संपादकीय

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
दिनदहाड़े झारखंड के जज की हत्या: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कोर्ट के समक्ष मामला रखा; सीबीआई जांच की मांग की

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने आज सुबह झारखंड के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश उत्तम आनंद की चौंकाने वाली दिनदहाड़े हत्या को सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया।न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रहकुड की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख करते हुए विकास सिंह ने कहा कि न्यायाधीश जब सुबह की सैर पर निकले थे तभी जीप से टक्कर मारकर उनकी हत्या की गई। वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने इसे "न्यायपालिका पर बेरहमी से हमला" कहा।धनबाद में सार्वजनिक सड़क पर सुबह की सैर के दौरान...

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
'आदतें बदलने की जरूरत': सुप्रीम कोर्ट ने यतिन ओझा मामले में वकीलों के लिए बहस का समय निर्धारित किया; उद्धृत किए जाने वाले निर्णयों को सीमित किया

सुप्रीम कोर्ट ने यतिन ओझा से वरिष्ठ पदनाम (सीनियर एडवोकेट डेसिग्नेशन) वापस लेने से संबंधित मामले में सटीक मिनटों की संख्या निर्धारित की कि इतने ही समय तक अधिवक्ताओं को बहस करने की अनुमति दी जाएगी।न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने सारांश में पृष्ठों की संख्या और उद्धृत किए जाने वाले निर्णयों की संख्या की सीमा भी निर्धारित की है।बेंच ने कहा कि, "संक्षिप्त सिनॉप्सिस प्रत्येक तीन पृष्ठों से अधिक नहीं होना चाहिए और प्रति प्रस्ताव एक से अधिक निर्णय का हवाला नहीं दिया...

धारा 156 (3) के तहत जांच का आदेश देने से पहले शिकायतकर्ता की जांच करने की आवश्यकता नहीं है : सुप्रीम कोर्ट
धारा 156 (3) के तहत जांच का आदेश देने से पहले शिकायतकर्ता की जांच करने की आवश्यकता नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पुलिस जांच का आदेश देने से पहले आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 200 के तहत शिकायतकर्ता की शपथ पर जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है।ऐसा मानते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा पारित उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने इस आधार पर अग्रिम जमानत दी थी कि धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का मजिस्ट्रेट का आदेश धारा 200 सीआरपीसी के तहत शिकायतकर्ता की शपथ पर जांच किए बिना दिया गया...

क्या आपातकालीन मध्यस्थता अवार्ड भारतीय कानून में प्रवर्तनीय है ? अमेज़ॅन, फ्यूचर रिटेल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी
क्या आपातकालीन मध्यस्थता अवार्ड भारतीय कानून में प्रवर्तनीय है ? अमेज़ॅन, फ्यूचर रिटेल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी

आप धारा 37, मध्यस्थता अधिनियम में विशिष्ट शब्दों 'और किसी से नहीं' को कैसे समझते हैं?" सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फ्यूचर रिटेल से उसकी याचिका पर पूछा कि दिल्ली उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच के समक्ष उसकी अपील सुनवाई योग्य है।न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ अमेज़ॅन की याचिका पर सुनवाई कर रही है। इसमें 22 मार्च के दिल्ली उच्च न्यायालय की एक पीठ द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें एकल-न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी जिसने 24,713 करोड़ रुपये के रिलायंस-फ्यूचर सौदे...

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के कंसोर्टियम ने कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) 2021 का परिणाम जारी किया
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के कंसोर्टियम ने कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) 2021 का परिणाम जारी किया

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के कंसोर्टियम ने कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) 2021 का परिणाम घोषित कर दिया है। इसे राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के संघ की वेबसाइट पर देखा जा सकता है। जो उम्मीदवार 23 जुलाई 2021 को परीक्षा में शामिल हुए थे, वे अपने अकाउंट से लॉग इन करके पोर्टल पर अपना परिणाम देख सकते हैं।उम्मीदवार वेबसाइट पर लॉग इन करके अपना स्कोर चेक कर सकते हैं। नतीजे आने के कुछ मिनट बाद ही एनएलयू के कंसोर्टियम की वेबसाइट क्रैश हो गई। छात्रों को अपना रिजल्ट देखने में मुश्किल हो रही है।रिजल्ट यहां...

संपत्ति नष्ट करना सदन में बोलने की स्वतंत्रता नहीं  : सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा हंगामा पर मुकदमा वापस लेने की केरल सरकार की याचिका खारिज की
"संपत्ति नष्ट करना सदन में बोलने की स्वतंत्रता नहीं " : सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा हंगामा पर मुकदमा वापस लेने की केरल सरकार की याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि 2015 के केरल विधानसभा हंगामे के मामले में आरोपी माकपा के छह सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा वापस नहीं लिया जा सकता है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे संविधान के अनुच्छेद 194 के तहत विधायी विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षा के संरक्षण का दावा नहीं कर सकते,"सदस्यों की कार्रवाई संवैधानिक साधनों से आगे निकल गई है।"न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ नेकेरल राज्य और आरोपियों द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज करते हुए केरल हाईकोर्उट के 12 मार्च के...

