संपादकीय

बिक्री के अपंजीकृत अनुबंध को संपार्श्विक प्रयोजन के लिए साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
बिक्री के अपंजीकृत अनुबंध को संपार्श्विक प्रयोजन के लिए साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट के एक आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें वादी को सौदे की बयाना राशि की वसूली के लिए अपने मुकदमे में बिक्री के अपर्याप्त रूप से स्टाम्प किये गए अपंजीकृत समझौते पर सबूत देने की अनुमति दी गयी। यह बयाना राशि कथित तौर पर बिक्री के लिए समझौते को निष्पादित करने के समय उसके द्वारा भुगतान किया गया था। शीर्ष अदालत के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या बिक्री के एक अपंजीकृत समझौते को पंजीकरण अधिनियम 1908 की धारा 49 के तहत संपार्श्विक उद्देश्यों (collateral purposes) के लिए...

अभियुक्त को है चुप रहने का अधिकार, चुप्पी को अपराध की स्वीकृति नहीं माना जा सकता, पढ़िए कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला
अभियुक्त को है चुप रहने का अधिकार, चुप्पी को अपराध की स्वीकृति नहीं माना जा सकता, पढ़िए कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मंगलवार को आईपीसी की धारा 302 के तहत मर्डर के आरोप में दोषी एक व्यक्ति को यह कहते हुए दोषमुक्त कर दिया, कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 उचित संदेह से परे अपने मामले को साबित करने से अभियोजन पक्ष को छूट नहीं देती है और एक आरोपी को बिना प्रतिकूल प्रभाव के चुप्पी का/चुप रहने का अधिकार है। पृष्ठभूमि यह अपील प्रशांत बिस्वास ने दायर की थी, जिसे रानाघाट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने उसकी पत्नी की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अभियोजन पक्ष का मामला यह...

अभियुक्त जानबूझकर गिरफ़्तारी से बच रहा है,  बिना इस शंका के लुक आउट  नोटिस जारी नहीं किया जा सकता, बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
अभियुक्त जानबूझकर गिरफ़्तारी से बच रहा है, बिना इस शंका के लुक आउट नोटिस जारी नहीं किया जा सकता, बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

बाॅम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अफजल जफर खान को राहत देते हुए उसके खिलाफ सीबीआई के ACB कार्यालय की तरफ से जारी लुक आउट नोटिस को सस्पेंड कर दिया है। इसी के साथ खान को तीर्थयात्रा के लिए सऊदी अरब और यूएई जाने की अनुमति दे दी गयी है। जस्टिस रंजीत मोरे और जस्टिस एन. जे. जमादार की 2 सदस्यीय पीठ इस मामले में खान की तरफ से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें खान ने उसके खिलाफ 22 जून 2018 को जारी किए गए लुकआउट नोटिस का विवरण मांगा था और उसे रद्द करने की भी मांग की थी। दलीलें सीबीआई के...

महिला शादी का वादा करके यौन संबंध बनाए और संबंध तोड़ दे तो क्या यह बलात्कार होगा? सुप्रीम कोर्ट में याचिका
महिला शादी का वादा करके यौन संबंध बनाए और संबंध तोड़ दे तो क्या यह बलात्कार होगा? सुप्रीम कोर्ट में याचिका

सुप्रीम कोर्ट में आईपीसी की धारा 420 को जेंडर न्यूट्रल बनाने के लिए एक याचिका दायर की गई है। नागराजू के द्वारा एक विशेष अवकाश याचिका दायर करके कानून के कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब मांगे गए हैं, जिनमें यह सवाल प्रमुख है कि यदि कोई महिला शादी का वादा करके यौन संबंध बनाए और फिर लंबे रिश्ते के बाद संबंध तोड़ दे तो क्या यह बलात्कार होगा? प्रश्न इस तरह हैं- * 1. क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत परिभाषित अपराध लिंग तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) है? * 2. क्या शादी के वादे पर स्थापित संबंध...

चेक बाउंंस के केस की कार्रवाई को  सिर्फ इस आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता कि नोटिस वैधानिक अवधि में नहीं दिया गया, पढ़िए SC का फैसला
चेक बाउंंस के केस की कार्रवाई को सिर्फ इस आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता कि नोटिस वैधानिक अवधि में नहीं दिया गया, पढ़िए SC का फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ताज़ा फैसले में यह माना है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत कार्रवाई को इस आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता है कि मांग नोटिस (demand notice) को वैधानिक अवधि के भीतर विधिवत रूप से तामील नहीं किया गया है। न्यायालय ने दोहराया है कि आरोपी को नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत नोटिस की तामील, एक ट्राइबल इश्यू है और आरोपी द्वारा धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर याचिका में इसे निर्विवाद पोजीशन के रूप में आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। इस मामले...

