हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

30 July 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    High Court Weekly Round Up

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (24 जुलाई, 2023 से 28 जुलाई, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम | आरोपी को रिहा करने का मामला नहीं बना, यह जमानत कार्यवाही के बारे में पीड़ित को सूचित न करने का कोई आधार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत कुछ विशेष न्यायाधीशों द्वारा अपने आदेशों में अधिनियम की धारा 15 ए के अनुसार पीड़ितों की दलीलों पर ठीक से विचार नहीं करने की प्रथा की निंदा की।

    जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस अभय एस वाघवासे की खंडपीठ ने हत्या के एक मामले में आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा कि जमानत अर्जी पर फैसला सूचना देने वाले या पीड़ित को सूचित करने और सुनने के बाद ही किया जाना चाहिए।

    केस टाइटलः किशोर शिवदास शिंदे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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    एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम | आरोपी को रिहा करने का मामला नहीं बना, यह जमानत कार्यवाही के बारे में पीड़ित को सूचित न करने का कोई आधार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत कुछ विशेष न्यायाधीशों द्वारा अपने आदेशों में अधिनियम की धारा 15 ए के अनुसार पीड़ितों की दलीलों पर ठीक से विचार नहीं करने की प्रथा की निंदा की।

    जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस अभय एस वाघवासे की खंडपीठ ने हत्या के एक मामले में आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा कि जमानत अर्जी पर फैसला सूचना देने वाले या पीड़ित को सूचित करने और सुनने के बाद ही किया जाना चाहिए।

    केस टाइटलः किशोर शिवदास शिंदे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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    'पवित्र कुरान कहता है कि पत्नी और बच्चों की देखभाल करना पति का कर्तव्य है, खासकर जब वे विकलांग हों': कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी और बच्चों के पक्ष में गुजारा भत्ता देने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल न्यायाधीश पीठ ने मोहम्मद अमजद पाशा द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि उसके पास अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चों को 25,000 रुपये का सामूहिक गुजारा भत्ता देने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है।

    केस टाइटल : मोहम्मद अमजद पाशा और नसीमा बानो और अन्य

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    मृतक पक्ष के कानूनी उत्तराधिकारियों को रिकॉर्ड पर लाने के लिए आदेश XXII सीपीसी, मुकदमे की बहाली की कार्यवाही पर लागू होगा: जम्मू एंड कश्मीर एंड हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश XXII की प्रयोज्यता, जो मृत वादी/प्रतिवादियों के कानूनी प्रतिनिधियों को रिकॉर्ड पर लाने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, साथ ही छूट को रद्द करने की प्रक्रिया भी, केवल सूट तक ही सीमित नहीं है। जस्टिस संजय धर की एकल पीठ ने कहा कि आदेश XXII के प्रावधान मुकदमे, अपील और मुकदमे की बहाली से संबंधित कार्यवाही में समान रूप से लागू होते हैं।

    केस टाइटल: मोहम्मद रफीक खान बनाम पीएनबी

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    बलात्कार पीड़िता की गवाही अगर दूसरे आधार पर विश्वसनीय है तो देर से खुलासा करने पर उस पर संदेह नहीं किया जाएगा: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत अभियोजक द्वारा प्रदान किए गए साक्ष्य पर केवल इसलिए संदेह नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यौन शोषण तब शुरू हुआ जब वह बच्ची है, लेकिन उसने तब तक इसका खुलासा नहीं किया जब तक कि वह बहुत बड़ी नहीं हो गई। जस्टिस पी.बी. सुरेश और जस्टिस सी.एस. सुधा की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में अभियोजन पक्ष के साक्ष्य की विश्वसनीयता अलग-अलग मामलों में अलग-अलग होगी।

    केस टाइटल: राजू बनाम केरल राज्य

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    ज्ञानवापी एएसआई सर्वेक्षण - इलाहाबाद एचसी ने 3 अगस्त तक आदेश सुरक्षित रखा, तब तक एएसआई सर्वेक्षण पर रोक बढ़ाई

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के एएसआई सर्वेक्षण पर गुरुवार (3 अगस्त) तक रोक लगा दी। उस दिन हाईकोर्ट ज्ञानवापी मस्जिद के वाराणसी जिला न्यायाधीश के 21 जुलाई के एएसआई सर्वेक्षण आदेश को अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति की चुनौती पर अपना आदेश सुनाएगा। मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर की पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद यह आदेश पारित किया।