COVID-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों की पहचान में और देरी नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को प्रक्रिया पूरा करने के निर्देश दिए
'COVID-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों की पहचान में और देरी नहीं की जा सकती': सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को प्रक्रिया पूरा करने के निर्देश दिए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मार्च 2020 के बाद दोनों या एक माता-पिता को खो चुके बच्चों की पहचान में और देरी नहीं की सकती है और आगे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रक्रिया को पूरा करने के लिए जमीनी स्तर पर कई एजेंसियों से सहायता लेने का निर्देश दिया है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की एक डिवीजन बेंच ने अनाथ की पहचान के लिए जिला मजिस्ट्रेटों को बाल कल्याण और सुरक्षा अधिकारियों को पुलिस, डीसीपीयू, सिविल सोसाइटी संगठनों, ग्राम पंचायतों, आंगनवाड़ी और आशा नेटवर्क से सहायता लेने के...

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
पीएम केयर्स में उन सभी बच्चों को शामिल किया जाए जो COVID-19 के दौरान अनाथ हुए, न कि सिर्फ वो जो COVID के कारण अनाथ हुए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मौखिक टिप्पणी की कि प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन स्थिति राहत कोष (पीएम केयर्स फंड) के तहत घोषित कल्याण योजना में उन सभी बच्चों को शामिल किया जाना चाहिए जो COVID-19 के दौरान अनाथ हो गए थे, न कि सिर्फ उन्हें जो COVID के कारण अनाथ हुए हैं।केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अदालत को सूचित किया कि पीएम केयर्स योजना में उन बच्चों को शामिल किया गया है जिन्होंने माता-पिता, या अकेले जीवित माता-पिता या कानूनी अभिभावक या दत्तक माता-पिता दोनों को खो दिया...

आईपीसी की धारा 323 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए चोट की रिपोर्ट पेश करना अनिवार्य शर्त नहीं है : सुप्रीम कोर्ट
आईपीसी की धारा 323 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए चोट की रिपोर्ट पेश करना अनिवार्य शर्त नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के तहत अपराध के लिए मामला स्थापित करने के लिए चोट की रिपोर्ट पेश करना अनिवार्य शर्त नहीं है।इस मामले में आरोपियों को आईपीसी की धारा 323 और 147 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है और छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई है। आरोपी ने कथित तौर पर "मतदाताओं की सूची छीनने और फर्जी मतदान करने के लिए" एक गैरकानूनी जमावड़े का गठन किया था और चुनाव के दौरान कुछ राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमला किया था।अभियुक्तों द्वारा उठाए गए तर्कों में से एक यह...

हम अभिजात्य दृष्टिकोण नहीं लेंगे,कोई मर्जी से भीख नहीं मांगता : सुप्रीम कोर्ट ने COVID के दौरान सड़कों पर भीख मांगने पर रोक लगाने की प्रार्थना नामंजूर की
"हम अभिजात्य दृष्टिकोण नहीं लेंगे,कोई मर्जी से भीख नहीं मांगता" : सुप्रीम कोर्ट ने COVID के दौरान सड़कों पर भीख मांगने पर रोक लगाने की प्रार्थना नामंजूर की

यह कहते हुए कि भीख मांगना गरीबी का एक कार्य और एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को COVID-19 महामारी के बीच सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर भीख मांगने पर रोक लगाने की प्रार्थना को ठुकरा दिया।जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ कुश कालरा द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें भारत में भिखारियों और आवारा लोगों या बेघर लोगों को ट्रैफिक जंक्शनों पर, बाजारों और सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगने वालों को COVID-19 महामारी के प्रसार से बचाने और उनका...

बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति के लिए फैसले में संक्षिप्त कारण दिए जाने चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति के लिए फैसले में संक्षिप्त कारण दिए जाने चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि बरी करने के आदेश के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 378 के तहत अपील करने की अनुमति के लिए एक आवेदन का निपटान करने वाले आदेश में संक्षिप्त कारण दिए जाने चाहिए।जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा,केवल यह देखते हुए कि ट्रायल न्यायाधीश के आदेश ने साक्ष्य के लिए विवेक के आवेदन के बिना एक संभावित दृष्टिकोण लिया है और निष्कर्ष उस कर्तव्य के अनुरूप नहीं है जो उच्च न्यायालय को यह निर्धारित करते समय दिया जाता है कि क्या बरी होने के किसी आदेश के...

