संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 4: जानिए संपत्ति अंतरण क्या होता है

Shadab Salim

29 July 2021 5:13 PM IST

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 4: जानिए संपत्ति अंतरण क्या होता है

    संपत्ति अंतरण अधिनियम सिविल विधियों में एक महत्वपूर्ण अधिनियम है तथा इस अधिनियम के अंतर्गत संपत्तियों के अंतरण से संबंधित समस्त विधान को संकलित कर अधिनियमित किया गया है।

    इस अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत संपत्ति अंतरण की परिभाषा प्रस्तुत की गई है तथा यह स्पष्ट किया गया है कि संपत्ति अंतरण क्या होता है तथा किन चीजों के अंतरण को संपत्ति अंतरण माना जाएगा। इस आलेख के अंतर्गत लेखक संपत्ति अंतरण के विषय में प्रकाश डाल रहे है तथा संपत्ति अंतरण की परिभाषा पर विस्तृत टीका नवीन न्याय निर्णय के साथ प्रस्तुत कर रहे है।

    संपत्ति अंतरण-

    संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 5 संपत्ति के अंतरण की परिभाषा प्रस्तुत करती है। इस परिभाषा के अनुसार संपत्ति के अंतरण के लिए कोई भी ऐसा कार्य जिसके द्वारा कोई जीवित व्यक्ति एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को यह स्वयं को अथवा स्वयं और एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को वर्तमान में भविष्य में संपत्ति हस्तांतरित करता है, इस काम को संपत्ति का अंतरण कहा जाता है।

    इस परिभाषा के अनुसार संपत्ति अंतरण के लिए कुछ तत्व निकलकर सामने आते हैं जैसे हस्तांतरण, जीवित व्यक्ति, वर्तमान और भविष्य में तथा स्वयं को। इन सभी तत्वों पर इस आलेख में अग्रलिखित प्रकाश डाला जा रहा है।

    हस्तांतरण-

    किसी संपत्ति को तब हस्तांतरित हुआ समझा जाएगा जब उसे एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को सुपुर्द कर दिया हो या सौंप दिया हो। इससे यह अभिप्रेत है कि हस्तांतरित करने वाला व्यक्ति उस संपत्ति को धारण करने का अधिकारी था तथा संपत्ति एक ऐसे व्यक्ति को सौंपी जा रही है जिसके पास धारणाधिकार नहीं था। ऐसे हस्तांतरण के बिना उसे धारणाधिकार प्राप्त भी नहीं हो सकता था।

    इस प्रश्न का निर्धारण करने हेतु की गई संव्यवहार हस्तांतरण है जिससे उसे संपत्ति अंतरण संज्ञा दी जा सके। यह देखना होगा कि क्या वह संव्यवहार किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में हुआ है जिसे इसके पूर्व संपत्ति में कोई अधिकार नहीं प्राप्त था। यदि अंतिम तिथि का हित संपत्ति में संव्यवहार से पूर्व भी विद्यमान था तो इसे संपत्ति अंतरण की संज्ञा नहीं दी जा सकेगी किंतु यदि ऐसा नहीं था तो संव्यवहार निश्चित ही संपत्ति अंतरण की कोटि में आएगा।

    संव्यवहार में हस्तांतरण शब्द का प्रयोग आवश्यक नहीं है। स्वामित्व में परिवर्तन ही हस्तांतरण के लिए आवश्यक होगा। इस अधिनियम के अंतर्गत संपत्ति का हस्तांतरण विक्रय, बंधक, पट्टा, विनियम तथा दान द्वारा किया जा सकेगा।

    इसके विपरीत इंग्लिश लॉ में हस्तांतरण शब्द का व्यापक अर्थों में प्रयोग किया गया है जिसके अंतर्गत विक्रय बंधक पट्टा विनियम तथा दान के अतिरिक्त प्रभार प्रलेख, निर्मोचन, दावा, त्याग इत्यादि भी सम्मिलित है।

    एक अचल सम्पत्ति का विधितः एवं वैध रूप में हस्तान्तरण केवल रजिस्ट्रीकृत विलेख द्वारा ही संभव है। अन्य संव्यवहार जैसे साधारण मुख्तारनामा या विक्रय करार या वसीयत के द्वारा हित का हस्तान्तरण नहीं होता है और यह अन्तरण के समतुल्य नहीं होते हैं अतः इन प्रक्रियाओं को सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के प्रयोजनार्थ अचल सम्पत्ति का माना जाता है को न्यायालयों द्वारा परिपूर्ण एवं समाप्त संव्यवहार नहीं माना जा सकता है क्योंकि इनके द्वारा न तो स्वत्व का अन्तरण होता है और न ही यह अचल सम्पत्ति में किसी हित का सृजन करते हैं।

