असंतुष्ट पत्नियां आईपीसी की धारा 498-ए का हथियार के रूप में दुरुपयोग कर रही हैं: झारखंड हाईकोर्ट

Shahadat

7 Nov 2023 10:50 AM GMT

  • असंतुष्ट पत्नियां आईपीसी की धारा 498-ए का हथियार के रूप में दुरुपयोग कर रही हैं: झारखंड हाईकोर्ट

    भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के दुरुपयोग के खिलाफ अपनी चिंता व्यक्त करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कानून के इस प्रावधान का 'असंतुष्ट पत्नियों' द्वारा ढाल के बजाय एक हथियार के रूप में दुरुपयोग किया जा रहा है।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा बिना उचित विचार-विमर्श के मामूली मुद्दों पर आवेश में आकर ऐसे मामले दायर किए जा रहे हैं।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    “पति या उसके रिश्तेदारों के हाथों क्रूरता को दंडित करने के प्रशंसनीय उद्देश्य से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए को क़ानून में शामिल किया गया। हाल के वर्षों में वैवाहिक विवादों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और ऐसा प्रतीत होता है कि कई मामलों में आईपीसी की धारा 498-ए का दुरुपयोग किया जा रहा है... छोटी-मोटी वैवाहिक झड़पें अचानक शुरू हो जाती हैं, जो अक्सर गंभीर रूप धारण कर लेती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है। जघन्य अपराध जिसमें परिवार के बुजुर्गों को पत्नियों द्वारा झूठा फंसाया जाता है।”

    अदालत ने शिकायतकर्ता महिला द्वारा उसकी भाभी (पति की बहन/ननद) और जीजा के खिलाफ उसके खिलाफ अत्याचार करने के आरोप में शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

    यह अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता-अभियुक्तों का मामला था कि उनके खिलाफ दायर शिकायत में झूठे आरोप हैं, क्योंकि कथित घटना के दिन (जब यातना देने का आरोप लगाया गया था), वे एक ट्रेन में यात्रा कर रहे थे और यह यह तथ्य स्वयं याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मामले को गलत साबित करता है।

    मामले के तथ्यों और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ की गई शिकायत पर ध्यान देते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता हैदराबाद में रह रहे हैं, जबकि कथित घटना स्थल धनबाद में है और घटना की कथित तारीख पर याचिकाकर्ता यात्रा कर रहे थे। एक ट्रेन में जो बताता है कि शिकायत में गलत बयान दिए गए थे।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि इन याचिकाकर्ताओं द्वारा निभाई गई भूमिका का खुलासा नहीं किया गया और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ केवल सामान्य और सर्वव्यापी आरोप हैं।

    आईपीसी की धारा 498ए के तहत ऐसे झूठे मामले दर्ज करने पर निराशा व्यक्त करते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञान लेने के आदेश सहित पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया।

    केस टाइटल- राकेश राजपूत और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य

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