जब तक संदेह करने का कोई कारण न हो, आंखों से संबंधित साक्ष्य सर्वश्रेष्ठ साक्ष्य हैः सुप्रीम कोर्ट
जब तक संदेह करने का कोई कारण न हो, आंखों से संबंधित साक्ष्य सर्वश्रेष्ठ साक्ष्य हैः सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में एक आरोपी को बरी करने के हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि जब तक संदेह करने के कारण न हों, तब तक आंखों से संबंधित साक्ष्य को सबसे अच्छा सबूत माना जाता है।न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि आंखों से संबंधित साक्ष्य पर तभी विश्वास नहीं किया जा सकता है जब चिकित्सा साक्ष्य और मौखिक साक्ष्य के बीच एक बड़ा विरोधाभास है और चिकित्सा साक्ष्य मौखिक गवाही को असंभव बना देता है और आंखों से संबंधित साक्ष्य के सत्य...

जब तक ऐसा इरादा इसकी शर्तों से स्पष्ट नहीं होता है, तब तक कोई आशय पत्र एक बाध्यकारी अनुबंध नहीं है : सुप्रीम कोर्ट 
जब तक ऐसा इरादा इसकी शर्तों से स्पष्ट नहीं होता है, तब तक कोई आशय पत्र एक बाध्यकारी अनुबंध नहीं है : सुप्रीम कोर्ट 

एक सरकारी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक ऐसा इरादा इसकी शर्तों से स्पष्ट नहीं होता है, तब तक कोई आशय पत्र एक बाध्यकारी अनुबंध नहीं है।न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि इस तरह का इरादा स्पष्ट और जाहिर होना चाहिए क्योंकि एलओआई आमतौर पर भविष्य में दूसरे पक्ष के साथ अनुबंध करने के लिए एक पक्ष के इरादे को इंगित करता है।यह मामला कंपनी द्वारा प्रतिवादी फर्म को 387.40 लाख रुपये के कुल काम के...

दूसरी लहर के दौरान लोग दवाओं की खरीद के लिए दौड़- धूप कर रहे थे : सुप्रीम कोर्ट ने COVID दवा जमाखोरी की जांच के खिलाफ गौतम गंभीर की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया
दूसरी लहर के दौरान लोग दवाओं की खरीद के लिए दौड़- धूप कर रहे थे' : सुप्रीम कोर्ट ने COVID दवा जमाखोरी की जांच के खिलाफ गौतम गंभीर की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गौतम गंभीर फाउंडेशन द्वारा दायर उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें भारतीय टीम के पूर्व क्रिकेटर और दिल्ली से वर्तमान भाजपा सांसद गौतम गंभीर की अध्यक्षता वाले ट्रस्ट द्वारा COVID ​​​​-19 दवाओं की कथित जमाखोरी की जांच के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर किया गया था।न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने एक व्यक्ति द्वारा आवश्यक COVID दवाओं के वितरण को अस्वीकार करते हुए मौखिक टिप्पणियां कीं कि जब लोग इस साल...

इसरो जासूसी मामला :  जस्टिस डीके जैन रिपोर्ट आरोपियों के खिलाफ आगे बढ़ने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती, सीबीआई स्वतंत्र रूप से सामग्री जुटाए  : सुप्रीम कोर्ट
इसरो जासूसी मामला : " जस्टिस डीके जैन रिपोर्ट आरोपियों के खिलाफ आगे बढ़ने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती, सीबीआई स्वतंत्र रूप से सामग्री जुटाए " : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट किया कि कुख्यात जासूसी मामले में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन के खिलाफ साजिश के कोण पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश डीके जैन द्वारा सौंपी गई जांच रिपोर्ट आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आगे बढ़ने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती है।न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने स्पष्ट किया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो को आरोपियों के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र रूप से सामग्री एकत्र करनी चाहिए और केवल न्यायमूर्ति डीके जैन समिति की रिपोर्ट पर...

यूएपीए मामलों में प्रक्रिया ही सजा, बिना मुकदमे के फादर स्टेन स्वामी की मौत का मामला हमें डराता है: जस्टिस आफ्ताब आलम
यूएपीए मामलों में प्रक्रिया ही सजा, बिना मुकदमे के फादर स्टेन स्वामी की मौत का मामला हमें डराता है: जस्टिस आफ्ताब आलम

जस्टिस आफ्ताब आलम ने शनिवार को कहा की, "यूएपीए दिखाता है कि हम किसी भी अन्य देश की तुलना में अपने लोगों की आजादी को बिना किसी जवाबदेही के लूटने के लिए तैयार हैं!"सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज सीजेएआर की ओर से आयोजित एक वेबिनार में बोल रहे थे, जिसका विषय था, "लोकतंत्र, असहमति और कठोर कानून पर चर्चा- क्या यूएपीए और राजद्रोह को हमारी कानून की किताबों में जगह मिलनी चाहिए?"जस्टिस आलम ने यूएपीए के पफॉर्मेंस ऑडिट की - संवैधानिक गारंटी और राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से- यह देखने के लिए व्याख्या की कि...