता की सुनवाई करना नहीं है उचित" मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने कहा, "यह हमारे लिए संभव और उचित नहीं है कि याचिकाकर्ता की सुनवाई की जाए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को...
युवा वकीलों के सपनों पर भारी ऑल इंडिया बार एग्ज़ामिनेशन की विफलता
राधिका रॉयबार काउन्सिल ऑफ़ इंडिया ने 26.08.2019 को एक सूचना जारी की थी जो ऑल इंडिया बार एग्ज़ामिनेशन (एआईबीई) नहीं पास करनेवालों के बारे में थी। इस सूचना के अनुसार 2010 से अब तक कुल 4,778 वक़ील यह परीक्षा पास नहीं कर पाए और इस तरह वे "प्रैक्टिस करने या बार में वोट डालने जैसे अधिकारों व अन्य लाभों के हक़दार नहीं हैं"। किसी उम्मीदवार को अपने राज्य के बार काउन्सिल में पंजीकरण के बाद दो साल तक प्रैक्टिस की अनुमति मिलती है और इस अवधि के दौरान उनसे इस परीक्षा में पास होने की उम्मीद की जाती है अगर...
एनडीपीएस एक्ट : कोर्ट को संतुष्ट होना चाहिए कि कबूलनामा स्वैच्छिक है और अभियुक्त को उसके अधिकारों से अवगत कराया गया है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
"यहां तक कि अगर यह स्वीकार्य भी है, तो भी अदालत को संतुष्ट होना होगा कि यह एक स्वैच्छिक बयान है, जो किसी भी दबाव से मुक्त है और यह भी कि अभियुक्त को स्वीकारोक्ति/संस्वीकृति दर्ज कराने से पहले अपने अधिकारों से अवगत कराया गया था।"
केरल भारतीय क्षेत्र में, इसकी अदालतें सुप्रीम कोर्ट के फैसले मानने के लिए बाध्य, चर्च मामले में हाईकोर्ट का फैसला रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने केरल में चर्चों में प्रशासन और प्रार्थनाओं के संचालन के अधिकार को लेकर वर्ष 2017 के अपने फैसले में दो गुटों के विवाद में केरलहाई कोर्ट द्वारा छेड़छाड़ करने पर अपने फैसले में यह दोहराया है कि भविष्य में न्यायालयों द्वारा सुप्रीम कोर्ट आदेशों और निर्णयों के उल्लंघन को 'गंभीरता से' लिया जाएगा। केरल हाई कोर्ट का आदेश किया गया था रद्द शीर्ष अदालत ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें यह कहा गया था कि मालनकारा चर्चों में प्रार्थना सेवाओं का मालाकार चर्च के दो...
अगर अपराध का इरादा नहीं है तो मकोका के तहत गिरफ़्तारी से संरक्षण दिया जा सकता है, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत किसी को गिरफ़्तारी से बचाव का यह पहला उदाहरण हो सकता है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस बारे में सुरजीतसिंह गंभीर की याचिका स्वीकार कर ली है। न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और भारती डांगरे की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पर मकोका के तहत मामला दर्ज करने का फ़ैसला करने वालेआईजी और सीआईडी ने दिमाग़ से काम नहीं लिया है और यह मामला जानबूझकर अपराध करने का नहीं है। इसमें आपराधिक मनःस्थिति ( mens rea) का आभाव था। मकोका के तहत दर्ज हुए मामले में अग्रिम ज़मानत...
हज पर जाने वाले लोग हज कमेटी के उपभोक्ता नहीं, पढ़ें NCDRC का फैसला
राष्ट्रीय उपभोक्ता वाद निपटान आयोग (NCDRC) ने यह दोहराया है कि हज कमिटी ऑफ इंडिया, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में नहीं आती है और हज तीर्थयात्री, कमिटी के उपभोक्ता नहीं हैं। न्यायमूर्ति वी. के. जैन ने अधिवक्ता शेख इमरान आलम और राहुल कुमार जैन के माध्यम से हज कमेटी ऑफ इंडिया द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका (Revision petition) पर फैसला सुनाते हुए कानून की इस निर्धारित स्थिति को दोहराया। मूल शिकायत 2 हज तीर्थयात्रियों द्वारा (जिन्होंने तीर्थयात्रा के बाद भारत लौटने के दौरान विमान...
कार्य प्रभारी के रूप में दी गई सेवाओं को भी पेंशन के लिए योग्य सेवा माना जाए , सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कार्य प्रभारी के रूप में संस्थान में दी जाने वाली सेवाओं को पेंशन देने के लिए योग्य सेवा माना जाना चाहिए। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस एम.आर शाह की पीठ ने इस मामले में दिए अपने फैसले में उन कर्मचारियों की अपील को स्वीकार किया जिन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ अपील दायर की थी। यूपी सेवानिवृत्ति लाभ नियम 1961 की धारा 3(8) के अनुसार 'कार्य प्रभारी' के रूप मेंं संस्थान में दी गई सेवाओं की अवधि को पेंशन के लिए योग्य सेवा नहीं माना गया था । ऐसा...