    इन्हें स्वत्वाविलेख के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है सिवाय सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 53 के अन्तर्गत सीमित अर्थों में ऐसे संव्यवहारों पर न तो निर्भर हुआ जा सकता है और न ही इन्हें आधार बनाया जा सकता है।

    म्यूनिसिपल अथवा राजस्व अभिलेखों में दाखिल-खारिज की प्रक्रिया के लिए यह सिद्धान्त न केवल पूर्ण स्वामित्व वाली अचल सम्पत्तियों के अन्तरण विलेखों पर प्रवर्तनीय है अपितु पट्टाजनित सम्पत्तियों के अन्तरण पर भी प्रवर्तनीय है। एक पट्टा जनित हित का वैध अन्तरण केवल रजिस्ट्रीकृत समनुदेशन द्वारा ही सम्भव है।

    सूरज लैम्प एण्ड इण्डस्ट्रीज प्रा० लि० बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एवं अन्य के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह सुस्पष्ट किया है कि इस प्रकार के संव्यवहारों का उद्भव कतिपय अन्तरणों के सम्बन्ध में प्रतिषेधों, शर्तों का परिवर्तन करने, स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान करने से बचने तथा अन्तरण विलेखों पर रजिस्ट्रीकरण प्रभारों के भुगतान से बचाने, अन्तरण के फलस्वरूप हुए पूँजीगत अभिलाभ पर प्रभार का भुगतान करने से बचने, अलेखाकृत रकम, काला धन विनियोग करने तथा अर्जित अनुवृद्धियों जो विकास प्राधिकारियों को शोध्य है, का भुगतान करने से विरत रहने जैसी स्थितियों पर अंकुश लगाने हेतु हुआ है।

    जीवित व्यक्ति-

    इस धारा के अंतर्गत संपत्ति का हस्तांतरण केवल जीवित व्यक्तियों के बीच ही हो सकता है। दूसरे शब्दों में अंतरणकर्ता तथा अंतरीति दोनों का ही अंतरण की तिथि को जीवित होना आवश्यक है।

    यहां जीवित व्यक्ति शब्दों का प्रयोग मृत व्यक्ति के प्रतिकूल किया गया है और इसके अंतर्गत न केवल जीवित मानव सम्मिलित हैं अपितु कंपनी, निगम, संस्थाएं, फर्म क्लब इत्यादि भी सम्मिलित है।

    ऐसे निकाय भी संपत्ति धारण करने तथा हस्तांतरित करने में सक्षम हैं। इन्हें विधिक व्यक्ति की संज्ञा दी गई है क्योंकि इनका यह स्वरूप विधि की देन है किंतु इसका आशय यह नहीं है कि सभी विधिक व्यक्ति संपत्ति देने या लेने के लिए सक्षम हैं। कुछ ऐसे भी विधिक व्यक्ति हैं जिन्हें अंतरण के लिए सक्षम नहीं माना गया है जैसे कोई मूर्ति और न्यायालय।

    मूर्ति–

    'मूर्ति' अथवा 'प्रतिमा' को विधिक व्यक्ति नहीं मानी गयी है और इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि वह हस्तान्तरण के लिए सक्षम 'जीवित व्यक्ति की कोटि से परे रखा गया है। किसी 'मूर्ति' अथवा 'प्रतिमा' के पक्ष में सम्पत्ति का अन्तरण की कोटि में भी नहीं आता है अतः धारा 123 में 'दान' के लिए निर्धारित प्रक्रिया का अनुसरण आवश्यक नहीं है। उपरोक्त के अतिरिक्त हिन्दू धर्म के अनुसार किसी मूर्ति अथवा प्रतिमा द्वारा सांसारिक वस्तुओं का ग्रहण उसकी प्रकृति के प्रतिकूल है जबकि दान के लिए वस्तु का स्वीकार किया जाना आवश्यक है।

