हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

12 Nov 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (6 नवंबर 2023 से 10 नवंबर 2023 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    एक बार जमानत मिलने के बाद, आरोपी को न केवल जांच में शामिल होना होगा बल्कि इसमें भागीदारी भी करनी होगी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बार जमानत मिलने के बाद एक आरोपी से हमेशा न केवल जांच में शामिल होने की उम्मीद की जाती है, बल्कि इसमें भागीदारी की भी अपेक्षा की जाती है, जबकि इस बात पर जोर दिया गया है कि जांच में "शामिल होने" और "भागीदारी" के बीच एक स्पष्ट अंतर है।

    जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा, "हाल ही में एक प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसमें एक आरोपी, अदालत में वकील के जर‌िए बयान देने या कोर्ट की ओर से शर्तें लगाए जाने के बावजूद बिना किसी वास्तविक भागीदारी के केवल कागज पर 'शारीरिक' रूप से जांच में शामिल होने का विकल्प चुनता है।''

    केस टाइटलः विनीत सुरेलिया बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य

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    पक्षकारों की संपत्ति और देनदारियों के शपथ पत्र के अभाव में पारित भरण-पोषण आदेश रद्द किया जा सकता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने दोहराया कि भरण-पोषण के दावे पर निर्णय लेने के लिए दोनों पक्षकारों को अपनी-अपनी संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करते हुए हलफनामा दायर करना आवश्यक है। ऐसे हलफनामे के अभाव में पारित कोई भी आदेश रद्द किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा, "माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, गुजारा भत्ता देते समय ट्रायल कोर्ट को दोनों पक्षकारों की संपत्ति और देनदारियों वाले हलफनामे प्राप्त होंगे। उसी के आधार पर ट्रायल कोर्ट यह तय करेगा कि गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए या नहीं। वर्तमान मामले में ट्रायल कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया। इसलिए दिनांक 11.08.2022 का विवादित आदेश रद्द किया जाने योग्य है।"

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    POCSO Act की धारा 28 | अगर एक ही मामले से संबंधित हो तो SC/ST Act के तहत अपराधों की सुनवाई पॉक्सो कोर्ट द्वारा की जा सकती है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने पॉक्सो कोर्ट को नाबालिग पीड़िता के पिता के साथ दुर्व्यवहार और हमले से संबंधित SC/ST Act के तहत अपराधों की सुनवाई करने की अनुमति दे दी है, जिसमें कहा गया कि दोनों अपराध आपस में जुड़े हुए हैं, क्योंकि घटना POCSO Act के तहत अपराध के आधे घंटे के भीतर हुई है।

    जस्टिस गोपीनाथ पी. ने एमएस.पी xxx बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य (2022 लाइवलॉ (एससी) 554) पर भरोसा किया, जिसमें बताया गया कि जब दो या दो से अधिक कार्य एक साथ मुकदमा चलाने के उद्देश्य से एक ही लेनदेन का गठन करते हैं।

    केस टाइटल: टॉमी के एम बनाम केरल राज्य

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    केवल इसलिए कि शिकायतकर्ता ने आरोपी से शादी कर ली, बलात्कार और पॉक्सो एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि शिकायतकर्ता ने आरोपी से शादी कर ली है, बलात्कार के अपराध और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, (पॉक्सो) 2012 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता। जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने POCSO अधिनियम के तहत दर्ज एक एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया, क्योंकि आरोपी और शिकायतकर्ता ने इस आधार पर इसे रद्द करने की मांग की थी कि उन्होंने अपने विवादों को सुलझा लिया है, शादी कर ली है और उन्हें एक बेटा हुआ है।

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    राज्य सैन्यीकृत क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण कर सकता है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है और निर्देश दिया है कि यदि यह सैन्यीकृत क्षेत्र के भीतर आता है तो इसे निर्माण से मुक्त रखा जाना चाहिए और " राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किए बिना" "खुले हरित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।"

    भूमि अधिग्रहण को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि भूमि सैन्यीकृत क्षेत्र में आती है और इसलिए, इसका अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और याचिका दायर करने के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

    केस टाइटलः लेफ्टीनेंट कर्नल इंदर सिंह कलां (मृतक) LRs के माध्यम से और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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    एनडीपीएस एक्ट | अभियोजक केवल फोरेंसिक रिपोर्ट इकट्ठा करने के लिए हिरासत बढ़ाने की मांग नहीं कर सकता, उसे धारा 36ए(4) के तहत शर्तों को संतुष्ट करना होगा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि एनडीपीएस एक्ट, 1985 की धारा 36-ए(4) के अनुसार जांच की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 180 दिनों की वैधानिक अवधि बढ़ाने के लिए लोक अभियोजक को जांच की प्रगति और उक्त अवधि से परे हिरासत के लिए आवश्यक विशिष्ट कारणों का उल्लेख करना चाहिए।