जब रोगी के परिवार के सदस्य ऑपरेशन के लिए सहमति देते हैं, तो वे इसके परिणाम सहन करने के लिए भी सहमति देते हैं, हाईकोर्ट का फैसला
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2 डॉक्टरों के खिलाफ चिकित्सीय लापरवाही के लिए आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया और कहा कि "जोखिम हमेशा शामिल होता है और जब रोगी/परिवार के सदस्य ऑपरेशन किए जाने के लिए सहमति देते हैं, तो वे इस तरह के ऑपरेशन और उससे जुड़े परिणाम सहन करने के लिए सहमति देते हैं।" अधिवक्ता भानु भूषण जौहरी के माध्यम से डॉ. आज़म हसीन और डॉ. आदिल महमूद अली द्वारा दायर अपील के जरिये यह मामला न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह- I के समक्ष रखा गया। उन्होंने अतिरिक्त सीजेएम की अदालत में...
जानिए संस्वीकृतियों की रिकॉर्डिंग के सन्दर्भ में (दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164)- भाग-2
वी. राम कुमार, केरल हाईकोर्ट के भूतपूर्व न्यायाधीश (संस्वीकृतियों की रिकॉर्डिंग के सन्दर्भ में पहला भाग प्रकाशित किया जा चुका है, जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत संस्वीकृतियों की रिकॉर्डिंग के सन्दर्भ में विस्तार से बताया गया था। यह लेख आप यहां से पढ़ सकते हैं। पेश है इसी कड़ी का दूसरा भाग।)जानिए संस्वीकृतियों की रिकॉर्डिंग के सन्दर्भ में (दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164)- भाग-१कौन से स्टेज पर संस्वीकृति या बयान रिकॉर्ड किया जाता है? 7. "संस्वीकृति" या "बयान",...
जजों को कानून के नियमों का पालन करना चाहिए या शासकों के क़ानून का?
एम श्रीधर आचार्युलू"तबादला का अधिकार बहुत ही ख़तरनाक अधिकार है जो उन जजों के लिए भारी मुश्किलें पैदा करता है और उनकी प्रतिष्ठा पर दाग़ लगाता है जिसका तबादला होता है, क्योंकि तबादला किसी नीति पर अमल की वजह से नहीं होता बल्कि तबादले के लिए जज का चुनाव मनमाने ढंग से किया जाता है और मेरी समझ में इसमें कोई अंतर नहीं है कि तबादला सरकार के कहने पर होता है या भारत के मुख्य न्यायाधीश के कहने पर"। यह बयान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक मामले में दिया था। यह टिप्पणी...
रिकवरी प्रमाण पत्र जारी करने के बाद ऋण का भुगतान न करना सतत अपराध नहीं माना जा सकता, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
उच्चतम न्यायालय ने यह माना है कि रिकवरी प्रमाण पत्र जारी करने के बाद, ऋण का भुगतान न करने को एक सतत/निरंतर अपराध नहीं माना जा सकता है, जिससे लिमिटेशन एक्ट के तहत कार्रवाई के सतत वादकारण (cause of action) को जन्म दिया जा सके। जस्टिस आर. एफ. नरीमन और जस्टिस सूर्या कांत की पीठ ने NCLAT के एक आदेश, जिसमे एक वित्तीय ऋण के संबंध में एक दिवालिया याचिका (insolvency petition) को अनुमति दी गयी, के खिलाफ दायर अपील को अनुमति देते हुए ऐसा आयोजित किया। अभ्युदय कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड द्वारा 23.12.1999 को...
किसी अपराध में जुर्माना कैसे तय किया जाता है, अर्थदंड पर क्या कहती है भारतीय दंड संहिता
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि अपराधी को सज़ा के तौर पर अर्थदंड भी लगाया जाता है। यह प्रश्न स्वाभाविक है कि आखिर एक ही प्रकृति के जुर्म में अर्थदंड कम या अधिक कैसे हो सकता है? आखिर जुर्माने की राशि का निर्धारण कैसे किया जाता है? विधि द्वारा जुर्माने की राशि आखिर कैसे तय होती है? अपराध साबित होने पर भारतीय दंड संहिता 1860 में किसी अपराध के लिए सज़ा के साथ साथ अर्थदड या जुर्माने का भी प्रावधान है। अर्थदंड की राशि किसी कानून की धारा में उल्लेखित राशि द्वारा निर्धारित की जाती है। अगर किसी कानून में...