    न्यायालय-

    न्यायालय का एक विचित्र ही व्यक्तित्व है। यह 'विधिक है। यह न तो सम्पत्ति प्राप्त कर सकता और न अन्तरित कर सकता है। चूँकि न्यायालय जीवित व्यक्ति की श्रेणी में नहीं आता है। अतः इसके माध्यम से किया गया सम्पत्ति का विक्रय, इस अधिनियम के अन्तर्गत अन्तरण नहीं होगा, यद्यपि ऐसे संव्यवहारों में भी अन्तरण होता है।

    वर्तमान या भविष्य में-

    इस धारा 5 के अन्तर्गत यह सुस्पष्ट है कि सम्पति का अन्तरण या तो वर्तमान में हो सकेगा या भविष्य में किन्तु यह आवश्यक है कि अन्तरण की विषयवस्तु अर्थात् सम्पत्ति अन्तरण की तिथि को विद्यमान हो ? धारा में प्रयुक्त पदावलि 'वर्तमान में या भविष्य में हस्तान्तरण से सम्बद्ध है न कि सम्पत्ति से यदि अन्तरण के फलस्वरूप अन्तरिती तुरन्त सम्पत्ति प्राप्त करता है तो यह अन्तरण वर्तमान में होगा, किन्तु यदि वह तुरन्त नहीं प्राप्त करता है, अपितु कुछ समय के पश्चात् प्राप्त करने वाला है तो अन्तरण भविष्य में समझा जाएगा।

    उदाहरणार्थ-

    (1) क अपनी सम्पत्ति X 'ख' को उसके जीवनकाल के लिए देता है और तत्पश्चात् 'ग' को उसके जीवनकाल के लिए, और उसके बाद घ को। यहाँ 'ख' सम्पत्ति वर्तमान में प्राप्त करेगा किन्तु 'ग' और 'घ' 'ख' का हित समाप्त होने पर सम्पत्ति प्राप्त करेंगे। 'ग' और 'घ' पक्ष में अन्तरण भावी प्रकृति का है।

    (2) क अपनी संपत्ति X^ उसके जीवनकाल के लिए ख को देता है और तत्पश्चात् 'ग' को यदि वह की मृत्यु के समय 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेता है। यहाँ ख के पक्ष में हुआ अन्तरण वर्तमान में है जबकि 'ग' के पक्ष में हुआ अन्तरण भविष्य में है तथा उत्तरजीविता की शर्त के साथ है।

    यदि अन्तरण की विषयवस्तु अस्तित्व में ही नहीं है तो ऐसी वस्तु के अन्तरण का इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रश्न ही नहीं उठेगा क्योंकि अस्तित्वहीन वस्तु का अन्तरण इसके अन्तर्गत अपेक्षित ही नहीं है। अस्तित्वहीन वस्तु से सम्बद्ध करार के केवल करार के रूप में प्रभावी होगा और जब कभी भी वह वस्तु अस्तित्व में आयेगी, उसका अन्तरण हो सकेगा।

    किन्तु यह आवश्यक होगा कि जैसे ही वह वस्तु अन्तरक के पास आये, अन्तरिती उसे प्राप्त करने के लिए यथोचित कार्यवाही करे। यदि यह ऐसा करने में विफल रहता है और अन्तरक उस सम्पत्ति को किसी अन्य व्यक्ति को अन्तरित कर देता है तो अन्तरिती सम्पत्ति नहीं प्राप्त कर सकेगा।

    स्वयं को-

    आरम्भ में यह धारा भिन्न प्रकार से थी। इसके अन्तर्गत अन्तरक अन्य व्यक्तियों के पक्ष में सम्पत्ति अन्तरित कर सकता था किन्तु अपने पक्ष में वह सम्पत्ति अन्तरित करने के लिए सक्षम नहीं था।

    परिणामस्वरूप यदि कोई स्वामी अपनी सम्पत्ति का न्यास सृष्ट कर स्वयं को उसका न्यासी बनाना चाहे तो वह ऐसा करने में सक्षम नहीं था। इस प्रश्न के समाधानस्वरूप इस धारा में सन् 1929 में संशोधन किया गया था. 'स्वयं को शब्दों को इसमें अन्तः स्थापित किया गया।

    इस संशोधन ने स्वामी को इस स्थिति में ला दिया है जिसमें वह अपने पक्ष में भी संपत्ति अन्तरित करने में समर्थ हो गया है। अन्तरक स्वयं के पक्ष में अन्तरण न्यास के माध्यम से सम्भव है। यदि न्यास का जनक तथा न्यासी एक ही व्यक्ति है तो अन्तरण की कार्यवाही का पूर्ण होना आवश्यक नहीं होगा।