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    आईपीसी की धारा 498-ए पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता करने पर दंडित करने के लिए बनाई गई, अब इसका दुरुपयोग हो रहा है: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के दुरुपयोग को देखा, जो महिला के खिलाफ उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता से संबंधित है।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई मौकों पर आईपीसी की धारा 498-ए के दुरुपयोग और इसके दीर्घकालिक प्रभावों का विश्लेषण किए बिना वैवाहिक विवाद में पति के रिश्तेदारों को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है।

    केस टाइटल: उमेश कुमार और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य सीआरएमपी नंबर 257/2012

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    पॉक्सो एक्ट | पीड़ित की जन्मतिथि साबित करने के लिए स्कूल छोड़ने के प्रमाणपत्र पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि 'स्कूल छोड़ने का प्रमाणपत्र' (एसएलसी) का कोई स्वतंत्र साक्ष्य मूल्य नहीं है और यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम (POCSO एक्ट) के तहत मामलों में पीड़ितों की जन्मतिथि को साबित करने के लिए इस पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस संगम कुमार साहू की एकल पीठ ने कानून की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा, “एसएलसी का कोई स्वतंत्र साक्ष्य मूल्य नहीं है, जिसका उपयोग केवल किसी की जन्मतिथि को साबित करने के लिए किया जा सकता है। यह तब और भी अधिक सच हो जाता है जब एक छात्र अपने मूल विद्यालय से बाहर चला जाता है, दूसरे विद्यालय में प्रवेश लेता है और एसएलसी के आधार पर नए विद्यालय के प्रवेश रजिस्टर में अपनी जन्मतिथि दर्ज करना चाहता है। एसएलसी में पिछले स्कूल रजिस्टर में दर्ज मूल जन्मतिथि में किसी भी तरह की छेड़छाड़ से इंकार नहीं किया जा सकता है।''

    केस टाइटल: दुर्योधन माझी @ दुर्जा बनाम ओडिशा राज्य

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    एक बार एफआईआर रद्द हो जाने के बाद, मामले से संबंधित ख़बरों को हटाना प्रेस का कर्तव्य: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एक बार जब कोई एफआईआर रद्द कर दी जाती है, तो उससे संबंधित ख़बरों को हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि निरंतर प्रसार संभावित रूप से उस व्यक्ति के गुडविल को नुकसान पहुंचा सकता है जिसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। हालांकि, अदालत ने इस स्तर पर ख़बरों को हटाने के लिए कोई निर्देश पारित नहीं किया।

    चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने एक एनआरआई व्यवसायी द्वारा दायर अपील की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। 2020 में उनके और पांच अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

    केस टाइटल: आरपीआर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य लेटर पेटेंट अपील - संख्या 192/2022 आर/एससीए/1843/2022 में

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    तलाक के मामलों का फैसला फैमिली कोर्ट को एक साल के भीतर करना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अदालतों (ट्रायल कोर्ट) को एक साल के भीतर वैवाहिक मामलों को निपटाने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए, जिनमें विवाह के विघटन/अमान्यता के लिए प्रार्थना शामिल है। जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "वैवाहिक मामलों की सुनवाई और निपटारा युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए, कम से कम मानव जीवन की अल्पावधि के लिए रियायत के रूप में।"

    केस टाइटल : एन राजीव और सी दीपा

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    बच्चे को जन्म न दे पाना शादी खत्म करने का वैध आधार नहीं: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी पति की ओर से दायर तलाक की याचिका खारिज करते हुए की। दरअसल, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत पति की तलाक की अर्जी फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ पति ने रिवीजन पिटिशन पटना हाईकोर्ट में दायर किया।

    अदालत ने कहा- महिला के गर्भाशय में सिस्ट है। इसलिए वो बच्चा पैदा नहीं कर पा रही है। महिलाओं में ओवेरियन सिस्ट होने पर पेट में सूजन, दर्द, यौन संबंध बनाने के दौरान दर्द होना, उल्टी जैसे लक्षण हो सकते हैं। पति उसे तलाक देकर दूसरी महिला से शादी करना चाहता है ताकि वो बच्चा पैदा कर सके।