    एनडीपीएस एक्ट की धारा 36ए(4) के प्रावधानों का अवलोकन करते हुए जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा, "उपरोक्त प्रावधानों के अवलोकन से पता चलता है कि असाधारण परिस्थितियों में जहां 180 दिनों की उक्त अवधि के भीतर जांच पूरी करना संभव नहीं है विशेष अदालत लोक अभियोजक की रिपोर्ट पर जांच की प्रगति और आरोपी को 180 दिनों की उक्त अवधि से अधिक हिरासत में रखने के विशिष्ट कारणों को इंगित करने वाली रिपोर्ट पर उक्त अवधि को एक वर्ष तक बढ़ा सकती है।"

    टाइटल: रविंदर @ भोला बनाम हरियाणा राज्य

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    किसी अन्य व्यक्ति पर 'एसिड' के अलावा कोई भी तरल पदार्थ या पदार्थ फेंकना आईपीसी की धारा 326बी के तहत अपराध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 326-बी के तहत अपराध केवल तभी माना जाता है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर 'एसिड' फेंकता है या फेंकने का प्रयास करता है, न कि कोई अन्य तरल या पदार्थ।" इस प्रकार एक महिला द्वारा अपनी भाभी पर तेजाब फेंकने के आरोप में दर्ज की गई एफआईआर को यह कहते हुए रद्द कर दिया गया कि फेंका गया पदार्थ 'तेजाब' नहीं पाया गया और आरोप पार्टियों के बीच चल रहे संपत्ति विवाद से प्रेरित प्रतीत होता है।

    केस टाइटल : रश्मी कंसल बनाम राज्य और अन्य, WP(CRL) 712/2022

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    उड़ीसा हाईकोर्ट ने राज्य को एटीएम उपयोगकर्ताओं की पहचान करने, आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए फेशियल बायोमेट्रिक्स का उपयोग करने पर विचार करने का निर्देश दिया

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने राज्य को सभी एटीएम पर 'फेसियल बायोमेट्रिक आइडेंटीफिकेशन सिस्टम' स्थापित करने के लिए सभी बैंक अधिकारियों और विशेष रूप से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अधिकारियों के साथ चर्चा करने का निर्देश दिया है, ताकि जांच एजेंसियों को अवैध उद्देश्यों के लिए ऐसी सुविधाओं का उपयोग करने वाले व्यक्तियों की पहचान पता करने में सुविधा हो सके।

    जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस चितरंजन दास की खंडपीठ एक नाबालिग लड़की के पिता की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण की प्रकृति की एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसका दो व्यक्तियों ने कथित तौर पर अपहरण कर ‌लिया था और उसे अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था। जब मामले की सूचना पुलिस को दी गई तो भारतीय दंड संहिता की धारा 363 के तहत मामला दर्ज किया गया।

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    तलाक का तथ्य ठीक से स्थापित नहीं होने पर मुस्लिम पत्नी को भरण-पोषण देने से वंचित नहीं किया जा सकता: जेएंड के एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम शख्या को तलाक का तथ्य, जैसा कि उसने दावा किया था, स्थापित होने तक अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने का आदेश दिया है। मुस्लिम पर्सनल लॉ तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण देने पर विचार नहीं करता है। जस्टिस रजनेश ओसवाल ने हालांकि स्पष्ट किया कि विवाह विच्छेद का मुद्दा साबित नहीं होने पर पत्नी को अपने पति से किसी भी भरण-पोषण के बिना अपना जीवन जीने के लिए नहीं कहा जा सकता है।

    केस टाइटलः जहूर अहमद डार बनाम जमीला बानो और अन्य

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    ऑनलाइन गेम्स को रगुलेट करने के लिए बना तमिलनाडु कानून पोकर और रम्मी जैसे कौशल आधारित खेलों पर लागू नहीं होगा: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु ऑनलाइन जुआ निषेध और ऑनलाइन गेम विनियमन अधिनियम 2022 की वैधता को बरकरार रखा। हालांकि, अदालत ने कहा कि यह अधिनियम रम्मी और पोकर जैसे खेलों पर लागू नहीं होगा, जो कौशल के खेल हैं और यह केवल संयोग के खेलों के ‌खिलाफ लागू होगा।

