हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

5 Nov 2023 4:45 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (30 अक्टूबर 2023 से 03 नवंबर 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    नगर निगम के चुंगी विभाग के कर्मचारियों को चुंगी चोरों से वसूली गई रकम पर कमीशन पाने का निहित अधिकार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि नगर निगम के चुंगी विभाग में तैनात कर्मचारियों को चुंगी चोरों से विभाग द्वारा एकत्र किए गए समझौता शुल्क पर कमीशन (मुशाहिरा) प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है। ज‌‌स्टिस संदीप वी मार्ने ने कहा कि कर्मचारी चोरी करने वाले वाहनों को पकड़ने और चुंगी वसूलने के अपने कर्तव्यों के पालन के लिए कमीशन की मांग नहीं कर सकते।

    केस टाइटलः नगर आयुक्त, पुणे नगर निगम और अन्य बनाम आशीष लक्ष्मण चव्हाण

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    ज्ञानवापी मस्जिद के वुजुखाना क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिए एएसआई को निर्देश देने से इनकार करने वाले वाराणसी न्यायालय के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष एक नागरिक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई है, जिसमें वाराणसी जिला जज के 21 अक्टूबर के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ज्ञानवापी मस्जिद स्थित वज़ुखाना क्षेत्र ('शिव लिंग' को छोड़कर) का सर्वेक्षण करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था। पुनरीक्षण याचिका राखी सिंह (अधिवक्ता सौरभ तिवारी के माध्यम से) द्वारा दायर की गई है, जो शृंगार गौरी पूजन वाद 2022 में वादी संख्या एक हैं। (वर्तमान में वाराणसी न्यायालय में लंबित)

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    बाल यौन शोषण गंभीर मुद्दा, अपराधियों को पृष्ठभूमि, घरेलू ज़िम्मेदारियों के बावजूद पर्याप्त सज़ा दी जानी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि बाल यौन शोषण एक गंभीर मुद्दा है, जो "व्यापक और परेशान करने वाला" है, जिस पर न्याय प्रशासन और न्यायिक प्रक्रिया से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े प्रत्येक हितधारक को पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।

    जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने कहा कि इस मुद्दे को बहुत संवेदनशीलता के साथ संबोधित करने की आवश्यकता है, उन्होंने कहा कि आरोपी को उसकी सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि या अन्य घरेलू जिम्मेदारियों के बावजूद पर्याप्त सजा देना अदालत का गंभीर कर्तव्य है। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम यौन शोषण और बच्चों के यौन शोषण को जघन्य अपराध मानता है जिसे प्रभावी ढंग से संबोधित करने की आवश्यकता है।

    केस डिटेलः अजीत सिंह बनाम राज्य सरकार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और अन्य

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    धारा 438 सीआरपीसी | हिरासत में लिए गए आरोपी को किसी अन्य मामले में अग्रिम जमानत मांगने से नहीं रोका जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि किसी एक मामले में हिरासत में लिया गया आरोपी सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दूसरे मामले में अग्रिम जमानत मांग सकता है। कोर्ट जालसाजी मामले में एक आरोपी को गिरफ्तारी पूर्व जमानत देते हुए ये टिप्पणी की।

    जस्टिस एनजे जमादार ने कहा, "मैं यह मानने के लिए बाध्य हूं कि यह तथ्य कि आवेदक पहले से ही एक मामले में हिरासत में है, उसे दूसरे मामले के संबंध में गिरफ्तारी पूर्व जमानत मांगने से नहीं रोकता है, जिसमें उसे गिरफ्तारी की आशंका है।"

    केस टाइटलः अमर एस मूलचंदानी बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    सीआरपीसी के चेप्टर IX के तहत भरण-पोषण आवेदन को डिफ़ॉल्ट के कारण खारिज नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में विचार किया कि क्या सीआरपीसी के चैप्टर IX के तहत भरण-पोषण के लिए दायर आवेदन को डिफ़ॉल्ट (भरण-पोषण की मांग करने वाले पक्ष की अनुपस्थिति) के कारण खारिज किया जा सकता है। चैप्टर IX, सीआरपीसी की धारा 125-128 पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण के आदेश पर विचार करती है।

    जस्टिस सीएस डायस ने कहा कि मजिस्ट्रेट के पास डिफ़ॉल्ट के कारण चैप्टर IX सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन को खारिज करने की कोई अंतर्निहित शक्ति नहीं है। मामले के तथ्यों के अनुसार, याचिकाकर्ता-नाबालिग बेटे का प्रतिनिधित्व न करने के कारण आवेदन खारिज कर दिया गया था, जो प्रतिवादी-पिता से भरण-पोषण का दावा करने के लिए अपनी मां के माध्यम से उपस्थित हुआ था।