    केस टाइटल: एसके बनाम आरडी

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    सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कानून में बदलाव से सक्षम अदालत के पिछले फैसले प्रभावित नहीं होते, त्रुटिपूर्ण फैसले रेस ज्युडिकेटा के रूप में काम कर सकते हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि किसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिया गया अलग दृष्टिकोण सक्षम अदालतों द्वारा उसके पहले दिए गए निर्णयों पर बाध्यकारी नहीं है। इसलिए एक ही मुद्दे पर समान पक्षों के बीच रेस ज्युडिकेटा का सिद्धांत लागू होगा।

    जस्टिस सचिन शंकर मगदुम की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को अधिक से अधिक कानून में बदलाव के रूप में माना जा सकता है, लेकिन इससे पहले के फैसले प्रभावित नहीं होंगे।"

    केस टाइटल: वेंकटेश और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य

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    न्यायालयों को आईपीसी की धारा 71 के तहत शासनादेश के मद्देनजर अपहरण के दोषी को धारा 363 और 366 दोनों के तहत सजा नहीं देनी चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि एक दोषी को भारतीय दंड संहिता की धारा 363 (अपहरण के लिए सजा) और धारा 366 (किडनैपिंग, एब्डक्‍शन या महिला को शादी के लिए मजबूर करने के लिए उकसाना आदि) दोनों के तहत सजा नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि धारा 366 पूरी तरह से मूल सजा को कवर करती है जो धारा 363 के तहत निर्धारित है।

    अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 363/366/376(2)(i)(n) सहपठित यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई। उस पर आरोप था कि उसने नाबालिग पीड़िता का अपहरण कर लिया और उसके साथ बार-बार बलात्कार किया और उस पर गंभीर यौन हमला भी किया।

    केस टाइटल: बापुन सिंह बनाम ओडिशा राज्य

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    न्यायालयों को आईपीसी की धारा 71 के तहत शासनादेश के मद्देनजर अपहरण के दोषी को धारा 363 और 366 दोनों के तहत सजा नहीं देनी चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि एक दोषी को भारतीय दंड संहिता की धारा 363 (अपहरण के लिए सजा) और धारा 366 (किडनैपिंग, एब्डक्‍शन या महिला को शादी के लिए मजबूर करने के लिए उकसाना आदि) दोनों के तहत सजा नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि धारा 366 पूरी तरह से मूल सजा को कवर करती है जो धारा 363 के तहत निर्धारित है।

    अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 363/366/376(2)(i)(n) सहपठित यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई। उस पर आरोप था कि उसने नाबालिग पीड़िता का अपहरण कर लिया और उसके साथ बार-बार बलात्कार किया और उस पर गंभीर यौन हमला भी किया।

    केस टाइटल: बापुन सिंह बनाम ओडिशा राज्य

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    धारा 444 सीआरपीसी | अगर जमानतदार खुद को आरोपमुक्त करना चाहता है तो अदालत को उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं करनी चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर जमानतदार खुद को आरोपमुक्त करना चाहते हैं तो अदालतों को उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं करनी चाहिए। जस्टिस संगम कुमार साहू की सिंगल जज बेंच ने फैसला सुनाया कि अदालतों को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 444 के आदेश का पालन करना चाहिए और जमानतदारों को उनके बांड जब्त करने से पहले सुनवाई का उचित अवसर देना चाहिए।

    केस टाइटल: प्रदीप कुमार दास बनाम ओडिशा राज्य

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    धारा 482 सीआरपीसी को जम्मू-कश्मीर घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत शुरू की गई कार्यवाही को चुनौती देने के लिए लागू नहीं किया जा सकता: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 का उपयोग जम्मू और कश्मीर घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2010 की धारा 12 के तहत शुरू की गई कार्यवाही या उसके तहत पारित आदेशों को चुनौती देने के लिए नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस रजनेश ओसवाल ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका पर यह फैसला सुनाया, जिसमें सत्र न्यायालय और मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेशों को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता को अपने चार बच्चों का भरण-पोषण करने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटल: खालिद अमीन कोहली बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश

