प्रॉक्सी वकील को पैरवी करने का अधिकार है? जानिए क्या कहता है कानून
LiveLaw News Network
25 Nov 2019 10:00 AM IST
फाइलिंग काउंसेल (मुकदमा दायर करने वाले वकील) की ओर से प्रॉक्सी काउंसेल (प्रतिनिधि वकील) अक्सर खुद को पहचान के संकट में फंसे पाते हैं, क्योंकि 'प्रॉक्सी काउंसेल' शब्द का अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में कोई उल्लेख नहीं है। अधिवक्ता अधिनियम या न्यायालय का कोई भी नियम किसी वकील को विधिवत वकालतनामा पर हस्ताक्षर किये बगैर किसी पक्ष की ओर से पेश होने का अधिकार नहीं देता।
सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने 2004 में स्पष्ट शब्दों में कहा था कि न तो कोई पक्ष और न ही कोई अधिवक्ता प्रॉक्सी वकील नियुक्त करने तथा अदालत का समय बर्बाद करने का हकदार है। एक साधारण चेक बाउंस से संबंधित विशेष अनुमति याचिका 'संजय कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य' के मामले में, वकालतनामा दायर करने वाला 'एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड' औपचारिक तौर पर एक वकील नामित करने में असफल रहा था और उसने पेशी के लिए बदले में प्रॉक्सी वकील को भेज दिया था, तब कोर्ट ने कहा था,
"प्रॉक्सी वकील के नाम पर कोई भी अर्जी, फर्जी, अधकचरा वकील, जिसका अधिवक्ता अधिनियम 1961 या सुप्रीम कोर्ट रूल्स 1966 में अता-पता नहीं, उसे अदालत की प्रक्रिया का मजाक उड़ाने और दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"
सिविल अपील संख्या 4891/2014, सुरेन्द्र मोहन अरोड़ा बनाम एचडीएफससी बैंक लिमिटेड एवं अन्य के मामले में उपरोक्त विचार दोहराते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि प्रॉक्सी काउंसेल को अदालतों के समक्ष पेश होने का कोई अधिकार नहीं है और इसलिए राष्ट्रीय आयोग ने अपने कॉजलिस्ट में खासतौर पर इस बात का उल्लेख करके सही किया था कि किसी भी प्रॉक्सी वकील को उसके समक्ष मामले के मेन्शनिंग की इजाजत नहीं दी जायेगी।
इस मसले का विभिन्न पहलुओं का आकलन करते हुए, हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने हाल के एक फैसले में अदालत के समक्ष जूनियर वकीलों की पेशी को बढ़ावा देने के महत्व को स्वीकार किया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है,
"वकालत पेशे में अदालतों का कर्तव्य है कि वे वकालतनामा फाइल नहीं करने वाले जूनियर वकीलों को प्रोत्साहित करें और यदि वे अदालत को सहयोग करने को तैयार हैं तो उन्हें सुना भी जाना चाहिए। उनके (जूनियर वकीलों के) साथ केवल प्रॉक्सी वकील की तरह व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इस तरह का व्यवहार न केवल ऐसे जूनियर वकीलों को हतोत्साहित करता है, बल्कि न्याय दिलाने में विलंब का कारक भी बनता है। जब कोर्ट के समक्ष पेश हो रहे जूनियर वकील तैयारी करके आये हैं और न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग को तैयार हैं, तो उन्हें सुना जाना चाहिए तथा उनकी दलीलों पर प्रभावी आदेश भी सुनाया जा सकता है। मुवक्किल की ओर से वकालतनामा पेश करने वाले वकीलों को अदालत में सब्मिशन देने और मुकदमों में बहस करने के लिए जूनियर वकीलों को प्रोत्साहित करना चाहिए।"
न्यायालय ने, हालांकि सावधानी के तौर पर आगाह किया कि मुकदमे वापस लेने जैसे कुछ महत्वपूर्ण मसलों के लिए 'फाइलिंग काउंसेल' को व्यक्तिगत तौर पर अदालत के समक्ष पेश होना चाहिए।
"मुकदमे वापस लेने, मुकदमे के निपटारे से संबंधित प्रक्रिया को रिकॉर्ड में लाने आदि जैसे कुछ आदेशों के लिए फाइलिंग काउंसेल का मौजूद होना अनिवार्य होता है। ऐसी स्थितियों को छोड़कर अदालत की कार्यवाहियों में जूनियर वकीलों को तब तक पेश होने की छूट देनी चाहिए, जब तक इसके लिए उन्हें अपने सीनियर वकीलों की आवश्यक अनुमति मिली हुई है।"
कोर्ट ने कहा कि 'प्रॉक्सी काउंसेल' शब्द का इस्तेमाल तभी किया जाना चाहिए जब पेश होने वाले वकील संबंधित मामले में अदालत की मदद करने में सक्षम नहीं होते हैं अथवा केवल सुनवाई स्थगन (एडजॉर्नमेंट) का अनुरोध करते हैं। कोर्ट ने कहा,
"जब फाइलिंग काउंसेल के चैम्बर में काम करने वाले जूनियर वकील अदालत में पेश होते हैं और संबंधित मुकदमे की सुनवाई में सहयोग करते हैं तो उन्हें 'प्रॉक्सी काउंसेल' कहने के बजाय उनके लिए कोई और वैकल्पिक शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे- वादी/प्रतिवादी की ओर से पेश वकील। केवल उन्हीं मामलों में 'प्रॉक्सी काउंसेल' शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिनमें जूनियर या अन्य वकील पूरी तरह असम्बद्ध हों अथवा तैयारी करके न आये हों। इससे जूनियर वकीलों को यह सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी कि वे न केवल पासओवर और स्थगन ले रहे हैं, बल्कि मुकदमों के लिए खुद को तैयार भी कर रहे हैं तथा दलीलें पेश करने के लिए तैयार हैं।"
यद्यपि उपरोक्त फैसले का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए कानून पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन यह दर्शाता है कि अदालतें जूनियर वकीलों के बेहतर हित के लिए उन्हें पेश होने और बहस करने की अनुमति दे सकती हैं।