    केस टाइटल: एलोन क्राइस्ट स्टीफ़न बनाम स्टीफ़न एंटनी वेनसियस

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    फैमिली कोर्ट के समक्ष वैवाहिक संपत्ति, भरण-पोषण विवादों में एड-वलोरम कोर्ट फीस की आवश्यकता नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ताओं को वैवाहिक संपत्ति से संबंधित विवादों और भरण-पोषण का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए फैमिली कोर्ट में यथामूल्य अदालत शुल्क (ad valorem court fee) का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। जस्टिस गुरबीर सिंह ने कहा कि फैमिली कोर्ट के समक्ष भरण-पोषण की कार्यवाही समरी नेचर की थी, और इसलिए ऐसी कार्यवाही में यथामूल्य अदालत शुल्क लागू नहीं होता।

    केस डिटेल: सुचेता गर्ग और अन्य बनाम विनीत गर्ग और अन्य

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    सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी के भरण-पोषण के दावे की नामंज़ूरी उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण मांगने से नहीं रोकती : मप्र हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट शब्दों में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण आवेदन में दिए गए पारिवारिक न्यायालय के निष्कर्षों का घरेलू हिंसा से महिलाओं की रोकथाम अधिनियम, 2005 के तहत मामले पर विचार करने वाली अदालत पर कोई बाध्यकारी प्रभाव नहीं होगा। जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल-न्यायाधीश पीठ ने यह भी दोहराया कि एक क़ानून के तहत तय किया गया भरण पोषण आवेदन एक अलग क़ानून के तहत भरण पोषण के दावे को ख़त्म नहीं करेगा।

    केस टाइटल: भूपेन्द्र सिंह राजावत एवं अन्य बनाम रंजीता राजावत

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    वाराणसी कोर्ट में बताया गया, 'ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण ASI ने पूरा किया, रिकॉर्ड तैयार किए जा रहे हैं, 17 नवंबर तक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश

    वाराणसी जिला न्यायाधीश ने 2 नवंबर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को ज्ञानवापी मस्जिद सर्वेक्षण के बारे में अपनी रिपोर्ट 17 नवंबर तक अदालत में जमा करने का निर्देश दिया। जिला न्यायाधीश एके विश्वेश ने यह आदेश तब पारित किया जब एएसआई ने गुरुवार को उसके समक्ष प्रस्तुत किया कि उसने मस्जिद परिसर का अपना सर्वेक्षण पहले ही पूरा कर लिया है और अब उसके तकनीकी सदस्य उसी की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं।

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    फैमिली कोर्ट के पास Domestic Violence Act की धारा 18-22 के तहत राहत की मांग वाली याचिका पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के पास घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 (Domestic Violence Act) के तहत राहत की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है।

    जस्टिस अमित रावल और जस्टिस सी.एस. सुधा की खंडपीठ ने समझाया, "एक्ट की धारा 12 के प्रावधानों से पता चलता है कि पीड़ित व्यक्ति किसी भी राहत का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र है। विधायिका ने समझदारी से चुनाव के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए एक्ट तैयार किया है। पक्षकार किसी एक को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। एक्ट की धारा 12 के तहत उपाय या एक्ट की धारा 18, 19, 20 और 21 के तहत प्रदान की गई अन्य राहतों का दावा करने का अधिकार सुरक्षित रखें जैसा कि किया गया है। एक्ट की धारा 26 के प्रावधानों को स्पष्ट और सरल पढ़ने से प्रश्न स्पष्ट हो जाता है। सिविल या आपराधिक अदालत के किसी भी प्रावधान के तहत दावा करने वाला पक्ष, यहां तक कि फैमिली कोर्ट के तहत भी एक्ट की धारा 18, 19, 20, 21 और 22 के तहत दिए गए अतिरिक्त राहत का दावा कर सकता है।

    केस टाइटल: जॉर्ज वर्गीस बनाम ट्रीसा सेबेस्टियन और अन्य और जुड़ा हुआ मामला

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    सक्षम न्यायालय की रोक के अभाव में बच्चे को मां से दूर ले जाने के लिए पिता पर अपहरण का आरोप नहीं लगाया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक पिता को अपने नाबालिग बच्चे को मां से दूर ले जाने के लिए अपहरण का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, जब तक कि सक्षम अदालत का आदेश उसे बच्चे की कस्टडी लेने से नहीं रोकता है। जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मिकी एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने बच्चे की जैविक मां द्वारा आईपीसी की धारा 363 के तहत दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया, जिसमें पिता पर अपने 3 साल के बेटे को जबरन ले जाने का आरोप लगाया गया था।