बिना सहमति बैंक खातों और आयकर रिटर्न की जानकारी का खुलासा निजता के अधिकार का  उल्लंघन, पढ़िए हाईकोर्ट का फैसला
बिना सहमति बैंक खातों और आयकर रिटर्न की जानकारी का खुलासा निजता के अधिकार का उल्लंघन, पढ़िए हाईकोर्ट का फैसला

एक महत्वपूर्ण फैसले में केरल के उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि किसी के बैंक खातों और आयकर रिटर्न के बारे में जानकारी, व्यक्तिगत और निजी जानकारी का गठन करती है, इसलिए वैधानिक समर्थन के बिना इस तरह की जानकारी का खुलासा करने की मांग करने से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। न्यायमूर्ति सी. के. अब्दुल रहिम और नारायण पिशारदी की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। यह निर्णय, डीलरशिप समझौतों के लिए बैंक खातों और आयकर रिटर्न का विवरण प्रस्तुत करने के लिए तेल विपणन...

किसी उत्पीड़न के बिना अधिक संपत्ति की मांग, आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपराध के पंजीकरण के दायरे में नहीं, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
किसी उत्पीड़न के बिना अधिक संपत्ति की मांग, आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपराध के पंजीकरण के दायरे में नहीं, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह माना है कि किसी भी उत्पीड़न के बिना, अत्यधिक धन या संपत्ति की मांग, आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपराध के पंजीकरण के लिए पर्याप्त कारण नहीं है। न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति एन. जे. जमादार की खंडपीठ एक कृष्ण लोहिया के रिश्तेदारों द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनकी पत्नी प्रियंका ने उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। केस की पृष्ठभूमि प्राथमिकी में, शिकायतकर्ता ने यह आरोप लगाया है कि हर उत्सव के अवसर पर, कृष्ण के परिवार के सदस्यों ने उसके...

पत्नी जिसे 7 साल से नहीं देखा गया है, उसकी मृत्यु का अनुमान लगाने से पहले पति को दीवानी अदालत में जाना होगा, पढ़िए हाईकोर्ट का फैसला
पत्नी जिसे 7 साल से नहीं देखा गया है, उसकी मृत्यु का अनुमान लगाने से पहले पति को दीवानी अदालत में जाना होगा, पढ़िए हाईकोर्ट का फैसला

"इस बात को लेकर अनुमान लगाने की कोई गुंजाइश नहीं है कि यदि पत्नी लगभग 7 वर्ष से नहीं देखी गई है, तो उसकी मृत्यु हो गई होगी। उक्त अनुमान लगाने हेतु कानूनी प्रावधान यह है कि पति को दीवानी अदालत में यह घोषणा करने के लिए संपर्क करना होगा कि उसकी पत्नी मृत है। दीवानी अदालत का दरवाजा खटखटाने और डिक्री प्राप्त करने के बजाय, प्रतिवादी ने यह मान लिया कि वह (उसकी पत्नी) मर गई होगी और उसने दूसरी शादी कर ली जोकि प्रथम दृष्टया कदाचार है।" एक सेवानिवृत्त रेलवे कर्मचारी को कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा सेवा...

किराया नियंत्रण रिवीज़न- HC रिकॉर्ड पर मौजूद मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य की पुनः सराहना नहीं कर सकता, सुप्रीम कोर्ट का आदेश पढ़ें
किराया नियंत्रण रिवीज़न- HC रिकॉर्ड पर मौजूद मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य की पुनः सराहना नहीं कर सकता, सुप्रीम कोर्ट का आदेश पढ़ें

"पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार (revisional jurisdiction) के अंतर्गत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय, सिर्फ इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या न्यायालय या प्राधिकरण द्वारा विचार गए तथ्य के निष्कर्ष, कानून के अनुसार थे और वो कानून की किसी भी त्रुटि से ग्रस्त तो नहीं थे।" हरियाणा शहरी (किराया और निकासी नियंत्रण) अधिनियम, 1973 के संदर्भ में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह दोहराया है कि पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग करते हुए, उच्च न्यायालय रिकॉर्ड पर मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य की पुनः सराहना/मूल्यांकन नहीं...

4 साल की बच्ची के यौन शोषण के आरोपी को POCSO के तहत 9 दिन में सज़ा, अदालत ने कहा, बच्चा एक सक्षम गवाह, पढ़िए फैसला
4 साल की बच्ची के यौन शोषण के आरोपी को POCSO के तहत 9 दिन में सज़ा, अदालत ने कहा, बच्चा एक सक्षम गवाह, पढ़िए फैसला

एक रिकॉर्ड स्थापित करते हुए औरैया (उत्तर प्रदेश) की एक विशेष अदालत ने आरोप पत्र दाखिल करने के 9 दिनों के भीतर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत सजा का आदेश पारित किया। पुलिस ने अपराध के 20 दिनों के भीतर आरोप पत्र प्रस्तुत किया था। यह अधिनियम, परीक्षण पूरा करने के लिए संज्ञान लेने की तिथि से एक वर्ष की एक बाहरी सीमा देता है। पिछले महीने, POCSO मामलों के निपटान में देरी को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में विशेष अदालतों की संख्या बढ़ाने के...