    इस प्रकार चीफ जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस पीडी औडिकेसवालु की पीठ ने अधिनियम को चुनौती देने वाली ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों द्वारा दायर एक आवेदन को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों ने अधिनियम को चुनौती दी थी, जो 21 अप्रैल को लागू हुआ था। इससे पहले, अध्यादेश को चुनौती देने का प्रयास किया गया था, लेकिन अदालत ने पार्टियों को इसे वापस लेने की अनुमति दी थी क्योंकि अधिनियम अभी तक अधिसूचित नहीं हुआ था।

    केस टाइटलः ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन बनाम राज्य और अन्य

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    सरोगेसी से बच्चे पैदा करने वाली मां को मैटरनिटी लीव से इनकार नहीं किया जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया कि प्राकृतिक जैविक मां और सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा करने वाली मां को मैटरनिटी लीव देने के उद्देश्य से अलग नहीं किया जा सकता। जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल-न्यायाधीश पीठ ने यह भी कहा कि सरोगेसी की प्रक्रिया के माध्यम से जन्मे शिशुओं को दूसरों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है और उन्हें शैशवावस्था के दौरान 'मां के प्यार, देखभाल, सुरक्षा और ध्यान' की आवश्यकता होती है।

    केस टाइटल: गायत्री बनाम महाराजा गंगा सिंह यूनिवर्सिटी एवं अन्य

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    डीडीए डिमो‌लिशन| रिट कोर्ट का दायरा सीमा निर्धारण से संबंधित जटिल विवादों को सुलझाने तक विस्तारित नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट हाल ही में एक फैसले में कहा कि रिट अदालत का दायरा सीमा निर्धारण पर जटिल विवादों को हल करने तक विस्तारित नहीं है, जिसके लिए दस्तावेजों, सर्वेक्षणों, मानचित्रों की गहन जांच, उनकी वैधता का आकलन और क्षेत्रों के जमीनी अध्ययन की आवश्यकता होती है।

    चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे कार्य पूरी तरह से वैधानिक प्राधिकरणों की विशेषज्ञता और अधिकार क्षेत्र में आते हैं जो राज्य विधायिका द्वारा अधिनियमित प्रासंगिक भूमि क़ानून के तहत गठित होते हैं।

    शीर्षक: दरगाह नजीबुद्दीन फ़िरदौसी बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्‍य।

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    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी स्वामित्व विवाद मामलों की सुनवाई एक दिसंबर तक के लिए स्थगित की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज ज्ञानवापी-काशी काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी स्‍वामित्व विवाद मामलों की सुनवाई एक दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी। चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर की पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों की सहमति से यह आदेश पारित किया। यह ध्यान दिया जा सकता है कि चीफ ज‌स्टिस बेंच के समक्ष मुद्दे मस्जिद समिति द्वारा दायर याचिकाओं से संबंधित हैं, जिसमें पूजा स्थलों (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा वर्जित ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा के अधिकार की मांग करने वाले हिंदू उपासकों द्वारा दायर मुकदमे के सुनवाई योग्य होने को चुनौती दी गई है।

    केस टाइटलः अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी बनाम प्रथम ए.डी.जे. वाराणसी और अन्य

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    यदि सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत आवेदन प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करता है तो मजिस्ट्रेट प्रारंभिक जांच का आदेश दे सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत दायर एक आवेदन पर विचार करते समय उन मामलों में एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने से पहले प्रारंभिक जांच का निर्देश देने का विवेकाधिकार है, जहां उसे लगता है कि यह संज्ञेय अपराध नहीं बनता है। हालांकि, अदालत ने कहा कि प्रारंभिक जांच का दायरा प्राप्त जानकारी की सत्यता या अन्यथा की पुष्टि करना नहीं है, बल्कि केवल यह सुनिश्चित करना है कि क्या जानकारी किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है।

    केस टाइटलः खालिद खान और अन्य बनाम यूपी राज्य और दूसरा 2023 LiveLaw (AB) 426 [APPLICATION U/s 482 No. - 29284 of 2023]

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    एससी-एसटी एक्ट| एससी-एसटी समुदाय से होने के कारण पीड़ित को अपमानित करने का इरादा, आरोपी को फंसाने के ‌लिए जरूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद ‌हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत किसी को आरोपित करने के लिए यह आवश्यक है कि पीड़ित के खिलाफ आहत शब्दों का इस्तेमाल उसके एससी/एसटी समुदाय से संबं‌धित होने के कारण उसे अपमानित करने के इरादे से किया गया हो।