    न्यास की घोषणा मात्र ही पर्याप्त होगी। इस घोषणा से यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि न्यासकर्ता ने सम्पत्ति से अपना स्वामित्व विषयक हित समाप्त कर लिया है तथा सम्पत्ति को न्यासी के रूप में धारण कर रहा है।

    निम्नलिखित की स्थिति-

    अंश का अन्तरण साधारण रूप में सम्पत्ति अन्तरण से आशय है। सम्पत्ति में किसी हित का - एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास पहुंचना कुछ परिस्थितियों में सम्पत्ति में हित समग्र रूप में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास पहुंचते हैं, जबकि अन्य परिस्थितियों में समग्र रूप में न होकर, केवल आंशिक रूप में पहुँचते हैं। कुछ परिस्थितियों में ये हित संयुक्त रूप में रहते हैं। सम्पत्ति में अनन्य (एकाकी) हित अन्तरण द्वारा संयुक्त हित में परिवर्तित होता है। यह परिवर्तन अन्तरण के तुल्य माना जाएगा।

    अत: यदि कोई भागोदार अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति का भागीदार फर्म में विलय करता है तो ऐसी सम्पत्ति संयुक्त स्वामित्व के अध्यधीन समझी जाएगी और यह माना जायेगा कि उस सम्पत्ति का अन्तरण फर्म के पक्ष में हुआ है।

    यदि किसी विघटित कम्पनी का अंशधारी अपने उस अंश को भागीदारी फर्म में पूँजी के रूप में लगाता है तो यह अवधारित होगा कि उसने पूरी रकम भागीदारी फर्म में लगाया है। अतः सम्पत्ति के एक अंश का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास सम्पत्ति अन्तरण होगा।

    पारिवारिक व्यवस्था- हॉल्सवरीज लाज ऑफ इंग्लैण्ड में - पारिवारिक व्यवस्था को इस प्रकार परिभाषित किया गया है:

    पारिवारिक व्यवस्था उसी परिवार के सदस्यों के बीच एक ऐसा प्रबन्ध है जो साधारणतः और युक्तियुक्त रूप में परिवार के सम्पत्ति को अक्षुण्ण बनाये रखने या इसके सम्मान को बचा कर शान्ति और सुरक्षा स्थापित करने के उद्देश्य से होता।

    अत: पारिवारिक व्यवस्था या बन्दोबस्त या प्रबन्ध केवल एक ही परिवार सदस्यों के बीच होता है। इसका उद्देश्य सदस्यों के बीच उत्पन्न सम्पत्ति विषयक मतभेदों को समाप्त करना होता है। इससे उनके बीच अधिकारों का सृजन पहली बार नहीं होता है।

    अपितु विद्यमान अधिकारों को सन्तुलित किया जाता है। सदस्यों की मांगों को सन्तुष्ट किया जाता है, परन्तु यह आवश्यक है कि कथित विवाद वास्तविक हो काल्पनिक न हो।

    "पारिवारिक प्रबन्ध' के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय ने साधू माधोदास बनाम पण्डित राम के वाद में मत व्यक्त किया था कि 'यह पूर्णरूपेण स्थापित है कि पारिवारिक समझौता या प्रबन्ध इस अवधारणा पर आधारित है कि पक्षकारों में किसी न किसी प्रकार का पूर्विक स्वत्व विद्यमान रहता है और प्रबन्ध या व्यवस्था केवल यह स्पष्ट करती है कि वह हित या स्वत्य क्या है।

    प्रत्येक पक्षकार सम्पत्ति के उस भाग को छोड़कर जो उसके हिस्से में आता है, शेष सम्पत्ति से अपना समस्त हित त्याग देता और उस भाग पर दूसरों के हितों को स्वीकृति प्रदान कर देता है। यह अवधारणा इस तथ्य को सुस्पष्ट करती है कि क्यों ऐसे मामलों में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सम्पत्ति का स्वत्व प्रदान करने के लिए हस्तान्तरण नहीं होता है।

    यह प्रकल्पित है कि व्यवस्था के अन्तर्गत सम्पत्ति प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा की गयी स्वत्व विषयक माँग सदैव जहाँ तक उसके हिस्से में आने वाले अंश का प्रश्न है उसमें विद्यमान थी। अतः यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि विवादास्पद माँगों के सम्बन्ध में समझौता 'सम्पति अन्तरण' की कोटि में नहीं आता है। इसमें हस्तान्तरण अन्तर्विष्ट नहीं होता।

