धारा 469 सीआरपीसी | अपराध की जानकारी की तारीख सीमा अवधि तय करती है, आरोपी कंपनी को आरओसी द्वारा नोटिस जारी करना नॉलेज का संकेत देता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

Avanish Pathak

31 Oct 2023 2:56 PM GMT

  • धारा 469 सीआरपीसी | अपराध की जानकारी की तारीख सीमा अवधि तय करती है, आरोपी कंपनी को आरओसी द्वारा नोटिस जारी करना नॉलेज का संकेत देता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा 469 के अनुसार, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ की ओर से नोटिस जारी करना आरोपी कंपनी की ओर से किए गए अपराध की नॉलेज को इंगित करता है और यह सीमा अवधि निर्धारित करता है।

    जस्टिस के सुरेंद्र ने स्पष्ट किया कि शिकायत शुरू करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी जारी करने की तारीख को नॉलेज की तारीख के रूप में नहीं लिया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    “सीआरपीसी की धारा 469 के मद्देनजर, सीमा की अवधि की शुरुआत कंपनी रजिस्ट्रार को जानकारी की तारीख से होगी। उक्त तारीख 14.06.2016 मानी जा सकती है जिस तारीख को आरोपी कंपनी को कारण बताओ नोटिस भेजा गया था... मंजूरी प्राप्त करने की तारीख अपराध की जानकारी की तारीख नहीं हो सकती है, बल्कि वह तारीख है जिस दिन नोटिस भेजा गया था या वह तारीख या कोई अन्य पिछली तारीख, जिस दिन कंपनी रजिस्ट्रार को अपराध की जानकारी हुई थी।''

    अदालत ने यह भी कहा कि शिकायत दर्ज करने की तारीख मानदंड होगी, न कि वह तारीख जिस पर अदालत उक्त शिकायत में अपराधों का संज्ञान लेती है। उक्त कारण से परिसीमा द्वारा परिवाद वर्जित होने का आधार स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    आर्थिक अपराधों के लिए विशेष जज के समक्ष शुरू की गई आर्थिक अपराधों के लिए विभिन्न आपराधिक शिकायतों की निरंतरता को चुनौती देते हुए सभी आपराधिक याचिकाएं दायर की गईं, जिसमें तर्क दिया गया कि शिकायतें सीमा से वर्जित थीं।

    कंपनी पर कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 148(8) का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था, जो अधिनियम की धारा 147 के तहत दंडनीय है। कथित उल्लंघन में 31 मार्च, 2014 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए 30 दिनों के भीतर कास्ट ऑडिट रिकॉर्ड को कास्ट ऑडिट परीक्षक द्वारा ऑडिट कराने और केंद्र सरकार को कास्ट ऑडिट रिपोर्ट जमा करने में कंपनी की विफलता शामिल थी।

    इन याचिकाओं में केंद्रीय मुद्दा यह था कि क्या शिकायतें वैधानिक सीमा अवधि के भीतर दायर की गईं थीं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि शिकायतें सीमा अवधि समाप्त होने के बाद दायर की गईं, जबकि उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि उन्हें समय पर दायर किया गया था, साक्ष्य के आधार पर अपराधों की वैधता निर्धारित करने के लिए इसे ट्रायल कोर्ट पर छोड़ दिया गया था।

    विचाराधीन नोटिस 14 जून, 2016 को दिनांकित था और इसे कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा भेजा गया था। सीआरपीसी की धारा 469 के अनुसार, सीमा अवधि अपराध की जानकारी होने की तारीख से शुरू होती है। इस मामले में वो तारीख 14 जून 2016 होगी, जब आरोपी कंपनी को नोटिस भेजा गया था।

    शिकायतें 30 मई, 2017 को दर्ज की गईं, जो सीआरपीसी की धारा 469 के अनुसार, जानकारी की तारीख के आधार पर सीमा अवधि के भीतर थी। शिकायतों के लिए मंजूरी प्राप्त करने की तारीख, जो 3 अक्टूबर, 2016 थी, को अपराध की जानकारी की तारीख नहीं माना जा सकता।

    याचिकाकर्ताओं ने कंपनी (कास्ट रिकॉर्ड और ऑडिट) नियम, 2014 के नियम 3 के तहत कंपनी के उद्योग के वर्गीकरण के बारे में भी चिंता जताई। कंपनी बीज निर्माण में लगी हुई थी, जिसे नियमों में स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध नहीं किया गया था। हालांकि, उन्होंने अपने उद्योग का उल्लेख "खाद्य तेल बीज और तेल" के रूप में किया था। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि यह उल्लेख कार्यवाही को उचित ठहराता है।

    जस्टिस सुरेंद्र ने कहा कि यह सवाल कि क्या कंपनी का उद्योग वर्गीकरण सटीक था, शिकायतों को रद्द करने की कार्यवाही के दौरान तय नहीं किया जा सकता है और इसका फैसला ट्रायल कोर्ट के समक्ष किया जाना चाहिए।

    तदनुसार, सभी तीन आपराधिक याचिकाएं खारिज कर दी गईं।

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