एक सप्ताह में जमानत आवेदनों का निपटारा करें, सुनवाई के दिन या अगली तारीख पर आदेश पारित करें, पढ़िए हाईकोर्ट के निर्देश
एक सप्ताह में जमानत आवेदनों का निपटारा करें, सुनवाई के दिन या अगली तारीख पर आदेश पारित करें, पढ़िए हाईकोर्ट के निर्देश

केरल उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जमानत आवेदनों को एक सप्ताह के भीतर सामान्य रूप से निपटाया जाना चाहिए और जमानत आवेदन की सुनवाई की तारीख या अगली तारीख पर आदेश दिए जाएंगे।न्यायमूर्ति बी सुधींद्र कुमार ने यह निर्देश जारी करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट ने तत्काल मामले में जमानत अर्जी के निपटारे में 22 दिन का समय लिया और सुनवाई के दो सप्ताह बाद आदेश दिया। अदालत ने एक मामले (संतोष कुमार बनाम केरल राज्य‌‌) में एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई ज़मानत अर्ज़ी , जो आबकारी अधिनियम की धारा 55 (ए) और (आई) के...

भ्रष्टाचार के मामलों में क्या बिना सबूत दिए शिकायतकर्ता की मौत अभियोजन पक्ष के लिए घातक हो सकती है? पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर
भ्रष्टाचार के मामलों में क्या बिना सबूत दिए शिकायतकर्ता की मौत अभियोजन पक्ष के लिए घातक हो सकती है? पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर

सुप्रीम कोर्ट की 3 न्यायाधीशों की खंडपीठ ने एक बड़ी पीठ को इस सवाल का हवाला दिया है कि क्या शिकायतकर्ता के सबूतों के अभाव में/अवैध परितोषण की मांग के प्रत्यक्ष या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में अभियोजन पक्ष की ओर से दिए गए अन्य सबूतों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 एवं धारा 13(1)(d),जिसे धारा 13 (2) के साथ पढ़ा जाए, के तहत लोक सेवक के दोषी होने के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकालने की अनुमति नहीं है? दरअसल इस मामले में न्यायमूर्ति एन. वी. रमना, न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतनगौदर और...

आखिर क्यों एक पूर्व न्यायाधीश नहीं बल्कि किसी पत्रकार को प्रेस काउंसिल का नेतृत्व करना चाहिए
आखिर क्यों एक पूर्व न्यायाधीश नहीं बल्कि किसी पत्रकार को प्रेस काउंसिल का नेतृत्व करना चाहिए

प्रोफेसर एम श्रीधर आचार्युलुजब मेडिकल काउंसिल की अध्यक्षता डॉक्टर करते हैं और बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अध्यक्षता पेशेवर वकील करते हैं तो प्रेस काउंसिल का मार्गदर्शन करने के लिए एक पत्रकार को क्यों नहीं चुना जाता है? कानून और तर्क इस बात को समझने में पूरी तरह से विफल है कि आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश को कामकाजी पत्रकारों के पेशेवर निकाय का प्रमुख होना चाहिए? सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश, मौलिक अधिकार के रूप में वक्तव्य की स्वतंत्रता की उनकी समझ और विवेकपूर्ण/स्वतंत्र...

विशेषज्ञ साक्ष्य को मौलिक साक्ष्य पर प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला
विशेषज्ञ साक्ष्य को मौलिक साक्ष्य पर प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

"आमतौर पर एक तथ्य के रूप में केवल विशेषज्ञ सबूत को इसका निर्णायक प्रमाण नहीं माना जाता है।" सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया है कि विशेषज्ञ साक्ष्य को मौलिक साक्ष्य पर प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए। इस मामले (चेनादी जलपति रेड्डी बनाम बद्दाम प्रताप रेड्डी (मृत)) में पहले प्रतिवादी के विवादित हस्ताक्षर को उसके भाई ने पहले प्रतिवादी के रूप में पहचाना था। हालांकि बचाव गवाह पक्ष के एक अन्य गवाह हैंड राइटिंग विशेषज्ञ ने यह बताया कि पहले प्रतिवादी और विवादित हस्ताक्षर के प्रवेश हस्ताक्षर टैली नहीं हैं...

बलात्कार के अपराध को साबित करने के लिए सेमिनल डिस्चार्ज महत्वपूर्ण नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने अभियुक्तों की सजा रखी बरक़रार, पढ़ें निर्णय
बलात्कार के अपराध को साबित करने के लिए सेमिनल डिस्चार्ज महत्वपूर्ण नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने अभियुक्तों की सजा रखी बरक़रार, पढ़ें निर्णय

वर्तमान मामले में एक निचली अदालत ने दो आरोपी को मानसिक रूप से बीमार महिला के साथ बलात्कार करने के लिए, भारतीय दंड संहिता की धारा 324, 366 और 376 (1) और 376 डी के तहत दोषी ठहराया गया था। उन्हें 20 वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी, इसके साथ ही उनपर कुल 26000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था, यह रकम उन्हें अभियोजन पक्ष (पीड़िता) को मुआवजे के रूप में चुकानी थी। आरोपियों ने अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील दायर की, अपीलकर्ता अभियुक्त ने यह तर्क दिया कि उन्हें कुछ भ्रम के तहत...