    केस का शीर्षक - एबीसी बनाम एक्सवाईजेड

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    नाकाम रोमांटिक रिश्ता बलात्कार की एफआईआर दर्ज करने का कोई आधार नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कोई रोमांटिक रिश्ता नहीं चल पाता है तो यह बलात्कार का मामला दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता। जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने कहा, "यह स्थापित कानून है कि यदि कोई रिश्ता नहीं चल पाता है तो वह आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता।"

    अदालत ने एक महिला से शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने के आरोपी एक सरकारी कर्मचारी को अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।

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    किरायेदार मकान मालिक से एनओसी के बिना ध्वस्त परिसर का पुनर्निर्माण कर सकते हैं, यदि मालिक पुनर्विकास में विफल रहता है तो लागत वसूल करें: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने किरायेदारों को मुंबई नगर निगम अधिनियम की धारा 499 (6) के तहत मकान मालिक की अनुमति के बिना अपने ध्वस्त परिसर का पुनर्निर्माण करने और विध्वंस के एक वर्ष के भीतर पुनर्विकास योजना के अभाव में उससे लागत वसूलने की अनुमति दी है।

    ज‌स्टिस गौतम पटेल और जस्टिस कमल खट्टा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि किरायेदार परिसर के पुनर्विकास और स्वामित्व के आधार पर फ्लैटों पर कब्जा करने के हकदार नहीं होंगे, मतलब पुनर्निर्माण के बाद भी किरायेदार किरायेदार ही बने रहेंगे।

    केस टाइटलः चंद्रलोक पीपुल्स वेलफेयर एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    मौत की सजा के मामलों में सजा पर सुनवाई स्थगित की जानी चाहिए, जिससे अभियुक्तों को शमन कारक दिखाने के लिए समय दिया जा सके: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने POCSO Court की जल्दबाजी में 7 दिनों की सुनवाई पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में जहां क़ानून संभावित सजा के रूप में मौत की सजा का प्रावधान करता है, अदालत स्पष्ट रूप से सूचित करने के बाद सजा से संबंधित किसी भी आगे की कार्यवाही को स्थगित करने के लिए बाध्य है। अभियुक्तों को परिस्थितियों को कम करने के संबंध में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार है।

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    पीएमएलए | गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप से बताने वाला 'पंकज बंसल' मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में रियल एस्टेट समूह एम3एम के निदेशक रूप बंसल की गिरफ्तारी को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि पंकज बंसल मामले में ईडी की शक्तियों के नियंत्रण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया ऐतिहासिक फैसले के मद्देनजर पीएमएलए की धारा 19 के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने एम3एम के अन्य निदेशकों पंकज बंसल और बसंत बंसल की गिरफ्तारी को रद्द करते हुए कहा था, ''...अब से यह आवश्यक होगा कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के लिखित आधार की एक प्रति दी जाए... निस्संदेह और बिना किसी अपवाद के।"

    केस टाइटल: रूप बंसल बनाम यूनियन ऑफ इं‌डिया और अन्य

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    पत्नी अपने पति द्वारा नियोक्ता को दिया गया इस्तीफा वापस लेने की मांग नहीं कर सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि कोई पत्नी अपने पति द्वारा अपने नियोक्ता को सौंपे गए इस्तीफे को वापस लेने की मांग नहीं कर सकती। चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने इस प्रकार एकल न्यायाधीश के आदेश पर सवाल उठाने वाली अपील खारिज कर दी। उक्त आदेश के तहत नियोक्ता द्वारा पति को अपना इस्तीफा वापस लेने की अनुमति देने वाला प्रस्ताव रद्द कर दिया गया था।

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    हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 19 - ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली पत्नी भारतीय अदालत के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जहां वह कुछ समय तक रही : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि यद्यपि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 19 (जिस अदालत में याचिका प्रस्तुत की जाती है) में आने वाला 'निवास' शब्द अधिनियम के तहत परिभाषित नहीं है, लेकिन वह किसी स्थान पर तलाक की कार्यवाही पर निर्णय देने के लिए उस क्षेत्र के न्यायालय में आकस्मिक यात्रा अधिकार क्षेत्र नहीं देगी।

    केस टाइटल : श्रीमती . आदित्य रस्तोगी बनाम अनुभव वर्मा [प्रथम अपील नंबर - 1145/2023