    पारिवारिक समझौता-

    पारिवारिक समझौता केवल परिवार के सदस्यों के बीच ही हो सकता है। विशेषकर उन सदस्यों के बीच जिन्हें सम्पत्ति में यह प्राप्त हो। यदि पारिवारिक सम्पत्ति एक कृषि भूमि है तथा वह भूमिधरी" प्रकृति की भूमि है तो भूमिस्वामी की पुत्री को, उक्त भूमिधरी सम्पत्ति में पिता के जीवनकाल में कोई अधिकार प्राप्त नहीं होगा अतः "भूमिधरी सम्पत्ति को लेकर पुत्रियों के पक्ष में हुआ कोई भी समझौता व्यर्थ होगा, निष्प्रभावी होगा।

    यदि ऐसे पारिवारिक समझौते को निष्पादित किया जाता है एवं उसे प्रभावी बनाने का प्रयत्न किया जाता है तो भी वह विधितः प्रवर्तनीय नहीं होगा। पारिवारिक समझौता केवल उन्हीं के बीच विधितः सम्पन्न हो सकेगा जो विधित: विवादित सम्पत्ति में हिस्सा प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत है। यदि परिवार के सदस्यों के बीच कोई समझौता होता है तो ऐसे पारिवारिक समझौते का पंजीकृत होना आवश्यक नहीं।

    विसंगति के अभाव में पारिवारिक समझौता यदि वह अपंजीकृत है तो भी वरीयता दी जाएगी। पारिवारिक समझौते पर यदि सभी भाइयों ने अपने हस्ताक्षर कर दिए हो तथा कुछ भाईयों ने जिसमें वादी भी सम्मिलित हैं, ने अपने अंश की सम्पत्ति का कुछ भाग बेच दिया हो तो ऐसा व्यक्ति वादग्रस्त सम्पत्ति के विभाजन की माँग नहीं कर सकेगा।

    यदि एक अशिक्षित महिला एक पारिवारिक समझौता विलेख पर, जिसके माध्यम से उसकी सम्पत्ति उसको पाँच पुत्रियों से समस्त बच्चों को दो जाती है और जो समझौता विलेख परिवार के सदस्यों एवं महिला के विधिक सलाहकार की उपस्थिति में तैयार किया गया हो अपने अंगूठे का निशान लगा कर अपनी मंशा अभिव्यक्त करती है तो यह समझा जाएगा कि महिला ने अपनी स्वतंत्र सहमति से उक्त संव्यवहार को मूर्त रूप दिया है। यह नहीं कहा जा सकेगा कि कथित संव्यवहार किसी कष्ट या मिथ्या व्यपदेशन का परिणाम है।

    बंटवारा (Partition)-

    किसी स्थावर सम्पत्ति का बँटवारा सम्पत्ति अन्तरण नहीं है। बँटवारा द्वारा केवल सम्पत्ति के उपभोग के स्वरूप में परिवर्तन होता है। इस प्रक्रिया में एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के पक्ष में हस्तान्तरण नहीं होता है।

    सरोन बनाम पोपलाई के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिप्रेक्षित किया था- 'बैटवारे का वास्तविक प्रभाव यह है कि प्रत्येक समांशी परिवार की समस्त सम्पत्ति में अपने अविभक्त अंश के बदले विशिष्ट अंश प्राप्त करता है। बंटवारा न तो भागीदारी में स्वत्व सृष्ट करता है और न ही उसमें अधिकार प्रदान करता है।

    इसका उद्देश्य मात्र भागीदार के अंश को सुस्पष्ट तथा सुनिश्चित करना है तथा उसे स्वतन्त्र अस्तित्व प्रदान करना है। पदावलि 'सम्पत्ति अन्तरण' से अभिप्रेत है एक ऐसा अन्तरण, जिसमें सम्पत्ति का स्वत्व सन्निहित है जिसके द्वारा अन्तरिती, जिसमें सम्पत्ति का स्वत्व निहित नहीं है, स्वत्व प्राप्त करता है। अन्तरिती, हस्तान्तरण द्वारा पहली बार सम्पत्ति में हित प्राप्त करता है।