    जस्टिस साधना रानी (ठाकुर) की पीठ ने स्पष्ट किया कि केवल इसलिए कि पीड़िता एससी/एसटी समुदाय से है, 1989 के अधिनियम के तहत आरोपी व्यक्तियों को फंसाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा जब तक कि यह नहीं दिखाया जाता कि पीड़िता को अपमानित करने का इरादा उसकी जाति के कारण था।

    केस टाइटल: सीमा भारद्वाज बनाम यूपी राज्य और दूसरा 2023 LiveLaw (AB) 427 [CRIMINAL APPEAL No. - 7821 of 2023]

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    यूएपीए। अधिकृत हिरासत अवधि की समाप्ति से एक दिन पहले दायर डिफ़ॉल्ट जमानत की याचिका सुनवाई योग्य नहीं : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अधिकृत हिरासत अवधि की समाप्ति से एक दिन पहले दायर डिफ़ॉल्ट जमानत की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस राजेश सेखरी की पीठ ने पाया कि इस मामले में अपीलकर्ता ने 90 दिनों की अधिकृत हिरासत अवधि के 90वें दिन डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन दायर किया था।

    केस : सैयद इरफ़ान अब्दुल्ला बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश

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    धारा 17ए पीसी अधिनियम | जब आरोपी लोक सेवक ने कोई 'मांग' न की हो, लेकिन पैसा स्वीकार किया गया या उस पर थोप दिया गया हो तो पूर्व स्वीकृति आवश्यक: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने वाणिज्यिक कर विभाग के अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है और मीडिया घरानों द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत उनके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया है।

    हालांकि कोर्ट ने यातायात पुलिस कर्मियों के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को खत्म करने से इनकार कर दिया, जिन्होंने पैसे लेकर भारी वाहनों को उन क्षेत्रों में जाने की अनुमति दी थी, जहां कुछ घंटों के दौरान उनके चलने पर प्रतिबंध था।

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    धारा 294 सीआरपीसी | यदि पोस्टमार्टम रिपोर्ट की सत्यता पर आरोपी ने विवाद नहीं किया है तो डॉक्टर की जांच करना अनिवार्य नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर से पूछताछ करना अनिवार्य नहीं है, यदि उसकी रिपोर्ट की वास्तविकता पर आरोपी ने विवाद नहीं किया है। कोर्ट ने कहा कि एक बार जब आरोपी रिपोर्ट को वास्तविक मान लेता है, तो इसे ठोस सबूत के रूप में पढ़ा जा सकता है।

    केस टाइटल: लेवेन केरकेट्टा बनाम ओडिशा राज्य

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    असंतुष्ट पत्नियां आईपीसी की धारा 498-ए का हथियार के रूप में दुरुपयोग कर रही हैं: झारखंड हाईकोर्ट

    भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के दुरुपयोग के खिलाफ अपनी चिंता व्यक्त करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कानून के इस प्रावधान का 'असंतुष्ट पत्नियों' द्वारा ढाल के बजाय एक हथियार के रूप में दुरुपयोग किया जा रहा है।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा बिना उचित विचार-विमर्श के मामूली मुद्दों पर आवेश में आकर ऐसे मामले दायर किए जा रहे हैं।

    केस टाइटल- राकेश राजपूत और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य

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    मजिस्ट्रेट के सामने सहमति दिए बिना आरोपी का नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट नहीं किया जा सकता : एमपी हाईकोर्ट

    पुलिस अधिकारियों पर करोड़ों रुपये के प्राचीन सोने के सिक्के लूटने का आरोप लगाने के मामले में फैसला सुनाते हुए, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि जब आरोपियों ने संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसे परीक्षणों के लिए स्पष्ट रूप से सहमति नहीं दी है तो उनका नारको-विश्लेषण, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग परीक्षण नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल-न्यायाधीश पीठ ने यह भी कहा कि सेल्वी और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य ( 2010) का जांच एजेंसी द्वारा पालन नहीं किया गया है।

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    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को राज्य भर में लावारिस मरीजों के मेडिकल उपचार के लिए की गई व्यवस्था, आवंटित बजट को निर्दिष्ट करने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह लावारिस/परित्यक्त रोगियों के प्रभावी चिकित्सा उपचार के लिए की गई व्यवस्था और उसके द्वारा आवंटित बजट का विवरण निर्दिष्ट करे, जो जनता या किसी सार्वजनिक प्राधिकरण या सार्वजनिक-उत्साही के ध्यान में आता है।

    जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने ऐसे लावारिस मरीजों के चिकित्सा उपचार के संबंध में ज्योति राजपूत द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया ।