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    विरोधाभासी निर्णयों से बचने के लिए एक ही पक्ष के बीच तलाक और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की याचिका पर एक ही अदालत द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पति द्वारा दायर तलाक के मामले को एक जिले की अदालत से दूसरे जिले की अदालत में ट्रांसफर करने की अनुमति दी, जहां परस्पर विरोधी निर्णयों से बचने के लिए समान पक्षकारों के बीच वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक अलग याचिका दायर की गई थी।

    पत्नी द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 24 के तहत ट्रांसफर याचिका दायर की गई थी, जिसमें पति द्वारा पूर्वी गोदावरी जिले के रज़ोल के सीनियर सिविल जज कोर्ट के समक्ष दायर तलाक की याचिका को पश्चिम गोदावरी जिले के ताडेपल्लीगुडेम में इस आधार पर ट्रांसफर करने की मांग की गई कि वह अपने माता-पिता के घर ताडेपल्लीगुडेम में रही है, जो रज़ोल शहर से 75 किलोमीटर की दूरी पर है।

    केस टाइटल: रुद्र बिंदु श्रीनाग लक्ष्मी बनाम रुद्र त्रिनाधा अधि प्रसन्न फणी कुमार

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    पॉक्सो एक्ट का उद्देश्य किशोरों के प्रेम संबंधों को अपराध बनाना नहीं, सहमति से संबंध जमानत देने के विचारणीय: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा, पॉक्सो एक्ट 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था और इसका उद्देश्य किशोरों के बीच सहमति से बने प्रेम संबंधों को अपराध बनाना नहीं था। जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने कहा कि आजकल यह काननू किशारों के शोषण का एक उपकरण बन गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे मामलों में जमानत देते समय सहमति से बने संबंध पर विचार किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: मृगराज गौतम @ रिप्पू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य [CRIMINAL MISC. BAIL APPLICATION No. - 45007 of 2023]

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    धारा 469 सीआरपीसी | अपराध की जानकारी की तारीख सीमा अवधि तय करती है, आरोपी कंपनी को आरओसी द्वारा नोटिस जारी करना नॉलेज का संकेत देता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा 469 के अनुसार, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ की ओर से नोटिस जारी करना आरोपी कंपनी की ओर से किए गए अपराध की नॉलेज को इंगित करता है और यह सीमा अवधि निर्धारित करता है। जस्टिस के सुरेंद्र ने स्पष्ट किया कि शिकायत शुरू करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी जारी करने की तारीख को नॉलेज की तारीख के रूप में नहीं लिया जा सकता है।

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    विवाहित जोड़े के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर होने वाली मामूली चिड़चिड़ापन और विश्वास की कमी मानसिक क्रूरता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि शादीशुदा जोड़े के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर होने वाली मामूली चिड़चिड़ापन और विश्वास की कमी को मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता। जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस मनोज जैन की खंडपीठ ने यह भी कहा कि सेक्स से इनकार को मानसिक क्रूरता का एक रूप माना जा सकता है, जहां यह लगातार, जानबूझकर और काफी समय तक पाया जाता है।

    केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

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    धार्मिक उत्सव के बारे में कथित रूप से संवेदनशील व्हाट्सएप टेक्स्ट आईपीसी की धारा 153-ए और 505 के तहत अपराध नहीं है, जब तक कि इसमें दो धार्मिक समूह शामिल न हों: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी विशेष धर्म/समुदाय के व्यक्ति द्वारा उसी धर्म/समुदाय के व्यक्ति को भेजे गए धार्मिक रूप से संवेदनशील व्हाट्सएप संदेश पर आईपीसी की धारा 153ए और 505(5) नहीं लगेगी। इसमें कहा गया है कि अपराध को आकर्षित करने के लिए दो अलग-अलग धार्मिक समूहों या समुदायों की भागीदारी आवश्यक है।

    जस्टिस विवेक रुसिया की एकल-न्यायाधीश पीठ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आरोपी द्वारा दायर एक आवेदन पर विचार कर रही थी, जिसमें कथित तौर पर 'राम नवमी' त्योहार के बारे में उसके द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को भेजे गए व्हाट्सएप टेक्स्ट के आधार पर उसके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी। आरोपी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता को यह टेक्स्ट संदेश 15.04.2022 को भेजा था।

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    भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम वहां लागू हो, जहां व्यक्तिगत कानून के तहत विवाहित पक्ष विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत हों: केरल हाईकोर्ट में याचिका

    केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर वकील ने यह घोषणा करने की मांग की है कि जिन माता-पिता का विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत है, उनके बच्चों के लिए विरासत का कानून सभी परिदृश्यों में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 होगा, भले ही पार्टियों ने शुरू में संबंधित व्यक्तिगत कानून के तहत विवाह किया हो। याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी से मुस्लिम रीति-रिवाज, जो कि इस्लामी शरीयत कानून है, के अनुसार शादी की थी और दंपति की तीन बेटियां पैदा हुईं।

