एक्सप्लेनरः बिना कैबिनेट बैठक के कैसे खत्‍म हो गया महाराष्ट्र में राष्‍ट्रपति शासन

LiveLaw News Network

26 Nov 2019 3:58 PM IST

  • एक्सप्लेनरः बिना कैबिनेट बैठक के कैसे खत्‍म हो गया महाराष्ट्र में राष्‍ट्रपति शासन

    प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति शासन रद्द करने के लिए जिस प्रावधान को लागू किया गया, वो भारत सरकार (ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस) 1961 का नियम 12 है।

    गौरव मिश्रा

    विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद हफ्तों तक महाराष्ट्र में सत्ता के लिए भाजपा, कांग्रेस, शिवसेना और राकांपा के बीच खींचतान जारी रही। भाजपा, जो सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, अपनी पूर्व सहयोगी शिवसेना के साथ सत्ता के बंटवारे पर असहमती होने के कारण सरकार बनाने के लिए दावा नहीं पेश कर पाई।

    चूंकि सभी पार्टियां बहुमत साबित करने में विफल रहीं, इसलिए 12 नवंबर, 2019 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 22 नवंबर की रात को ऐसी खबरें थीं कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन जल्द ही सरकार बनाएगा। हालांकि अगले ही दिन सुबह सभी को जोर का झटका लगा, जब बीजेपी ने एनसीपी विधायकों के समर्थन का दावा करते हुए सरकार बना ली। शपथ समारोह से कुछ ही घंटे पहले सुबह 5:47 पर भारत सरकार (ट्रांज़ैक्शन ऑफ बिजनेस) 1961 के नियम 12 के तहत राष्ट्रपति शासन को निरस्त कर दिया गया।

    यह लेख मुख्य रूप से उस प्रावधान पर केंद्रित है, जिसने प्रधानमंत्री को मंत्रिमंडल की मंजूरी के बिना महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन को रद्द करने का अधिकार दिया।

    वो प्रावधान, जिसका इस्तेमाल किया गया

    प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति शासन रद्द करने के लिए जिस प्रावधान को लागू किया गया, वो भारत सरकार (ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस) 1961 का नियम 12 है। ये प्रावधान कहता हैः

    "किसी विशेष मामले में अत्यधिक तात्कालिकता या अप्रत्याशित आकस्मिकता की स्थिति के निस्तारण के लिए भारत सरकार (ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस) 1961 का नियम 12 प्रधानमंत्री को, जिस सीमा तक आवश्यक है, नियमों से विचलन की अनुमति अथवा अनदेखी का अधिकार देता है।

    ऐसी स्थितियों में भी, परीक्षण और अंतर-मंत्रालयी परामर्श की प्रक्रिया का पालन करना होगा। नियम 12 के तहत सभी मामलों को अनिवार्य रूप से कैबिनेट सचिव के माध्यम से आगे बढ़ाया जाना चाहिए और किसी भी स्थिति में सीधे प्रधानमंत्री को भेजा जाना चाहिए।

    नियम 12 लागू किए जाने के लिए जरूरी मामलों में निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन किया जाना आवश्यक है:

    क) प्रस्ताव केवल प्रशासनिक मंत्रालय / विभाग द्वारा बढ़ाया जाएगा, जो भारत सरकार (एलोकेशन ऑफ बिजनेस) नियम, 1961 के विषय से संबंधित होगा।

    ख) प्रस्तावों में एक विस्तृत औचित्य के साथ स्पष्ट रूप से इस मामले में शामिल तात्कालिकता और असाधारण परिस्थितियों को बताना होगा, जिनके कारण नियम 12 के तहत संसाधित करने की आवश्यकता है, साथ ही एक बयान में उन कारणों को स्पष्ट करना होगा कि प्रस्ताव को समय पर सक्षम प्राधिकारी का अनुमोदन प्राप्त करके संसाधित क्यों नहीं किया जा सकता।

    ग) विभाग / मंत्रालय के सचिव यह सुनिश्चित करेंगे कि इस नियम के तहत अनुमोदन के प्रस्तावों को प्रस्तुत करने से पहले अंतर-मंत्रालयी परामर्श सहित सभी आवश्यकताओं को पूरा किया गया हो। इस तथ्य का उल्लेख नियम 12 के तहत अनुमोदन के लिए प्रस्तुत प्रस्ताव में किया जाना है;

    घ) संबंधित मंत्रालय / विभाग सभी मामलों में प्रभारी मंत्री, धन के बहिर्वाह से संबंधित मामलों में वित्त मंत्री और वो संबधित मंत्री, जिनके जिनके कामकाज में विषय को शामिल किया गया है, के अनुमोदान प्राप्त कर कैबिनेट सचिव के माध्यम से प्रस्ताव को आगे बढ़ाया जाएगा।

    प्रावधान की उत्पत्ति

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 77 में "भारत सरकार के कामकाज का संचालन" शीर्षक है।

