निष्पादन संबंधी मुकदमे में कानूनी प्रतिनिधियों के असंगत दावों का भी निर्धारण किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
24 Jan 2020 11:21 AM IST
सीपीसी के आदेश XXII, नियम पांच के संदर्भ में, कानूनी वारिस निर्धारित करने का अधिकार क्षेत्र संक्षिप्त है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश XXII, नियम 5 के सिद्धांतों के मद्देनजर डिक्री पर अमल संबंधी में कानूनी प्रतिनिधियों के असंगत दावों का निर्धारण किया जा सकता है।
इस मामले में, उमा देवी को हुक्मनामा (डिक्री) मिला हुआ था, जिसपर अमल संबंधी याचिका की सुनवाई लंबित होने के दौरान उसकी मृत्यु हो गयी।
उमा देवी की छोटी बहन के बेटे ने एक वसीयत के आधार पर खुद को कानूनी प्रतिनिधि बताते हुए हुक्मनामे पर अमल के लिए अर्जी दायर की थी, जिसे ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था।
संबधित अदालत ने व्यवस्था दी कि मृतका उमा देवी के कानूनी प्रतिनिधि डिक्री पर अमल कराने के लिए अधिकृत हैं। अदालत ने देनदार की उन आपत्तियों को खारिज कर दिया था कि वसीयत फर्जी थी और हिन्दू उत्तराधिकार कानून, 1956 की धारा 15 के तहत बहन का बेटा कानूनी वारिस नहीं होता है। देनदार की ओर से दायर की गयी संशोधन याचिका में हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि वसीयत का निष्पादन असंगत परिस्थितियों से घिरा नजर आता है।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के निर्णय से असहमति जताते हुए कहा :
"अपीलकर्ता उमादेवी की वसीयत के आधार पर खुद को उनका कानूनी प्रतिनिधि होने का दावा करता है। उसने वसीयत लिखने वाले मुंशी तथा उसके गवाहों को भी पेश किया है।
गवाहों ने उमा देवी द्वारा अपनी बहन के बेटे (अपीलकर्ता) के पक्ष में वसीयत करने संबंधी बयान दिये हैं। किसी और व्यक्ति ने हुक्मनामा जीतने वाली (डिक्री-धारक) मृतका के कानूनी प्रतिनिधि के तौर पर डिक्री पर अमल के लिए अर्जी नहीं दायर की है।
उमादेवी ने ही खुद से हुक्मनामे पर अमल के लिए याचिका दायर की थी, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद अपीलकर्ता ने उसे जारी रखने की अर्जी दायर की है।
मृतका के कानूनी प्रतिनिधि के दावेदार के तौर पर किसी अन्य व्यक्ति के दावा न करने की स्थिति में हाईकोर्ट ने हुक्मनामे के निष्पादन कराने वाले कोर्ट के आदेश को दरकिनार करके उचित नहीं किया है, क्योंकि सीपीसी के आदेश XXII, नियम पांच के तहत कानूनी प्रतिनिधि के निर्धारण का उसका अधिकारक्षेत्र संक्षिप्त है।"
इसने आगे कहा :
"हम कह सकते हैं कि सीपीसी का आदेश XXII किसी मुकदमे में लंबित कार्यवाही के लिए लागू होता है, लेकिन आदेश XXII के नियम 5 के सिद्धांतों के मद्देनजर कानूनी प्रतिनिधि के परस्पर विरोधी दावों का निर्धारण निष्पादन कार्यवाही में होता है।"
बेंच ने 'वी उतिरापति बनाम अशरब' मामले में एक फैसले का उल्लेख किया था, जिसमें 'मुल्लाज कॉमेंट्री ऑन सीपीसी की इस टिप्पणी पर भरोसा किया गया था:
"नियम 12 एक छूट प्रदान करता है, जिसके तहत यदि निष्पादन संबंधी मुकदमे के लंबित रहने के दौरान ही कोई पार्टी की मौत हो जाती है तो निष्पादन संबंधी कार्यवाही पर रोक के प्रावधान नहीं लगते हैं।
इसलिए नियम यह है कि डिक्री-धारक के फायदे के लिए उसके वारिस को नियम दो के तहत प्रतिस्थापन (सब्सटीट्यूशन) के लिए कोई कदम उठाने की जरूरत नहीं होती है, बल्कि मुकदमा जारी रखने के लिए प्रतिस्थापन तुरंत होता है या कानूनी वारिस डिक्री पर अमल के लिए नयी अर्जी भी दे सकता है।"
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता वसीयत के आधार पर मृतका की सम्पत्ति का अकेला दावेदार था, बेंच ने अपील स्वीकार करते हुए व्यवस्था दी कि अपीलकर्ता मृतका के कानूनी प्रतिनिधि के तौर पर डिक्री के निष्पादन कराने के लिए सक्षम है।
मुकदमे का ब्योरा :
केस का नाम : वरदराजन बनाम कनकवल्ली एवं अन्य
केस नं. : सिविल अपील संख्या 5673/2009
कोरम : न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव एवं न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता
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