    केस टाइटल: सी शुक्कुर बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में किए गए अपराध के आरोपी लोक सेवक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले पुलिस को मामले की जांच करनी चाहिए: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान किए गए अपराधों के आरोपी लोक सेवकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले गहन पूछताछ करने के लिए पुलिस अधिकारियों के कर्तव्य पर जोर दिया।

    जस्टिस सुभाष चंद ने कहा, “यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि आरोपी एक लोक सेवक है और अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान किसी भी अपराध के आरोपी संबंध में एक लोक सेवक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करते समय पुलिस अधिकारी पहले मामले की जांच करने के लिए बाध्य है। इसके पीछे उद्देश्य केवल यह है कि किसी भी लोक सेवक के खिलाफ किसी गुप्त उद्देश्य से या जबरन वसूली के उद्देश्य से तुच्छ या परेशान करने वाले आरोप न लगाए जाएं।''

    केस टाइटल: सुबोध बारा बाबू @सुबोध कुमार यादव बनाम झारखंड राज्य और अन्य

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    धारा 306 आईपीसी | सुसाइड नोट के आधार पर निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते, सामग्री की जांच की जानी चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि सुसाइड नोट में किसी व्यक्ति का नाम लिखा गया है, कोई तुरंत इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत अपराधी है, पहले सुसाइड नोट की सामग्री और अन्य परिस्थितियों के तहत पूर्ण जांच में जांच की जानी चाहिए।

    कलबुर्गी स्थित जस्टिस वेंकटेश नाइक की एकल न्यायाधीश पीठ ने हनमन्त्रय द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसका नाम मृतक बसवराज के सुसाइड नोट में दिया गया था, जिसने आत्महत्या कर ली ‌‌थी।

    केस टाइटलः हनमन्त्रय और कर्नाटक राज्य और अन्य।

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    Evidence Act की धारा 27 के तहत सह-अभियुक्त का खुलासा बयान अकेले किसी अन्य व्यक्ति को अपराध में आरोपी बनाने के लिए पर्याप्त नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि किसी व्यक्ति को एफआईआर और अंतिम आरोप पत्र में दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब अभियोजन पक्ष के पास इविडेंस एक्ट (Evidence Act) की धारा 27 के तहत तैयार किए गए कथित सह-अभियुक्तों के प्रकटीकरण बयानों को छोड़कर उसे अपराध से जोड़ने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।

    जस्टिस प्रणय वर्मा की एकल-न्यायाधीश पीठ ने याचिकाकर्ता के कहने पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) की धारा 8, 15, 25 और 29 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर और परिणामी कार्यवाही रद्द कर दी।

    केस टाइटल: जोगीराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    AP Civil Services Rules | यदि विवाह से पहले सरकारी अनुमति नहीं ली गई तो सरकारी कर्मचारी की दूसरी पत्नी उसकी मृत्यु लाभ की हकदार नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने माना कि यदि पति ने दूसरी शादी करने से पहले सरकार से अनुमति नहीं ली तो दूसरी पत्नी सरकारी कर्मचारी के रूप में काम करने वाले अपने अपने मृत पति की मृत्यु पर मिलने वाले वेतन की हकदार नहीं है।

    कोर्ट ने कहा, "यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई दस्तावेज़ नहीं है कि मृतक ने दूसरी शादी करने से पहले सरकार से कोई अनुमति ली थी या नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुस्लिम व्यक्ति समय में चार पत्नियों से शादी कर सकता है। लेकिन, सर्विस रूल्स के अनुसार, चूंकि मृतक सरकारी कर्मचारी था तो उसे दूसरी शादी करने से पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी।”

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    POCSO Act की धारा 23 के तहत उत्तरदायित्व नाबालिग की पहचान का खुलासा करने वाले मीडिया के रिपोर्टर्स और योगदानकर्ता पर लागू होता है: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि POCSO Act की धारा 23 न केवल प्रकाशकों और मीडिया आउटलेट के मालिकों पर बल्कि पत्रकारों या समाचार के योगदानकर्ताओं पर भी लागू होती है। जस्टिस बी. भट्टाचार्जी ने इस बात पर जोर दिया कि इस प्रावधान को लागू करने के पीछे विधायिका की मंशा यह है कि किसी बच्चे की पहचान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उजागर नहीं की जानी चाहिए।

    केस टाइटल: एरिक रानी और 2 अन्य बनाम मेघालय राज्य एवं अन्य

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