रिकवरी प्रमाण पत्र जारी करने के बाद ऋण का भुगतान न करना सतत अपराध नहीं माना जा सकता, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

12 Sept 2019 7:00 PM IST

  • रिकवरी प्रमाण पत्र जारी करने के बाद ऋण का भुगतान न करना सतत अपराध नहीं माना जा सकता, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    उच्चतम न्यायालय ने यह माना है कि रिकवरी प्रमाण पत्र जारी करने के बाद, ऋण का भुगतान न करने को एक सतत/निरंतर अपराध नहीं माना जा सकता है, जिससे लिमिटेशन एक्ट के तहत कार्रवाई के सतत वादकारण (cause of action) को जन्म दिया जा सके।

    जस्टिस आर. एफ. नरीमन और जस्टिस सूर्या कांत की पीठ ने NCLAT के एक आदेश, जिसमे एक वित्तीय ऋण के संबंध में एक दिवालिया याचिका (insolvency petition) को अनुमति दी गयी, के खिलाफ दायर अपील को अनुमति देते हुए ऐसा आयोजित किया।

    अभ्युदय कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड द्वारा 23.12.1999 को 6.7 करोड़ रुपये की राशि NPA पाई गई थी। 24.12.2001 को ऋण के संबंध में एक वसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया था।

    वर्ष 2017 में, NCLT ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड की धारा 7 के तहत दायर याचिका के प्रवेश की अनुमति दी। इस दावे को खारिज करते हुए कि दावा time barred था, NCLT ने कहा कि चूंकि चूक (Default) जारी है, इसलिए यह एक निरंत/सतत अपराध था। NCLT के आदेश के खिलाफ दायर अपील NCLAT द्वारा खारिज कर दी गई थी।

    NCLAT के आदेश के खिलाफ अपील को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूक को निरंतर/सतत अपराध के रूप में नहीं माना जा सकता है, जिसके चलते लिमिटेशन अधिनियम की धारा 23 को लागू किया/प्रभाव में लाया जा सके। इस संबंध में, पीठ ने बालकृष्ण सांवलराम पुजारी और अन्य बनाम श्री ज्ञानेश्वर महाराज संस्थान और अन्य [1959] Supp. (2) एस.सी.आर. 476, के फैसले का उल्लेख किया, जिसमे 'निरंतर/सतत अपराध' की अवधारणा को समझाया गया था।

    "यदि कार्य/अपराध एक क्षति का कारण बनता है जो पूर्ण है, तब कोई सतत अपराध नहीं है, भले ही उस कार्य के परिणामस्वरूप हुई क्षति जारी है। यदि, हालांकि, एक कार्य एक ऐसे चरित्र का है, जिससे होने वाली क्षति स्वयं जारी रहती है, तो वह कार्य एक निरंतर/सतत अपराध का गठन करता है। इस संबंध में, कार्य के कारण हुई क्षति एवं उक्त क्षति के प्रभाव के बीच में अंतर करना आवश्यक है। यह केवल उन कृत्यों के संबंध में है, जिन्हें उचित रूप से निरंतर/सतत अपराध कहा जा सकता है, और तब धारा 23 को लागू किया जा सकता है", SC ने उस मामले में फैसला किया था।

    इस सिद्धांत को लागू करते हुए, न्यायालय ने माना कि डिफ़ॉल्ट को निरंतर/सतत अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता है।

    "यह स्पष्ट है कि जब रिकवरी सर्टिफिकेट दिनांक 24.12.2001 को जारी किया गया था, तब इस सर्टिफिकेट से अपीलकर्ता के अधिकार की पूर्ण रूप से क्षति हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप लिमिटेशन अवधि की शुरुआत हो गयी थी।

    यह मामला होने के नाते, और चूँकि वर्तमान मुकदमे का दावा time barred है, इसलिए समय और कानून में देय होने में कोई संदेह नहीं है। हम अपील को अनुमति देते हैं और NCLT और NCLAT के आदेशों को रद्द करते हैं। "


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