    वी० पी० आर० प्रभू बनाम एस० पी० एस० प्रभू के वाद में तीन प्रतिवादी एक भागीदारी में सम्मिलित हुए थे। इन तीन प्रतिवादियों में से एक ने अपने पुत्रों के साथ मिलकर एक अन्य भागीदारी स्थापित किया तथा अपने भागीदारी हित को तीन हिस्सों में विभक्त कर दिया।

    पुत्रों में से एक ने पूर्ववर्ती भागीदारी के विघटन हेतु इस आधार पर वाद दायर किया कि वह अपने और अपने पिता के बीच हुए बँटवारे के फलस्वरूप मूल भागीदारी का एक सदस्य बन गया है। यह अभिनिर्णीत हुआ कि वादी तथा उसके पिता के बीच हुए बँटवारे के कारण यह मूलभागीदारी का सदस्य नहीं बना है अतः उसे विघटन कराने का कोई अधिकार नहीं है।

    निर्मोचन लेख-

    प्रतिवादी द्वारा जारी निर्मोचन लेख में केवल यह सुस्पष्ट होगा कि उसने वादी के वाद को स्वीकार कर लिया है। इसी प्रकार यदि दो व्यक्ति एक ही सम्पत्ति पर अपना अपना दावा स्थापित करें तो एक के द्वारा दूसरे के पक्ष में जारी निर्मोचन विलेख से दूसरे का अधिकार उस में निर्विवाद सिद्ध हो जाएगा। किन्तु निर्मोचन विलेख में पर्यात व्यापकता वाले शब्दों का प्रयोग कर उसे अन्तरण विलेख में परिवर्तित किया जा सकता है और यह विलेख सम्पत्ति अन्तरित करने में सक्षम होगा।

    अभ्यर्पण भी सम्पत्ति अन्तरण के तुल्य नहीं होता है। अभ्यर्पण का अर्थ है सम्पत्ति में हित इस व्यक्ति को वापस लौटाना जो उत्तरभोगी के रूप में अथवा अवरोशी के रूप में उसे तुरन्त प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत हो। इसके द्वारा सीमित हित, वृहत्तर हित समाहित हो जाता है, और यह प्रक्रिया अन्तरण नहीं होती है।

    उदाहरणस्वरूप-

    किसी विधवा द्वारा दिया गया दस्तावेज जिसके द्वारा उसने अपने मृत पति की सम्पत्ति उसके उत्तरभोगियों को प्रदान करने की सम्मति दी थी. अन्तरण नहीं होगा अभ्यर्पण की भाँति विलयन भी सम्पत्ति अन्तरण की कोटि में नहीं आता है। उत्तरभोग अधिकार के एकीकृत होने से उत्पन्न स्थिति को विलयन कहते हैं।

    प्रभार-

    प्रभार का सृजन सम्पत्ति अन्तरण नहीं है। इस प्रक्रिया में सम्पत्ति में का कोई भी हित किसी व्यक्ति के पक्ष में पहली बार हस्तान्तरित नहीं होता है। इसका उद्देश्य किसी निश्चित सम्पति से भुगतान सुनिश्चित करना है। इसमें स्वत्व अथवा हित का अन्तरण नहीं होता है। इससे केवल दायित्य सृष्ट होता है।

    सुखाधिकार-

    सुखाधिकार की परिभाषा, सुखाधिकार अधिनियम में 1882 में दी गई है। सुखाधिकार' एक ऐसा अधिकार है जो किसी अचल सम्पत्ति के स्वामी या काबिज व्यक्ति को किसी अन्य अचल सम्पत्ति पर जो उसकी अपनी नहीं है, कुछ करने या करते रहने या करने से रोकने या रोकते रहने के लिए प्राप्त होता है। इससे यह सुस्पष्ट है कि सुखाधिकार के सृजन से हित अन्तरित नहीं होता है। यह सम्पत्ति का एक अनुषंग है जो सदैव अधिभावी सम्पत्ति से सम्बद्ध रहता है।

    विनिमय-

    'विनिमय' की परिभाषा इस अधिनियम की धारा 118 में दी गयी है, जबकि दो व्यक्ति एक चीज का स्वामित्व किसी अन्य चीज के स्वामित्व के लिए परस्पर अन्तरित करते हैं और इन दोनों चीजों में से कोई भी केवल धन नहीं है या दोनों चीजें केवल धन हैं तब वह संव्यवहार विनिमय कहा जाता है। इस प्रक्रिया में सम्पत्ति का अन्तरण होता है।

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