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    नोटरी के समक्ष विवाह अनुबंध निष्पादित करके किया गया विवाह हिंदू कानून के तहत मान्य नहीं : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में आईपीसी की धारा 375 के तहत दी गई बलात्कार की परिभाषा का ठीक से विश्लेषण किए बिना बलात्कार के एक मामले में 'सबसे अनौपचारिक और सरसरी तरीके' से फैसला सुनाने के लिए एक सत्र न्यायालय की आलोचना की।

    हाईकोर्ट ने यह बताते हुए कि कैसे निचली अदालत ने मुख्य रूप से आईपीसी की धारा 375 और धारा 201 के तहत अपराध के आरोपी एक पुलिस कांस्टेबल को बरी करने में गलती की है, हाईकोर्ट ने नोटरी के सामने निष्पादित विवाह समझौते की अमान्यता पर भी गहराई से विचार किया है।

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    साधारण स्‍पर्श POCSO एक्ट के तहत पेनेट्रेटिव सेक्‍सुअल असॉल्ट के लिए 'छेड़छाड़' नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक फैसले में कहा ‌कि स्पर्श के एक साधारण कार्य को पॉक्सो एक्ट की धारा 3 (सी) के पेनेट्रेटिव सेक्‍सुअल असॉल्ट के अपराध के लिए की गई छेड़छाड़ नहीं माना जा सकता। पॉक्सो एक्ट की धारा 3 (सी) में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से से छेड़छाड़ करता है ताकि वह योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी अन्य हिस्से में पेनेट्रेशन कर सके, बच्चे से अपने सा‌थ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा कराए, तो उसे "पेनेट्रे‌टिव सेक्‍सुअल असॉल्ट" कहा जाता है।

    केस टाइटल: शांतनु बनाम राज्य

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    उत्तर प्रदेश लोकायुक्त और उप-लोकायुक्त अधिनियम की धारा 17 अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार पर कोई रोक नहीं लगाती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश लोकायुक्त और उप-लोकायुक्त एक्ट, 1975 (Uttar Pradesh Lokayukta And Up-Lokayuktas Act) की धारा 17 में किसी भी अदालत द्वारा उसके फैसले पर पुनर्विचार पर लगाई गई रोक भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार पर लागू नहीं होती है।

    जस्टिस जे.जे. मुनीर ने लोकायुक्त की सिफ़ारिशों के आधार पर निलंबन आदेश पर कार्यवाही करते हुए आयोजित किया, "इस न्यायालय को टिप्पणी करनी चाहिए कि लोकायुक्त एक्ट, 1975 के तहत कार्य करता है। एक्ट की धारा 17(2) में लोकायुक्त या उप-लोकायुक्त के आदेश पर पुनर्विचार करने या उसे रद्द करने के न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को छोड़कर क्षेत्राधिकार के आधार पर संदर्भ नहीं दिया जा सकता कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में बाधा के रूप में अनुरोध किया गया। एक्ट की धारा 17(2) के तहत 'न्यायालय' या न्यायालय के क्षेत्राधिकार पर रोक का संदर्भ सामान्य क्षेत्राधिकार वाले न्यायालयों पर लागू होगा; संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले हाईकोर्ट पर नहीं।”

    केस टाइटल: मसूद अहमद खान बनाम यूपी राज्य और अन्य

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    नियमित जमानत याचिका लंबित होने के दौरान अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करना अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा था कि नियमित जमानत याचिका लंबित होने के बावजूद अग्रिम जमानत याचिका दायर करना अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

    जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने बंती शर्मा नामक व्यक्ति द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर कथित तौर पर कई लोगों के पैसे हड़पने के लिए आईपीसी की धारा 420, 406 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    केस टाइटल- बंटी शर्मा उर्फ ब्रह्म प्रकाश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [आपराधिक विविध अग्रिम जमानत आवेदन सीआरपीसी की धारा 438 के तहत। नंबर- 11952/2023]

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    पत्नी द्वारा निराधार आरोप लगाना, पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू करना अत्यधिक क्रूरता : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पत्नी द्वारा पति के खिलाफ गंभीर और निराधार आरोप लगाना और उसे और उसके परिवार के सदस्यों को फंसाकर उसके खिलाफ कानूनी लड़ाई छेड़ना जीवनसाथी के प्रति अत्यधिक क्रूरता है।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत पत्नी द्वारा क्रूरता के आधार पर पति को तलाक दे दिया।

    केस टाइटल : एक्स वी. वाई

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