    इससे पता चलता है कि इस लेख के तहत भारत सरकार द्वारा अपने व्यवसायों के संबंध में कार्य निर्धारित किया गया है। उक्त अनुच्छेद के खंड 3 में कहा गया है कि "राष्ट्रपति भारत सरकार के व्यापार के अधिक सुविधाजनक लेनदेन के लिए और उक्त व्यवसाय के मंत्रियों के बीच आवंटन के नियम बनाएंगे"।

    भारत सरकार (ट्रांजेक्‍शन ऑफ बिजनेस) नियम 1961 को अनुच्छेद 77 (3) के तहत बनाया गया है। अनुच्छेद 53 में उक्त नियम के तहत कामकाज के नियम बनाने की शक्ति का पता लगाया जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि संघ की कार्यकारी शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति द्वारा प्रत्यक्षतः किया जाएगा या संविधान और अनुच्छेद 74 (1) के अनुसार उनके अध‌ीनस्‍थ अधिकारियों द्वारा, जिसके तहत उन्हें मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के साथ अपने कार्यों का निर्वहन करना आवश्यक है।

    इसका अर्थ है कि भारत सरकार के निर्णय हमेशा राष्ट्रपति द्वारा व्यक्तिगत रूप से नहीं लिए जाते हैं। निर्णय संबंधित मंत्री या अधिकृत आधिकारी द्वारा अनुच्छेद 77 (3) के तहत राष्ट्रपति द्वारा तय किए गए व्यापार के नियमों के तहत लिए जा सकते हैं।

    यह कई मामलों में कहा गया है कि यदि सभी निर्णय राष्ट्रपति द्वारा या यहां तक कि मंत्रियों द्वारा लिया जाएगा तो सरकार का कामकाज रुक जाएगा।

    संविधान का अनुच्छेद 77 (3), बेहतर प्रशासन के लिए दो प्रावधान करता है:

    1 . सरकारी व्यवसाय के सुचारू संचालन के लिए लेनदेन के नियमों को लागू करने के लिए राष्ट्रपति को सशक्त बनाना;

    2 . मंत्रियों के बीच उक्त व्यवसाय का आवंटन

    प्रावधान (1) के तहत बनाए गए नियम प्रशासन से संबंधित व्यवसाय के नियम हैं। इन नियमों के तहत अधिकृत अधिकारी संबंधित मंत्रियों की ओर से निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। मंत्री के पास विभाग द्वारा लिए गए समग्र व्यवसाय का नियंत्रण है, लेकिन व्यावहारिक रूप से अधिकांश निर्णय अधिकृत अधिकारियों द्वारा लिए जाते हैं। मंत्री के हस्ताक्षर के माध्यम से कार्य को मंजूरी दी जाती है।

    प्रधानमंत्री को विशेष शक्ति प्रदान करने वाला नियम

    मसौदे में नियमों को पूरी तरह से पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि नियम ज्यादातर मंत्रालयों के संचालन से संबंधित हैं। यह बेहतर प्रशासन और मुद्दों के निवारण के लिए मंत्रालय के भीतर कुशल कामकाज के लिए नियमों का ‌निर्धारण करता है। यह दूसरे शेड्यूल के मामलों में भी शामिल है, जिन्हें कैबिनेट की मंजूरी की आवश्यकता होती है, जैसे, इसमें अध्यादेशों के मुद्दों, वैसे मामले जिनमें दो या अधिक के बीच मतभेद की स्थिति उत्पन्न होती है, कैबिनेट के वांछित फैसले, मंत्रिमंडल द्वारा पूर्व में लिए गए निर्णय को पलटने के प्रस्ताव, सहित कानून से संबंधित मामले शामिल हैं।

    इन नियमों में से एक पर TOB का नियम 12 कहता हैः

    नियम 12 कहता है: "नियमों से विचलन-प्रधान मंत्री किसी भी मामले में या मामलों के वर्गों में, प्रधानमंत्री, जिस सीमा तक आवश्यक हो, नियमों से विचलन की अनुमति अथवा अनदेखी का आदेश दे सकते हैं।

    वाक्य ''जिस सीमा तक आवश्यक है'' प्रधानमंत्री पर विवेकाधिकार है।

    ये प्रधानमंत्री को किसी विशेष मामले में अत्यधिक तात्कालिकता या अप्रत्याशित आकस्मिकता की स्थिति के निस्तारण के लिए, जिस सीमा तक आवश्यक है, नियमों से विचलन की अनुमति अथवा अनदेखी का अधिकार देता है। महाराष्ट्र के मामले में, किसी भी सरकार की अनुपस्थिति में राज्यपाल को अनुच्छेद 163 (2) के तहत मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना होता है, हालांकि इस विशेष मामले में कोई सरकार नहीं थी; इस प्रकार, राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य नहीं कर सकता है। इसलिए, राज्यपाल की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन रद्द करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा प्रस्ताव भेजा जाना था।

    हालांकि केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन को वापस लेने से पहले की जाने वाली कैबिनेट बैठक की आवश्यकता को दरकिनार करते हुए टीओबी,1961 के नियम 12 के तहत विशेष शक्ति का इस्तेमाल कर लिया।

    (लेखक नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची के बीए एलएलबी के तीसरे वर्ष के छात्र हैं)

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