धन शोधन निवारण अधिनियम में "सतत अपराध"की परिकल्पना, जानिए क्या कहता है प्रिवेंशनऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट
धन शोधन की यह व्याख्या उपयोगी है और इससे यह भी पता चलता है कि इंटेग्रेशन के तीसरे चरण की समाप्ति के बाद ही धन शोधन का अपराध मुकम्मल होता है। अदालत ने आगे कहा कि जब कोई व्यक्ति इस अपराध से प्राप्त धन को छिपाकर रखता है, या इसे अपने पास रखता है या इसका प्रयोग करता है तब वह धन शोधन का अपराधी होता है। किसी भी व्यक्ति को धन शोधन के अपराध का दोषी तभी माना जाएगा जब वह इस अधिनियम के प्रभावी होने के बाद इस अपराध को अंजाम दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस मदन लोकुर ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की हालिया सिफारिशों की आलोचना की
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति मदन लोकुर ने इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की हालिया सिफारिशे "मनमानी होने के करीब, निरंतरता की अनुपस्थिति का संकेत देती हैं"। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के चयन की प्रक्रिया को Chancellor's Foot syndrome (अर्थात चांसलर या निर्णय लेने के पद पर बैठे एक व्यक्ति द्वारा पूर्ण रूप से अपने अंतःकरण के मुताबिक निर्णय लिए जाने की प्रथा, जो किसी निर्धारित मानदंड पर आधारित नहीं होती) की संज्ञा देते हुए उन्होंने...
पति ने पत्नी का गलत पता देकर ले ली तलाक की डिक्री, हाईकोर्ट का निर्देश, नए सिरे से करें केस की सुनवाई
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक पति को मिली एकपक्षीय (ex-parte) तलाक की डिक्री को पलट दिया है और मामले को नए सिरे से विचार के लिए परिवार न्यायालय (family court) में वापस भेज दिया है, क्योंकि यह पाया गया कि पति ने पत्नी के गलत पते का विवरण दिया था, जिससे उसकी तलाक की याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए पत्नी अदालत न आ सके।पत्नी ने उच्च न्यायालय के समक्ष यह दलील दी कि, "चूंकि अपीलार्थी का पैतृक घर राजस्थान राज्य के शिरोनी में है, इसलिए वह वहां गई और उसने दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन...
आपातकाल के दौरान अमेरिका में शरण लेने वाले पहले भारतीय थे राम जेठमलानी
मुकुंद पी उन्नीसमकालीन भारतीय इतिहास में न्यायपालिका और भारतीय लोकतंत्र के लिए सर्वाधिक उथल-पुथल वाले दौर (1970-1976) में राम जेठमलानी बार काउन्सिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में बार काउन्सिल ने क़ानूनी पेशे के बारे में आम आचरण के नियमों को व्यवस्थित किया और इसके लिए बार काउन्सिल ऑफ़ इंडिया रूल्ज़, 1975 को लागू किया। जब बदनाम और आलोकप्रिय आपराधिक मामलों के आरोपियों का बचाव करने वाले वकीलों की आलोचना होती थी तो जेठमलानी के नेतृत्व में बार काउन्सिल ऑफ़ इंडिया उन्हें ज़रूरी सुरक्षा...
राम जेठमलानी द्वारा लड़े गए ये 10 हाई प्रोफाइल केस
वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी, जिन्हें आम तौर पर आपराधिक कानून के विद्वान् के रूप में माना जाता है, का कल सुबह 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। एक साहसी और जुझारू वकील के रूप में जाने गए जेठमलानी, कई हाई-प्रोफाइल मामलों में पेश हुए हैं। यहां उनमें से कुछ का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है। 1. नानावटी केस विभाजन के बाद कराची से बॉम्बे में अपनी कानूनी प्रैक्टिस को शिफ्ट करने वाले जेठमलानी, नानावटी मामले में अपनी उपस्थिति के साथ चर्चा में आये और उन्होंने खूब सुर्खियाँ बटोरी। उस मामले में,...
कार्यपालिका, न्यायपालिका, सशस्त्र सेनाओं की आलोचना राजद्रोह नहीं है : न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने राज्य की संस्थाओं/निकायों की वैध आलोचना के खिलाफ राजद्रोह कानून के उपयोग के कारण उत्पन्न 'चिलिंग प्रभाव' के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने न्यायपालिका की निष्पक्ष आलोचना के सापेक्ष कंटेम्प्ट कार्रवाई के खतरों का भी उल्लेख किया। "न्यायपालिका आलोचना से ऊपर नहीं है। यदि उच्चतर न्यायालयों के न्यायाधीश उनके द्वारा प्राप्त सभी अवमानना संचारों पर ध्यान देने लगें, तो अवमानना कार्यवाही के अलावा अदालतों में कोई काम नहीं हो सकेगा। वास्तव...
एक महिला होने में दर्द है, लेकिन इसमें गर्व भी है, 21 साल बाद पति को धारा 498 ए का भी दोषी पाया, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीते बुधवार को मृतका वैशाली, जिसने 21 साल पहले कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली थी, उसकी सास मंदाकिनी की सजा को बरकरार रखा। कोर्ट ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि वैशाली का पति दिनेश, आईपीसी की धारा 498 ए के तहत दोषी था और सजा के बिंदु पर उसे सुनवाई का अवसर दिया। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने आरोपी मंदाकिनी एवं राज्य द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। दरअसल राज्य सरकार ने सजा बढाने के लिए अपील दायर की थी। न्यायमूर्ति डांगरे द्वारा लिखित...