संपादकीय

सीआरपीसी की धारा 228 के तहत आरोप तय करने के लिए विस्तृत कारण दर्ज करने की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सीआरपीसी की धारा 228 के तहत आरोप तय करने के लिए विस्तृत कारण दर्ज करने की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 228 के तहत आरोप तय करने के लिए एक ट्रायल जज को विस्तृत कारणों को दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति आर बानुमथी, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि आरोप तय करने के चरण में अदालत को विस्तृत जांच करने की आवश्यकता नहीं है, केवल प्रथम दृष्टया मामला देखा जाए। इस मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ मामले को खारिज करते हुए कहा था कि आरोप तय करते समय, अदालत को न्यायिक मन का इस्तेमाल करना...

एक ताज़ा रेप केस में  पीड़िता की पहचान का खुलासा करने वाले मीडिया के खिलाफ जनहित याचिका
एक ताज़ा रेप केस में पीड़िता की पहचान का खुलासा करने वाले मीडिया के खिलाफ जनहित याचिका

तेलंगाना राज्य में हाल ही में हुए बलात्कार के मामले में पीड़िता की पहचान का खुलासा करने वाले मीडिया के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में दलील दी गई है कि पीड़ित और आरोपी व्यक्तियों के नाम, पते, चित्र, कार्य विवरण आदि का इस तरह का प्रदर्शन आईपीसी की धारा 228 ए और निपुण सक्सेना मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून का उल्लंघन करता है। शीर्ष अदालत ने निपुण सक्सेना मामले में पीड़िता की पहचान के संरक्षण के बारे में निम्नलिखित...

मुकदमे की अनुमति देने में अनियमितता से भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए जाने की प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी : सुप्रीम कोर्ट
मुकदमे की अनुमति देने में अनियमितता से भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए जाने की प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी : सुप्रीम कोर्ट

भ्रष्टाचार के मामले मेंमुकदमा चलाने की अनुमति देने में हुई गलती, चूक या अनियमितता को तब तक भयंकर नहीं माना जाएगा जब तक कि इसकी परिणति न्याय की विफलता में नहीं होती है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा। न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और संजीव खन्ना की पीठ ने भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम की धारा 7 और 3 के तहत आरोपी को दोषी ठहराते हुए यह बात कही। विनोद कुमार गर्ग बनाम राज्य मामले में यह दलील दी गई थी कि उप अधीक्षक या इसके बराबर स्तर के पुलिस अधिकारी ने मामले की जांच नहीं की थी। इस दलील पर गौर करते...

भले ही दुर्घटना के पहले वाहन बिक गया हो, दुर्घटना की तारीख पर वाहन का पंजीकृत मालिक मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी : बॉम्बे हाईकोर्ट
भले ही दुर्घटना के पहले वाहन बिक गया हो, दुर्घटना की तारीख पर वाहन का पंजीकृत मालिक मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी : बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना है कि यदि कोई व्यक्ति जिसने अपनी कार बेची है, लेकिन संबंधित क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के रिकॉर्ड में पंजीकृत मालिक है, तो वह दुर्घटना के मामले में संबंधित पक्ष को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी होगा। न्यायमूर्ति आरडी धानुका ने हुफरीज़ सोनवाला की अपील पर सुनवाई की। हुफरीज़ ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी), मुंबई के फैसले को चुनौती दी, जिसमें 7.4% ब्याज के साथ 1,34,000 रुपये की पूरी मुआवजा राशि का भुगतान करने के लिए उन्हें उत्तरदायी ठहराया गया था। यह था मामला ...

क्या एक नाबालिग को आवश्यकताओं की आपूर्ति करने वाला व्यक्ति प्रतिपूर्ति पाने का हकदार है? जानिए क्या कहता है कानून
क्या एक नाबालिग को आवश्यकताओं की आपूर्ति करने वाला व्यक्ति प्रतिपूर्ति पाने का हकदार है? जानिए क्या कहता है कानून

जैसा कि हमने पिछले लेख अर्ध-संविदा क्या होती है एवं अनुचित सम्पन्नता के सिद्धांत का इससे क्या है संबंध? में जाना है कि 'अर्ध-संविदा' (Quasi Contract) एक ऐसी स्थिति है, जो पक्षों पर कानून के अनुसार दायित्वों या अधिकारों को लागू करती है, न कि पक्षों द्वारा तय संविदा की शर्तों के अनुसार। इसके अंतर्गत अदालत द्वारा एक पक्ष के दूसरे व्यक्ति के प्रति दायित्व का निर्धारण किया जाता है, जहां पक्षों के बीच कोई वास्तविक संविदा मौजूद नहीं है।यह पार्टियों के आचरण, आपसी संबंध और इस संभावना पर आधारित है...

गुस्सैल पूर्व कर्नल ने अपने कंपाउड में फल तोड़ रहे लड़के को गोली मारी थी, सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत, पढ़िए जजमेंट
गुस्सैल पूर्व कर्नल ने अपने कंपाउड में फल तोड़ रहे लड़के को गोली मारी थी, सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत, पढ़िए जजमेंट

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया और इसे गैर इरादतन हत्या का केस माना। पूर्व कर्नल पर अपने डिफेंस एन्क्लेव से फल तोड़ रहे एक लड़के की हत्या करने का आरोप था। उसे हत्या के लिए दोषी नहीं ठहराया गया और सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए उसे गैर इरादतन हत्या का दोषी करार दिया। कांडस्वामी रामराज को ट्रायल कोर्ट द्वारा धारा 302 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया गया था और मद्रास उच्च न्यायालय ने भी इसे बरकरार रखा था। ...