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    दूसरी पत्नी आईपीसी की धारा 498ए के तहत पति और ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करा सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि दूसरी पत्नी की पति और उसके ससुराल वालों के खिलाफ दायर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए (क्रूरता) के तहत शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस एस रचैया की सिंगल बेंच ने कंथाराजू द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और उसकी दूसरी पत्नी की शिकायत पर दोषसिद्धि आदेश को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: कंथाराजू और कर्नाटक राज्य

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    जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के पास 'क्रिमिनल कोर्ट' के सभी प्रवाधान हैं, जो कि धारा 6(2)(एफ) के तहत पासपोर्ट रोकने को उचित ठहराता है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक किशोर न्याय बोर्ड के पास एक आपराधिक न्यायालय के सभी प्रावधान हैं, जो जेजेबी के समक्ष कार्यवाही का सामना कर रहे व्यक्ति को पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6 (2) (एफ) के तहत पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज जारी न करने को उचित ठहराता है।

    धारा 6(2)(एफ) पासपोर्ट को अस्वीकार करने का प्रावधान करती है जहां आवेदक द्वारा किए गए कथित अपराध के संबंध में कार्यवाही भारत में एक आपराधिक अदालत के समक्ष लंबित है।

    केस टाइटल: हाज़िक वांग्नू बनाम जम्मू-कश्मीर का यूटी

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    कर्नाटक हाईकोर्ट ने न्यायिक आदेशों की जानबूझकर अवज्ञा के लिए सिविल कारावास पर दिशानिर्देश जारी किए

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश XXXIX नियम 2ए के तहत अदालत के आदेशों की जानबूझकर अवज्ञा के लिए आरोपी को सिविल कारावास का आदेश देते हुए ट्रायल अदालतों द्वारा पालन किए जाने वाले दिशानिर्देशों का सेट जारी किया।

    जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने कहा, “प्रावधान का अंतर्निहित दर्शन उपचारात्मक है और गलत काम करने वाले को दंडित करने के बजाय न्यायालय के आदेश के अनुपालन को लागू करना है। साथ ही यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि मुकदमे के किसी भी पक्ष को यह धारणा नहीं बनानी चाहिए कि जो अंतरिम आदेश का उल्लंघन करता है, वह लंबी सजा का हकदार है। कानून के शासन न्यायालय की महिमा को बनाए रखने और न्यायालय के आदेश की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में भी इस प्रावधान की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।

    केस टाइटल: टी सुधाकर पई और अन्य और मेसर्स मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन एंड अन्य

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    यदि जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट में केवल गैर-संज्ञेय अपराध पाया जाता है तो मजिस्ट्रेट ट्रायल आगे बढ़ा सकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि कोई मजिस्ट्रेट संज्ञेय और गैर-संज्ञेय दोनों अपराधों से जुड़ी शिकायत पुलिस को भेजता है और पुलिस जांच में केवल गैर-संज्ञेय अपराध का पता चलता है तो मजिस्ट्रेट कानूनी रूप से उस अपराध के मुकदमे को आगे बढ़ाने के लिए अधिकृत है।

    जस्टिस ए बदरुद्दीन ने दोहराया कि यदि किसी मामले में संज्ञेय और गैर-संज्ञेय दोनों अपराध शामिल हैं तो पुलिस सीआरपीसी की धारा 155 (4) के अनुसार सभी अपराधों के लिए जांच कर सकती है और आरोप पत्र दायर कर सकती है।

    केस टाइटल: सुमेश बनाम केरल राज्य एवं अन्य

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    सीआरपीसी की धारा 436 के तहत दी गई जमानत केवल हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय द्वारा धारा 439(2) के तहत रद्द की जा सकती है: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 436 के तहत दी गई जमानत को उसी अदालत द्वारा रद्द नहीं किया जा सकता है, जिसने जमानत दी है। साथ ही यह केवल सत्र न्यायालय या हाईकोर्ट द्वारा संहिता की धारा 439 (2) के तहत किया जा सकता है।

    जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कानून की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, “सीआरपीसी की धारा 436 में जमानत रद्द करने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि, सीआरपीसी की धारा 439 की उपधारा (2) ऐसा प्रतीत होता है कि यह केवल ऐसी शक्ति प्रदान करने वाला प्रावधान है, लेकिन केवल हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय को इस तरह की शक्ति प्रदान करता है।”

    केस टाइटल: चिन्मय साहू बनाम उड़ीसा राज्य

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